dual alliance of 1879 in hindi , द्विगुट संधि के बारे में जानकारी दीजिये क्या है , किस्मे मध्य संधि हुई
पढ़िए dual alliance of 1879 in hindi , द्विगुट संधि के बारे में जानकारी दीजिये क्या है , किस्मे मध्य संधि हुई ?
प्रश्न: द्विगुट संधि (Dual Alliance).
उत्तर: 7 अक्टूबर, 1879 को जर्मनी तथा ऑस्ट्रिया के मध्य एक संधि हुई। इस संधि के अनुसार
(i) यदि ऑस्ट्रिया व रूस के बीच युद्ध होता है तो जर्मनी ऑस्ट्रिया की मदद करेगा।
(ii) यदि जर्मनी व फ्रांस के बीच युद्ध होता है तो ऑस्ट्रिया तटस्थ रहेगा।
(iii) यदि फ्रांस व रूस मिलकर जर्मनी के साथ युद्ध करते हैं तो ऑस्ट्रिया जर्मनी की मदद करेगा। इस संधि की शर्तों को 1887 तक गुप्त रखा गया।
भाषा एवं साहित्य
तमिल
द्रविड़ भाषाओं में सबसे पुरानी तमिल को संस्कृत की भांति क्लासिकल और अन्य भारतीय भाषाओं की भांति एक आधुनिक भाषा भी माना जाता है। तमिल साहित्य की निरंतरता दो हजार सालों से बनी हुई है। सबसे प्राचीन तमिल रचना का समय बता पाना कठिन है। विद्वान सहमत हैं कि तोलकाप्पियम सबसे प्राचीन और वर्तमान में भी विद्यमान तमिल व्याकरण और साहित्यक रचना है। इसे संगम साहित्य से भी पुराना माना जाता है। इसका रचनाकाल तीसरी शताब्दी ई.पूमाना जा सकता है। किंतु कुछ विद्वान इसे 4 या 5 वीं शताब्दी ईस्वी का मानते हैं। इस रचना को तमिल साहित्य का आदिस्रोत मान सकते हैं। संस्कृत का प्रभाव इस पर नाममात्र का था। इसके रचयिता तोलकाप्पियार संभवतः अगस्तय ऋषि के शिष्य थे, जिन्होंने अगात्तियम लिखा।
तमिल साहित्य का प्रारंभिक ज्ञात चरण संगम साहित्य के नाम से जागा जाता है, क्योंकि पांड्य राजाओं के मदुरई दरबार में मूर्धन्य कवियों की उपस्थिति से सभी साहित्यिक रचनाओं पर गजर रहती थी और इन विद्वानों का समूह ही ‘संगम’ कहलाता था। यद्यपि प्रारंभिक रचनाओं का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका है, लेकिन सामान्यतः संगम साहित्य को 300 ई.पू. और 200 ई. के बीच का मानते हैं। उपलब्ध संगम साहित्य के दो भाग हैं, अहम जिसका प्रमुख विषय प्रेम है व पुरम, जिसका प्रमुख विषय युद्ध है।
तिरुवल्लुवर के ‘तिरूक्कुरल’ को उल्लेखनीय कृति माना जाता है, जो धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और कामसूत्र से लिया गया है। इसमें गुण, सम्पत्ति और प्रमोद का वर्णन है। मुनरूराई अरईयर द्वारा लिखित पलमोली मंे लोकोक्ति द्वारा नैतिकता के वर्णन का नया तरीका अपनाया गया है। इलांगो आदिगल द्वारा लिखित सिलप्पादिकरम और सत्तानर द्वारा लिखित मनिमेकलाई महाकाव्यों को ईसा पश्चात् की प्रारंभिक शताब्दी का माना जाता है। बाद में तीन और महाकाव्य लिखे गए जीवक चिंतामणि (जैन लेखक द्वारा), वलयपति और कुंद लकेसी। इनमें से आखिरी दो नष्ट हो गए हैं।
संगम युग की समाप्ति पर भक्ति कविताओं का उदय हुआ शैव और वैष्णव। शैव तिरूज्ञान समबंदर ने कई तेवरम श्लोक लिखे। अन्य शैव नयनार हैं तिरूनानुक्करसर, सुंदरर और मनिक्कवयकर (जिसने तिरूवचकम लिखा)। अलवर वैष्णव परम्परा को मानने वालों में सबसे मशहूर नम्मालवर (तिरूवयमोली) और अंदाल (तिरूप्पावई) थे। वैष्णव कवियों के कार्य को दिव्य प्रबंध कहा जाता है। ओट्टाकुट्टन चोल दरबार के कवि थे। तंजावुर जिले का कुट्टानुर गांव इसी कवि को समर्पित है। कंबन ने रामायण का तमिल में अनुवाद किया। उन्होंने उसे रामनाटक कहा। वह किसी भी मायने में कोरा अनुवाद नहीं था। उसमें कथ्य, संरचना और चरित्र चित्रण में उनका अपना काम गजर आता है। चोल और पांड्य के बाद तमिल साहित्य में गिरावट आनी शुरू हुई, पर 15वीं शताब्दी में अरुणागिरीनाथर ने सुप्रसिद्ध तिरूप्पुगज की रचना की। इस काल के वैष्णव विद्वानों ने धार्मिक रचनाओं की टीकाएं लिखीं। वेदांत देसिकर, मानवला महामुनि, पिल्लै लोकाचार्य जैसे व्यक्तित्वों को मदुरई के तिरुमला नायक का संरक्षण प्राप्त था। तोलकाप्पियम और कुराल पर बेहतरीन टीकाएं लिखी गईं।
18वीं शताब्दी में तमिल साहित्य पर ईसाई और मुस्लिम प्रभाव देखा गया। उमरूप्पुलवर ने हजरत मोहम्मद की जीवन गाथा पद्य में लिखी सिराप्पुरनम। फादर बेशी जैसे ईसाई मिशनरियों ने तमिल में लेखन के एक रूप में आधुनिक गद्य की शुरूआत की। उनका तेम्बावानी संत जोसफ के जीवन पर एक महाग्रंथ है। उनकी अविवेक पूर्ण गुरु कथाई को तमिल में कहानी की शुरूआत कहा जा सकता है। वेदनायगम पिल्लै और कृष्णा पिल्लै तमिल के दो ईसाई कवि हैं। इस काल की अन्य महत्वपूर्ण रचनाओं में राजप्पाकबिरायर का कुट्टाल-ताला-पुराणम और कुतराला-कुरावंची तथा शिवाज नानामुनिवर मापादियम हैं, जो शिव-ज्ञान बोधम पर एक टीका है। आर.काल्डवेल और जी.एमण् पोप ने विश्वभर में अंग्रेजी अध्ययन और तमिल क्लासिक रचनाओं के अनुवाद के माध्यम से तमिल को व्यापकता प्रदान की। वेदनायकम पिल्लै का प्रतापमुदलियार चरित्रम तमिल का पहला उपन्यास था।
18वीं और 19वीं शताब्दियों के दौरान तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन परिलक्षित हुए। तमिल समाज एवं संस्कृति को पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से बड़ा धक्का लगा। शैव मठों ने तमिल सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा का प्रयास किया। तिरुववदुथुरई, धरमपुरम, थिरूपप्पनथल एवं कुंद्रकुडी में स्थित शैव मठों में मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई (1815-1876) जैसे शिक्षक थे, जिन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों की रचना की जिनमें 200,000 से अधिक कविताएं हैं। गोपालकृष्ण भारथी ने कई कविताएं एवं गीत लिखे। रामालिंगा अडिगल (वालालर) (1823-1874) ने भक्ति कविता तिरुवरूतप लिखी।
तमिल भाषा में उपन्यास एक साहित्य की शैली के रूप में 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आया। मेयुराम वेदनयगम पिल्लई ने प्रथम तमिल उपन्यास प्रथम मुदालियार चरिथरम (1879) लिखा। कमलमबल चरितम 1893 में बी.आर. राजम अय्यर ने लिखा और पदमावथी चरितम ए. माधविहा ने 1898 में लिखा। डीजय कांथन को आधुनिक समय के तमिल उपन्यासों के वास्तविक ट्रेंड सेटर के तौर पर देखा जाता है। उनके साहित्य में जटिल मानव प्रकृति और भारतीय सामाजिक वास्तविकता की गहरी एवं संवेदनशील समझ को प्रस्तुत किया गया है।
1990 के दशक से जे. मोहन, एस. रामकृष्णनन और चारू निवेदिता जैसे लेखकों का पदार्पण हुआ। अन्य भाषाओं से अनुदित उपन्यास (उरूमातरम, सिलुवयली थोगुंम साथन, थोगुम अझागिगलिन इल्लम) भी लोकप्रिय हुए। अमरंथा, लथा एवं रामकृष्णनन ने इस क्षेत्र में योगदान दिया।
1940-1960 के दशकों में, कल्कि कृष्णामूर्ति ने प्रसिद्ध ऐतिहासिक एवं सामाजिक फिक्शन लिखे। चांडिल्यिन ने कई ऐतिहासिक बेहद लोकप्रिय रोमांस उपन्यासों की रचना की। 1930 के दशक से तमिलनाडु में अपराध एवं खोजबीन (डिटेक्टिव) फिक्शन ने व्यापक लोकप्रियता हासिल की। इस समय के लोकप्रिय लेखक कुरूंबुर कुप्पुसामी और वादुवुर दुरईसामी आयंगर थे, और 1980 के दशक से सुभा, पट्टुकोटई प्रबाकर और राजेश कुमार प्रमुख लेखक रहे।
20 शताब्दी में तमिल ने काफी उन्नति की। सुब्रमण्यम भारती की कविताओं ने पाठकों में राष्ट्रीय और देशभक्ति की भावना जगाई, क्योंकि उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, राष्ट्रीय स्वतंत्रता और मानव जाति की समानता पर लिखा। उनके कोयलपट्टू, कान्ननपट्टू और उनका नाट्य काव्य पांचाली शबदम में एक आध्यात्मिक बल है। उन्हें एक साहित्यिक प्रतियोगिता में ‘भारती’ उपनाम दिया गया था। उन्होंने दैनिक इंडिया की स्थापना की तथा स्वदेश मित्रम के लिए काम किया। वी.कल्याण, सुंदर मुदलियार और वी.ओ. चिदम्बरम पिल्लै ने पत्रकारिता को नई ऊंचाई प्रदान की। आधुनिक कहानी का श्रेय वी.वी. एसअ य्यर को जाता है और उसे स्थापित किया कुडुमाईपित्थन, आर. कृष्णमूर्ति (काल्की) और एम. वरदराजन ने। सी. राजगोलाचारी ने क्लासिक्स को सामान्य गद्य में पुनर्भाषित किया, ताकि वह आम आदमी को समझ आ सके। स्वतंत्रता के बाद अनेक प्रतिभाशाली लेखक प्रकाश में आए; जैसे का-ना सुब्रमण्यम, पीवी.अखिलंदम (ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता), इंदिरा पार्थसारथी, नीला पर्निंाभन्, जयकांतन और अन्य।
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