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धर्म सभा की स्थापना किसने की थी के संस्थापक कौन थे , dharma sabha was founded by in hindi

dharma sabha was founded by in hindi धर्म सभा की स्थापना किसने की थी के संस्थापक कौन थे ?

प्रश्न: धर्मसभा
उत्तर: धर्मसभा की स्थापना राधाकान्त देव ने 1830 में कलकत्ता में की। ये सती प्रथा के समर्थक थे। ब्रहम समाज के विरुद्ध हिन्दू कट्टरवाद का समर्थन करना इनका उददेश्य था। राधाकान्त देव ने राममोहन राय के सती प्रथा विरोधी आदोलन की खिलाफत की थी।

भाषा एवं साहित्य

बोडो
बोडो, भारत-तिब्बत परिवार की भाषा की एक शाखा, तिब्बत-वर्मा भाषा की बारिक प्रभाग के अंतग्रत बारिश खण्ड की एक शाखा है। उत्तरी-पूर्वी भारत एवं नेपाल के लोग बोडो भाषा बोलते हैं। यह भाषा असम की राजकीय भाषाओं में से एक है, और भारत में विशेष संवैधानिक दर्जा रखती है।
यद्यपि बोडो एक प्राचीन भाषा है, तथापि बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक तक इसका लिखित साहित्य नहीं था। ईसाई मिशनरियों ने बोडो व्याकरण एवं शब्दकोष पर कुछ पुस्तकें प्रकाशित कीं। रेवरेंड सिडनी एंडले ने एन आउटलाइन आॅफ द काचरी ग्रामर (1884) का संकलन किया और पुस्तक पर एक मुख्य मोनाग्राफ लिखा। जे-डी.एंडरसन की ‘ए क्लेक्शन आॅफ बोडो फोकटेल्स एंड राइम्स’ (1895) ने बोडो के मूल रूप के अतिरिक्त अंग्रेजी में अनुवादित सत्रह बोडो लोक कथाओं को शामिल किया।
सामाजिक-राजनीतिक जागरण और 1913 से बोडो संगठनों द्वारा जारी आंदोलन ने 1963 में बोडो प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में बोडो भाषा को प्राथमिक स्कूल में शिक्षा के माध्यम के रूप में स्थापित किया। वर्तमान में, बोडो भाषा शिक्षा के सेकेंडरी स्तर तक शिक्षा का माध्यम बन गई है। बोडो भाषा में बड़ी संख्या में कविता, नाटक, लघु कथाएं, उपन्यास, जीवन कथाएं, यात्रा वृतांत, बाल साहित्य एवं साहित्यिक आलोचना से सम्बद्ध पुस्तकें मौजूद हैं। यह भाषा आधिकारिक तौर पर देवनागरी लिपि में लिखी जाती है, हालांकि रोमन लिपि एवं असमिया लिपि के प्रयोग का भी इसका एक लम्बा इतिहास है। यह कहा जाता है कि यह भाषा मूल रूप से दियोधाई लिपि में लिखी जाती थी जो अब विलुप्त हो चुकी है।
बोडो साहित्य सभा का गठन 16 नवम्बर, 1952 को असम जिले के कोकराझार जिले के बसुगांव, डिमासा के नेता जाॅय भद्र हेगजेर की अध्यक्षता में किया गया। इस सभा में असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और नेपाल के प्रतिनिधि होते हैं।
डोगरी
डोगरी एक इंडो-आर्य भाषा है, जो मुख्यतः जम्मू में, लेकिन उत्तरी पंजाब, हिमाचल प्रदेश और अन्य स्थानों में भी बोली जाती है। इसे 2 अगस्त, 1969 को साहित्य अकादमी, दिल्ली की जनरल कौंसिल के भाषायी पैनल की निष्पक्ष अनुशंसाओं के आधार पर ‘आत्मनिर्भर आधुनिक साहित्यिक भाषा की मान्यता प्रदान की गई। डोगरी भाषा को दिसंबर 2003 में भारतीय संविधान में भारत की राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया।
डोगरी पश्चिमी पहाड़ी भाषा समूह की एक सदस्य है। मूलतः यह टिकरी लिपि में लिखी जाती थी लेकिन अब भारत में इसके लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाता है। डोगरी भाषा का अपना व्याकरण एवं शब्दकोश है। इसके व्याकरण का आधार संस्कृत है। डोगरी का जन्म सौरसेनी प्राकृत से हुआ, लेकिन इसने धीरे-धीरे बड़ी संख्या में अरबी, पारसी एवं अंग्रेजी शब्दों को अपना लिया।
इस भाषा का पूर्व में संदर्भ अमीर खुसरो द्वारा दी गई भारतीय भाषाओं की सूची में मिलता है (इस सूची में सिंधी, लाहौरी, कश्मीरी, धुरसंमुदरी, तिलांगी, गुजराती, मालबरी,गौंडी बंगाली, अवधी एवं देहलवी भी शामिल हैं)। डोगरी का निरंतर विकास राजौली से हुआ जिसे बाली राम द्वारा मूल रूप से पारसी में लिखा गया और तेहलदास द्वारा डोगरी में इसका अनुवाद किया गया। डोगरी में कविता का कुछ काम दात्तू (18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध) और रुद्रदत्ता, गंगा राम और लक्खू, (19वीं शताब्दी) द्वारा किया गया। ज्योतिषी विश्वेश्वर ने लीलावती, गणित पर संस्कृत में कार्य, का अनुवाद डोगरी (1873) में किया। श्रीरामपुर के ईसाई मिशनरियों ने डोगरी में न्यू टेस्टामेंट का अनुवाद किया। कैरी ने 1916 में अपनी भारतीय भाषाओं की सूची में डोगरी का उल्लेख किया।
डोगरी कवियों में कवि दात्तू, प्रोफेसर रामनाथ शास्त्री और पद्म सचदेवा शामिल हैं। राजा रंजीत देव के दरबार से जुड़े डोगरी कवि दात्तू को उनके काम बारह मासा, कमल नेत्र, भूप बिजोग, बीर बिलास और अन्य कार्यों के लिए उच्च स्थान प्राप्त हैं।
20वीं शताब्दी में, डोगरी कविता, गद्यांश, उपन्यास, लघु कथाओं एवं नाटकों ने अपना एक खास मुकाम बनाया है। आज करण सिंह डोगरी साहित्य में एक महत्वपूर्ण नाम है, जिन्होंने उपन्यासों, यात्रा वृत्तातों एवं दार्शनिक लेख लिखे हैं। उन्होंने प्रसिद्ध डोगरी गीतों का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। उनके कामों में नवीन भारत की ओर (1974), हिंदुत्ववादः शाश्वत् धर्म (1999), और वेलकम द मूनराइज (1965) शामिल हैं।