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संक्रमण तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास क्या है , electronic configuration of transition elements in hindi

electronic configuration of transition elements in hindi संक्रमण तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास क्या है संक्रमण तत्वों का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास एवं तीन अभिलाक्षणिक गुणों को लिखिए।

संक्रमण तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Configuration)

  1. पूर्ववर्ती तत्वों के विन्यास (Z=1 से 20)

किसी बहुइलेक्ट्रॉनिक परमाणु से नाभिक के बाहर की संरचना (इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था) जानने के लिए कक्षकों के भरने का क्रम ऑफबौ सिद्धान्त, हुंड का नियम, पाउली का अपवर्जन, सिद्धान्त इत्यादि सहायता से निकाला जा सकता है। परमाणु संख्या 1 से 18 तक इलेक्ट्रॉनों द्वारा कक्षकों के भरे जाने का क्रम मुख्य क्वान्टम संख्या (अर्थात् 1, 2 व 3) तथा उपस्तर (sa p) के अनुसार होता है। इस प्रकार ऑर्गान (परमाणु संख्या = 18) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2, 2s2 p6, 3s2p6 है। चूंकि प्रथम दो कोशों में कक्षक होते ही नहीं है तथा तीसरे आवर्त में 3d कक्षक रिक्त रहते हैं, इन प्रथम तीनों आवर्तों में कोई संक्रमण तत्व नहीं पाया जाता है। अब पोटैशियम (परमाणु संख्या = 19) पर एक नई परिस्थिति का सामना करना पड़ता है। क्योंकि यहां चतुर्थ कोश के अतिरिक्त 3d कक्षक भी रिक्त रहते हैं, K के दो विन्यास सम्भव हैं : [Ar]3d1 या [Ar]4s1 । यद्यपि हाइड्रोजन में 3d उपस्तर की ऊर्जा 4s कक्षक की तुलना में निश्चय ही कम होती है लेकिन कक्षकों की भेदन क्षमता d कक्षकों की अपेक्षा बहुत अधिक होने के कारण 4s कक्षक की ऊर्जा इतनी तेजी से कम होने लगती है कि अधिक आवेश वाले परमाणु में यह 3d कक्षकों से भी कम ऊर्जा का स्तर हो जाता है अतः पोटैशियम में 19 इलेक्ट्रॉन 4s कक्षक में प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉनों के पाये जाने की सम्भावना के अध्ययन से पता चलता है कि अन्तराल में 4s कक्षकों की अपेक्षा 3d कक्षक अधिक विसरित ( diffused) होते हैं जिसके कारण 4s कक्षक नाभिक के अधिक निकट होते हैं। इस प्रकार पोटैशियम का विन्यास [Ar] 4s1 तथा इससे अगले तत्व, कैल्सियम का विन्यास [Ar] 4s 2 होगा |

संक्रमण तत्वों के विन्यास

कैल्सियम के बाद में आने वाले तत्वों की इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सम्बन्धी समस्या अपेक्षाकृत अधिक जटिल है। जैसे ही नाभिकीय आवेश में एक इकाई की वृद्धि होती है, 3d स्तर की ऊर्जा तेजी से कम होने लगती है। फलतः इसकी ऊर्जा 4s स्तर की ऊर्जा से कुछ कम हो जाती है। (3d स्तर की ऊर्जा = – 0.5308 R तथा 4s स्तर की ऊर्जा = 0.4309R, R = रिडबर्ग नियतांक ) परमाणु संख्या बढ़ने के साथ-साथ इन स्तरों की ऊर्जा में आये आपेक्षिक परिवर्तन को चित्र 1.1 में दिखाया गया है। 3d तथा 4d स्तरों का आपेक्षिक स्थायित्व वास्त में रहस्यपूर्ण सा है क्योंकि इन दोनों स्तरों की ऊर्जा में कोई विशेष अन्तर नहीं होता । अतः किसी संक्रमण तत्व के लिए एक निश्चित इलेक्ट्रॉनिक विन्यास दे पाना कठिन हो जाता है। हमें इलेक्ट्रॉन- इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण, समान चक्रण वाले इलेक्ट्रॉनों का विनिमय स्थायीकरण (exchange stabilisation), आवरण प्रभाव (screening effect) इत्यादि पर विचार करना पड़ता है तथा इस आधार पर विभिन्न विन्यासों की ऊर्जा की गणना कर ली जाती है। निम्नतम ऊर्जा वाली अवस्था उस तत्व की निम्नतम अवस्था में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्रदर्शित करती है जबकि अन्य सभी विन्यास परमाणु की उत्तेजित अवस्थायें दर्शाते हैं। संक्रमण तत्वों के दो सम्भावित इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (n – 1 ) dn ns2 व (n – 1 ) dn+1 ns1, विशेष रूप से विचार करने योग्य हैं। पूरी संक्रमण श्रृंखला में परमाणु की निम्नतम अवस्था प्रदर्शित करने के लिए इन दोनों विन्यासों में परस्पर अत्यधिक स्पर्धा रहती है। ऊर्जा के परिणामों की गणना करने पर पता चलता है दि 3dn+1 4sl क्रोमियम तथा कॉपर की निम्नतम अवस्था दर्शाता है जबकि इस श्रृंखला के शेष तत्वो (S Ti, V, Mn, Fe, Co व Ni) के लिए सर्वाधिक स्थाई अवस्था 3dn 4s 2 है। Cr का 3d5 4s1 तथा Cu का 3d10 4s’ विन्यास होता है जिससे अर्ध, पूर्ण व पूर्णतः भरे d कक्षकों के स्थायित्व की पुष्टि होती है। प्रथम संक्रम श्रृंखला के सदस्यों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सारणी 1.2 में दिखाये गये हैं।

  1. प्रथम संक्रमण श्रृंखला स्कैंडियम (Z = 21 ) से आरम्भ होती है। यहां 3d स्तर की ऊर्जा 4s स्तर की अपेक्षा कम हो जाती है (देखिये चित्र 1.1 ) । स्वभावतः प्रश्न उठता है कि “बाह्य 4s इलेक्ट्रॉन कम ऊर्जा के 3d कक्षकों में क्यों नहीं गिर जाते ? ” इलेक्ट्रॉन-इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण के कारण एक इलेक्ट्रॉन की स्थिति में परिवर्तन से अन्य सभी इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा में परिवर्तन आ जाता है। हम जानते हैं कि 3d इलेक्ट्रॉन 4s इलेक्ट्रॉनों को प्रतिकर्षित करते हैं। इससे 4s कक्षक फैल जाता है, तथा इसकी ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है। साथ ही 4s इलेक्ट्रॉन 3d इलेक्ट्रॉनों को प्रतिकर्षित करते हैं, जिससे वे इलेक्ट्रॉन परमाणु में और अन्दर की ओर जाने को बाध्य हो जाते हैं। फलतः 3d स्तर की ऊर्जा और भी कम हो जाती है। इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि 4s स्तर की अपेक्षा 3d स्तर कम ऊर्जा का तभी होगा जब 4s कक्षक में इलेक्ट्रॉन विद्यमान हों। यदि 4s स्तर से 3d स्तर में इलेक्ट्रॉन का स्थानान्तरण होता है तो 3d स्तर में इलेक्ट्रॉन-इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण बढ़ेगा जबकि 3da 4s के इलेक्ट्रॉनों के मध्य प्रतिकर्षण कम होगा। इसके फलस्वरूप 3d स्तर फैलेगा और इसका ऊर्जा मान इतना बढ़ जायेगा कि ऊर्जा स्तरों का क्रम पुनः 4s < 3d हो जायेगा ।
  2. यद्यपि 4s कक्षक 3d कक्षकों की अपेक्षा नाभिक की ओर अधिक हद तक घुस सकने की क्षमता रखते हैं, और इसलिए अपेक्षाकृत कम ऊर्जा के होते हैं, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखते समय (n-1) d परमाणु के बाहर इलेक्ट्रॉनों के पश्चात ns इलेक्ट्रॉन लिखने की प्रथा प्रचलित है। यदि हम नाभिक से की ओर जावें तो निश्चय ही पहले 4s इलेक्ट्रॉनों के मिलने की सम्भावना काफी अधिक होगी। और अधिक आगे बढ़ने पर यह पाया जायेगा कि 4s इलेक्ट्रॉन के पाये जाने का क्षेत्र 3d इलेक्ट्रॉन के पाये जाने वाले क्षेत्र की अपेक्षा कहीं अधिक दूर तक फैला हुआ है। इस प्रकार एक 4s इलेक्ट्रॉन एक ही समय में एक 3d इलेक्ट्रॉन की अपेक्षा नाभि से औसतन, दूर भी होता है तथा निकट भी । रासायनिक बन्धन में इलेक्ट्रॉन की नाभिक से दूरी का अधिक महत्व होता है। चूंकि 4s इलेक्ट्रॉन 3d इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा अधिक बाहर की ओर फैले होते हैं, ये सर्वप्रथम बन्धन में भाग लेते हैं। इस बात का प्रमाण संक्रमण तत्वों के परमाणुओं के आयनन से भी मिलता है। इन परमाणुओं के आयनन से सर्वप्रथम 4s इलेक्ट्रॉन ही बाहर निकलते हैं। स्पष्ट है कि 3d इलेक्ट्रॉन 4s इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा अन्दर की ओर धंसे रहते हैं। यही कारण है कि 4s इलेक्ट्रॉनों को बाह्यतम इलेक्ट्रॉनों की संज्ञा दी गई है।

प्रथम संक्रमण श्रृंखला के सदस्यों के कुछ भौतिक गुण सारणी 1.3 में दिये गये हैं जिन्हें चित्र 1.2 की सहायता से दिखाया गया है।

  1. धात्विक त्रिज्या – प्रथम संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की धात्विक त्रिज्या सारणी 1.3 में दी नाभिकीय आवेश में वृद्धि, परमाणु आकार है। स्पष्ट है कि यहां परमाणु संख्या बढ़ने पर, परमाणु त्रिज्या में बहुत ही कम परिवर्तन आ पाता है घटाने का प्रयत्न करती है जबकि अन्दर के (n-1) d में आने वाले इलेक्ट्रॉन, बाह्यतम ms2 इलेक्ट्रॉन पर परिरक्षण प्रभाव (shiclding effect) के कारण परमाणु आकार को बढ़ाने की चेष्टा करते हैं। इलेक्ट्रॉनों की संख्या में एक की वृद्धि होने पर उत्पन्न प्रतिकर्ष बल (परिरक्षण प्रभाव) नाभिकीय आवेश में एक की वृद्धि होने पर उत्पन्न प्रतिकर्षी बल (परिरक्षण प्रभाव नाभिकीय आवेश में एक की वृद्धि होने पर उत्पन्न आकर्षण बल के लगभग 85% भाग को प्रति सन्तुलित (counterbalance) कर देता है। इस प्रकार नाभिकीय आवेश तथा इलेक्ट्रॉनों की संख्या में एक-एक की वृद्धि होने पर बाह्यतम इलेक्ट्रॉन, पहले से केवल 0.15 अधिक नाभिकीय आवेश द्वारा ही आकर्षित होते हैं। हम जानते हैं कि किसी तत्व की परमाणु त्रिज्या बाह्यतम इलेक्ट्रॉन की मुख्य क्वांटम संख्या ) के वर्ग का समानुपाती तथा प्रभावी नाभिकीय आवेश Zeff (effective nuclear charge) के विलोमानुपाती होती है। चूंकि एक संक्रमण श्रृंखला में n अपरिवर्तनीय रहता है तथा Zeff बहुत कम मात्रा (0.15) में बढ़त है, अतएव परमाणु आकार में भी बहुत कम वृद्धि होती है (s तथा p खण्ड तत्वों की तुलना में) ।

एक वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर बाह्यतम इलेक्ट्रॉन के लिए n का मान बढ़ता है। अतः अपेक्षित हैं कि परमाणु त्रिज्या में भी वृद्धि होगी। लेकिन एक वर्ग के सभी सदस्यों लिए यह वृद्धि समान नहीं होती है। द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रृंखलाओं के सदस्यों का त्रिज्या अन्तर (~ 0.02 A) प्रथम तथा द्वितीय श्रृंखलाओं के त्रिज्या अन्तर ( = 0.1 A) की तुलना में बहुत कम है। यह लेन्थेनाइड संकुचन – (contraction) के कारण हैं। लेन्थेनम (III B वर्ग का सदस्य) तथा हैफनियम ( IV B वर्ग का सदस्य) के मध्य 14 तत्व जिन्हें लैन्थेनाइड कहते हैं, आ जाने से हैफनियम का परमाणु आकार उतना नहीं रह पाता जितना कि लेन्थेनाइड तत्वों की अनुपस्थिति में होता। प्रथम तथा द्वितीय संक्रमण श्रृंखला के के सदस्यों के मध्य यह अन्तर लगभग 32 इकाई पाया जाता है। इस प्रकार 17 के मान में वृद्धि (द्वितीय सदस्यों के नाभिकीय आवेश में केवल 18 इकाई का अन्तर होता है जबकि द्वितीय तथा तृतीय श्रृंखला से तृतीय श्रृंखला में) यद्यपि परमाणु त्रिज्या बढ़ाने का प्रयत्न करती है, नाभिकीय आवेश में अत्यधिक वृद्धि आ जाने के कारण यह इस प्रभाव को नष्ट कर देता है। फलतः द्वितीय व तृतीय संक्रमण श्रृखला के तत्वों के परमाणु आकार काफी समान पाये जाते हैं ।

  1. घनत्व किसी तत्व का घनत्व उसके परमाणु भार, परमाणु त्रिज्या तथा क्रिस्टल जालक (crystal lattice) में परमाणुओं की व्यवस्था पर निर्भर करता है। का संक्रमण तत्वों के कम धात्विक त्रिज्या, परमाणुओं घनतम सकुलन (closest packing of atoms) तथा उच्च परमाणु भार के होने के कारण इनके घनत्व, सामान्यतः उच्च पाये जाते हैं। अतः ये सभी धातुएँ सघन है। एक श्रृंखला में इन तत्वों के घनत्व परमाणु भार बढ़ने पर तथा परमाणु त्रिज्या घटने पर बढ़ते हैं (सारणी 1.3 व चित्र 1.2)। लेकिन मैंगनीज का घनत्व उतना नहीं है जितनी की आशा की जाती है। यह मैंगनीज की असाधारण क्रिस्टल संरचना तथा स्थाई अर्ध- पूर्ण विन्यास, 3d5 के कारण है।
  2. गलनांक- संक्रमण तत्वों के गलनांक व क्वथनांक तथा गलन तथा परमाणुकरण की ऊष्मा अपेक्षाकृत काफी अधिक होते हैं। ये सभी गुण इस ओर संकेत करते हैं कि संक्रमण तत्वों में परमाणु परस्पर प्रबल आकर्षण बल से बंधे रहते हैं। परमाणुओं के मध्य जितना सबल धात्विक बंध पाया जायेगा, उन्हें तोड़ने के लिए उतनी ही अधिक ऊर्जा का व्यय करना पड़ेगा । धात्विक बंध की सबलता Sc से Cr तक बढने के पश्चात् घटने लगती है। अतः प्रथम संक्रमण श्रृंखला में तत्वों के गलनांक Cr तक बढ़ने के पश्चात घटने लगते हैं (देखिये सारणी 1.3 तथा चित्र 1.2) | Mn का असाधारण रूप से कम गलनांक इसके 3d विन्यास के विशिष्ट स्थायित्व के कारण हैं जिससे धात्विक बन्धता भी दुर्बल होती है। परमाणुकरण की ऊष्मा का वक्र (curve) गलनांक के वक्र जैसा ही होता है (चित्र 1.2)।
  3. कठोरता तथा यान्त्रिक सामर्थ्य (Hardness and Mechanical strength)– संक्रमण धातु कठोर, आघातवर्धनीय (melleable), तन्य (ductile) तथा उत्तम यान्त्रिक सामर्थ्य के तत्व हैं। प्रथम संक्रमण श्रृंखला में, चूंकि धात्विक बंध की सबलता क्रोमियम तक बढ़ने के बाद घटने लगती है, इन धातुओं की कठोरता तथा यान्त्रिक सामर्थ्य में इसी प्रकार का क्रमण पाया जाता है, अर्थात् ये गुण क्रोमियम तक बढ़ने के पश्चात् घटने आरम्भ हो जाते हैं । तथापि, क्रोमियम से निकल तक की धातुओं के इन गुणों में, धात्विक त्रिज्या लगभग अपरिवर्तनीय रहने के कारण, विशेष अन्तर नहीं पाया जाता।
  4. आयनन ऊर्जा तथा विद्युतॠणता – प्रथम संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की आयनन ऊर्जा तथा विद्युतऋणता सारणी 1.3 तथा चित्र 1.2 द्वारा बताये गये हैं । परमाणु संख्या बढ़ने पर इनके मानों में बहुत ही कम वृद्धि पाई जाती है। ये दोनों ही मान प्रभावी नाभिकीय आवेश पर प्रत्यक्ष रूप से (directly) तथा परमाणु त्रिज्या पर विलोम रूप से (inversely) निर्भर करते हैं। एक संक्रमण श्रृंखला में, चूंकि बाई से दाई ओर प्रभावी नाभिकीय आवेश में बहुत कम वृद्धि तथा परमाणु त्रिज्या में बहुत कम कमी होती है, आयनन ऊर्जा व विद्युतऋणता में भी, अतः इसी दिशा में बहुत कम वृद्धि पाई जाती है।
  5. ऑक्सीकरण अवस्था-संक्रमण तत्वों का एक अद्भुत गुण उनके द्वारा विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थायें दिखा सकना है। इन तत्वों में यह असाधारण लक्षण इनके परमाणुओं में बहुत से (n-1)d · तथा ns इलेक्ट्रॉन होने तथा इन ऊर्जा स्तरों का एक दूसरे के अति निकट स्थित होने के कारण हैं।

अतः संक्रमण तत्वों से अन्तर्भूत इलेक्ट्रॉन (penultimate clectron) भी लगभग बाह्यतम इलेक्ट्रॉन जितनी आसानी से निकल सकते हैं।

विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाएं प्रदर्शित करने हेतु एक संक्रमण तत्व दोनों बाह्यतम s विभिन्न इलेक्ट्रॉनों को निकाल सकता है। उदाहरण के लिए हम मैंगनीज लेते हैं, जिसकी बहुत ऑक्सीकरण अवस्थायें ज्ञात है। इस धातु का निम्नतम अवस्था में तथा विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं में विन्यास नीचे दिये गये हैं:

इन इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों से यह स्पष्ट है कि मैंगनीज की ऑक्सीकरण अवस्था +7 अधिक नहीं हो सकती। किसी संक्रमण तत्व के लिए अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था x + 2 समान होती है, जहां अयुग्मित dइलेक्ट्रॉनों की संख्या बतलाता है। मैंगनीज के बाद लाने वाले संक्रमण तत्वों में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन आरम्भ हो जाता है जिससे अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या, अतः अधिकतम ऑक्सीकरण संख्या का मान, भी बहुत कम होने लगता है। संक्रमण तत्वों द्वारा दिखाई जाने वाली विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थायें सारणी 1.4 में बताई गई हैं। यहाँ गहरे काले अंकों में छपी संख्या सर्वाधिक स्थाई ऑक्सीकरण संख्या, कोष्ठक में दुलर्भ ऑक्सीकरण अवस्था, तथा शेष सामान्य ऑक्सीकरण अवस्थायें प्रदर्शित की गई हैं।