विद्युतीय गुणों के आधार पर
ठोस के प्रकार : ठोसो में
चालकता की परास
10-20 से 107 Ω-1m-1 होता है , विद्युतीय गुणों के आधार पर यह ठोस तीन प्रकार के होते है –
1. चालक ठोस (electrical conductor solids in hindi) : ऐसे ठोस जिनमे
विद्युत धारा का प्रवाह आसानी से हो जाता है ,
चालक ठोस कहलाते है , इन ठोसों में चालकता का परास
104 से 107 Ω-1m-1 होती है।
चालक ठोस दो प्रकार के होते है –
धात्विक चालक
|
विद्युत अपघटनी चालक
|
1. इनमे विद्युत धारा का प्रवाह इलेक्ट्रॉन के कारण होता है।
|
इनमे विद्युत धारा का प्रवाह आयन के कारण होता है।
|
2. इनमे विद्युत प्रवाह के दौरान कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं होता है।
|
इनमे विद्युत प्रवाह के दौरान रासायनिक परिवर्तन होता है।
|
3. यह ठोस एवं गलित दोनों अवस्थाओ में चालक होते है।
उदाहरण : Fe , Cu आदि।
|
यह ठोस अवस्था में विद्युत रोधी लेकिन गलित अवस्था या जलीय विलयन में विद्युत के चालक होते है।
उदाहरण : NaCl , KCl आदि।
|
इनमे से धात्विक चालको की चालकता सर्वाधिक (107 Ω-1m-1) होती है।
2. अचालक ठोस : ऐसे ठोस जिनमे विद्युत धारा का प्रवाह नहीं हो पाता , अचालक ठोस कहलाते है। इन ठोसों में चालकता का परास 10-20 से 10-10 Ω-1m-1 होता है।
उदाहरण : प्लास्टिक , रबर , सल्फर , फास्फोरस आदि।
3. अर्द्ध चालक ठोस : ऐसे ठोस जो चालक व अचालक दोनों के बीच की श्रेणी में आते है , अर्द्धचालक ठोस कहलाते है , इन ठोसो में चालकता का परास 10-6 से 104 Ω-1m-1 होती है।
उदाहरण : जर्मेनियम , सिलिकन आदि।
यह ठोस शून्य केल्विन ताप पर अचालक के समान व्यवहार करते है लेकिन ताप बढ़ाने पर इनमे चालकता का गुण आ जाता है।
चालकता पर ताप का प्रभाव
चालक ठोसों में ताप बढ़ाने पर चालकता घटती है। जबकि अर्द्ध चालक ठोसो में ताप बढाने पर चालकता बढती है जबकि अचालक ठोसो में ताप बढ़ाने पर चालकता में अत्यअल्प वृद्धि होती है।
बैण्ड सिद्धांत के आधार पर चालक , अचालक व अर्द्धचालक की व्याख्या
एक ठोस जालक में अत्यधिक संख्या में
परमाणु उपस्थित होते है , इन परमाणुओं के परमाण्वीय कक्षक आपस में मिलकर आण्विक कक्षकों का निर्माण करते है।
इन आणविक कक्षको के मध्य
दूरी कम होने के कारण यह कक्षक आपस में मिलकर एक पट्टिका का निर्माण करते है जिसे बैंड कहते है। बैण्ड में
इलेक्ट्रॉन पाए जाते है , इस आधार पर यह बैंड पूर्ण भरित , अर्द्ध भरित एवं रिक्त हो सकते है।
इनमे से इलेक्ट्रॉन से भरे हुए बैण्ड , संयोजकता बैंड एवं रिक्त बैण्ड चालकता बैंड कहलाते है तथा संयोजकता बैंड व चालकता बैंड के मध्य ऊर्जा के अंतर को
ऊर्जा अन्तराल या निषिद्ध क्षेत्र कहते है।
इस बैंड सिद्धांत के आधार पर चालक , अचालक और
अर्द्धचालक की व्याख्या निम्न प्रकार करते है –
चालक ठोस : इनमे अर्द्ध भरित बैंड पाए जाते है या इनमे पूर्ण भरित बैंड व रिक्त बैंड के मध्य अतिव्यापन हो जाता है , इस कारण इलेक्ट्रॉन का गमन आसानी से संभव होगा इसलिए ये चालक के समान व्यवहार करते है।
अर्द्धचालक : इन ठोसो में पूर्ण भरित बैन्ड व रिक्त बैण्ड के मध्य ऊर्जा अंतराल कम पाया जाता है , अत: शून्य केल्विन ताप पर इनमे इलेक्ट्रॉन का गमन संभव नहीं होता है लेकिन ताप बढ़ाने पर इनमे इलेक्ट्रान पूर्ण भरित बैण्ड से रिक्त बैण्ड में जाने लगते है इसलिए ये अर्द्धचालक के समान व्यवहार करते है।
अचालक ठोस : इन ठोसो में पूर्ण भरित बैण्ड व रिक्त बैण्ड के मध्य अधिक ऊर्जा अन्तराल पाया जाता है जिस कारण इलेक्ट्रान का गमन संभव नहीं हो पाता अत: यह अचालक के समान व्यवहार करते है।
अर्द्धचालक के प्रकार
मुख्य रूप से अर्द्धचालक दो प्रकार के होते है –
1. शुद्ध अर्द्ध चालक
2. अशुद्ध अर्द्धचालक
1. शुद्ध अर्द्ध चालक : ऐसे अर्द्धचालक जो शुद्ध रूपों में पाए जाते है , शुद्ध अर्धचालक कहलाते है।
उदाहरण : शुद्ध सिलिकन , शुद्ध जर्मेनियम आदि।
यह 0 K (शून्य केल्विन) ताप पर अचालक के समान व्यवहार करते है लेकिन ताप बढ़ाने पर इनमे इलेक्ट्रॉन मुक्त होकर गतिशील हो जाते है तथा उस स्थान पर छिद्र बन जाते है , इस प्रकार इसमें चालकता का गुण आ जाता है।
2. अशुद्ध अर्द्धचालक या अपद्रव्यी अर्द्ध चालक : शुद्ध अर्द्ध चालको जैसे सिलिकन , जर्मेनियम (14 वाँ वर्ग) में 13 वें या 15 वें वर्ग के तत्वों को अशुद्धि के रूप में मिलाने से अपद्रव्यी अर्द्धचालक का निर्माण होता है।
अशुद्धी मिलाने की इस प्रक्रिया को अपमिश्रण (Dopping) कहते है।
अपमिश्रण के कारण इन अर्द्धचालकों की चालकता बढ़ जाती है।
अपमिश्रण के आधार पर यह अपद्रव्यी अर्द्धचालक दो प्रकार के होते है –
(A) n-प्रकार के अर्द्धचालक
(B) P- प्रकार के अर्द्धचालक
(A) n-प्रकार के अर्द्धचालक
इस प्रकार के अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉन धनी अशुद्धि मिलाने से बनते है।
14 वें वर्ग के तत्वों (si , Ge) में 15 वें वर्ग के तत्वों (P , As) को अशुद्धि के रूप में मिलाने से n प्रकार के अर्द्धचालकों का निर्माण होता है।
उदाहरण : Si में P की अशुद्धी मिलाने से P ग्रहण कर लेता है , Si के संयोजकता कोश में 4 इलेक्ट्रॉन होते है जबकि फास्फोरस की संयोजकता कोश में 5 इलेक्ट्रॉन होने के कारण 1 इलेक्ट्रान मुक्त रहता है , इस मुक्त इलेक्ट्रॉन के गमन के कारण अर्द्धचालक की चालकता बढ़ जाती है।
मुक्त इलेक्ट्रान के ऋणात्मक आवेश के कारण इसे n प्रकार का अर्द्ध चालक कहते है।
(B) P- प्रकार के अर्द्धचालक
इस प्रकार के अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉन न्यून अशुद्धि मिलाने से बनते है , 14 वें वर्ग के तत्वों (Si , Ge) में 13 वें वर्ग के तत्वों (B , Al , Ga) को अशुद्धि के रूप में मिलाने से p प्रकार के अर्द्ध चालको का निर्माण होता है।
उदाहरण : Si में B की अशुद्धि मिलाने पर Si के स्थान B ग्रहण कर लेता है , Si के संयोजकता कोश में 4 इलेक्ट्रॉन होते है जबकि B के संयोजकता कोश में 3 इलेक्ट्रान होने के कारण एक धनात्मक छिद्र बनता है। इस धनात्मक छिद्र को भरने के लिए पास वाले Si परमाणु से इलेक्ट्रान आता है तथा इस प्रकार नया धनात्मक छिद्र बनता है। यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है और इलेक्ट्रॉन के गमन से अर्द्ध चालक की चालकता बढ़ जाती है।
धनात्मक छिद्र बनने के कारण इन्हें P-प्रकार के अर्द्धचालक कहते है।
प्रश्न : निम्न लिखित में से n व P प्रकार के अर्द्ध चालको को पहचानिए।
उत्तर : (i) Ga से डोपित Ge – P प्रकार
(ii) P से डोपित Si – n प्रकार
(iii) Al से डोपित Ge – n प्रकार
(iv) B से ड़ोपित Si – P प्रकार
n- व P- प्रकार के अर्द्ध चालको के उपयोग
- एक प्रकार के अर्द्ध चालक परत को दो समान परतो के मध्य दबाकर npn ब pnp ट्रांजिस्टर बनाये जाते है , इनके उपयोग रेडियो एवं श्रव्य संकेतो की पहचान एवं प्रवर्धन में किया जाता है।
- इन अर्ध चालको से डायोड बनाये जाते है जिनका उपयोग परिशोधक (rectifier) के रूप में किया जाता है। जैसे सौर सेल डायोड का उपयोग प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने में किया जाता है।
प्रश्न : 13-15 यौगिक व 12-16 यौगिक क्या है ? इनके उदाहरण भी दीजिये।
उत्तर : 13-15 यौगिक : 13 वें व 15 वें वर्ग के तत्वों से मिलकर बने
यौगिक 13-15 यौगिक कहलाते है।
उदाहरण : AlP , GaAs , InS आदि।
12-16 यौगिक : 12 वें व 16 वें वर्ग के तत्वों से मिलकर बने यौगिक 12-16 यौगिक कहलाते है।
उदाहरण : ZnS , CdS , CdSe , HgTe आदि।
13-15 यौगिक एवं 12-16 यौगिको की औसत संयोजकता Si के समान 4 होने के कारण इनका उपयोग अर्द्ध चालक युक्तियो के निर्माण में किया जाता है।