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भारत में शिक्षा की वर्तमान स्थिति क्या है , समस्या एवं मुद्दे , उदाहरण सहित समझाइए education condition in hindi

education condition in hindi भारत में शिक्षा की वर्तमान स्थिति क्या है , समस्या एवं मुद्दे , उदाहरण सहित समझाइए ?

शिक्षा के विभिन्न चरणों का विकास :  स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग का उद्देश्य राष्ट्र की मानव क्षमता का भरपूर उपयोग के लिए सभी को एक समान शिक्षा मिले और उच्च शिक्षा विभाग का उद्देश्य समानता और उत्कृष्टता के साथ भारत के मानव क्षमता उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में हो। इसी संदर्भ मंत्रालय ने स्कूल और उच्च शिक्षा स्तर पर अनेक पहलें की हैं। केंद्र सरकार शिक्षा नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जिसमें महत्वपूर्ण है राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनसीई) 1986, जिसे 1992 में संशोधित किया गया। अन्य पहलों में सभी को अच्छी प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना, लड़कियों की शिक्षा पर विशेष बल, हर जिले में नवोदय विद्यालय की स्थापना, उच्च शिक्षा में ज्ञान संयोजन और अंतर विषयी शोध, राज्यों में अधिक विश्वविद्याल खोलना, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् को मजबूत बनाना, खेलों को बढ़ावा देना,शारीरिक शिक्षा, योग और मूल्यांकन का प्रभावी तरीका अपनाना आदि शामिल हैं।
मानवता के इतिहास के शुरुआत के साथ शिक्षा का विकास विविधीकरण और उसकी पहुंच का दायरा बढ़ता जा रहा है। हर देश अभिव्यक्ति और अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान के संवर्धन और बदलते समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए शिक्षा प्रणाली का विकास करता है। इतिहास में एक ऐसा समय भी आता है जब वर्षों पुरानी प्रक्रिया को नया जीवन देने के लिए नई दिशा देने की जरूरत पड़ती है। शिक्षा सभी के लिए अनिवार्य और समग्र तथा भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए जरूरी है।
प्रारंभिक शिक्षाः प्राथमिक शिक्षा, शिक्षा का एक महत्वपूर्ण चरण होती है, यह स्कूली शिक्षा के प्रथम आठ वर्ष (कक्षा 1 से 8 तक) तक होती है और व्यक्तित्व, दृष्टिकोण, सामाजिक विश्वास, आदतों, जीवन कौशलों और विद्यार्थियों के संचार कौशलों के विकास की नींव रखता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-45 राज्य को 14 वर्ष तक के बच्चों की निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा देने की जिम्मेदारी प्रदान करता है। भारत एक विशाल देश है, जिसमें विविध सामाजिक, सांस्कृतिक इतिहास वाले 36 राज्य और केंद्र शासित क्षेत्र विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में फेले हुए हैं। सभी के लिए बुनियादी शिक्षा का लक्ष्य संविधान में निहित है जो 6-14 आयु वग्र के सभी बच्चों को सार्वभौमिक अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में गारंटी प्रदान करता है। पिछले छह दशकों से लगातार विकास नीतियों और योजनाओं ने इसी लक्ष्य के लिए काम किया है। परिणामस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र, खासकर प्रारंभिक शिक्षा से महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-21-ए और बाद में बना कानून बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009, देश में 1 अप्रैल, 2010 से लागू है। इसका आने वाले वर्षों में प्रारंभिक शिक्षा और सर्वशिक्षा अभियान के कार्यान्वयन में दूगामी परिणाम होगा। इसका अर्थ हुआ कि हर बच्चे को कुछ प्रतिमानों और मानकों पर खरे उतरने वाले औपचारिक स्कूल में संतोषजनक और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार है।
वर्ष 2001 में शुरू किया गया सर्वशिक्षा अभियान प्रारम्भिक शिक्षा के सर्वसुलभीकरण के लिए भारत के सामाजिक क्षेत्रों के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में से एक है। इसके समग्र लक्ष्यों में प्रारम्भिक शिक्षा में सार्वभौमिक पहुंच एवं अवधारणा प्राप्त करना, लैंगिक एवं सामाजिक श्रेणी के अंतर को पाटना और बच्चों के अध्ययन स्तर में महत्वपूर्ण वृद्धि हासिल करना शामिल है। सर्वशिक्षा अभियान को राज्य सरकारों की मदद से कार्यान्वित किया जाता है।
प्राथमिक स्तर पर बालिकाओं की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीईजीईएल) शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लाॅकों में लागू की जाती है और उन बालिकाओं की समस्याओं की आवश्यकताओं पर ध्यान देती है जो स्कूल में भर्ती तो हैं लेकिन वहां जाती नहीं।
माध्यमिक शिक्षाः माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच और गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान मार्च 2009 में शुरू की गई। योजना का उद्देश्य किसी बस्ती से तर्कसंगत दूरी के अंदर माध्यमिक स्कूल प्रदान कर माध्यमिक स्तर पर नामांकन दर को शत प्रतिशत करने की परिकल्पना है। इसके अन्य उद्देश्यों में सभी माध्यमिक स्कूलों को निर्धारित मानदंडों का पालन करने वाला बनाकर माध्यमिक स्तर पर प्रदान की जा रही शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना, लैंगिक, सामाजिक-आर्थिक एवं अपंगता अड़चनों को दूर करना, वर्ष 2017 तक माध्यमिक स्तर की शिक्षा को सर्वसुलभ बनाना तथा वर्ष 2020 तक सभी बच्चों को स्कूल में भर्ती का लक्ष्य प्राप्त करना है।
केंद्र द्वारा प्रायोजित इस संशोधित परियोजना में उच्च शिक्षा के व्यवसायीकरण की मुख्य बातें इस प्रकार हैंः
1- क्षमता आधारित मानक व्यावसायिक पाठ्यक्रमों से युवाओं की नियोजनीयता बढ़ाना, बहुप्रवेश, बहु निकास ज्ञानार्जन अवसरों और योग्यता में गतिशीलता/अंतर परिवर्तनीयता के प्रावधानों से उनकी स्पर्धात्मकता को बना, रखना, शिक्षित और नियोजनीय के बीच खाई को कम करना और अकादमिक उच्च शिक्षा पर दबाव कम करना।
2- योजना के तहत् मांग आधारित मानक क्षमता आधारित व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पहचान और उद्योग/नियोजकों के सहयोग से उनका विकास।
3- उच्चतर माध्यमिक स्कूलों, सरकारी सहायता प्राप्त और गिजी स्कूलों के माध्यम से एनवीईक्यूएफ पद्धति के अनुरूप पाठ्यक्रम उपलब्ध कराना।
4- योजना के महत्वपूर्ण घटकों में (i) नए स्कूलों में व्यावसायिक पाठ्यक्रम लागू करना और (ii) वर्तमान स्कूलों में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को मजबूत करना।
5- शिक्षार्थी, शिक्षक और प्रशिक्षक को व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के क्षमता आधारित शिक्षक, ज्ञानार्जन सामग्री, औजार, उपकरण और मशीनरी तकनीकी कौशल विकास के लिए स्कूलों को उपलब्ध कराना।
6- व्यावसायिक पाठ्यक्रम और माॅड्यूल्स के प्रमाण-पत्र संबद्ध राज्य बोर्डों या केंद्रीय बोर्डों द्वारा प्रदान करना।
7- राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों द्वारा विशेष समूहों यथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जगजाति, अन्य पिछड़ा वग्र, गरीबी रेखा के नीचे के लोग, अल्पसंख्यक और बच्चे और इन समूहों की लड़कियों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जाएगा।
लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा के लिएराष्ट्रीय प्रोत्साहन योजना मई 2008 में इस उद्देश्य से शुरू की गई कि स्कूल छोड़ने वालों की संख्या कम हो और माध्यमिक स्कूलों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जगजाति समुदायों की लड़कियों की संख्या बढ़े।
एनसीईआरटी के पास बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के क्रियान्वयन के लिए अकादमिक प्राधिकार हैं। यह राज्यों/केंद्रशासित क्षेत्रों को कानून लागू करने में हर संभव सहायता प्रदान कर रहा है। इसका प्राथमिक शिक्षा विभाग सर्वशिक्षा अभियान के तहत् प्राथमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के शीर्ष केंद्र के रूप में कार्य करता है। बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों में क्रियान्वयन के बारे में अन्वेषणात्मक अध्ययन शुरू किया गया और आंध्र प्रदेश, गुजरात और ओडिशा से आंकड़े इकट्ठे किए गए। इस कानून के तहत् बच्चों को उनकी आयु के अनुरूप कक्षाओं में प्रवेश के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम के दिशा-निर्देश बना, गए हैं।
राष्ट्रीय मुक्त शिक्षा संस्थान की स्थापना इस दृष्टि से की गई कि लोगों को सतत् समावेशी अध्ययन के साथ आसान पहुंच वाली स्कूली शिक्षा और कौशल विकास का अवसर मिले। सीबीएसई के स्कूल छोड़ चुके और दूसरा अवसर चाहने वाली जनसंख्या के शिक्षार्थियों के लिए एक छोटी परियोजना के रूप में शुरू परियोजना अब विश्व के सबसे बड़े मुक्त स्कूल के रूप में बदल चुकी है और एक विशाल स्कूल के रूप में इसकी सहायता की जाती है।
सीबीएसई एक स्वायत्त निकाय है जो मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संरक्षण में कार्य कर रहा है। यह 1929 में स्थापित देश के सबसे पुराने बोर्डों में दूसरा है। सीबीएसई के मुख्य उद्देश्य देश के अंदर एवं बाहर संस्थाओं को संबंद्ध करना, कक्षा 10 एवं 12 की वार्षिक परीक्षाओं का संचालन करना, चिकित्सा एवं इंजीनियरिंग काॅलेजों में प्रवेश के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करना, पाठ्यक्रम तैयार करना और उन्हें अद्यतन बनाना तथा शिक्षकों एवं संस्थाओं के प्रमुखों को अधिक जागकारी उपलब्ध कराना है।
उच्च शिक्षाः उच्च शिक्षा लोगों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक मुद्दों से दो-चार होने का अवसर प्रदान करती है। विशेष ज्ञान और कौशल के प्रसार से राष्ट्रीय विकास में योगदान देती है। शैक्षिक पिरामिड के शीर्ष पर होने के कारण यह देश में अच्छे शिक्षक तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ज्ञान के क्षेत्र में प्रस्फुटन की अभूतपूर्व आवश्यकता के संदर्भ में उच्च शिक्षा को हमेशा गतिशील और अज्ञात क्षेत्रों में निरंतर तलाश करनी चाहिए।
उच्च शिक्षा में पहुंच को आमतौर पर सकल नामांकन अनुपात से मापा जाता है। इसे सभी आयु समूहों के लोगों के विभिन्न कार्यक्रमों में प्रवेश लेने और 18-23 आयु वग्र की कुल जनसंख्या के अनुपात में मापा जाता है। विश्वविद्यालय शिक्षा के संवर्धन और समन्वय और अध्यापन, परीक्षा, अनुसंधान विश्वविद्यालयों में विस्तार तथा मानक को बना, रखने के लिए संवैधानिक संस्था के रूप में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना 1954 में संसद के एक कानून के तहत् हुई। आयोग विश्वविद्यालयों और काॅलेजों को अनुदान देने के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों को उच्च शिक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने की सलाह देता है।
तकनीकी शिक्षा सुविधाओं के सर्वेक्षण और समन्वित तथा एकीकृत तरीके से उसके विकास को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सलाहकार संस्था के रूप में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (एआईसीटीई) की स्थापना 1945 में हुई। परिषद् के दायरे में सभी स्तरों पर इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण एवं अनुसंधान सहित तकनीकी शिक्षा, वास्तुविद्या और नगर नियोजन, प्रबंधन, फार्मेसी, व्यावहारिक कला एवं शिल्प, होटल, प्रबंधन और खान-पान व्यवस्था प्रौद्योगिकी के कार्यक्रम आते हैं। दूरस्थ शिक्षा परिषद् की स्थापना इग्नू अधिनियम 1985 के तहत् हुई।
दूरस्थ शिक्षा परिषद् मुक्त और दूरस्थ विद्यार्जन (ओडीएल) प्रणाली में मानकों की देख-रेख का समन्वय करती है। अपने उद्देश्यों के अनुरूप परिषद् ने व्यवस्था में मानकों का निर्धारण करने और 13 राज्य मुक्त विश्वविद्यालयों और 200 से अधिक निदेशालयों को भी परंपराग्त विश्वविद्यालयों और गिजी/स्वायत्त संस्थाओं से संबंध दूरस्थ शिक्षा संस्थानों को वित्तीय और अकादमिक सहायता देने के लिए पहल की है। परिषद् का यह कर्तव्य है कि मुक्त विश्वविद्यालय/दूरस्थ शिक्षा व्यवस्थाओं, उसके समन्वित विकास और उसके मानकों के निर्धारण के लिए आवश्यक कदम उठाए। परिषद् राज्य सरकारों/विश्वविद्यालयों और अन्य संबंद्ध एजेंसियों से सलाह मशविरा कर मुक्त विश्वविद्यालयों/दूरस्थ शिक्षा संस्थानों के नेटवर्क के विकास का प्रयास करती है ताकि उन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों का पता लग सके जहां दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन किया जागा चाहिए और ऐसे कार्यक्रमों आदि के आयोजन में जो भी आवश्यक सहायता हो, प्रदान करे।
वास्तुविद्या परिषद् (सीओए) का गठन संसद द्वारा पारित वास्तुकार अधिनियम 1972 के प्रावधानों के तहत् किया गया है, जो 1 सितंबर, 1972 से प्रभावी है। अधिनियम में वास्तुकारों और संबंधित विषयों के पंजीकरण की व्यवस्था है। वास्तुविद्या योग्यता को केंद्र सरकार द्वारा अधिनियम के तहत् मान्यता प्राप्त अधिसूचित करने के लिए सीओ, से सलाह ली जाती है। परिषद् ने केंद्र सरकार की पूर्वानुमति से वास्तु शिक्षा विनियमन 1983 के तहत् अधिसूचित कर मान्यता प्रदान करने के लिए आवश्यक वास्तु शिक्षा के न्यूनतम मानक निर्धारित किए हैं। केंद्र सरकार ने वास्तुविद अधिनियम 1972 के अंतग्रत प्राप्त अधिकारों से सीओ, नियम 1973 बना, जिसे भारत के असाधारण राजपत्र में 20 फरवरी, 1973 को प्रकाशित किया। इन नियमों में पहले भी संशोधन किए गए हैं। वास्तुविद्या परिषद् (संशोधन) नियम, 2009 को 1 जुलाई, 2009 को अधिसूचित कर वास्तुविद्या परिषद् नियम 1973 को हाल ही में संशोधित किया गया है।
भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) नई दिल्ली की स्थापना भारत सरकार ने 1969 में की थी। इसका प्रमुख उद्देश्य समाज विज्ञान में अनुसंधान को बढ़ावा देना और संबंद्ध लोगों द्वारा उसका उपयोग करना, समाज विज्ञान अनुसंधान में जुटी 25 संस्थाओं और 6 क्षेत्रीय केंद्रों को अनुसंधान के लिए बढ़ावा देना, द्विपक्षीय अनुसंधान परियोजनाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग करना, अध्ययन, प्रकाशन अनुदान और दस्तावेजीकरण और पुस्तकालय सेवाएं प्रदान करना। परिषद् विभिन्न सामाजिक समूहों अनुसूचित जाति, अनुसूचित जगजाति, विकलांग, महिलाओं और उत्तर पूर्व क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देती है।
भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् की स्थापना भारत सरकार ने 1977 में की थी और सोसायटी के रूप में पंजीकृत है। परिषद् का मुख्य उद्देश्य दर्शन के क्षेत्र में अनुसंधान और उसके प्रकाशन में मदद करना और दर्शन के क्षेत्र ें अनुसंधानिक गतिविधियों को बढ़ावा और प्रसार के लिए संगोष्ठियां/ कार्यशालाओं/सम्मेलनों का आयोजन करना है।
प्रौढ़ शिक्षाः छठी पंचवर्षीय योजना में प्रौढ़ निरक्षरता को दूर करना एक जरूरी कार्य स्वीकार किया गया, विशेष रूप से 15-35 आयु वग्र समूह की प्रौढ़ शिक्षा को निम्नतम आवश्यकता कार्यक्रम के एक हिस्से के तौर पर शामिल किया गया। प्रौढ़ शिक्षा में नियोजित हस्तक्षेप और सतत् प्रयासों से काफी प्रगति हुई।
प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य अच्छी गुणवत्ता और स्तर वाली प्रौढ़ शिक्षा और साक्षरता से पूर्ण साक्षर समाज की स्थापना है। साक्षरता और प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विभाग के स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था के रूप में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकार (एनएलएमए) की स्थापना की गई है। यह राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के अंतग्रत क्रियाकलापों के लिए प्रचालन और कार्यान्वयन संगठन है और ऐसे अन्य क्रियाकलापों को चलाता है जो प्रौढ़ शिक्षा के लिए आवश्यक खर्च की जाती है। प्राधिकार की विविध भूमिकाओं में प्रौढ़ शिक्षा नीति और नियोजन, साक्षरता और प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम का क्रियान्वयन, निगरानी अनुसंधान और मूल्यांकन, प्रचार और वातावरण निर्माण और प्रकाशन शामिल हैं। प्रौढ़ शिक्षा के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण दो योजनाएं साक्षर भारत मिशन तथा प्रौढ़ शिक्षा और कौशल विकास के लिए स्वैच्छिक संगठनों की मदद चला रहा है।
विभिन्न राज्यों, जिलों, सामाजिक समूहों और अल्पसंख्यकों में साक्षरता दर असमान है। कुछ राज्यों ने विशेष साक्षरता अभियान और सामुदायिक समर्थन से उच्च साक्षरता दर हासिल की है लेकिन कुछ राज्य पिछड़े हुए हैं। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जगजातियों में साक्षरता स्तर में सुधार हुआ है लेकिन अल्पसंख्यकों में यह स्तर कम है। पिछड़े क्षेत्रों और समूहों में साक्षरता में असमानता कम करने के लिए सरकार ने सकारात्मक कदम उठाए हैं।
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के रूप में साक्षर भारत (एसबी) की शुरुआत 8 सितंबर, 2009 को की गई थी।
इसके अंतग्रत (i) निरक्षरों और अंक ज्ञान न रखने वाले प्रौढ़ों को कार्यात्मक साक्षरता और अंक ज्ञान प्रदान करना।
(ii) नव-साक्षर प्रौढ़ व्यक्तियों को बुनियादी साक्षरता के बाद भी अपना अध्ययन जारी रखने में और औपचारिक शैक्षिक प्रणाली से समानता प्राप्त करने में मदद करना।
(iii) निरक्षरों और नव-साक्षरों को अपने रोजगार और जीवन परिस्थितियों में सुधार हेतु संगत कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करना।
(iv) नव-साक्षर प्रौढ़ व्यक्तियों को शिक्षा जारी रखने के लिए अवसर प्रदान करते हुए एक शिक्षित समाज को बढ़ावा देना; जैसे उद्देश्यों को शामिल किया गया।
इस प्रकार भारत में शिक्षा की प्राचीन काल से अर्वाचीन समय तक एक समृद्ध एवं विविध परम्परा रही है जिसमें आत्मसात्करण एवं सहिष्णुता ने एक अहम् भूमिका निभाई है। शिक्षा के सार्वभौमीकरण एवं गुणवत्तापरक प्रदायन के प्रयास सतत् जारी हैं।