(dispersal of seeds in hindi) बीज प्रकीर्णन किसे कहते हैं | बीजों के प्रकीर्णन विधि का उल्लेख कीजिए बीजों का प्रकीर्णन विधियों का वर्णन कीजिए ?
फलों और बीजों का प्रकीर्णन (dispersal of seeds and fruits) : वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार बीजधारी पौधे पादप जगत में सर्वाधिक विकसित कहे जा सकते है। विश्व की वर्तमान वनस्पति का गहन विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि धरती पर सर्वाधिक पादप जैवभार बीजधारी पौधों का ही है। अपने जीवन चक्र की चरम परिणति के रूप में ये पौधे बीज उत्पन्न करते है। जैसा कि हम जानते है , बीजधारी पौधों में निषेचन के बाद बीजाण्ड में विकसित प्रवर्ध्य (propagule) को बीज कहते है। पोषण और वातावरण की अनुकूलन परिस्थितियों में अंकुरित होकर बीज नए पौधे के रूप में विकसित होता है जो परिपक्व होकर फिर से बीज उत्पन्न करता है। इस प्रकार बीजों के लगातार उत्पादन से प्रजाति की निरन्तरता अथवा सांतत्य बना रहता है।
हमारी धरती पर बीजधारी पौधों का वितरण और फैलाव व्यापक रूप से पाया जाता है। इसके साथ ही गहन अध्ययन के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला गया है कि आज बीजधारी पौधे जिस स्थान पर पाए जाते है वस्तुतः ये उस स्थान के मूल निवासी नहीं है अपितु इनकी उत्पत्ति कही और हुई है। तत्पश्चात विभिन्न माध्यमों और प्रक्रियाओं द्वारा इनके बीज और फल दूरस्थ क्षेत्रों में ले जाए गए , जहाँ वे अंकुरित होकर प्राकृतिक रूप से स्थापित हो गए है और वहां से इनका प्रसार अभी भी हो रहा है।
बीजों के बन जाने के पश्चात् इनके भावी जीवन की सफलता अर्थात अंकुरण , नवांकुरों का निर्माण और इनका परिपक्व होना आदि के लिए इनका प्रकीर्णन एक आवश्यक प्रक्रिया है। इस प्रकार नवनिर्मित , पूर्णतया विकसित और परिपक्व फल और बीजों के अपने मूल पादप अथवा जनक पौधे से दूरस्थ क्षेत्रों में प्रसार अथवा फैलाव की प्रक्रिया को प्रकीर्णन कहते है।
फलों और बीजों का प्रकीर्णन निम्न बाहरी कारकों अथवा माध्यमों के द्वारा होता है –
1. वायु द्वारा प्रकीर्णन (dispersal by wind) : फलों और बीजों में प्रकीर्णन सबसे अधिक वायु के माध्यम से होता है जो फल और बीज वायु के द्वारा प्रकिर्णित होते है। उनमें अनेक प्रकार की अनुकूलन वियुक्तियाँ होती है , जो उनके जनक पौधे से दूर ले जाने में सहायक होती है। वायु द्वारा प्रकिर्णित होने वाले बीज प्राय: हल्के होते है।
(i) हल्के और छोटे बीज और फल (light weight and minute seeds and fruits) : कुछ बीज और फल इतने हल्के और छोटे आकार के होते है कि उनको वायु आसानी से उड़ा ले जाती है। आर्किड्स के बीज धूल कणों जैसे छोटे , हल्के और शुष्क होते है तथा इस कारण धीमी बहती हवा में भी उड़ते रहते है। इनकी सूक्ष्मता का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इनके एक कैप्सूल फल में लाखों बीज समा जाते है। अनेक घासों के बीज छोटे और हल्के होते है।
(ii) पक्ष (wings) : अनेक बीज और फल प्रकीर्णन के लिए एक अथवा अनेक पंख उत्पन्न करते है जो पतले होते है। जैकेरेन्डा , ओरोजाइलम , अल्लू अथवा आइलेंथम , सहजन अथवा मोरिन्गा , सेजा अथवा लेगस्ट्रोमिया और चीड के बीज पंखदार अथवा winged होते है।
इसी प्रकार अनेक फल भी पंखदार होते है। जैसे मेपल चिचल अथवा बंदर की रोटी , सोज , होपिया अथवा बनखंडी , साल और जटाशंकरी आदि। वास्तव में सभी प्रकार के समारा और समारा जैसे फल इस श्रेणी में आते है।
(iii) पैराशूट क्रियाविधि (parachute mechanism) : कम्पोजिटी या एस्टेरेसी कुल के सदस्यों में पुष्प का बाह्यदल पुंज रोमिल संरचना अथवा पैपस में रूपान्तरित हो जाता है और यह चिरस्थायी होता है। इसे रोमगुच्छ भी कहते है। पैपसयुक्त फल मुंडकों से अलग होकर वायु में आते है तो यह रोमगुच्छ अथवा पैपस पैराशूट की भाँती खुल जाता है। इस प्रकार ये फल हवा के वेग के साथ काफी दूर दूर तक पहुँच जाते है। जब हवा धीमी हो जाती है तो ये फल भी पैराशूट की भांति जमीन पर आ जाते है।
(iv) दोलक्षेप क्रियाविधि (censor mechanism of seed dispersal) : कुछ पौधों में कैप्सूल अथवा संपुट फल स्फुटित तो हो जाते है परन्तु उनसे बीज उस समय तक नहीं निकलते जब तक कि वह हवा द्वारा अथवा किसी जानवर द्वारा तेजी से झकझोर नहीं दिए जाते , इस प्रक्रिया से एक ही समय में कम बीज निकलते है तथा प्रकीर्णन लम्बे समय तक चलता रहता है , दोलक्षेप क्रियाविधि कुत्ताफुल अथवा डॉग फ्लावर , हंसलता अथवा बतखबेल , पीलीकटेली और पोस्त आदि में पायी जाती है।
(v) बेलनी क्रियाविधि (rolling mechanism) : कुछ छोटे और अल्पजीवी पौधे अपना जीवन चक्र समाप्त कर सुख जाते है तथा तेज वायु के कारण जड़ सहित उखड़ जाते है। ये तेज हवा अथवा आँधी में वेल्लन करते अथवा लुढकते फिरते है तथा दूर दूर तक चले जाते है। इस प्रक्रिया में इनके बीज रास्ते में गिरते चले जाते है जैसे सालसोला , कटेली और चौंलाई आदि। इस प्रकार के पौधों को जो वेल्लनी क्रियाविधि दिखाते है , सामूहिक रूप से टम्बल वीड्स (tumble weeds) कहा जाता है।
(vi) रोम (hairs) : कुछ पौधों में बीजों के ऊपर रोम पाए जाते है जो या तो गुच्छों या बीज के चारों तरफ उपस्थित होते है। आक में बीज पर रोम का एक गुच्छा पाया जाता है , जबकि वासंती में बीज पर रोमों का गुच्छा बीज के दोनों सिरों पर होता है। कपास में रोम बीज की सम्पूर्ण सतह पर होते है। यह रोम बीजों को हवा में उड़ाने में सहायक होते है तथा इस प्रकार काफी दूर दूर तक चले जाते है।
(vii) चिरलग्न वर्तिका (persistant style) : कुछ पौधों के पुष्पों में वर्तिका चिरलग्न और रोमिल होती है। इस कारण फल आसानी से वायु के द्वारा उड़ा लिए जाते है , जैसे नाक छींकनी तथा नारवेलिया अथवा छोटा फूल में।
(viii) गुब्बारे सदृश उपांग (baloon like a appendages) : कुछ पौधों जैसे बैलून वाइन या गुब्बारा बेल रसभरी और गोरीसल आदि में फलों में गुब्बारे जैसे उपांग बन जाते है। इससे यह फल हल्के होकर वायु में तैरने के योग्य बन जाते है तथा हवा के माध्यम से काफी दूर तक चले जाते है। गुब्बारा बेल में संपुट फल फूलकर गुब्बारे की तरह हो जाते है , जबकि रसभरी और गोरीसल में चिरलग्न बाह्यदल पुंज फूलकर गुब्बारे की तरह संरचना बनाते है।
लिन्डेन के फल एक पत्ती समान सहपत्र से जुड़े रहते है , यह हवा में तैरते फलों को दूर दूर तक पहुँचा देते है।
2. जल द्वारा प्रकीर्णन (dispersal by water in hindi)
जल द्वारा प्रकिर्णित बीजों और फलों के लिए यह आवश्यक है कि उनमें अपने अन्दर किसी प्लावन संरचना को विकसित किया गया हो।
कुमदनी अथवा वाटर लिली के बीज छोटे और हल्के होते है और इनके बीजचोल में हवा भरी रहती है जिससे ये आसानी से पानी में तैर सकते है। कमल का लट्टू के आकार का पुष्पासन , जिसकी सतह पर फल लगे रहते है , स्पंजी होता है। स्पंजी होने के कारण इसमें हवा भरी रहती है तथा यह पानी पर तैरता रहता है और पानी के प्रवाह के साथ बहते हुए यह काफी दूर तक चला जाता है।
सिंघाड़े (trapa natans) : इसके पके फल टूटकर निचे जलाशय के कीचड़ में धंस जाते है और अनुकूलन परिस्थितियों में अंकुरित होकर ये नयी बेल बना लेते है।
नारियल (cocos nucifera coconut ) और डबल कोकोनट में मध्य फलभित्ति रेशेदार होती है तथा फल को पानी की सतह पर तैरने में सहायक होती है। इसके साथ ही यह रक्षात्मक आवरण भी बनाती है। मध्यफलभित्ति की सक्रियता के कारण यह फल समुद्र में दूर दूर तक बह जाते है तथा समुद्र तट पर पहुँचने के बाद अंकुरित होकर नया पौधा बना लेते है। संभवत: यही कारण है कि नारियल समुद्री किनारों और समुद्री टापुओं की अभिलाक्ष्णिक वनस्पति का एक अभिन्न हिस्सा है।
वर्षा के पानी से भी पौधों के बीज बहते हुए सुदूर स्थानों तक पहुँच जाते है।