आर्थिक सुधार किसे कहते हैं | आर्थिक सुधार की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब economic reforms in hindi
economic reforms in hindi meaning definition आर्थिक सुधार किसे कहते हैं | आर्थिक सुधार की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब ?
आर्थिक सुधार ः उन नीतियों का अनुसरण जिसका लक्ष्य आर्थिक कार्यकलापों पर सरकार का नियंत्रण और विनियमन समाप्त करना तथा मुक्त बाजार को बड़ी भूमिका निभाने की अनुमति देना।
शब्दावली
आर्थिक द्वैधता ः एक अर्थव्यवस्था अथवा अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में द्विभक्तीकरण जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक कार्यकलापों (जैसे उत्पादन) के संचालन की दो समानान्तर व्यवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं और अलग-अलग नीतिगत पक्षों का विकास होता है।
सकल घरेलू उत्पाद का वास्तविक मूल्य: एक देश के अंदर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य (अर्थात् आयातों की गणना नहीं की जाती है) का माप दिए गए वर्ष के मूल्य स्तर पर किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ ः सरकारी स्वामित्व वाली फैक्टरियाँ ।
नौकरीहीन वृद्धि ः एक शब्द जिसे 1980 के दशक की स्थिति जब औद्योगिक उत्पादन में उच्च दर पर वृद्धि हुई किंतु औद्योगिक रोजगार वस्तुतः स्थिर था के संदर्भ के लिए गढ़ा गया।
भारतीय उद्योग संबंधी रोजगार प्रवृत्तियाँ
औद्योगिकरण के नियोजित प्रयासों से भारत आधुनिक उद्योगों के विशाल संजाल (नेटवर्क) का सृजन कर रहा है जिसमें बड़ी संख्या में अर्धनिर्मित तथा तैयार वस्तुओं दोनों का उत्पादन किया जा रहा है। तथापि, प्रौद्योगिकीय क्षमता में यह उपलब्धि रोजगार के स्वरूप में संरचनात्मक परिवर्तन के अनुरूप नहीं हुआ है। हमारी अधिकांश जनसंख्या (60 प्रतिशत से अधिक) अभी भी कृषि क्षेत्र में ही नियोजित है, हमारे उद्योगों का रोजगार में कुल हिस्सा 15 प्रतिशत के लगभग है और सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 30 प्रतिशत उद्योग क्षेत्र से आता है। इसे अच्छा रिकार्ड नहीं कहा जा सकता है, विशेष कर इस तथ्य के मद्देनजर कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस क्षेत्र को सरकार से भारी संरक्षण मिला है। औद्योगिक क्षेत्र के अंदर, पंजीकृत विनिर्माण इकाइयाँ कुल श्रम बल के 20 प्रतिशत को रोजगार देता है किंतु योजित मूल्य (निर्गत का माप) में इसका हिस्सा 66 प्रतिशत है, जबकि शेष अपंजीकृत विनिर्माण क्षेत्रों से आता है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र जिसे सरकार के समर्थन और नियोजन का सर्वाधिक लाभ मिला है, सापेक्षिक रूप से अधिक पूँजी-सघन है तथा यह हमारे विशाल श्रम-बल को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मुहैया कराने में असफल रहा है। तथापि, जैसा कि हमारे योजना निर्माताओं ने सोचा था, इस क्षेत्र ने हमारी अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की, और परोक्ष रूप से अन्य क्षेत्रों में रोजगार का सृजन किया है। तथापि, यह जाँच का विषय हो सकता है।
अब हम रोजगार में दीर्घकालीन प्रवृत्ति पर दृष्टिपात करते हैं, जो तालिका 30.1 में दिखाया गया है। वर्ष 1960-61 में औद्योगिक रोजगार लगभग 36 लाख (3.6 मिलियन) था, और 38 वर्षों के बाद 1998 में यह बढ़कर 10 मिलियन (1 करोड़) हो गया अर्थात् मात्र तीन गुना वृद्धि हुई है। यद्यपि कि इस तालिका में हमने सिर्फ संक्षिप्त आँकड़ा (पाँच वर्षों के अंतराल पर) ही लिया है, विस्तृत वार्षिक आँकड़ों से भी न्यूनाधिक यही परिलक्षित होता है कि वृद्धि की रफ्तार अत्यन्त ही धीमी रही है। कभी-कभी अपवाद स्वरूप उछाल को छोड़कर धीमी गति से रोजगार में वृद्धि की प्रवृत्ति रही है जिसमें अस्सी के दशक के दौरान भारी कमी आई थी। जैसा कि इस संक्षिप्त आँकड़े में भी देखा जा सकता है, वर्ष 1985-86 के कर्मकारों और कर्मचारियों दोनों के आँकड़े 1980-81 के तदनुरूपी आँकड़ों की तुलना में कम है। हम पहले ही देख चुके हैं कि ‘कर्मचारी‘ में सभी पदनामों के कर्मकार सम्मिलित हैं (अर्थात् शारीरिक श्रम करने वाले और कार्यालयी कार्य करने वाले दोनों), जबकि ‘कर्मकार‘ का अभिप्राय विनिर्माण प्रक्रिया में (मुख्य रूप से शारीरिक श्रम करने वाले) सम्मिलित कर्मकारों से है। कर्मचारियों की दोनों ही श्रेणियों में वृद्धि की गति धीमी रही है। ‘कर्मकारश् कहलाने वाले कर्मचारियों का प्रतिशत, हालाँकि इसमें भी ह्रासोन्मुखी प्रवृत्ति दिखाई जाती है, विगत तीस वर्षों तक लगभग 77 प्रतिशत पर स्थिर रहा है, जिससे यह पता चलता है कि फर्मों के श्रम बल संरचना में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है।
तालिका 30.2 में हमने कुछ महत्त्वपूर्ण सांख्यिकी प्रस्तुत किया जो कुछ महत्त्वपूर्ण आर्थिक सूचकों के संबंध में रोजगार कार्य-निष्पादन की व्याख्या करते हैं। इसके माध्यम से कई बातें आसानी से बताई जा सकती हैं। पहला, पिछले चालीस वर्षों में इस क्षेत्र में रोजगार वृद्धि दर नियोजित पूँजी की वृद्धि दर उत्पादित निर्गत की वृद्धि दर और सकल घरेलू उत्पाद में समग्र वृद्धि दर की अपेक्षा कम रही है। दूसरा, यह क्षेत्र मुख्य रूप से पूँजी-सघन क्षेत्र रहा और श्रम के उपयोग से अधिक पूँजी के उपयोग में वृद्धि हुई। तीसरा, स्वयं औद्योगिक क्षेत्र गतिहीन नहीं है। वर्ष 1960 और 1990 के बीच इसके योजित मूल्य (अथवा निर्गत) में, 6.25 प्रतिशत की औसत दर से वृद्धि हुई। इस तथ्य के मद्देनजर कि औद्योगिक क्षेत्र ही सामान्यतया प्रमुख क्षेत्र है जो व्यापार-चक्र (जैसे मंदी अथवा तेजी) से प्रभावित होता है, यह वृद्धि दर तुच्छ नहीं है। चैथा, जब हम विभिन्न दशकों में रोजगार वृद्धि का विश्लेषण करते हैं तो हम न्-आकार का पैटर्न बनता देखते हैं। वर्ष 1960-80 के बीच अपेक्षाकृत उच्च वृद्धि दर से शुरू होने के बाद 1980 और 1990 के बीच इसमें गिरावट आई और उसके बाद 1990 के दशक में पुनः वृद्धि दर ऊपर चढ़ने लगी जो स्थिति के पलट जाने का द्योतक है। अनेक अर्थशास्त्रियों ने इसी पैटर्न के कारण 1980 के दशक को ‘नौकरी विहीन वृद्धि का दशक‘ कहा है।
यह प्रवृत्ति महत्त्वपूर्ण क्यों है? इसका एक कारण यह है कि यह न्यूनाधिक हमारे नीतिगत परिवर्तनों के प्रवृत्ति (पैटर्न) का अनुसरण करता है। जहाँ साठ के दशक में नियंत्रण, औद्योगिक लाइसेन्स प्रणाली और विनियमन की शुरुआत हुई थी, सत्तर के दशक में ये सर्वव्यापी हो चुके थे। किंतु अस्सी के दशक के मध्य से आंशिक तौर पर विनियमन में ढील देना शुरू हुआ और उसके बाद अंत्तः 1991 में आर्थिक सुधार कार्यक्रम को अपनाया गया। इसलिए, यह जाँच-पड़ताल करना अत्यन्त ही स्वभाविक है कि क्या उद्योग के नियोजन कार्यनिष्पादन का सरकार की आर्थिक नीतियों से निकट संबंध था। इस प्रश्न पर हम बाद में चर्चा करेंगे।
रोजगार की प्रवृत्तियों पर अपनी चर्चा जारी रखते हुए यह उल्लेखनीय है कि यद्यपि नब्बे के दशक में रोजगार की औसत वृद्धि दर में बढोत्तरी हुई जो कि अत्यन्त ही सकारात्मक रुख है किंतु बीच-बीच में उतार-चढ़ाव चिन्ता की बात है। विगत दशक में कम से कम तीन वर्षों में प्रायः शून्य वृद्धि दर्ज किया गया, और एक वर्ष (1996-97) में रोजगार में समग्र गिरावट आई। इससे अनेक अर्थशास्त्रियों के मन में यह शंका उत्पन्न हुई कि उद्योग में सुधार का रुख टिकाऊ होगा अथवा नहीं। इसके अलावा यह भी देखा गया कि अपंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र में, जहाँ लगभग 80 प्रतिशत रोजगार का सृजन होता है, कुछ शोध निष्कर्षों के अनुसार, नौकरियों की संख्या में समग्र गिरावट के संकेत हैं। किंतु ये परिणाम प्रामाणिक नहीं हैं।
बोध प्रश्न 3
1) विगत चालीस वर्षों में रोजगार प्रवृत्ति की मुख्य विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
2) क्या रोजगार वृद्धि निर्गत के समरूप हुई।
3) ‘नौकरीविहीन वृद्धि‘ से हमारा अभिप्राय क्या है?
4) सही के लिए (हाँ) और गलत के लिए (नहीं) लिखिए ।
क) वर्ष 1980 से औद्योगिक रोजगार में गिरावट आ रही है। ( )
ख) वर्ष 1960 से 1980 तक निर्गत और रोजगार दोनों में वृद्धि हुई। ( )
ग) नब्बे के दशक में, रोजगार वृद्धि सकारात्मक रही है। ( )
घ) अस्सी के दशक में, औद्योगिक निर्गत में बहुत वृद्धि नहीं हुई। ( )
बोध प्रश्न 3 उत्तरमाला
1) 1960-80ः सामान्य वृद्धि, 1980-90 प्रायः नगण्य वृद्धि , 1990-97ः पुनः वृद्धि शुरू
2) तालिका 3 देखिए।
3) 1980 के दशक में, उच्च वृद्धि दर के साथ-साथ स्थिर रोजगार। इसलिए, इसे यह कहा जाता है।
4) (क) नहीं (ख) हाँ (ग) हाँ (घ) नहीं
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics