इक्विटी शेयर क्या होता है | सामान्य शेयर किसे कहते है परिभाषा अर्थ मतलब equity shares in hindi
equity shares in hindi meaning defintion इक्विटी शेयर क्या होता है | सामान्य शेयर किसे कहते है परिभाषा अर्थ मतलब ?
इक्विटी शेयर
कंपनी अधिनियम, 1956 के अनुसार, शेयर एक अंश अथवा इकाई है जिसके द्वारा कंपनी का शेयर पूँजी विभाजित किया जाता है। यह अधिनियम शेयर पूँजी की दो श्रेणियों का प्रावधान करता है: इक्विटी शेयर और अधिमान शेयर । इक्विटी पूँजी सभी ऋणों और अन्य प्रभारों का भुगतान करने अथवा उसके लिए प्रावधान करने के पश्चात् परिसम्पत्तियों का मूल्य है। इस प्रकार इक्विटी शेयर पूँजी को अवशेष पूँजी भी कहा जाता है।
इक्विटी शेयर स्वामित्व के प्रमाण पत्र हैं, जो धारक को उसके द्वारा धारित शेयरों की सीमा तक कंपनी का स्वामित्व प्रदान करता है। कंपनी इन शेयरों को आम जनता के लिए (श्सार्वजनिक निर्गमश् के रूप में) और विद्यमान शेयरधारकों के लिए भी (‘अधिकार निर्गम‘ के रूप में) जारी करती है। विद्यमान शेयर धारकों को जारी शेयरों के लिए मूल्य चुकाना पड़ सकता है (जिसे अधिकार निर्गम कहा जाता है) अथवा यह निरूशुल्क भी हो सकता है (जिसे बोनस निर्गम कहा जाता है) बोनस निर्गम की स्थिति में कंपनी को कोई अतिरिक्त पूँजी नहीं प्राप्त होगी।
इक्विटी पूँजी को जोखिम पूँजी भी कहा जाता है, क्योंकि इक्विटी शेयर धारकों को अधिक जाखिम होता है। अनेक कंपनियाँ कई वर्षों तक लाभांश घोषित करने में सक्षम नहीं हो सकती है अथवा अत्यन्त ही कम लाभांश दे सकती है। कुछ कंपनियों के मामले में इक्विटी शेयर के रूप में निवेश की गई पूँजी भी कंपनी के खराब कार्य निष्पादन के कारण डूब सकती है।
लाभ
क) इक्विटी शेयर धारकों को प्रतिदेय नहीं है क्योंकि ये वापसी योग्य नहीं हैं। इसके फलस्वरूप, कंपनियों को स्थायी पूँजी प्राप्त होती है और उन्हें बार-बार पूँजी नहीं खोजनी पड़ती है। इससे कंपनियों का काफी धन और समय बचता है और उन्हें अपनी ऊर्जा इन मुद्दों में बर्बाद करने की आवश्यकता नहीं होती है।
ख) सुदृढ़ इक्विटी आधार वाली कंपनी ऋण स्रोतों के माध्यम से और पूँजी जुटा सकती है।
ग) इक्विटी शेयरों के मामले में लाभांश का भुगतान करने के लिए कंपनियों पर कोई विनिर्दिष्ट दायित्व नहीं है। इसके परिणामस्वरूप, कंपनी व्यापारिक प्रचालनों से हुए लाभ को अपने पास रख सकती हैं और इसे लाभप्रद विस्तार और विविधिकरण परियोजना में पुनर्निवश कर सकती है। यदि लाभांश का भुगतान नहीं किया जाता है, नए निर्गमों के माध्यम से निधियाँ जुटाना कठिन होगा। तब कंपनियाँ ऋण पूँजी की ओर उन्मुख होती है जिसके लिए ब्याज का भुगतान किया जाता है।
हानियाँ
क) इक्विटी पूँजी जुटाने की लागत अधिक है क्योंकि इस पर इक्विटियों का विपणन लागत आता है। अंतिम लाभ निकालने से पहले कर उद्देश्यों के लिए भुगतान किया गया लाभांश भी व्यय के रूप में व्यवकलनीय (कटौती योग्य) नहीं है। इसके अलावा, इक्विटी धारक अधिक प्रतिलाभ की अपेक्षा करते हैं क्योंकि वे अधिक जोखिम उठाते हैं।
ख) जनता से इक्विटी पूँजी जुटाने से अल्पकाल में लाभ में वृद्धि नहीं भी हो सकती है क्योंकि इससे प्रतिशेयर आय घट जाती है।
ग) कभी-कभी, जनता से नई इक्विटी पूँजी जुटाने के परिणामस्वरूप प्रवर्तकों के नियंत्रणकारी शक्तियों में कमी आ सकती है जिसके कारण कंपनी के विद्यमान प्रबन्धन को अपनी मताधिकार शक्ति घटने के कारण नियंत्रण खोना पड़ सकता है।
एक कंपनी तीन प्रकार से इक्विटी शेयर जारी करके इक्विटी पूँजी जुटा सकती है। वे हैं: सार्वजनिक निर्गम, अधिकार निर्गम और प्राइवेट प्लेसमेण्ट । अब हम इन तीनों पर संक्षेप में विचार करेंगे।
क) सार्वजनिक निर्गम: इस निर्गम के साथ, कंपनियाँ अपने शेयरों को अभिदान के लिए आम जनता के सामने प्रस्तुत करती है जिससे कि कंपनियों शेयर पूँजी प्राप्त हो सके। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) और कंपनी अधिनियम 1956 ने सार्वजनिक निर्गम जारी करने की इच्छा रखने वाली कंपनियों द्वारा अनुसरण किए जाने वाली कतिपय नियमों और प्रक्रियाओं को निर्धारित किया है। किसी सार्वजनिक निर्गम को सफल बनाने के लिए अनेक क्रियाओं से गुजरना पड़ता है। इनमें से कुछ क्रियाएँ निम्नलिखित हैं:
1) जिस परियोजना के लिए निधियों को जुटाना है उसका विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन तैयार करना।
2) विवरणिका तैयार करना और सेबी तथा अन्य साविधिक निकायों के सम्मुख इसे प्रस्तुत करना।
3) निर्गम के लिए रजिस्ट्रार, मर्चेण्ट बैंकर, अंडरराइटर और बैंकर नियुक्त करना।
4) आबंटन के आधार पर अंतिम रूप प्रदान करना, और
5) आबंटन के आधार के अनुसार, आबंटियों को शेयर प्रेषित करना।
ख) अधिकार शेयर: कंपनी अधिनियम के अनुसार, विद्यमान कंपनियाँ सार्वजनिक निर्गम के अतिरिक्त अधिकार आधार पर विद्यमान शेयरधारकों को शेयर जारी कर सकती है। इसे अधिकार निर्गम के रूप में जाना जाता है और कंपनियाँ इस रूप में भी अतिरिक्त संसाधन जुटा सकती हैं। शेयरधारक अधिकार शेयरों को प्राप्त कर सकता है अथवा किसी अन्य को इन अधिकारों को बेच और हस्तांतरित कर सकता है यदि वे ऐसा करना चाहते हों। यह निर्गम नियंत्रण शक्तियों को कम किए बिना संसाधन जुटाने का अच्छा माध्यम है।
ग) प्राइवेट प्लेसमेण्ट: प्राइवेट प्लेसमेण्ट में अत्यन्त ही सीमित संख्या में लोगों अथवा संगठनों को शेयर जारी किए जाते हैं। इस प्रणाली में, कंपनियों वित्तीय मध्यस्थों, निवेश कंपनियों, इत्यादि के माध्यम से निगमन गृह को थोक में शेयर जारी करती है। सेबी दिशा-निर्देशों के अन्तर्गत कंपनी प्राइवेट प्लेसमेण्ट प्रणाली के अन्तर्गत 99 व्यक्तियों से अधिक को शेयर नहीं जारी कर सकती है। कंपनियाँ, जो प्राइवेट प्लेसमेण्ट में शेयर खरीदती है, इन शेयरों को द्वितीयक बाजार में बेच सकती है और लाभ कमा सकती है।
मताधिकार-रहित शेयर
एक कंपनी के लिए बिना मताधिकार के इक्विटी शेयर जारी करना संभव है। इस प्रकार के शेयर विद्यमान प्रबन्धकों के लिए कंपनी पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए तथा मताधिकार में कमी नहीं आने देने के लिए अत्यन्त ही उपयोगी है। ये मताधिकार-रहित शेयर सभी तरह से, सिर्फ मताधिकार को छोड़कर, इक्विटी शेयरों के सदृश हैं। इन शेयरधारकों को अपना मताधिकार छोड़ने के बदले में थोड़ी अधिक दर पर लाभांश मिलता है। यदि एक कंपनी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए लाभांश की अदायगी में विफल रहती है तो ये मताधिकार-रहित शेयर स्वतः ही साधारण इक्विटी शेयरों में परिवर्तित हो जाते है।
अधिमान शेयर
अधिमान शेयर वे हैं जिन्हें अन्य प्रकार की प्रतिभूतियों की तुलना में कतिपय अधिमानी अधिकार हैं। इन शेयरधारकों को लाभांश के भुगतान और इन शेयरों में निवेश किए गए धन के पुनर्भुगतान के संबंध में विशेष रूप से दो अधिमानी अधिकार हैं। इन शेयरधारकों को किसी भी अन्य प्रकार के शेयरधारकों की तुलना में लाभांश के भुगतान में प्राथमिकता है तथापि, इन शेयरधारकों को लाभांश के भुगतान के लिए कंपनी पर जिम्मेदारी नहीं है। किंतु जब कभी लाभांश के भुगतान पर विचार किया जाता है तो सामान्य इक्विटी शेयरधारकों को भुगतान करने से पहले इन शेयरधारकों को भुगतान करना होगा। इसी प्रकार, कंपनी के परिसमापन की स्थिति में पूँजी के पुनर्भुगतान में अधिमान शेयरधारकों की अपेक्षा प्राथमिकता मिलती है। सामान्यतया, इन शेयरधारकों को कंपनी में मताधिकार नहीं होता है।
अधिमान शेयर विभिन्न प्रकार के होते हैं। वे हैं रू प्रतिदेय अधिमान शेयर, संचयी अधिमान शेयर और परिवर्तनीय अधिमान शेयर । प्रतिदेय अधिमान शेयर सहमत शर्तों के अनुसार पुनः शोधित होते हैं। संचयी अधिमान शेयरों पर शेयरधारकों को लाभांश का भुगतान प्रतिवर्ष नहीं किया जाता है अपितु यह वर्षों तक संचित होता है तथा सहमत शर्तों के अनुसार भुगतान किया जाता है। परिवर्तनीय अधिमान शेयरों को सहमत शर्तों के अनुसार इक्विटी शर्तों में बदल दिया जाता है। संचयी परिवर्तनीय अधिमान शेयर भी एक अन्य प्रकार का अधिमान शेयर है जिसे सरकार ने पहले पहल 1985 में शुरू किया था। ये शेयर नई परियोजनाओं, विद्यमान परियोजनाओं के विस्तार और विविधिकरण हेतु निधियाँ जुटाने के लिए थे। इन शेयरों पर 10 प्रतिशत लाभांश निर्धारित होता है
और ये 3 से 5 वर्षों की अवधि में इक्विटी शेयर में परिवर्तित हो जाते हैं। तथापि, इस प्रकार के शेयर लोकप्रिय नहीं हो सके।
कंपनियाँ सामान्यतया प्रवर्तकों के नियंत्रण अधिकार को बनाए रखने के लिए अधिमान शेयर जारी करती है।
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