differential amplifier in hindi formula भेद प्रवर्धक किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए
भेद प्रवर्धक किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए differential amplifier in hindi formula ?
प्रवर्धक की बैण्ड चौड़ाई (Bandwidth of amplifier)
RC युग्मित प्रवर्धक का आवृत्ति अनुक्रिया वक्र चित्र (4.20-5) में दर्शाया गया है। वोल्टता लाभ का मान एक निश्चित आवृत्ति परास में नियत रहता है तथा निम्न आवृत्तियों व उच्च आवृत्तियों दोनों पर लाभ में कमी होती है। उच्च अन्तक आवृत्ति fh व निम्न अन्तक आवृत्ति fi का अन्तर (fh – fi) प्रवर्धक की बैण्ड चौड़ाई कहलाती है।
बैण्ड चौड़ाई BW = (fh – fi)
भेद प्रवर्धक (DIFFERENTIAL AMPLIFIER)
व्यापक रूप से भेद प्रवर्धक का कार्य दो संकेतों के अन्तर को प्रवर्धित करना है।
यदि निवेशी संकेत क्रमश: V, व V2 है तो आदर्श भेद प्रवर्धक का निर्गत संकेत होगा-
Vo = Ad (V1 – V2)………..(1)
जहाँ AJ भेद प्रवर्धक की लब्धि है। समीकरण (1) के अनुसार आदर्श अवस्था में vo का मान संकेतों के माध्य स्तर पर निर्भर नहीं करता है। उदाहरणस्वरूप यदि किसी अवस्था में V1 = 25uv व v2 = – 25uV तथा किसी अन्य अवस्था में | V1 = 525 uV व v2 = 475 V हो तो दोनों अवस्थाओं में निर्गत संकेत (V1 – V2 ) = 50 uV के अनुसार समान प्राप्त होना चाहिये, जबकि इन अवस्थाओं में माध्य स्तर भिन्न (0 व 500 uV) है। वास्तविकता में निर्गत संकेत विभेदी संकेत (difference signal) Vd = (V1 – V2 ) के साथ-साथ उनके माध्य स्तर अर्थात् उभयनिष्ठ विधा संकेत (common-mode signal) Vc =1/2 (V1 + V2 ) पर भी निर्भर होता है।
यदि दूसरे संकेत की अनुपस्थिति में प्रथम संकेत के लिये लब्धि A1 है तथा प्रथम संकेत की अनुपस्थिति में दूसरे संकेत के लिये लब्धि A2 है तो अध्यारोपण के सिद्धान्त से दोनों संकेतों की उपस्थिति में निर्गत संकेत होगा-
आदर्श भेद प्रवर्धक के लिये Ac शून्य होना चाहिये । यर्थाथतः Ad का मान Ac के सापेक्ष अधिक से अधिक होना अपेक्षित है।
भेद प्रवर्धक की दक्षता का मापन A व A के अनुपात के परिमाण द्वारा किया जा सकता है व इस अनुपात को उभयनिष्ठ-विधा निराकरण अनुपात ( common-mode rejection ratio), संक्षेप में CMRR, कहते हैं ।
समीकरण (8) के अनुसार भेद प्रवर्धक की अभिकल्पना इस प्रकार होनी चाहिए कि p का मान अनुपात (Vc/vd) के सापेक्ष अधिकाधिक हो। ऐसी अवस्था में
जैसा कि आदर्श भेद प्रवर्धक में होता है।
CMRR का मान ज्ञात करने के लिये सर्वप्रथम निवेशी संकेत वोल्टताएँ निम्न लेते हैं-
(v0)1 व (vo)2 का अनुपात (Ad/ Ac) अर्थात् के तुल्य होता है।
उत्सर्जक युग्मित भेद प्रवर्धक (Emitter coupled differential amplifier) उत्सर्जक युग्मित भेद प्रवर्धक का परिपथ चित्र (4.21-1) में प्रदर्शित किया गया है। इसमें दो एकसमान ट्रॉजिस्टर Q1 Q2 प्रयुक्त होते हैं। ये दोनों ट्रॉजिस्टर एकीकृत परिपथ की रचना में चिप पर पास-पास स्थित होते हैं अत: उनका ताप समान रहता है जिससे उनके प्राचलों में ताप वृद्धि के कारण परिवर्तन समान होते हैं और विभेदी विद्या में इन परिवर्तनों का निर्गत संकेत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। Q1 व Q2 के संग्राहक समान लोड प्रतिरोधों RL RL के द्वारा शक्ति प्रदायक Vcc से जोड़ दिये जाते हैं। Q1 व Q2 के उत्सर्जक परस्पर संबंधित कर उच्च प्रतिरोध RE के द्वारा उत्सर्जक शक्ति प्रदायक VEE से जोड़ दिये जाते हैं। निवेशी संकेत V1 व V2 क्रमश: Q1 व Q2 के आधारों पर लगाये जाते हैं। संकेत Q1 व Q2 के संग्राहकों के मध्य अर्थात् चित्रानुसार A, B के मध्य प्राप्त होता है। यह परिपथ चित्र में प्रदर्शित- रेखा a.a’ के सापेक्ष सममित होता है।
विभेदी विधा ( differential mode) में निवेशी संकेत इस प्रकार लगाये जाते हैं कि उनके परिमाण बराबर परन्तु कलायें विपरीत हों अर्थात् V1 = V2 इस विधा में निवेश चित्र (4.21-2) के अनुरूप होता है।
उभयनिष्ठ विधा (common-mode) में निवेशी संकेत परिमाण में बराबर साथ ही समान कला में होते हैं, अर्थात् V1 = V2 वास्तविक प्रचालन में उभयनिष्ठ विधा में संकेत लगाये नहीं जाते वरन् परिपथ में असममिति अथवा किसी अन्य कारण से उत्पन्न होते हैं। उभयनिष्ठ-विधा के संकेतों को न्यूनतम स्तर पर रखना अपेक्षित होता है। उभयनिष्ठ विधा में निवेश चित्र (4.21-3) में प्रदर्शित किया गया है।
ट्रॉजिस्टर Q1 व Q2 एकसमान मानते हुए भेद प्रवर्धक का तुल्य परिपथ चित्र (4) में प्रदर्शित किया गया है। विभेदी विधा में चूँकि निवेशी संकेत V1 व v2 परिमाण में समान परन्तु विपरीत कला में होते हैं अतः इनके कारण एक ट्रॉजिस्टर की संग्राहक धारा में वृद्धि और दूसरे की संग्राहक धारा में कमी होगी। अल्प संकेत अयामों के लिये ट्रॉजिस्टरों के अन्योन्य लाक्षणिक सरल रेखीय माने जा सकते हैं जिससे विभेदी विधा में संकेत लगाने पर एक ट्रॉजिस्टर की संग्राहक धारा में वृद्धि, दूसरी की संग्राहक धारा में कमी के बराबर होगी। उत्सर्जक प्रतिरोध RE के योग के तुल्य होती है जो इस विधा में नियत बनी रहेगी। इसप्रकार संग्राहक टर्मिनलों के मध्य निर्गत संकेत Vo प्राप्त होगा परन्तु प्रतिरोध RE पर विभेदी संकेत प्राप्त नहीं होगा ।
चित्र (4) से विभेदी विधा में
उभयनिष्ठ विधा के संकेत यदि उपस्थित हों तो उनके कारण दोनों ट्रांजिस्टरों की संग्राहक धारा में समान परिवर्तन होगा जिससे निर्गत संकेत शून्य होगा। इस अवस्था में उत्सर्जक प्रतिरोध RE से धारा में वृद्धि होगी जिससे ऋणात्मक पुनर्निवेश के द्वारा उभयनिष्ठ विधा की लब्धि कम हो जायेगी व CMRR बढ़ जायेगा। प्रतिरोध Rg को बढ़ाकर ऋणात्मक पुनर्निवेश बढ़ाया जा सकता है । परन्तु RE के अधिक मान के साथ उत्सर्जक शक्ति प्रदायक की वोल्टता VEE भी अधिक लेनी आवश्यक होगी। इस समस्या के समाधान के लिये RE के स्थान पर नियत धारा ट्रॉजिस्टर परिपथ प्रयुक्त किये जाते हैं।
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