श्वसन पर आधारित प्रयोग बताइए , experiments on respiration in plants in hindi प्रयोग द्वारा दर्शायें कि
प्रयोग द्वारा दर्शायें कि श्वसन की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है। श्वसन पर आधारित प्रयोग बताइए , experiments on respiration in plants in hindi ?
किण्वन (Fermentation)
किण्वन वह उपापचयी प्रक्रिया है जिसमें वायु की अनुपस्थिति में शर्करा का कार्बनिक अम्ल अथवा एल्कोहल में परिवर्तन यह प्रक्रिया कोशिकाओं (muscle cells) में अथवा सूक्ष्मजीवों (यथा यीस्ट, जीवाणु आदि) के कारण होती है। इसमें अम्ल अथवा एलकोहल के अतिरिक्त कार्बन डाइ ऑक्साइड भी मुक्त होती है।
अवायवीय श्वसन किण्वन शब्द का पर्यायवाची है। किण्वन की खोज 1797 में क्रूइकरोंक (Cruickshank) ने की थी। फ्लूजर (Pfluger, 1875) ने इसे आन्तरआणविकी श्वसन (intra molecular respiration) तथा कोस्टेटचेव (Kostytlchev) . ने इसे अवायवीय श्वसन कहा। यहाँ आण्विक ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट दो अथवा अधिक सरल अणुओं में विघटित होते हैं। अवायवीय श्वसन (anaerobic respiration) में ग्लूकोज अणुओं के कार्बन-अणु पूर्णरूप से CO2 के रूप में मुक्त नहीं होते हैं। कभी कभी तो यह बिल्कुल ही मुक्त नहीं होते हैं। इस क्रिया में माइटोकॉन्ड्रिया की आवश्यकता नही होती एवं यह क्रिया पूर्णरूप से कोशिकाद्रव्य में सम्पन्न होती है। अर्थात अवायवीय श्वसन के सभी विकर कोशिकाद्रव्य में उपस्थित होते हैं। दोनों ही क्रियाओं के एक समान होने के निम्न कारण है:-
- दोनों ही क्रियाओं में हेक्सोज शर्करा श्वसनाधार होती हैं।
- उच्च पादपों में जायमेज एन्जाइम सभी उत्तकों में उपस्थित होता है।
- पायरूविक अम्ल एवं एसीटएल्डीहाइड दोनों ही क्रियाओं के मध्य उत्पाद (intermediates) होते हैं।
- दोनों ही क्रियाओं में उत्पाद (CO2 एवं C2 H5 OH) एक ही होते हैं।
- दोनों क्रियाओं में अकार्बनिक फास्फेट की आवश्यकता होती है।
(किण्वन के प्रकार (Types of fermentation)
- एल्कोहालिक किण्वन/अवायवीय श्वसन (Alcoholic fermentation/anaerobic respiration) यह मुख्यतः प्रकार की किण्वन क्रिया है जो यीस्ट, जीवाणु एवं कुछ उच्च पादपों में पायी जाती है। किण्वन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम पाश्चर (Pasteur 1857 ) ने यीस्ट के एल्कोहॉलिक किण्वन के लिए किया था। बुकनर (Buchner, 1897) ने जायमेज एन्जाइम नको यीस्ट कोशिकाओं से प्राप्त किया जो कि शर्करा के यीस्ट कोशिकाओं की अनुपस्थिति में भी किण्वन करने में समक्ष था।
किण्वन बहुत सी शर्कराओं के घोल जैसे फ्रक्टोज (fructose), गैलेक्टोज (galactose), मैनोज (maninose) एवं डाइसैकेराइड्स में होता है। जौ के दानों में अंकुरण के समय शर्करा की मात्रा बढ़ जाने से किण्वन होता है। एल्कोहलिक किण्वन दो चरणों में सम्पन्न होता है –
(i) पायरूविक अम्ल की डीकार्बोक्सीलेशन (decarboxylation) से एसिटएल्डीहाइड (acetaldehyde) एवं CO2 प्राप्त होती है।
2CH2COCOOH पायरूविक डीकार्बोक्सीलेज TPP 2CH3CHO + CO2
पायरूविक अम्ल (Pyruvic acid) (Pyruvic decarboxylase) TPP एसिटएल्डीहाइड (Acetaldehyde)
(i) NAD. 2H से एसिटएल्डीहाइड का अपचयन एल्कोहॉल में हो जाता है।
2CH3CHO + 2NAD. 2H एल्कोहलिक डीहाइड्रोजीनेज 2C2H5OH + 2NAD
एसिटएल्डीहाइड (Acetaldehyde) (Alcoholic dehydrogenase) एथिल एल्कोहल (Ethylalcohol)
इसलिए हम कह सकते हैं कि ग्लूकोज के एक अणु से पायरूविक अम्ल के दो अणु प्राप्त होते हैं। सम्पूर्ण अभिक्रिया को निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है।
C6H12O5 जायमेज → 2C2 H5 OH + 2CO2 + 58K Cal
(Zymase)
- लैक्टिक अम्ल किण्वन (Lactic acid fermentation)
इस क्रिया में ग्लाइकोलिसिस के अन्त में बने पायरूविक अम्ल को होमोफरमेनटेटिव लेक्टिक अम्ल जीवाणु ( लेक्टोबेसिलस लेक्टिकाई, Lactobacillus lactici) द्वारा लेक्टिक अम्ल में परिवर्तित कर दिया जाता है।
2CH3COCOOH + 2NADH. H लेक्टिक अम्ल डीहाइड्रोजीनेज 2C3H6O3
Lactic acid dehydrogenase
पायरूविक अम्ल (Pyruvic acid) लेक्टिक अम्ल (Lactic acid)
- लैक्टिक अम्ल एवं एथिल एल्कोहाल किण्वन (Lactic acid and ethyl alcohol fermentation)
2CH3COCOOH + 2NADH.H हैटेरोफरमेन्टेटिव लेक्टिक अम्ल जीवाणु C3H6O3 + C2H5OH+ CO2
(Heterofermentative lactic acid bacteria)
पायरूविक अम्ल लेक्टिक अम्ल एथिल एल्कोहल
(Pyruvic acid (Lactic acid) (Ethyl alcohol)
- एसिटिक अम्ल किण्वन (Acetic acid fermentation)
(i) CH3COCOOH एसीटोबेक्टर एसिटीबेक्टीरियम CH3CHO+CO2
(Acetobacter acetobacterium)
पायरूविक अम्ल
(Pyruvic acid
(ii) CH3CHO +H2O CH3COOH
एसिटएल्डीहाइड -2H एसिटिक अम्ल
(Acetaldehyde) (Acetic acid)
5 ब्यूटायरिक अम्ल किण्वन (Butyric acid fermentation)
अवायवीय जीवाणु – बैसिलस ब्यूटायरिकस (Bacillus butyricus) एवं क्लॉस्ट्रिडियम ब्यूटायरिकम (Clostridium butyricum) पायरूविक अम्ल को ब्यूटायरिक अम्ल (butyric acid) में परिवर्तित कर देता हैं।
(i) पायरूविक अम्ल + H2O) एसिटोएसिटिक अम्ल
(Pyruvic acid) -CO2 (Acetoacetic acid)
(ii) एसिटोएसिटिक अम्ल +H2O ब्यूटायरिक अम्ल
(Acetoacetic acid) -H2O (Butyric acid)
इसलिए विभिन्न उद्योगों में महत्वपूर्ण पदार्थ कार्बोहाइड्रेट के अपूर्ण आक्सीडेशन से प्राप्त होते हैं।
श्वसन पर आधारित प्रयोग (Experiments on respiration)
- पादपों में वायवीय श्वसन का प्रदर्शन (Demonstration of aerobic respiration in plants)
इस प्रयोग में एक रेस्पायरोस्कोप (respiroscope) लिया जाता है। रेस्पायरोस्कोप में एक छोटी मुड़ी हुई उर्ध्वनली होती है जिसके अन्त में एक बल्ब लगा होता है। इसे एक स्टैण्ड पर लगा दिया जाता है। तथा इसके बल्ब में कुछ अंकुरित बीज अथवा पुष्प कलिकाऐं (जिनके हरे भाग निकाल दिये जाते हैं।) डाल दी जाती है। रेस्पायरोमीटर की नली को ब्राइन (नमक का संतृप्त विलयन) जल/ पारे से भरे बीकर में डुबो दिया जाता है। मुड़े हुए भाग में कॉस्टिक पोटाश (caustic potash) की कुछ गोलियाँ तथा जल से भीगी रूई का फाहा लगा दिया जाता है। इस उपकरण को 2-3 दिन तक रख दिया जाता है। प्रेक्षण करने पर रेस्पायरोस्कोप की नली में ब्राइन जल / पारे का तल बढ़ा हुआ पाया जाता है। यह तल इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि श्वसन में मुक्त CO2 को KOH की गोलियों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इसलिए ब्राइन जल का प्रयोग किया जाता है।
- पादपों में अवायवीय श्वसन का प्रदर्शन (Demonstration of anaerobic respiration in plants)
चने के भीगे हुए बीजों में से बीज चोल हटा दिया जाता है जिससे कि गैसों का विनिमय सरलता पूर्वक हो सके है।
अब पारे से भरी हुई एक परखनली को पारे से भरी पेट्री डिश में उल्टा करके रख दिया जाता है। अब इसमें चिमटी की सहायता से बीजों को डाल देते हैं।
कुछ दिनों बाद (1-2 दिन) परखनली में पारे का तल नीचे हो जाता है। अब यदि KOH की कुछ गोलियाँ इस नली में डाली जाये तो यह गैस को अवशोषित कर लेती हैं। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि मुक्त गैस CO2 होती है। क्योंकि यह क्रिया O2 की अनुपस्थिति में सम्पन्न होती है इस लिए यह प्रयोग अवायवीय श्वसन का प्रदर्शन करता है।
- श्वसन के दौरान उष्मा ऊर्जा के मुक्त होने का प्रदर्शन
(Demonstration of liberation of heat energy during respiration) एक थर्मस फ्लास्क में कुछ अंकुरित बीज रखे जाते हैं तथा इसका तापमान थर्मामीटर से ले लिया जाता है। कुछ दिनों बाद (1-2 दिन) तापमान लेने पर यह बढ़ा हुआ पाया जाता है।
- गैनोंग्स रेस्पायरोमीटर से श्वसन गुणांक का मान ज्ञात करना (To find out respiration quotient (RQ) using Ganong’s respirometer)
गैनोंग्स रेस्पायरोमीटर के तीन भाग होते है: (i) इसमें एक बल्ब होता है। पहला बल्ब ढक्कनदार जिसमें कि श्वसनाधार रखा जाता है। बल्ब के ढक्कन एवं ग्रीवा मैं एक छिद्र होता है। यह छिद्र ढक्कन के घुमाने से खोला अथवा बन्द किया जा सकता है।
(ii) एक अंशाकित (graduated) मैनोमीटर नलिका ।
(iii) अंशाकित नलिका से एक लेवलिंग नली ( levelling tube) अथवा रीजरवायर (reservoir) नलिका, छोटी रबड़ नली के सहारे जुड़ी रहती है। इस सम्पूर्ण उपकरण को स्टैण्ड में लगा दिया जाता है।
श्वसनाधार जिसके RQ का मान ज्ञात करना होता है उसे छोटे बल्ब में रूई के गीले फाहे के साथ रखा जाता है। अब काँच की नली में ब्राइन जल अथवा पारा भर दिया जाता है तथा दोनों नलियों में तल समान कर दिया जाता है। बल्ब के ढक्कन को घुमाकर छिद्र बन्द कर देते हैं। इस उपकरण को कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता है। इसे रखने से पहले मैनोमीटर नली का मान (V1) नोट कर लिया जाता है। प्रयोग खत्म होने के बाद फिर से तल का मान (V2) ले लिया जाता है। अब KOH की गोली नली के खुले सिरे से डाल दी जाती है तथा अन्तिम मान (V3) ज्ञात कर लेता है तथा तल में अन्तर देखा जा सकता है। अब RO के मान की गणना कर ली जाती है ।
- यदि श्वसनाधार कार्बोहाइड्रेट होता है तो मैनोमीटर के तल में कोई अन्तर नहीं आता है क्योंकि मुक्त CO2 प्रयुक्त O2 के बराबर होती है। इसलिए V1, V2, V3 का मान भी समान होता है।
RQ= CO2/O2 = V2 – V3/V1 – V3 = 1
- यदि श्वसनाधार वसा अथवा प्रोटीन होते हैं तब मैनोमीटर का तल बढ़ जाता है क्योंकि प्रयुक्त O2 की मात्रा मुक्त CO2 से अधिक होती है। इसलिए
“RQ= CO2 / O2 V2– V3 / V1-V3 =>1
- यदि श्वसनाधार कार्बनिक अम्ल होते हैं तो मैनोमीटर का ‘तल घट जाता है क्योंकि मुक्त CO2 की मात्रा प्रयुक्त O2 से अधिक होती है। इसलिए-
RQ = CO2/O2 = V2-V3/V1-V3 =<1
श्वसन गुणांक (Respiration quotient)
निश्चित समय में निश्चित भार के श्वसनाधार द्वारा मुक्त CO2 एवं प्रयुक्त O2 के आयतन के अनुपात को श्वसन गुणांक (respiration quotient, RQ) कहते हैं।
RQ = मुक्त CO2 का आयतन
प्रयुक्त O2 का आयतन
श्वसन गुणांक का मान श्वसन में प्रयुक्त श्वसनाधार की रासायनिक प्रकृति पर निर्भर करता है। इसे गेनोग्स रेस्पाइरोमीटर (Ganong’s respirometer) के द्वारा नापा जा सकता है। श्वसन गुणांक के मान से हमें श्वसनाधार एवं श्वसन के प्रकार का ज्ञान हो सकता है ।
जब कार्बोहाइडेट का पूर्ण आक्सीकरण होता है तो श्वसन गुणांक का मान इकाई (unit = 1 ) होता है। परन्तु जब श्वसनाध् र वसा एवं प्रोटीन होते हैं तो श्वसन गुणांक का मान इकाई से कम (0.5 से 0.9) होता है। जब श्वसनाधार कार्बनिक अम्ल होते हैं तब श्वसन गुणांक का मान इकाई से अधिक (1.3 से 4.0) होता है। रसदार पादपों में जैसे नागफनी (Opuntia). ब्रायोफिलम (Bryophyllum) में कार्बोहाइड्रेट का ऑक्सीकरण अपूर्ण होता है, CO2 मुक्त नहीं होती तो इनका श्वसन गुणांक शून्य होता है।
श्वसन गुणांकों (RQ) का वर्गीकरण (Classification of R Q values)
- कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) – RQ का मान एक (1) होता है जब कार्बोहाइड्रेट पूर्ण रूप से विघटित हो जाते हैं।
C6H12O6 + 6O2 6CO2 + 6H2 O + E
RQ= 6CO2 /6O2 = 1
उपरोक्त क्रिया सामान्य रूप से श्वसनरत पादप कोशिकाओं में पायी जाती है।
- वसा (Fats ) – वसा एवं प्रोटीन्स में कार्बोहाइड्रेट की तुलना में कम आक्सीजन होती है। इसलिए इनके पूर्ण विघटन में अधिक मात्रा में आक्सीजन प्रयुक्त होती हैं। इस कारण इनके RQ के मान भी एक से कम होते हैं।
C57H104O6 + 80O2 57CO2 + 52H2O +E
ट्राइओलिन (Triolein)
RQ= 57CO2 =0.71
80O2
2C51H98O6 + 145O2 102CO2 + 98H2O + E
ट्राइपाल्मिटिन (Tripalmitin)
RQ= 102 CO2 =0.70
145O2
सामान्यतः वसा के RQ मान 0.7 एवं प्रोटीन के RQ मान 0.5 होते हैं।
- कार्बनिक अम्ल (Organic acids) – कुछ पादप विशेष परिस्थितियों में कार्बनिक अम्लों को श्वसन आधार के रूप में प्रयुक्त करते हैं। कार्बनिक अम्लों में कार्बोहाइड्रेट की तुलना में O2 अधिक होती है। अतः इनके पूर्ण आक्सीकरण में कम आक्सीजन प्रयुक्त होती है। यही कारण है कि कार्बनिक अम्लों युक्त पादपों में RQ का मान एक से अधिक होते हैं। 2C2H2O4 + O2 4CO2 + 2H2O+E..
अंक्जेलिक अम्ल (Oxalic acid)
RQ = 4CO2 /1O2 = 4
2C4H6O6 + 5O2 → 8CO2 + 6H2O + E
टार्टरिक अम्ल (Tartaric acid)
RQ = 8CO2/5O2 = 1.6
C4H6O5 + 3O2 4CO2 + 2H2O + E
मैलिक अम्ल (Malic acid)
RQ= 4CO2/3O2 = 1.3
2C4H6O4 + 7O2 8CO2 + 6H2O + E
सक्सिनिक अम्ल (Succinic acid)
RQ = 8CO2/7O2 = 1.1
- बीजों का अंकुरण (Germination of seeds) – अंकुरण के समय वसा कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित होती है जिससे अधिक मात्रा में आक्सीजन प्रयुक्त होती है। इस स्थिति में RQ का मान वास्तविक मान से कम होता है।
- फलों का परिपक्वन (Ripening of fruits) – कोशिका की उपापचयी अभिक्रियाओं में कभी-कभी अधिक मात्रा में आक्सीजन मुक्त होती है। इसलिए यहाँ कम मात्रा में वातावरणीय आक्सीजन प्रयुक्त होती है। यह स्थिति फलों के परिपक्वन के समय प्रस्तुत होती है जब कार्बोहाइड्रेट वसा में परिवर्तित होते हैं ।
19C6H12O6 → 2C57H104O6 + 10H2O + 46O2
ग्लूकोज (Glucose) ट्रायोलिन (Triolien )
उपरोक्त स्थिति में RQ का मान वास्तविक मान से अधिक होता है। यदि वातावरणीय आक्सीजन प्रयुक्त नहीं होती एवं मुक्त आक्सीजन पूर्ण रूप से प्रयुक्त हो जाती है तब इस स्थिति में RQ का मान अनंत (infinite) होता है।
- अवायवीय श्वसन (Anaerobic respiration)- अवायवीय श्वसन में मुख्यतः CO2 मुक्त होती है तथा O2 प्रयुक्त नहीं। होती। यहाँ RQ का मान अनंत (infinite) होता है।
C6H12O6 → 2C2H5OH + 2CO2 + E
RQ= 2CO2 /O2
- क्रेसुलेसीयन पादप (Crssulacean plants) – इन पादपों में रात्री के समय श्वसन में कार्बोहाइड्रेटस के विघटन से कार्बनिक अम्ल बनते हैं। यहाँ O2 प्रयुक्त होती है परन्तु CO2 मुक्त नहीं होती। इसलिए RQ का मान शून्य होता है।
2C6H12O6 + 3O2 + 3CO2 – 3C4H6O5 + 2H2O + E
ग्लूकोज (Glucose) मैलिक अम्ल (Malic acid)
RQ = CO2/3Q2 = शून्य
श्वसन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors effecting respiration)
आक्सीजन (Oxygen)
आक्सीकरण के लिए आक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसकी अनुपस्थिति में अवायवीय श्वसन/किण्वन होता है। आक्सीजन की वह निम्न मात्रा जो कि अवायवीय श्वसन के लिए आवश्यक होती है उसे विलोपन बिन्दु ( extinction point) कहते हैं। यह ज्यादातर 2-10% होती है। आक्सीजन की कम मात्रा में एक स्थिति आती है जब वायवीय श्वसन एवं अवायवीय श्वसन दोनों ही सम्पन्न होते हैं इस समय काल को संक्रमण काल (transitional period) कहते हैं। इस समय RQ का मान बढ़ जाता है तथा अवायवीय श्वसन में यह अनंत (infinite) हो जाता है।
संक्रमण काल (transitional period) के समय एक स्थिति पर वायवीय श्वसन निम्न एवं अवायवीय श्वसन अनुपस्थित होता है। इस समय कार्बनिक पदार्थों का विघटन एवं मुक्त CO2 कम हो जाती है। इसे पाश्चर प्रभाव (Pasteur effect) कहते हैं ।, की सान्द्रता 5% 25-30% तक बढ़ाने पर श्वसन दर बढ़ जाती है।
- कार्बन डाईआक्साइड (Carbon dioxide)
कार्बन डाइआक्साइड की सान्द्रता बढ़ने पर श्वसन दर कम हो जाती है। CO2 की अधिक मात्रा में रन्ध्र (stomata) बन्द हो जाते हैं जिससे कि CO2 का विसरण कम होता है। यही कारण है कि श्वसन अंगों में विषाक्ता उत्पन्न हो जाती है।
- प्रकाश (Light)
प्रकाश की तीव्रता (intensity) अधिक होने पर प्रकाश संश्लेषी तथा अप्रकाश संश्लषी ऊतकों में श्वसन दर बढ़ जाती है। कार्बनिक पदार्थों का अधिक निर्माण अथवा संकुल (complex) पॉलीसेकेराइड का सरल घुलनशील शर्कराओं में परिवर्तन अथवा अधिक रन्धों के खुलने से अधिक गैस विनिमय अथवा तापमान के बढ़ने से श्वसन दर प्रभावित होती है।
लेक्टुका सटाइवा (Lactuca sativa) में श्वसन दर प्रकाश की गुणवत्ता (quality) से प्रभावित होती है। बीज अंकुरण के समय लाल प्रकाश से श्वसन में वृद्धि एवं नीले प्रकाश से श्वसन घटता
- तापमान (Temperature)
ऊष्णकटिबंधीय (tropical) क्षेत्रों में 0°C पर श्वसन नगण्य होता है तथा 45-55°C पर कोशिकाद्रव्य का स्कन्दन (coagulation) हो जाता है जिससे कि पादपों की मृत्यु हो जाती है। परन्तु अधितापप्रिय (thermophilic) पादप उच्च तापमान को सहन कर सकते हैं। शीतोष्ण क्षेत्र (temperate) एवं ध्रुवों पर 0°C तापमान पर भी पदाप सामान्य पाये जाते हैं। यह – 20°C तक के कम तापमान को भी सह सकते हैं। बीज भी 40 से 50°C तक के कम तापमान को सहन कर सकते हैं। उष्णकटिबन्धीय (tropical) क्षेत्रों के पादपों के लिए अनुकूलतम तापमान 25-30°C तथा शीतोष्ण श्रेत्रों के पादपों के लिए यह 10°C होता है। बहुत से पादपों में श्वसन दर वोन्ट हॉफ (Von’t Hoff) के नियम अनुसार प्रभावित होती है। 0-25°C तापमान के लिए ताप गुणांक 2-3 होता है। 20-30°C के लिए Q10 का मान एक (1) होता है। 30°C के बाद प्रारम्भ में दर बढ़ती है तथा शीघ्र ही यह घट जाती है। उच्च तापमान पर (i) श्वसन में प्रयुक्त विकर विकृत (denature) हो जाते हैं, (ii) O2 आवश्यकता से कम मात्रा में उपलब्ध होती है। (iii) अधिक मात्रा में CO2 मुक्त होने से विषाक्ता बढ़ती है तथा (iv) आवश्यकता से कम मात्रा में श्वसनाधार उपलब्ध होता है।
- जल ( Water )
शुष्क बीजों में श्वसन दर बहुत कम होती है क्योंकि उनमें 8-12% जल होता है। कुछ सीमा तक जल की मात्रा बढ़ाने पर श्वसन बढ़ता है। गेहूँ में (16-18%) जल से कोशिका की स्फीत, कोर्बोहाइड्रेट के जलअपघटन (hydrolysis) से, श्वसन विकरों की सक्रियता बढ़ जाती हैं एवं जल से आक्सीजन के अवशोषण से श्वसन दर बढ़ती है।
- खनिज लवण (Mineral salts)
Fe Cu, K, Mg Mn, Mo इत्यादि श्वसन विकरों के सक्रियक (activators) अथवा संरचनात्मक घटक (structural compounts) होते हैं। N एवं P विकरों के निर्माण तथा P ऊर्जा अणु निर्माण में प्रयुक्त होता है। लुन्डरगड़ (Lundergarh) के अनुसार श्वसन दर खनिज अवशोषण के समय बढ़ जाती है। यह वृद्धि खनिज श्वसन (salt respiration) कहलाती है।
- कार्बनिक पदार्थ ( Organic substance)
आक्सिन (auxin) एवं जिब्रेलिन (gibberelin) श्वसन दर एक सीमा तक बढ़ाते हैं। अनेक खरपतवारनाशी भी दर बढ़ाते हैं इसलिए खरपतवार नष्ट हो जाती है। सायनाइड ( cynides), कार्बन मोनो आक्साइड (carbon monoxide) एजाइडस (azides) इत्यादि श्वसन विकरों के संदतक होते है जिससे श्वसन दर घट जाती है।
- श्वसनाधार (Respiratory substrate)
सामान्यतः श्वसनाधार एवं श्वसन में रेखीय सम्बन्ध होता है। श्वसनाधार बढ़ाने से श्वसन दर बढ़ती है। प्रकाश की तीव्रता बढ़ने से प्रकाश संश्लेषी क्रिया के बढ़ने से घुलनशील शर्करा बढ़ जाती है क्योंकि इससे कम प्रकाश तीव्रता से उच्च प्रकाश संश्लेषी क्रिया होती है जिससे घुलनीशील शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है।
- आयु (Age)
तरूण कोशिकाओं में परिपक्व कोशिकाओं की तुलना में श्वसन दर अधिक होती है। अंकुरण के समय, श्वसन दर अधि ाक होती है। यह कायिक कोशिकाओं में कम, पुष्पन के समय अधिक तथा फल परिपक्वन के समय और अधिक होती है। जब श्वसन दर अधिक होती है तब इस प्रकार के फलों को क्लाइमेट्रिक फल (climactric fruits) कहते हैं। इस समय एथिलीन मुक्त होती है।
- जीवद्रव्य स्थिति (Protoplasmic factors)
विभज्योतक कोशिकाओं (meristematic cells) का जीवद्रव्य बहुत ही सक्रिय होता है। इनकी श्वसन दर उच्च होती है। परन्तु परिपक्व कोशिकाओं में जीवद्रव्य कम सक्रिय होता है इसलिए इनकी श्वसन दर कम होती हैं सुषुप्त (dormant) अंगों की कोशिकाओं में श्वसन दर बहुत ही निम्न होती है।
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