भ्रूणकोषी चूषकांग की परिभाषा क्या है भ्रूणपोष चूषकांग किसे कहते है ? endosperm haustoria in hindi ?
भ्रूणपोषों में विकास सम्बन्ध (evolutionary relationship in endosperms) : उपर्युक्त तीनों प्रकार के भ्रूणपोषों में कौनसा आद्य और कौनसा सबसे अधिक विकसित है , यह अभी तक प्रमाणित नहीं हो पाया है। कुछ पौधों में इनके मध्यावस्था प्रकार के भ्रूणपोष भी मिले है। काउल्टर और चैम्बरलेन (coulter and chamberlain 1903) के अनुसार कोशिकीय प्रकार से केन्द्रकीय प्रकार का विकास हुआ है। जबकि ओनो (ono 1928) और ग्लिसिक (glisic 1928) के अनुसार केन्द्रकीय प्रकार आद्य प्रकार का भ्रूणपोष है।
भ्रूणपोष चूषकांग (endosperm haustoria)
भ्रूणपोष के परिवर्धन में और भ्रूण को पोषण प्राप्ति के लिए भ्रूणपोष से अत्यधिक मात्रा में खाद्य पदार्थो की आवश्यकता होती है। वैसे तो भ्रूणपोष की सतह बीजाण्डकाय की कोशिकाओं से भोज्य पदार्थो को अवशोषित करती है और इन भोज्य पदार्थो को भ्रूणपोष के विकास में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार से भोज्य पदार्थ भ्रूणपोष में संचित हो जाते है जो कि आगे चलकर भ्रूण के काम आते है लेकिन अनेक पौधों में बीजाण्डकाय की कोशिकाओं में घुलनशील कार्बनिक भोज्य पदार्थो का चूषण करने के लिए भ्रूणपोष से अनेक अतिवृद्धियाँ उत्पन्न होती है , उन्हें भ्रूणपोष चुष्कांग कहते है। भ्रूणपोष पर इनकी स्थिति के आधार पर भ्रूणपोष चूषकांग तीन प्रकार के पाए जाते है। ये निम्नलिखित है –
(1) निभागीय चूषकांग (chalazal haustoria) : इस प्रकार के चूषकांग सर्वप्रथम प्रोटिएसी कुल के सदस्य ग्रेवेलिया रोबस्टा में खोजे गए थे। इस पौधे में भ्रूणपोष के निभागीय सिरे पर कृमि रुपी उपांग के रूप में भ्रूणपोष चूषकांग पाया जाता है।
प्रारंभ में उपांग अकोशिकीय होता है परन्तु बाद में कोशिकीय द्वितीयक भ्रूणपोष बन जाता है क्योंकि यह कृमिरूप चूषकांग भ्रूणपोष के निभागी क्षेत्र से निकलता है अत: इसे निभागीय चूषकांग कहते है।
इस प्रकार के चूषकांग कुकुरबिटेसी और लेग्यूमिनोसी कुलों के सदस्यों में भी पाए जाते है।
क्रोटोलेरिया के केन्द्रकिउ भ्रूणपोष में निभागीय छोर पर भित्ति निर्माण नहीं होता और केन्द्रक स्वतंत्र रूप से कोशिकाद्रव्य में रहते है। यह छोर लम्बा होकर चूषकांग की भाँती कार्य करता है।
मैग्नोलिया आबोवेटा में सामान्यतया निभागी चूषकांग पाए जाते है। इसमें प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक का प्रथम विभाजन अनुप्रस्थ होता है जिससे निभागी प्रकोष्ठ और बीजाण्डद्वारी प्रकोष्ठ बनते है। बीजाण्डद्वारी प्रकोष्ठ से विभाजनों द्वारा स्थूलकाय ऊतक बनता है जबकि निभागी प्रकोष्ठ में धीमी गति से केंद्र विभाजन होता है और केवल अनुप्रस्थ विभाजन होते है। इसके फलस्वरूप निभागी छोर एक लम्बी पूंछ के रूप में स्थूलकाय बीजाण्डद्वारी ऊतक से जुड़ा प्रतीत होता है और निभागी बीजाण्डकाय से पोषक पदार्थो का अवशोषण करता है।
इसी प्रकार आयोडिना रोम्बीफोलिया में भी निभागीय चूषकांग पाया जाता है। इसका निर्माण निभागीय प्रकोष्ठ से होता है। निभागीय प्रकोष्ठ एक केन्द्रकी शाखित और बड़े चूषकांग में विकसित होता है।
(2) बीजाण्डद्वारीय चूषकांग (micropylar haustoria) : बीजाण्डद्वारीय चूषकांग मुख्यतः कोशिकीय भ्रूणपोष में पाए जाते है , उदाहरण – हाइड्रोसेरा ट्राइफ्लोरा और इम्पेशिएंस रॉयली। इनमें प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक के विभाजन से बीजाण्डद्वारीय और निभागीय प्रकोष्ठ का निर्माण होता है। बीजांडद्वारीय , प्रकोष्ठ के अनुप्रस्थ विभाजन द्वारा तीन कोशिकाएँ बनती है। इनमें से सबसे ऊपर वाली कोशिका एक चूषकांग में विकसित हो जाती है। पूर्णतया विकसित अवस्था में यह चूषकांग अत्यन्त फैला हुआ और शाखित होता है और शाखित कवक सूत्र के समान दिखाई देता है।
(3) बीजाण्डद्वारीय निभागीय चूषकांग (micropylar chalazal haustoria) : ऐकेन्थ्रेसी कुल के पौधों में बीजाण्डकायी और निभागीय दोनों चूषकांग पाए जाते है। यहाँ प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक के विभाजन के पश्चात् अनुप्रस्थ भित्ति निर्माण द्वारा बीजाण्डद्वारी और निभागीय प्रकोष्ठ बनता है। ऊपरी प्रकोष्ठ में पुनः अनुप्रस्थ विभाजन होता है , इस प्रकार तीन कोशिकीय पंक्ति का निर्माण होता है। इनमें से बीजाण्डद्वारी और निभागीय प्रकोष्ठ चूषकांग का निर्माण करते है जबकि मध्य प्रकोष्ठ से मुख्य भ्रूणपोष का विकास होता है।
हाइड्रोफिलेसी कुल के सदस्य निमोफिला में भी प्रा. , भ्रूणपोष केन्द्रक के विभाजन से दो समान आकार की कोशिकाएँ बनती है। इनमें से निचली कोशिका निभागीय चूषकांग का निर्माण करती है। ऊपरी कोशिका में एक और विभाजन होता है और इनमें नीचे वाली कोशिका कोशिकीय भ्रूणपोष बनाती है। जबकि सबसे ऊपरी कोशिका बीजाण्डद्वारीय चूषकांग का निर्माण करती है। निमोफिला में कभी कभी निभागीय चूषकांग से पाशर्व शाखा विकसित होती है जो बीजाण्डवृंत तक फैली रहती है।
स्क्रोफुलेरियेसी कुल के सदस्यों में भी बीजाण्डद्वारीय और निभागीय दोनों भ्रूणपोष सामान्यतया रूप से पाए जाते है। सेट्रेंथीरा में बीजाण्डद्वारिय और निभागी और निभागी चूषकांग बहुत अधिक सक्षम नहीं होते है , इसलिए इसमें बीजाण्डद्वारीय चूषकांग के नीचे को भ्रूणपोष कोशिकाओं से द्वितीयक चूषकांग बनते है।
भ्रूणपोष परिवर्धन में अपसामान्यताएँ (abnormalities)
भ्रूणपोष परिवर्धन में कई प्रकार की असंगतियाँ मिलती है –
(1) चर्बिताभ भ्रूणपोष (ruminate endosperm) : एनोनेसी और पामी के कुछ सदस्यों में चर्बिताभ भ्रूणपोष पाया जाता है। यह भ्रूणपोष फूला हुआ और समतल न होकर सतह पर झुर्रियोयुक्त होता है। झुरियोयुक्त भ्रूणपोष को चर्बिताभ भ्रूणपोष कहते है। यह स्थिति भ्रूणपोष के बाहर स्थित ऊतक के भ्रूणपोष में अन्तर्वलित होने से उत्पन्न होती है। इस स्थिति में इसकी सतह पर काली भूरी पट्टियाँ अथवा धारियाँ दिखाई देती है।
चर्बिताभ भ्रूणपोष दो प्रमुख कारणों से उत्पन्न होते है।
(i) भ्रूणपोष की सक्रियता द्वारा (due to activity of endosperm) : कोकोलोबा मिरिस्टिका आदि में बीज के आयतन में वृद्धि के साथ साथ भ्रूणपोष के आयतन में भी वृद्धि होती है। भ्रूणपोष वृद्धि कर शीघ्र ही बीजाण्ड को अवशोषित कर बीजावरण के सम्पर्क में आ जाता है।
भ्रूणपोष की आगे वृद्धि होने पर बीजावरण की भीतरी असमान सतह के कारण यह चर्बिताभ हो जाता है।
(ii) बीजावरण की सक्रियता द्वारा : बीजावरण द्वारा यह स्थिति दो कारणों से उत्पन्न हो सकती है –
(a) बीजावरण की किसी भी परत में कोशिकाएँ असमान रूप से अरीय दिशा में दिर्घित हो जाती है। उदाहरण – पैसीफ्लोरा।
(b) बीजावरण की किसी भी परत की कोशिकाओं से अन्त:वर्ध उत्पन्न होते है जो भ्रूणपोष में धँस जाते है। उदाहरण – एनोना।
(2) जीनिया (xenia) : फोके (1881) ने भ्रूणपोष पर परागकण के प्रत्यक्ष प्रभाव को जीनिया अथवा ऊपर का प्रभाव कहा। आजकल यह शब्द केवल परागकणों के भ्रूणपोष पर सीधे प्रभाव को बतलाने के लिए ही प्रयुक्त होता है। भ्रूणपोष के बाहर स्थित कायिक ऊतक यदि परागकण से प्रत्यक्ष प्रभावित होते है तो इस प्रभाव को परागानुप्रभाव अथवा मेटाजीनिया कहते है। मक्का की कुछ किस्मों में प्रभावी लक्षण पीला भ्रूणपोष और अन्य किस्मों में श्वेत भ्रूणपोष होता है।
नवश्चिन (nawaschin) द्वारा द्विनिषेचन की खोज और मेंडल नियमों के अनुप्रयोग से भ्रूणपोष के रंग में यह परिवर्तन अब जीनिया न होकर आनुवांशिक पहलू से समझाया जाता है।
मक्का में श्वेत भ्रूणपोष किस्म (yy) को पीले भ्रूणपोष किस्म (YY) के परागकण से परागित करने पर एक नर युग्मक (Y) अंड कोशिका (y) से संयोजित होकर भ्रूण (Yy) बनाता है। यह भ्रूणबीज बनने पर अगली सन्तति में भ्रूणपोष के पीले रेंज के लिए विषमयुग्मजी होगा। द्वितीय नर युग्मक (Y) को ध्रुवी केन्द्रकों (y) और (y) के संयोजित होने से बने द्वितीयक केन्द्रक (yy) से संयोजित ही त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका (Yyy) बनाएगा। क्योंकि पीला रंग (Y) प्रभावी है। अत: भ्रूणपोष पीले रंग का होगा जबकि इसका बीजाण्ड श्वेत भ्रूणपोष वाले जनक का है।
मेटाजीनिया अथवा परागानुप्रभाव की व्याख्या जटिल है। भ्रूणपोष के बाहर स्थित मातृ संरचनाओं (बीज चोल और फलभित्ति) पर परागकण के प्रत्यक्ष प्रभाव को मेटाजीनिया कहते है। इसका उदाहरण खजूर है। स्विंगल (swingle 1928) के अनुसार खजूर में फलों का आकार और उनके परिपक्व होने की अवधि निषेचन में प्रयुक्त परागकण द्वारा प्रभावित होती है। इनके अनुसार भ्रूण अथवा भ्रूणपोष हार्मोन सदृश कोई प्रभाव उन पर डालता है। यह प्रभाव नर जनक के गुणों के अनुसार हो सकता है।
(3) मोजेक भ्रूणपोष (mosaic endosperm) : कुछ पादप प्रजातियों में भ्रूणपोष ऊतक में असमानता का रोचक लक्षण पाया गया है। मक्का की कुछ किस्मों में कई बार भ्रूणपोष में दो रंगों के पैच अथवा धब्बें अनियमित रूप से व्यवस्थित दिखाई देते है। जो मोजेक अथवा चितकबरा प्रतिरूप बनाते है। इस प्रकार मक्का की इन किस्मों में भ्रूणपोष की अव्यवस्थित कोशिकीय समूह मण्डिय या शर्करीय होते है। यह संभव है कि एक ध्रुवीय केन्द्रक नर युग्मक से संयोजित होने के बाद विभाजित होना प्रारंभ करता है तथा दूसरा बिना संयोजन ही विभाजित होता है।
भ्रूणपोष की आकारिकीय प्रकृति (morphological nature of endosperm)
भ्रूणपोष की आकारिकीय प्रकृति की व्याख्या भ्रूण विज्ञानियों ने भ्रौणिकी के बढ़ते ज्ञान के अनुसार विभिन्न कालों में विभिन्न प्रकार से की है। भ्रूणपोष की प्रकृति अभी भी विवादास्पद ही मानी जाती है। इस सम्बन्ध में कुछ प्रमुख मत निम्नलिखित प्रकार से है –
1. भ्रूणपोष युग्मकोदभिद है (endosperm is a gametophyte) : यह मत युग्मक संयोजन और त्रिसंलयन की खोज से पूर्व हॉफमिस्टर (1861)द्वारा प्रतिपादित किया गया था। इस मतानुसार भ्रूणपोष एक अगुणित युग्मकोद्भिद ऊतक है , जिसका परिवर्धन परागनलिका के भ्रूणकोष में प्रवेश तक अवरुद्ध रहता है।
वर्तमान में यह विचार मान्य नहीं है।
2. भ्रूणपोष बीजाणुद्भिद है (endosperm is a sporophyte) : स्ट्रासबर्गर (1881) द्वारा नर और स्त्री केन्द्रकों के संलयन की खोज कर लेने पर ली. मोन्निअर (1883) ने यह विचार प्रस्तुत किया कि एक नर युग्मक से ध्रुवी केन्द्रकों का संयोजन भी एक निषेचन ही है।
इस कारण इसे द्वितीयक निषेचन कहते है। अत: इस मत के अनुसार भ्रूणपोष , दूसरा ऐसा भ्रूण है जो युग्मनजी भ्रूण को भोजन प्रदान करने के लिए रूपान्तरित हो गया है।
3. नवाश्चिन का मत (nawashchin’s view) : नवाश्चिन (1898) द्वारा द्विकनिषेचन की खोज के बाद भ्रूणपोष की प्रकृति को त्रिकसंयोजन के आधार पर समझाने का प्रयत्न हुआ। नवाश्चिन के मतानुसार त्रिकसंयोजन एक वास्तविक निषेचन है। सार्जेन्ट (1900) ने नवाश्चिन का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया कि दोनों संयोजनों में नर और स्त्री अंश भाग लेते है परन्तु द्वितीय निषेचन (त्रिसंलयन) में निभागीय ध्रुवी केन्द्रक एक अतिरिक्त स्त्री अंश के रूप में सम्मिलित होकर स्त्री गुणसूत्रों की संख्या दुगुना कर देता है , जिसके कारण नर और स्त्री लैंगिकता का संतुलन विक्षुब्ध हो जाता है।
4. स्ट्रासबर्गर का मत (strasberger’s view) : स्ट्रासबर्गर (1900) के अनुसार त्रिकसंयोजन एक वास्तविक निषेचन न होकर केवल मात्र एक वृद्धि उद्दीपन है। स्त्री युग्मकोदभिद में भ्रूणपोष के अत्यंत हासित होने से संचित खाद्य की कोई व्यवस्था नहीं हो पाती। त्रिसंयोजन इन ऊतकों में वृद्धि उद्दीपन का कार्य करता है। अत: भ्रूणपोष को एक विलम्बित परिवर्धित युग्मकोद्भिद ऊतक मानना चाहिए।
उपर्युक्त सभी मत “भ्रूणपोष त्रिसंयोजन का उत्पाद है” इस तथ्य पर आधारित है।
ऑनेग्रेसी में एक ही ध्रुवी केन्द्रक होता है तथा द्वितीय निषेचन से द्विगुणित बनता है।
पेपेरोमिया में 8 केन्द्रक संयोजित हो द्वितीयक केन्द्रक बनाते है। इस प्रकार के ऐसे कई अन्य उदाहरण भी भ्रौणिकी में वर्णित है।
इस तथ्य के आधार पर थोमस (1900) ने बताया कि नर अंशयुक्त प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक से परिवर्धित भ्रूणपोष कदाचित ऐसे भ्रूण को , जिसमें समान नर अंश होता है , अधिक पोषण प्रदान करता है।
नीमिक (1910) ने इस विचार का समर्थन करते हुए व्यक्त किया कि ध्रुवी केन्द्रक के निषेचन से दो कार्य संपन्न होते है –
(i) भ्रूणपोष परिवर्धन के लिए , आवश्यक उद्दीपन प्राप्त होता है।
(ii) भ्रूण के लिए कार्यिकी अनुरूप सुसंगत पोषक ऊतक का परिवर्धन।
अत: भ्रूणपोष की संकर प्रवृति के कारण यह भ्रूण की उपयुक्त आवश्यकताओं के अनुसार पोषण के लिए मातृ जनक द्वारा उपलब्ध पोषक उपलब्ध कराता है।
5. ब्रिन्क और कूपर का मत (brink and cooper view) : ब्रिंक और कूपर (1940-1947) के अनुसार द्विनिषेचन एक ऐसा कारक है जो भ्रूणपोष को संकरता का कार्यिकी लाभ प्रदान करता है। अत: इसको एक अवसर के स्थान पर अनेक ऐसे अवसर प्राप्त हो जाते है , जिनमें कि यह सामान्य कार्यों हेतु आवश्यक आनुवांशिक उपकरण प्राप्त कर लेता है।
भ्रूण परिवर्धन के समय भ्रूण को पोषण की जितनी आवश्यकता होती है , उसी समय बीजाण्ड को भी बीज बनने हेतु खाद्य ही अत्यन्त आवश्यकता होती है।
भ्रूणपोष के कार्य (function of endosperm) :
परिपक्व बीज में शेष भ्रूणपोष पोषकों से परिपूर्ण होता है। भ्रूणपोष के पोषण सम्बन्धित कार्य की पुष्टि में माहेश्वरी और रंगास्वामी ने निम्नलिखित बिंदु दर्शाए है –
- निषेचन के समय भ्रूणपोष में संचित खाद्य बहुत ही अल्प मात्रा में होता है जो कि भ्रूण परिवर्धन के लिए नितान्त अपर्याप्त होता है।
- भ्रूणपोष विकास के बाद ही भ्रूण का सक्रीय और तेजी से परिवर्धन प्रारंभ होता है।
- भ्रूणपोष के अभाव में भ्रूण परिवर्धन संभव नहीं हो पाता है क्योंकि आवश्यक पोषण नहीं मिलता।
इस प्रकार भ्रूणपोष का मुख्य कार्य भ्रूण का पोषण करना है।
भ्रूणपोष पोषण की दृष्टि से सभी आवृतबीजी पादपों की जातियों में समान रूप से कार्यशील होता है। प्रयोगशाला में नारियल का द्रव भ्रूणपोष , अन्य पौधों के भ्रूणों को संवर्धित कराने में प्रयुक्त होता है। इसमें कई हार्मोन जैसे – ऑक्सिन , साइटोकाइनिन और जिबरेलिन होते है अत: यह भ्रूणपोष को न केवल पोषण ही देता है वरन यह वृद्धि प्रेरक और वृद्धि नियंत्रक का कार्य भी करता है।
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 : आवृतबीजी पौधों में भ्रूणपोष पाए जाते है –
(अ) 3 प्रकार के
(ब) 2 प्रकार के
(स) 4 प्रकार के
(द) अनेक प्रकार के
उत्तर : (अ) 3 प्रकार के
प्रश्न 2 : केन्द्रकीय भ्रूणपोष पाया जाता है –
(अ) ओइनोथीरा
(ब) नारियल
(स) मटर
(द) चना
उत्तर : (ब) नारियल
प्रश्न 3 : कोशिकीय भ्रूणपोष पाया जाता है –
(अ) नारियल
(ब) ताड़
(स) ऐडोक्सा
(द) केवडा
उत्तर : (स) ऐडोक्सा
प्रश्न 4 : बीजाण्डद्वारीय भ्रूणपोष चूषकांग पाए जाते है –
(अ) नारियल
(ब) चना
(स) केप्सेला
(द) इम्पेशिएन्स
उत्तर : (द) इम्पेशिएन्स
प्रश्न 5 : निभागी भ्रूणपोष चुषकांग पाए जाते है –
(अ) मेग्नोलिया
(ब) क्रोटोलेरिया
(स) ग्रेवेलिया
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर : (द) उपरोक्त सभी