मिश्र को किस नदी की देन कहा जाता है ? egypt is the gift of which river in hindi उपहार कहते हैं
egypt is the gift of which river in hindi मिश्र को किस नदी की देन कहा जाता है उपहार कहते हैं ?
answer : egypt is the gift of nile river. नील नदी को मिश्र (इजिप्ट) का उपहार या गिफ्ट या देन कहा जाता है |
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. मिश्र को किस नदी की देन कहा जाता है
(अ) गंगा (ब) नील (स) यांगत्से (द) हुन्हुआन
2. निम्न में से किसका नदियों के संबंध में महत्वपूर्ण योगदान है –
(अ) अरस्तु (ब) हीरोडोटस (स) स्ट्रेबो (द) डेल्टाई
3. प्रथम शताब्दी से 14 वीं शताब्दी तक का भू-आकृति विज्ञान में काल …..
(अ) अन्धकार युग (ब)डेल्टायुग (स) आकस्मिकवाद युग (द) जलीय युग
4. लिओनार्डो द विन्सी किस देश के वैज्ञानिक थे –
(अ) भारत (ब) जापान (स) अमेरिका (द) इटली
5. आधारतल की संकल्पना का प्रतिपादन –
(अ) रासेल (ब) पावेल (स) स्ट्रेबो (द) अरस्तू
उत्तर- 1. (ब), 2. (स), 3. (अ), 4. (द), 5. (ब)
आधुनिक काल (20 वीं सदी: प्रथमार्द्ध) – (Moderm Period : First Half of 20th Century)ः
बीसवी सदी का प्रारम्भ भूआकृति विज्ञान में विधितंत्रात्मक क्रान्ति के साथ होता है, जबकि अमेरिका में डेविस तथा उनके अनुयायियों (अन्यत्र भी) तथा जर्मनी में वाल्टर पेंक के स्थलरूपाों के निर्माण एवं विकास सम्बन्धी परस्पर विरोधी सिद्धान्त प्रकाश में आये। डेविस द्वारा प्रतिपादित भौगोलिक चक्र की संकल्पना का, कड़े विरोध के बावजूद, भ्वाकृतिक शोधों एवं अध्ययनों में विश्वभर में प्रभुत्व छाया रहा। इनके भौगोलिक चक्र के मॉडल को इनके समर्थकों तथा अनुयायियों ने विभिन्न नाम से सम्बर्दि्धत एवं प्रचारित किया, डेविस का भौगोलिक चक्र उनके स्थालाकृतियों के विकास के सामान्य सिद्धान्त का प्रतिनिधित्व नहीं करता है क्योंकि इनके सामान्य सिद्धान्त के अनुसार, ‘स्थलरूपाों में विभिन्न क्रमिक अवस्थाओं से होकर समय के साथ क्रमिक परिवर्तन होता है तथा यह परिवर्तन एक सुनिश्चित दिशा में सुनिश्चित लक्ष्य (आकृति विहीन समप्राय मैदान) की ओर उन्मुख होता है।
अमेरिकी सम्प्रदाय भूआकृति विज्ञान के क्षेत्र में आगे चलकर समृद्ध होता गया इसमें अनेक भूगोलवेत्ताओं ने योगदान दिया। डी.डब्ल्यू.जानसन (सागरीय प्रक्रम तथा तटीय भूआकारिकी, सी.ए. मैलट (जलीय प्रक्रम एवं अपरदन), एच.ए. मेयरहाफ एवं ई.डब्ल्यू.ओमस्टेड (अलेशियन अपवाह का उद्भवन), आर.पी.शार्प, सी.पी.एस.शार्प, ए.के.लोबेक, डब्ल्यू.डी. थार्नबरी आदि ने महत्वपूर्ण योगदान किया।
बीसवीं सदी के प्रथमार्द्ध में यूरोपीय सम्प्रदाय ने भी भ्वाकृतिक चिन्तन के विकास एवं सम्वर्द्धन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ब्रिटेन ने भूआकृति विज्ञानियों ने अपनी स्वतंत्र पहचान बनाये रखा तथा वहाँ पर भूआकृतिक विज्ञान का एक भिन्न सम्प्रदाय उभर कर सामने आया, जिसने स्थालाकृतियों के विकास के लिए ऐतिहासिक परिवेश में कालानुक्रम अध्ययन पर जोर दिया। इसे अनाच्छादन कालानुक्रम, के नाम से जाना जाता है। यूरोप में डेविस के भौगोलिक चक्र के मॉडल को कठोर आलोचना का सामना करना पड़ा। जर्मन विद्वानों ने डेविस की अपरदनरहित उत्थान की संकल्पना का जमकर खण्डन किया। वास्तव में डेविस के मॉडल के जर्मन आलोचकों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है –
(i)प्रथम वर्ग में वे आलोचकों एवं विरोधी आते हैं जिन्होंने अपरदन चक्र की संकल्पना के पूर्ण अस्वीकरण की वकालत की है, तथा (ii) दूसरे वर्ग के अन्तर्गत वे लोग आते है जिन्होंने डेविस के मॉडल में संशोधन सुझाया है तथा नये मॉडल का प्रतिपादन किया है।
पेंक के अनुसार स्थलरूपाों का विकास समय आधारित नहीं होता, पेंक ने अपने ‘आकृतिक विश्लेषण‘ तथा ‘आकृतिक तंत्र‘ के माध्यम से बहिर्जात प्रक्रमों तथा आकृतिक विशेषताओं के आधार पर भूपटलीय संचलन की विगत घटनाओं की पुनर्रचना एवं व्याख्या करने का प्रयास किया। पेंक के स्थलाकृतियों के विकास के मॉडल का सन्दर्भ तंत्र यह है कि किसी स्थान के स्थलरूपाों की विशेषतायें उस स्थान की विवतर्निक क्रियाओं से सम्बन्धित होती है। स्थलरूपा, इस तरह, अन्तर्जात बलों की तीव्रता एवं बहिर्जात प्रक्रमों द्वारा पदार्थों के विस्थापन के परिणाम के बीच अनुपात के द्योतक होते हैं। पेक ने डेविस के ‘समय-निर्भर सिद्धान्त‘ के विपरीत समय-रहित सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। लोगों का कहना है कि पेंक ने या तो डेविस के स्थलाकृतिक विकास के मॉडल को नजरअन्दाज करने के लिए या अपने नये मॉडल का प्रतिपादन करने के लिए अपने मॉडल में जानबूझकर अवस्था संकल्पना का उपयोग नहीं किया है।
जर्मनी तथा फ्रांस में विकास – जर्मनी तथा फ्रान्स में ‘जलवायु भूआकृति विज्ञान‘ के रूपा में भूआकृति विज्ञान की नयी शाखा का अभ्यूदय इस आधारभूत संकल्पना पर हुआ कि ‘प्रत्येक जलवायु प्रकार अपना स्वयं का स्थल रूपाों का विशिष्ट समूह उत्पन्न करता है।‘ सायर (1925), वेण्टवर्थ (1928), सेपर (1935), फ्रीज (1935) आदि ने जलवायु भूआकृति विज्ञान की संकल्पना के प्रतिपादन में पर्याप्त सहयोग प्रदान किया। आगे चलकर बुदेल (1944,1948) तथा एल.सी.पेल्टियर (1950) ने आकारजनक या आकारजलवायु प्रदेश की संकल्पना का प्रतिपादन किया।
भू-आकृति विज्ञान में नूतन प्रवृतियाँ
(Recent Trends in Geomorphology)
19 वीं शताब्दी में जैसे ही भू-आकृति विज्ञान का स्वरूपा एक स्वतन्त्र विषय के रूपा में स्थापित हुआ इसमें नूतन प्रवृत्तियों का समावेश प्रारंभ हो गया, जिनका आधार अठारहवीं शताब्दी का भू-आकृतिक विकास रहा। जेम्स हट्टन द्वारा चक्रीय व्यवस्था के विकास के उपरान्त इस विषय में क्रान्तिकारी परिवर्तन आये। कारपेन्टीयर ने “हिमानी सिद्धान्त‘‘ का प्रतिपादन किया। यूरोपीय भू-आकृतिवादी चार्ल्स लियेल. लुई आगासीज (हिमयुग की संकल्पना), प्लेफेयर, बर्नहार्डी, कारपेण्टिअर, रेमजे, रिचथोफेन, पेशेल, पेंक आदि ने भू-आकृति विज्ञान के विकास में प्रमुख योगदान दिया। इसके बाद गिल्बर्ट ने ‘आसमान ढाल का नियम‘ प्रस्तुत किया। प्रसिद्ध अमेरिकी भू-वैज्ञानिक डट्टन (Dutton C.E.)ने सर्वप्रथम ‘भूसन्तुलन‘ (Isostasy) शब्द का नामकरण किया था। डेविस महोदय ने स्थलरूपाों की उत्पत्ति से सम्बन्धित ‘अपरदन चक्र के सिद्धान्त‘ (Cycle of Erosion) का प्रतिपादन करके भू-आकृति विज्ञान को नवीन स्वरूपा दिया। भू-आकृति विज्ञान के व्यवस्थित अध्ययन के लिए सर्वप्रथम अल्ब्रेट पेंक ने भू-आकृति विज्ञान को नवीन रूपा दिया। भू-आकृति विज्ञान के व्यवस्थित अध्ययन के लिए सर्वप्रथम अल्ब्रेट पेंक ने भू-आकृति विज्ञान पर पुस्तक लिखी। भू-आकृति विज्ञान में विगत वर्षों में जो नूतन परिवर्तन दिखाई दिए है वे निम्न प्रकार
1. एकरूपाता के सिद्धान्त को हट्टन महोदय ने प्रतिपादित किया था, जिसे सावधानीपूर्वक प्रयोग किया जाता हैं यह सिद्धान्त सर्वत्र लागू नहीं होता है।
2. महाद्वीप विस्थापन के सिद्धान्त तथा प्लेट विर्वतनिकी के आधार पर स्थलखण्ड एवं जलवायु पेटियाँ गतिशील रहती हैं, जिससे भी एकरूपाता के सिद्धान्त का सावधानीपूर्वक विचार किया जाता है।
3. डेविस के अपरदन चक्र की विचारधारा का महत्व कम होता जा रहा है। इसके स्थान पर वाल्टर पैक के विचार को महत्व दिया जा रहा है।
4. भौगोलिक पक्ष की अपेक्षा भू-वैज्ञानिक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता है। जैसे-अधोभौमिक जल के अपक्षय की व्याख्या करने में खनिज विज्ञान तथा शैलस्तर क्रमों आदि के सिद्धान्तों को मद्देनजर रखा जाता है।
5. भू-आकृतियों के ढाल से सम्बन्धित नवीन सिद्धान्तों जैसे-पैंक-किंग-मॉडल, हैक का “गतिक सन्तुलन सिद्धान्त‘‘ तथा प्लेट टेक्टोनिक सिद्धान्तों को महत्व मिल रहा है।
6. आर्थर होम्स के संवहन धारा सिद्धान्त को भी मान्यता मिल चुकी है।
7. भू-आकृति विज्ञान में भू-आकृति के प्रादेशीकरण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
8. भू-आकृति विज्ञान में मात्राकरण का प्रयोग बढ़ रहा है। भू-आकृति विज्ञान में मात्रात्मक विवेचन को आकारमिति कहते हैं।
9. भू-आकृति विज्ञान में मॉडल निर्माण तथा परीक्षण विधियों का उपयोग बढ़ता जा रहा है। इसमें प्राकृतिक अनुरूपा विधि, भौतिक विधि तथा सामान्य विधि आदि मॉडलों का प्रयोग हो रहा है।
10. भू-आकृति विज्ञान के सिद्धान्तों को व्यावहारिक जीवन में उपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। भू-आकृति विज्ञान के सिद्धान्तों का उपयोग इंजीनियिरिंग, भू-विज्ञान में सिंचाई के लिए, बाँध बनाने, सड़कों, रेलमार्गों पुलों तथा नहरों आदि में किया जाता हैं।
11. भू-आकृति विज्ञान का अधिकाधिक आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग हो रहा हैं
12. भू-आकृतियों की व्याख्या के कारण केवल स्थलखण्डों की नहीं वरन जलखण्डों के भू-पटल की भू-आकृतियों का अध्ययन निरीक्षण किया जा रहा है।
13. तन्त्र संकल्पना का प्रयोग हो रहा है, इसमें एक वस्तु का दूसरी वस्तु से सम्बन्ध तथा उनका वस्तुओं से सम्बन्ध एवं उनके व्यक्तिगत गुणों का अध्ययन किया।
महत्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घउत्तरीय प्रश्न
1. भू-आकृति विज्ञान के ऐतिहासिक विकास के रूपा में विभिन्न विद्वानों के द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को स्पष्ट कीजिए।
2. भू-आकृतिक चिन्तन के आधुनिक काल को स्पष्ट कीजिए।
लघुउत्तरीय प्रश्न
1. भू-आकृति विज्ञान से क्या तात्पर्य है?
2. अन्धकार युग से क्या तात्पर्य है?
3. आकस्मिकवाद काल से क्या तात्पर्य है?
4. हिमकाल की संकल्पना स्पष्ट कीजिए?
5. भू-आकृति विज्ञान की नूतन प्रवृत्तियाँ बताईए।
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