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नाशकारी कीट एवं पीड़क अधिनियम कब पारित किया गया था (Destructive Insects and Pests Act in hindi)

(Destructive Insects and Pests Act in hindi) नाशकारी कीट एवं पीड़क अधिनियम कब पारित किया गया था ? 

भारत में वैधानिक नियंत्रण्जा
भारत-जैसे देश में पीड़क नियंत्रण में कानून-व्यवस्था का इतिहास बहुत रोचक है। हमारे देश में पहला विधान सन् 1906 में, 1878 के सीमाशुल्क अधिनियम (Sea Customs Act, 1878) के अंतर्गत पारित किया गया था ताकि मेक्सिको के कपास डोंडा सुरसुरी के प्रवेश को रोका जा सके। इसके बाद श्बाम्बे चौम्बर ऑफ कॉमर्सश् के कहने पर वर्तमान नाशकारी कीट एवं पीड़क अधिनियम (Destructive Insects and Pests Act) आया जो 3 फरवरी, 1914 को पारित किया गया था। इस प्रकार प्रावधान बनाए गए जिनके द्वारा बाहरी कीट पीड़कों का प्रवेश रोका जा सके जैसे कि अमेरिकी डोंडा सुरसुरी एवं अन्य पीड़कों का जो कृषि उत्पादों में मौजूद हो सकते हैं। भारत सरकार के अधिनियम 1914 में अनेक संशोधन होते रहे हैं। जिनमें केंद्र शासित क्षेत्रों तथा राज्यों में स्थानीय एवं बाहरी पीड़कों के प्रति नियंत्रण उपाय अपनाने का प्रावधान किया गया। इससे पहले कि राज्य नियंत्रण उपायों को अपनाएं, निम्नलिखित बातों पर विचार करना जरूरी हैं –

(प) हानिकर हो सकने वाले जीव के नाम की घोषणा की जाए,.
(पप) संग्रसित क्षेत्र को संगरोध के अंतर्गत रखा जाए,
(पपप) रोकथाम एवं उपचार उपायों का सुझाव दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।

इस अधिनियम के अंतर्गत राज्य सरकारों के लिए भी ऐसे प्रावधान बनाए गए कि वे उपचार उपायों को अपनाने हेतु स्वयं अपने कानून बना सकती हैं। उदाहरणतः, मद्रास का कृषि पीड़क एवं रोग अधिनियम 1919 में पारित किया गया और कदाचित भारत का यह पहला राज्य था जिसने इस प्रकार का कानून बनाया। पूर्वी पंजाब का कृषि पीड़क, रोग एवं अनिष्टकर खरपतवार अधिनियम 1949 में पारित किया गया था। अन्य राज्यों ने भी इस प्रकार के कानून बनाए हैं।

इस समय भारत में पीड़कों, रोगों तथा खरपतवारों के नियंत्रण हेतु दो श्रेणियों के नियमनकारी उपाय चल रहे हैं रू

(प) पादप संगरोध (Plant Quarantine) के माध्यम से चलने वाले वैधानिक उपाय
(पप) राज्य कृषि पीड़क एवं रोग अधिनियम (State Agricultural Pests and Disesaes Act) के माध्यम से वैधानिक उपाय इनमें से
पहली श्रेणी में वे नियम आते हैं जिनके द्वारा, विदेशों से बाहरी पीड़कों एवं रोगों के हमारे अपने देश में आप्रवेश को अथवा देश के
भीतर ही एक राज्य अथवा केंद्रशासित क्षेत्र से दूसरे राज्यों में पहुंचने को। रोकने के उद्देश्य से बनाए गए नियमनकारी उपाय आते
हैं। दूसरी श्रेणी के नियमों का उद्देश्य राज्य अथवा केंद्रशासित क्षेत्र के ही भीतर पीड़कों (खरपतवार सहित) एवं रोगों के दमन अथवा
उनके फैलाव को रोकने से संबंधित है।

पादप संगरोध कार्यक्रमों में, अधिकतर देशों में तीन घटक आते हैं –

ऽ पादप संगरोध एवं आर्थिक महत्व के पीड़कों एवं रोगजनकों को बाहर बनाए रखना अथवा ऐसे जोखिम भरे जीवों को लाने-ले जाने में संभावित खतरे को स्वीकार किए. जा सकने वाले स्तर तक सीमित रखना।
ऽ पीडकों तथा रोगजनकों को सीमित, संदमित रखना तथाध्अथवा उनका उन्मूलन करना। पादप उत्पादों के निर्यातकों को सहायता प्रदान करना ताकि वे आयात करने वाले देशों की नियमनकारी शर्तों को पूरा कर सकें।

बोध प्रश्न 3
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए रूं
ं) ……………. अधिनियम 3 फरवरी, 1914 को पारित किया गया था।
इ) भारत में, इस समय पीड़कों, रोगों तथा खरपतवारों के नियंत्रण के लिए चल रहे नियमनकारी उपायों की दो श्रेणियां हैं –

प्रस्तावना
पुराने दिनों में, पौधों और प्राणियों के एक देश से दूसरे देश में लाने-ले जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। ऐसा इसलिए कि इससे हो सकने वाले खतरे को न तो किसी ने महसूस किया था और न ही उसे समझा था। परिणामतरू अनेक कीट, किलनियां तथा नीमैटोड पीड़क जिन देशों में वे पाए जाते थे वहां से उन देशों में भी पहुंच गए जहां वे पहले से नहीं होते थे। अनेक देशों में बहुत से ऐसे खतरनाक पीड़कों को पाया गया है जो बाहर से आए हैं, और ऐसे पीड़क स्थानीय पीड़कों से कहीं ज्यादा हानि पहुंचाते हैं। ष्कॉटनी कुशन स्केलष् लोमश ऐफिस, सैन जोजे स्केल, आलू का सुनहला सिस्ट नीमैटोड तथा विशाल अफ्रीकी घोंघा वैदेशिक पीड़क हैं जो हमारे देश में लाए गए हैं।

इस इकाई में आप IPM में वैधानिक नियंत्रण अथवा नियमनकारी नियंत्रण के विषय में पढ़ेंगे। साथ ही विविध विधानों, अधिनियमों तथा अंतर्राष्ट्रीय नियमों का भी विवेचन किया जाएगा।

उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के बाद आप –
ऽ वैधानिक नियंत्रण की परिभाषा दे सकेंगे,
ऽ वैधानिक नियंत्रण की आवश्यकता समझ सकेंगे, और
ऽ विभिन्न देशों में व्यवहार में लाए जा रहे वैधानिक नियंत्रण की विविध श्रेणियों के विषय में समझ सकेंगे।