कीटनाशक के दुष्प्रभाव क्या है ? पीड़क से होने वाली क्षति आर्थिक क्षति-स्तर (EIL) , ETL , GEP in hindi
(EIL) , ETL , GEP in hindi कीटनाशक के दुष्प्रभाव क्या है ? पीड़क से होने वाली क्षति आर्थिक क्षति-स्तर ?
पीड़क-प्रबंधन का अर्थशास्त्र
कीट पीड़क-प्रबंधन में अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण स्थान है जिसमें बारे में पीड़क-नियंत्रण कार्यक्रमों में भलीभांति समझ लेना चाहिए। किसान को केवल लागत और लाभों के संदर्भ में ही नहीं सोचना चाहिए, बल्कि उसे पर्यावरणपरक प्रभावों के साथ-साथ पीड़क-नियंत्रण के लाभों और जोखिमों के बारे में भी विचार करना चाहिए। पीड़क-नियंत्रण के अनेक क्रियाकलापों का प्रभाव समाज और पर्यावरण पर भी पड़ता है।
पीड़कों से लड़ने के लिए पीड़क-प्रबंधन तरीकों से किसान को प्रचुर मात्रा में पैदावार होना चाहिए और उसे लाभ भी होना चाहिए, लेकिन साथ ही साथ इन तरीकों से पर्यावरण, मनुष्य और अन्य जीवों को कोई खतरे भी नहीं होना चाहिए। कभी-कभी पादप-संरक्षण उपाय पीड़कों के खिलाफ बहुत कारगर होते हैं, लेकिन साथ ही उनसे पर्यावरण को काफी जोखिम उठानी पड़ती है। इसलिए पीड़क-प्रबंधन के आर्थिक पहलुओं का लागतध्लाभ और लाभध्जोखिम अनुपात शीर्षकों के अंतर्गत वर्णन किया गया है।
क) लागत ध्लाभ
यह नियंत्रण-उपायों की लागत और नियंत्रण उपायों को अपनाने के कारण पीड़क-आक्रमण से बची फसल के बीच का अनुपात होता है। लाभदायक परिस्थितियों में यह अनुपात एक से कम होता है। अनुपात जितना कम होगा पीड़कों के नियंत्रण के कारण किसान को उतना ही। अधिक लाभ होगा। जब यह मान एक से अधिक होता है तब किसान को अप्रत्यक्ष घाटा होता है। इस स्थिति में नियंत्रण-उपायों की लागत पीड़क-आक्रमण से सुरक्षित बची फसल के मूल्य से अधिक होती है। वास्तव में ऐसी स्थिति में पीड़क के खिलाफ कोई भी नियंत्रण-उपाय नहीं कर ना चाहिए। इस बात को निश्चित करने के लिए कि किसान को ऐसी घाटे की स्थिति का सामना करना पड़े, नियंत्रण-उपाय केवल उसी समय लागू करने चाहिए जब कि समष्टि आर्थिक-प्रारंभन सीमा-स्तर पर पहुँचने लगे। आर्थिक स्तर का परिकलन नियंत्रण-उपायों की लागत, फसल का बाजारी मूल्य और फसल में बीजक की संभावी क्षति के आधार पर किया जाता है।
ख) लाभ ध्जोखिम
लाभ-जोखिम विश्लेषण प्रासंगिक आर्थिक लाभ बनाम पीड़क-नियंत्रण के जोखिमों का मूल्यांकन करने का माध्यम है। लाभध्जोखिम पर ध्यान देना और उसका मूल्यांकन करना पीड़कप्रबंधन के लिए एक आधारभूत बात है।
पीड़कनाशी उपयोगी जीवों को भी मार सकते हैं रू पीड़क-नियंत्रण से हमारी फसल बढ़ सकती है और किसान को लाभ भी हो सकते हैं, लेकिन साथ-ही-साथ इससे अन्य जीवों और सकल पर्यावरण को नुकसान भी हो सकते हैं। पीड़क-नियंत्रण के लिए इस्तेमाल किए गए पीड़कनाशी उपयोगी जीवों, जैसाकि पीड़कों के प्राकृतिक शत्रु, परागकारियों, मछलियों, पक्षियों और अन्य वन्य जीवन, को मारते हुए भी पाए गए हैं। फैक्ट्रियों से निकलने वाले विषैले रसायन, जैसे कि भोपाल गैस त्रासदी से निकले हुए रसायनों न केवल वर्तमान पीढ़ी के बल्कि भावी पीढ़ियों के भी, हजारों लोगों का जीवन जोखिम में डाल दिया। भोजन और जल में पीड़कनाशियों के विषैले अवशेष मानव स्वास्थ्य के लिए संकट पैदा करते हैं और उनसे मनुष्य मे कैंसर, ट्यूमर और अपंगताएँ उत्पन्न होती हैं। केरल में काजू की फसल के ऊपर एंडोसल्फान का हवाई छिड़काव करने पर मनुष्यों और जंतुओं के जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ा। पीड़कनाशियों के अत्यधिक इस्तेमाल के फलस्वरूप पीड़कों में पीड़कनाशियों के लिए प्रतिरोध भी उत्पन्न हो जाता है। इसलिए यदि कोई रसायन पर्यावरण के लिए संकट उत्पन्न करता है तो पीड़क के प्रति प्रभावी होने पर भी इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। यथासंभव रूप से निरापद रसायनों को ही पीड़क-नियंत्रण के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। पर्यावरण पर रसायनों के दुष्प्रभावों को उनके आवश्यकता पर आधारित प्रयोग द्वारा कम किया जा सकता है। पीड़कनाशियों का प्रयोग पहला विकल्प नहीं, बल्कि अंतिम उपाय होना चाहिए। यह याद रखना चाहिए कि पीड़कनाशियों के इस्तेमाल करने से उपज शायद ही कभी बढ़ती हो, लेकिन उनके इस्तेमाल से उपज की हानि रुक जाती है। इससे नियंत्रण-विधियों पर होने वाला अनावश्यक खर्च बच जाएगा, पीड़कों में पीड़कनाशी प्रतिरोध उत्पन्न नहीं होगा और पर्यावरण का संदूषण भी कम हो जायेगा। पीड़क-नियंत्रण क्रिया के कारण पर्यावरण के लिए जोखिम के होने वाली लागत अधिकांशतरू गुप्त और अस्पष्ट होती है, लेकिन यह लागत उपज में वृद्धि के संदर्भ में पीड़क-नियंत्रण से होने वाले लाभ के मुकाबले में कभी-कभी कहीं अधिक होती है।
पीड़कनाशियों के अविवेकपूर्ण इस्तेमाल से समाज में गंभीर सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। हमारे देश के कुछ भागों में, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश में, पीड़कों को नियंत्रित करने में पीड़कनाशियों के विफल होने पर किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा। किसान बार पीड़कनाशियों का 25-30 बार छिड़काव करने पर भी कपास के पीड़कों का नियंत्रण नहीं कर पाए। नियंत्रणकारी उपायों के असफल होने का कारण संभवतरू पीड़कों में पीड़कनाशियों के लिए प्रतिरोध उत्पन्न हो जाना था।
हालांकि यह भी कहा गया कि कुछ बेईमान व्यापारियों ने किसानों को नकली पीड़कनाशी बेच दिए जिनमें सक्रिय अवयव वांछित भाग में मौजूद नहीं थे। इसका परिणाम यह हुआ कि पीड़कों ने फसल को विध्वंस कर डाला और किसानों को बदले में कोई लाभ नहीं मिला। किसानों ने व्यापारियों से पीड़कानाशी उधार खरीदे थे और इस प्रकार वे भारी कर्ज के नीचे दब गए। फसल के नष्ट हो जाने पर किसानों के पास कोई चारा ही न था और उन्होंने आत्मघात कर लिया तथा अपने परिवारों को उनकी किस्मत के भरोसे छोड़ गए। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रकार की दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटनाएँ भविष्य में न हों। पीड़कनाशियों के सही-सही इस्तेमाल के बारे में हमें किसानों को बताना चाहिए और साथ ही साथ समाज के बेईमान तत्वों को भी काबू में रखना चाहिए।
पीड़क का नियमित मॉनीटरन रू किसी खेत में पीड़क-समष्टि की संख्या का निर्धारण करने के लिए नियमित मॉनीटरन करते रहना चाहिए। समष्टि जैसे ही हानि पहुँचाने वाले स्तरों तक पहुँचे, वैसे ही नियंत्रण-उपाय आरंभ कर देने चाहिए। इससे पीड़क-समष्टि प्रकोप-स्तर तक नहीं पहुँच पाएंगी। प्रकोप-स्तरों की अपेक्षा निम्न संक्रमण-स्तरों पर पीड़कों को अधिक प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। इससे पीड़कनाशियों के अधिक इस्तेमाल से बचा जा सकता है। इसी प्रकार, पीड़कों के खिलाफ पीड़कनाशियों के इस्तेमाल की सलाह देते समय प्राकृतिक शत्रु-समष्टि को भी ध्यान में रखना चाहिए। यदि पीड़क और प्राकृतिक शत्रु-समष्टि का अनुपात अनुकूल है तब पीड़कनाशियों के इस्तेमाल से बचना चाहिए। धान के मामले में, भूरे पादप फुदक (BPH) और मकड़ी-समष्टि के बीच 50:1 का अनुपात अनुकूल माना जाता है और इस अनुपात से कम होने की स्थिति में पीड़कनाशियों के इस्तेमाल की कोई आवश्यकता नहीं होती क्योंकि मकड़ियाँ पादप फुदकों से स्वयं ही निपट लेंगी।
आवश्यकता न होने पर भी पीड़कनाशियों का उपयोग पीड़क प्रबंधन सिंद्धांत के खिलाफ है। दस लाख एकड़ भूमि पर पीड़कनाशी का उपयोग करने से, जबकि केवल एक लाख एकड़ भूमि की ही सुरक्षा करने की जरूरत है, ऐसे खतरे उत्पन्न हो सकते हैं जो होने वाले लाभों से कहीं अधिक होंगे। इसके अतिरिक्त, रासायनिक उपचार की प्रक्रिया शायद ही कभी इतनी दक्ष होती हो कि सारे के सारे रसायनों पूरी तौर से लाभकारी साबित होते हों। नियमतः, कीटों का नियंत्रण करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशी का 90% से अधिक कीटनाशी लाक्षित पीड़क को कभी नहीं मारता, और यह कीटनाशी विविध रूपों में पर्यावरण में समाविष्ट हो जाता है।
पीड़क से होने वाली क्षति को बर्दाश्त करना
पीड़क-प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए और पीड़क-नियंत्रण के लिए पीड़कनाशियों पर हमारी निर्भरता को कम करने के लिए यह जरूरी है कि हम कीटों के साथ जीना सीखें। पीड़क केवल उसी स्थिति में आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं जबकि फसल के ऊपर उनकी समष्टि किसी विशिष्ट स्तर पर पहुँच जाए। इसलिए उच्चतर उपज पाने के लिए पीड़कों से पूर्ण मुक्ति प्राप्त करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि फसल के पौधे किसी हद तक पीड़कों से होने वाली क्षति की पूर्ति करने में समर्थ होते हैं। हालांकि यह बात पादप रोगों के कीट रोगवाहकों (vectors) पर लागू नहीं होती जिनका पूरी तरह से उन्मूलन किया जाना चाहिए। कुछ मामलों में पीड़कों द्वारा नष्ट हुई आवश्यकता से अधिक पत्तियों को तोड़ कर पौधों से अलग करने पर स्वस्थ फसलों के मुकाबले अधिक उपज मिल जाती है। इसलिए, खेत में कुछेक कीट दिखाई देने पर घबराने का कोई कारण नहीं है। इसके अतिरिक्त, कुछ पीड़कों के प्राकृतिक शत्रुओं के बने रहने के लिए हमेशा ही आवश्यकता होती हैय ये प्राकृतिक शत्रु खेत में पीड़क-उन्मूलन में एक महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं। अतः पीड़क की कम-से-कम समष्टि अथवा उससे होने वाली क्षति को बर्दाश्त किया जा सकता है और उससे फसल से होने वाली उपज और गुण पर कोई दुःप्रभाव नहीं पड़ता, तथा इस बात का हमेशा ही ध्यान रखना चाहिए ताकि नियंत्रण-उपायों के अनावश्यक इस्तेमाल से बचा जा सके। आर्थिक आरंभन सीमा-स्तर (ETL) और आर्थिक क्षति-स्तर (EIL) का निर्धारण इसी दिशा में एक कदम है। इनका अर्थ है पीड़क-समस्याओं के प्रति एक उदार उपागम और पीड़कनाशियों का आवश्यकता-आधारित इस्तेमाल ।
पीड़क-नियंत्रण पर उपभोक्ता की जरूरतों का भी प्रभाव पड़ता है। IPM को बढ़ावा देने के लिए और हमारी खाद्य वस्तुओं में पीड़कनाशी के अवशेषों को रोकने के लिए, उपभोक्ताओं को अपने रवैए को बदलना पड़ेगा। उपभोक्ताओं और खाद्य-संसाधनकर्ताओं को पीड़क-मुक्त अथवा क्षति-मुक्त सब्जियों और अन्य वस्तुओं की मांग नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसी वस्तुएँ तो भारी पीड़कनाशियों के इस्तेमाल के पश्चात् ही प्राप्त हो सकती हैं। अतः उपभोक्ताओं को अपने स्वास्थ्य और पीड़क-मुक्त खाद्य पदार्थों के बीच निर्णय लेना पड़ेगा। यह पता लगा है कि कुछ किसान फूलगोभी और बैंगन को पीड़कनाशियों के घोल में डुबो देते हैं ताकि बाजार में बेचने के लिए भेजने से पहले उन पर चमक आ जाए।
क) आर्थिक क्षति-स्तर (EIL)
आर्थिक क्षति-स्तर (EIL) की परिभाषा पीड़क की उस न्यूनतम समष्टि सघनता के रूप में की जाती है जिससे आर्थिक क्षति होती है। कुछ पीड़कों के संदर्भ में, जहाँ समष्टि को सीधे ही गिनती करना संभव नहीं था, EIL की अभिव्यक्ति उनके प्रभावों, जैसे कि क्षति, के संदर्भ में की जाती है, उदाहरण के लिए 10% डेड हॉर्टस् अथवा व्हाइट हेड्स अथवा सिल्वर शूट्स, इत्यादि। यदि नियंत्रण-उपाय इस समष्टिध्क्षति स्तर से नीचे के स्तर पर लिए जाएंगे तो किसानों को अप्रत्यक्ष नुकसान होगा, क्योंकि लागत-लाभ अनुपात अनुकूल नहीं होगा। ऐसी स्थितियों में बचाई गई फसल का मूल्य नियंत्रण उपायों पर दिए गए खर्च से कम होता है। आर्थिक क्षति स्तर का हिसाब फसल के बाजारी मूल्य, नियंत्रण उपायों पर किए गए खर्च और फसल से होने वाली पैदावार-पीड़क-संक्रमण-संबंध पर आधारित होता है। म्प्स् फसल के बाजारी मूल्य से व्युत्क्रमानुपाती होता है जिससे यह संकेत मिलता है कि उच्च मूल्य वाली फसलों के लिए कम पीड़क-क्षति को बर्दाश्त किया जाता है और उसके विपरीत भी। म्प्स् उपज-संक्रमण-संबंध के लिए नकारात्मक रूप से संबंधित होता है, अर्थात् पीड़क जितना अधिक विध्वंसकारी होगा, उसे उतना ही कम बर्दाश्त किया जाता है। EIL का नियंत्रणउपायों की लागत के साथ सकारात्मक संबंध होता है, अर्थात् नियंत्रण-उपाय जितना अधिक महँगा होगा, उतना ही अधिक हम पीड़क-समष्टि को बर्दाश्त कर सकते हैं। आर्थिक क्षति-स्तर अत्यधिक परिवर्तनात्मक तत्व (entity) है और वह विभिन्न स्थानों पर है और साथ ही साथ एक ही स्थान पर फसल की विभिन्न वृद्धि-अवस्थाओं में अलग-अलग हो सकता है।
म्प्स् उन कारकों के कारण, जिनपर यह निर्भर होता है, भी परिवर्तनात्मक होता है जैसे कि फसल का बाजारी मूल्य, नियंत्रण-उपायों पर होने वाला खर्च और उपज-संक्रमण संबंध अलग हो सकते हैं। आर्थिक क्षति-स्तर पर नियंत्रण-उपायों का इस्तेमाल करने से छिड़काव की संख्या काफी हद तक हो जाती है। इससे पीड़क के प्राकृतिक शत्रुओं पर पीड़कनाशियों का हानिकारक प्रभाव भी नहीं पड़ता और पर्यावरणपरक संदूषण भी कम हो जाता है। आर्थिक क्षति-स्तर की अनेक परिभाषाओं का प्रस्ताव किया गया है, जिनके अंतर्गत ये शामिल हैं रू
ऽ वह निम्नतम पीड़क-समष्टि-सघनता जिसके कारण आर्थिक हानि होगी।
ऽ वह स्तर जिसपर होने वाली क्षति को और अधिक बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, इसलिए वह स्तर जिसपर अथवा जिससे पहले यह वाछित हो जाता है कि जानबूझ कर नियंत्रण कार्यवाहियों को आरंभ किया जाए।
ऽ वह अधिक संकटपूर्ण सघनता जिसपर पीड़क द्वारा होने वाला नुकसान उपलब्ध नियंत्रण-उपायों के लागत-मूल्य के बराबर होता है।
ऽ हेडली (1972) ने आर्थिक क्षति-स्तर की परिभाषा इस प्रकार की हैरू वह पीड़क-समष्टि जिससे बढ़ती जाती हानि, क्षति को होने से रोकने पर आने वाली लागत के बराबर होता है।
ख) आर्थिक आरंभन-स्तर (ETL)
आर्थिक आरंभन-स्तर उस सघनता के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसपर नियंत्रण-उपाय आरंभ कर देने चाहिए ताकि बढ़ती हुई पीड़क-समष्टि को आर्थिक क्षति-स्तर तक पहुँचने से रोका जा सके। बढ़ती हुई एक क्षतिकारी समष्टि के उत्पन्न होने का कारण सघनता में वृद्धि अथवा जैवमात्रा में वृद्धि हो सकती है। जैवमात्रा में वृद्धि करती हुई। समष्टि-सघनता के कारण हो सकती है। आर्थिक आरंभन-स्तर हमेशा ही उस पीड़क-सघनता का निरूपण करता है जो आर्थिक क्षति स्तर से कम होता है, ताकि नियंत्रण उपायों को आरंभ किया जा सके ताकि पीड़क-सघनता को आर्थिक क्षति स्तर से अधिक होने से पहले से उपायों का प्रभाव दिखाई देने लगे।
आर्थिक आरंभन स्तर (ETL) वह न्यूनतम समष्टि-सघनता है जिस पर नियंत्रण उपाय शुरू कर देने चाहिए ताकि समष्टि को आर्थिक क्षति स्तर तक पहुँचने से रोका जाए। आर्थिक क्षति-स्तर को म्प्स् के मुकाबले कम स्तर पर निर्धारित किया जाता है। ETL का निर्धारण करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं और फिर पीड़क की जनन दर आधारित म्ज्स् को निर्धारित किया जाता है। यह पता लगाने के लिए नियमित मॉनीटरन की आवश्यकता होती है कि पीड़क-समष्टि म्ज्स् तक पहुँची है अथवा नहीं ।
ग) सामान्य संतुलन स्थिति (GEP)
सामान्य संतुलन स्थिति किसी कीट-समष्टि की दीर्घ काल तक स्थिर बनी रहने वाली वह माध्य समष्टि-सघनता होती है जिसपर पीड़क-नियंत्रण के अस्थायी हस्तक्षेपों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। समष्टि-सघनता, सघनता पर निर्भर कारकों, जैसे परजीव्याभ (parasitoids), परभक्षी और रोग, के प्रभाव के कारण इसी माध्य (औसत) स्तर पर घटती-बढ़ती रहती है। आर्थिक क्षति स्तर, सामान्य संतुलन स्थिति से बिल्कुल कम से लेकर बहुत अधिक तक किसी भी स्तर पर हो सकता है। इस दृष्टि से कीटों को चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है, जैसा कि चित्र 5.3 में दिखाया गया है।
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