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Entropy of an Ideal Gas in hindi आदर्श गैस की एन्ट्रॉपी क्या है , सूत्र की स्थापना , निर्भर करता है

जाने Entropy of an Ideal Gas in hindi आदर्श गैस की एन्ट्रॉपी क्या है , सूत्र की स्थापना , निर्भर करता है ?

आदर्श गैस की एन्ट्रॉपी (Entropy of an Ideal Gas) जब किसी अनन्त सूक्ष्म स्थैतिक कल्प प्रक्रम में किसी आदर्श गैस को ऊष्मा दी जाती है तो उससे ताप T एवं आयतन V में परिवर्तन होता है। ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम से

δQ = dĒ + pdv

नियत आयतन पर मोलर विशिष्ट ऊष्मा की परिभाषा से.

द्वितीय नियम से यह अनन्त सूक्ष्म स्थैतिक कल्प प्रक्रम में एन्ट्रॉपी परिवर्तन के बराबर होता है।

एन्ट्रॉपी परिवर्तन

माना एक आदर्श गैस की प्रारंभिक स्थूल अवस्था में दाब Po, आयतन Vo तथा ताप To हैं। समीकरण (1) अनंत सूक्ष्म स्थैतिक कल्प प्रक्रम के लिए वैध होने के कारण प्रक्रम में ताप एवं आयतन में परिवर्तन अत्यन्त मंद करवाते हैं ताकि प्रक्रम में प्रत्येक अत्यन्त सूक्ष्म परिवर्तन के पश्चात् निकाय सन्तुलन अवस्था में रहे। अब यदि परिवर्तन के अन्त में परिणमी अवस्था में प्रक्रम का दाब p, आयतन V तथा ताप T होता है तो एन्ट्रॉपी में कुल परिवर्तन

यदि प्रक्रम की विशिष्ट ऊष्मा ताप पर निर्भर नहीं करती है तो

यदि प्रारम्भिक स्थूल अवस्था में निकाय को मानक अवस्था अर्थात् निर्देश अवस्था ( reference state) में मान लें तो निकाय की एन्ट्रॉपी ताप T एवं आयतन V पर निर्भर करेगी अर्थात्

समीकरण (3) में नियतांक को निर्देश अवस्था की एन्ट्रॉपी So ताप To तथा आयतन Vo द्वारा ज्ञात कर सकते हैं। इस समीकरण से स्पष्ट है कि ताप T एवं आयतन V में वृद्धि करने से एन्ट्रॉपी में वृद्धि होती है। एन्ट्रॉपी समीकरण S = k ln Ω से जब एन्ट्रॉपी में वृद्धि होती है तो निकाय के अभिगम्य (accessible) ऊर्जा स्तरों की संख्या में वृद्धि होती है। अतः यह कहा जा सकता है कि निकाय के ताप T एवं आयतन में वृद्धि करने से निकाय की अभिगम्य ऊर्जा स्तरों की संख्या में वृद्धि होती है।

(i) ताप T एवं दाब p के पदों में एन्ट्रॉपी परिवर्तन

आदर्श गैस के समीकरण से,

(ii) दाब p एवं आयतन V के पदों में एन्ट्रॉपी परिवर्तन

आदर्श गैस के अवस्था समीकरण से,

विलगित निकाय के साम्यावस्था प्रतिबन्ध (Equilibrium Conditions of an Isolated System)
किसी विलगित निकाय की अवस्था को स्थूल रूप से प्राचल (Parameter) y या ऐसे अनेक प्राचलों से वर्णित कर सकते हैं। विलगित निकाय के लिए कुल ऊर्जा नियत रहती है । प्राचल y इस निकाय के किसी ^ उप निकाय की ऊर्जा या आयतन हो सकता है। अतः स्पष्ट है कि विलगित निकाय की अवस्था के साथ संलग्न ऊर्जा स्तरों की संख्या प्राचल y की S फलन होगी। माना विलगित निकाय के लिए प्राचल का मान У तथा y + δy के बीच होने पर अभिगम्य स्तरों की संख्या Ω(y) है तथा निकाय की एन्ट्रॉपी है।S(y) = k ln Ω (y) …………(1)
जहाँ k बोल्ट्जमान नियतांक है।
समीकरण (1) से
Ω(y) = exp S (y) /k

प्रायिकता के सिद्धान्त से साम्यावस्था में निकाय के लिये प्राचल y तथा y + δy के बीच रहने की प्रायिकता (probability) सभी अभिगम्य स्तरों में समान होती है। इसलिए प्रायिकता निकाय की अभिगम्य स्तरों की संख्या के समानुपाती होगी।
P(y) ∝ sΩ (y)
समीकरण (2) से,
P(y) ∝ exp S(y)/k ……(3)

यदि किसी मानक स्थूल अवस्था के लिए y का मान yo होता है व उस अवस्था में एन्ट्रॉपी So हो तो

यदि प्राचल y स्वेच्छ रूप से परिवर्तित होती है तो निकाय के साम्यावस्था में आने के लिये परिवर्तन उस ओर अग्रसर होता है जिस दिशा में प्रायिकता का मान अधिकतम हो जाये अर्थात् साम्यावस्था की स्थिति में,
प्राचल y = ȳ पर P(y) = Pmax (ȳ)
अतः समीकरण (3) से साम्यावस्था की स्थिति पर निकाय की एन्ट्रॉपी अधिकतम होनी चाहिए। के विभिन्न मानों के लिए प्रायिकताओं का अनुपात इन मानों पर एन्ट्रॉपी के अन्तर द्वारा ज्ञात किया जा
प्राचल y सकता है।
एन्ट्रॉपी S का उच्चिष्ठ तीक्ष्ण न होने पर भी चर घातांकी फलन होने के कारण अभिगम्य अवस्थाओं की संख्या Ω व प्रायिकता P(y) के बहुत तीक्ष्ण उच्चिष्ट होता है अतः प्राचल y का मान सामान्यतः ȳ के बहुत निकट ही रहता है जहाँ एन्ट्रॉपी S का अधिकतम मान होता है।
किसी विशेष निकाय के लिए एन्ट्रॉपी S के प्राचल y पर निर्भरता में एक से अधिक उच्चिष्ठ हो सकते हैं (चित्र 3.6.1) स्पष्ट ȳ2 पर S का मान ȳ1 पर S के मान से अधिक होने के कारण y = ȳ2 पर प्रायिकता P (ȳ2) अधिक होगी और y = ȳ2 निकाय की वास्तविक साम्यावस्था परिभाषित करेगा । परन्तु यदि किसी प्रकार प्रारंभ में y का मान 5 के निकट है तो निकाय y = ȳ1 की संतुलन अवस्था में स्थित रहेगा जब तक कि उसे किसी बाह्य सहायता के y = ȳ2 की अवस्था के निकट न पहुँचाया जाय। y = ȳ2 की साम्यावस्था स्थाई संतुलन अवस्था नहीं है व इस अवस्था को मितस्थाई संतुलन (metastable equilibrium) की अवस्था कहते हैं। उदाहरणस्वरूप यदि शुद्ध पानी को धीरे-धीरे ठंडा किया जाय तो वह द्रव स्वरूप में -20°C तक रह सकता है परन्तु यह द्रव अवस्था मितस्थाई अवस्था होगी। 0°C या उससे नीचे के ताप पर स्थाई साम्यावस्था ठोस (बर्फ) है व मितस्थाई अवस्था के द्रव को थोड़ा सा भी विचलित करते ही वह स्थाई अवस्था में आ जायेगा ।
ऊष्मा भण्डार के सम्पर्क में निकाय की साम्यावस्था : गिब्स मुक्त ऊर्जा (Equilibrium of System in Contact with a Reservoir : Gibbs Free Energy)

ऊष्मा भण्डार (heat reservoir) एक ऐसा ऊष्मागतिक निकाय होता है जिसकी आन्तरिक ऊर्जा अन्य निकायों. जिसके साथ यह अन्योन्य क्रिया करता है, की तुलना में अत्यधिक होती है इसके परिणामस्वरूप ऊष्मा भण्डार की अवस्था किसी अन्य निकाय से अन्योन्य क्रिया करते समय अपरिवर्तित रहती है अर्थात् जब ऊष्मा भण्डार किसी अन्य निकाय से अन्योन्य क्रिया करता है तो दोनों निकायों के मध्य ऊर्जा विनिमय होने पर भी उसके परम ताप तथा माध्य दाब में कोई परिवर्तन नहीं होता है।


अब मान लीजिये कि एक निकाय A एक ऊष्मा भण्डार निकाय A’ के साथ तापीय सम्पर्क में है और ये दोनों निकाय संयुक्त अवस्था में विलगित निकाय बनाते हैं, जिनकी ऊर्जा नियत रहती है। यदि निकाय A के आयतन में परिवर्तन होता है तो निकाय A’ के आयतन में परिवर्तन इस प्रकार होगा कि संयुक्त निकाय का आयतन नियत रहे। अत: V* = V + V’ तथा dV = – dV’ ……..(1) परन्तु ऊष्मा भण्डार का आयतन इतना बड़ा होता है कि उसके साथ दाब p’ एवं ताप T’ में कोई परिवर्तन नहीं हो पाता है। माना निकाय A किसी स्थूल प्राचल (macroscopic parameter) y द्वारा वर्णित है। यह प्राचल ऊर्जा भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में संयुक्त निकय A * = A+ A’ में निकाय A के प्राचल y तथा y + δy के माध्य अभिगम्य स्तरों की संख्या N* (y) है तो यह निकाय A तथा A’ में इसी प्राचल अन्तराल के लिए अभिगम्य स्तरों की संख्याओं के गुणनफल के बराबर होता है।

यदि प्राचल के मान y = ȳ पर दोनों निकाय परस्पर संतुलन अवस्था में आ जाते हैं तो संयुक्त निकाय के प्राचल का मान y तथा y + δy के मध्य होने की प्रायिकता होगी।

हम जानते हैं कि निकायों के अन्योन्य क्रिया करने पर परिवर्तन उस ओर अग्रसर होता है जिस ओर एन्ट्रॉपी के मान में वृद्धि होती है तथा एन्ट्रॉपी के उच्चतम हो जाने की स्थिति में निकाय सन्तुलन अवस्था में आ जाता है। अतः स्वत: प्रक्रम (spontaneous process) के लिए समीकरण (3) से

यहाँ संयुक्त निकाय में जब प्राचल ȳ से तक परिवर्तित होता है तो निकायों A व A’ की एन्ट्रॉपी में परिवर्तन क्रमश: △S* (y) तथा △S’ (y) होते हैं।
अब मान लीजिये कि ऊष्मा भण्डार A’ ताप T’ पर अत्यल्प मात्रा में Q’ ऊष्मा अवशोषित करता है तो प्रक्रम स्थैतिक कल्प (Quasi-static) प्रक्रम होने के कारण निकाय A’ की एन्ट्रॉपी में परिवर्तन
△S’ = Q’/T’
लेकिन ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम से ऊष्मा भण्डार द्वारा अवशोषित ऊष्मा
Q’ = △Ē’ – W’
जहाँ निकाय A’ की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि △E’ है तथा इस पर किया गया कार्य W है।
यदि ऊष्मा भण्डार के माध्य दाब p’ के विरुद्ध आयतन परिवर्तन △V’ है तो इस पर किया गया कार्य
W’ = – p’ △V’
परन्तु समीकरण ( 1 ) से △V’ = – △V

इस नये फलन G में ऊष्मा भण्डार A’ का ताप T’ व दाब p’ है तथा A’ से अन्योन्य क्रिया करने वाले निकाय की माध्य आन्तरिक ऊर्जा Ē, आयतन V तथा एन्ट्रॉपी s होती है। चूंकि समीकरण ( 10 ) द्वारा व्यक्त फलन G की विमा ऊर्जा होती है इसलिए फलन G को गिब्स मुक्त ऊर्जा फलन (Gibbs free energy) भी कहते हैं। जब दो समान निकाय सम्पर्क में रखे जाते हैं तो ताप T व दाब p अपरिवर्तित रहते हैं परन्तु निकाय की आंतरिक ऊर्जा Ē, एन्ट्रॉपी S आयतन V व गिब्स ऊर्जा फलन G दुगुने हो जाते हैं। इस प्रकार चर T व p मात्रा स्वतंत्र होते हैं परन्तु Ē, S, V व G मात्रा पर निर्भर चर होते हैं। अतः चर ताप T व दाब p अविस्तारात्मक या मात्रा स्वतंत्र चर (intensive variables) कहलाते हैं और Ē, S, Vव G विस्तारी चर (extensive variables) कहलाते हैं। समीकरण ( 11 ) को पुनः लिखने पर स्वतः प्रक्रम के लिए
ĒG ≰ O           ………(12)
समीकरण (11) व (12) स्पष्ट है कि किन्हीं दो निकायों के परस्पर अन्योन्य क्रिया करने से उसके संयुक्त निकाय की एन्ट्रॉपी में वृद्धि होती है अथवा गिब्स फलन के मान में कमी होती है । सन्तुलन अवस्था में, चूंकि एन्ट्रॉपी

उच्चतम हो जाती है। अतएव गिब्स फलन G का मान इस प्रकार की अन्योन्य क्रिया में न्यूनतम हो जाता है। सारांश में यह कह सकते हैं कि जब एक निकाय को स्थिर दाब एवं ताप वाले ऊष्मा भण्डार में सम्पर्क में रखते हैं तो निकाय की साम्यावस्था के लिये आवश्यक होगा कि G का मान न्यूनतम हो ।

समीकरण (11) को (4) में रखने पर,

के विभिन्न मानों के लिए प्रायिकता का अनुपात ज्ञात होने पर उस अवस्था में गिब्स फलनों अन्तर का मान समीकरण (13) से ज्ञात किया जा सकता है। समीकरण (13) से न केवल किसी प्राचल (y) पर प्रायिकता का बोध होता है बल्कि गिब्स फलन में अल्प परिवर्तन के कारण उनकी प्रायिकता में हुए परिवर्तन का भी बोध कराता है।

चूंकि अधिकांश निकायों में अवस्था परिवर्तन स्थिर दाब एवं ताप में होते हैं। इन परिवर्तनों के अध्ययन के लिए समीकरण (12) व (13) का उपयोग हेतु बहुत अधिक सुविधाजनक होता है।