दिल्ली सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना कब तथा किसके द्वारा की गई delhi public library in hindi
delhi public library in hindi दिल्ली सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना कब तथा किसके द्वारा की गई ?
द नेशनल लाइब्रेरीः इसमें भारत में उत्पादित समस्त अध्ययन व सूचना सामग्री का स्थायी संग्रहण है। इसके साथ ही भारतीय लेखकों और विदेशियों द्वारा भारत के संदर्भ में लिखी गई सामग्रियां भी यहां हैं। पुस्तक सुपुर्दगी अधिनियम के तहत् राष्ट्रीय वाचनालय भारत में प्रकाशित हर प्रकाशन की एक प्रतिलिपि प्राप्त करने का अधिकारी है। इसके अलावा वर्षभर यह बहुआयामी सेवायें देता है, जैसे संदर्भ-ग्रंथ-सूची का संकलन, पाठकों और विद्यार्थियों को व्यक्तिगत सहायता आदि। इसका एक महत्वपूर्ण कार्य विभिन्न संस्थानों, मंत्रालयों, विभागों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को आवश्यक सूचनायें उपलब्ध कराना है।
केंद्रीय सचिवालय पुस्तकालयः केंद्रीय सचिवालय पुस्तकालय की स्थापना वर्ष 1891 में कोलकाता में इंपीरियल सेक्रेटेरिएट लाइब्रेरी के नाम से की गई थी और 1969 से यह नई दिल्ली के शास्त्री भवन में काम कर रहा है। इसमें सात लाख से अधिक दस्तावेजों का संग्रह है जो मुख्य रूप से समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के विषयों पर हैं। यहां भारत के सरकारी दस्तावेज तथा केंद्र सरकार के दस्तावेज संग्रहीत किए जाते हैं और राज्य सरकारों के दस्तावेजों का भी विशाल संग्रह इसमें है। इसके क्षेत्र अध्ययन डिवीजन में अनूठा संग्रह है, वहां भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार पुस्तकें रखी गई हैं। साथ ही, इसका ग्रंथ सूची संग्रह भी बहुत विशाल है और इसमें अत्यधिक दुर्लभ पुस्तकों का खासा संग्रह है। केंद्रीय सचिवालय पुस्तकालय का माइक्रोफिल्म संग्रह भी है जो माइक्रोफिल्मिंग आॅफ इंडियन पब्लिकेशन प्रोजेक्ट के अंतग्रत कार्य करता है और इसमें बहुत बड़ी संख्या में माइक्रोफिल्में संग्रहीत हैं।
केंद्रीय सचिवालय पुस्तकालय की मुख्य जिम्मेदारी है नीति गिर्णय लेने की प्रक्रिया के लिए उपयोगी सभी विषयों के सकल संग्रह एकत्र करना और उन्हें विकसित करना। विकासपरक साहित्य का संग्रह एकत्र करना भी इसका दायित्व है। यह पुस्तकालय केंद्र सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों तथा देशभर के आने वाले शोधार्थियों को वाचन संबंधी सभी सेवा-सुविधाएं उपलब्ध कराता है। हाल में ही पुस्तकालय ने भारत के राजपत्र तथा समितियों और आयोगों की रिपोर्टों का डिजिटलीकरण करके सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) आधारित उत्पादों का विकास शुरू किया है और अपने संग्रह-कार्य के लिए ओपाक (ओपीएसी) प्रणाली भी विकसित की है। पुस्तकालय की दो शाखाएं हैं। पहली है नई दिल्ली के बहावलपुर हाउस में स्थित क्षेत्रीय भाषाओं की शाखा जो तुलसी सदन लाइब्रेरी के नाम से मशहूर है। इसमें हिंदी तथा संविधान में स्वीकृत 13 अन्य भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं की पुस्तकें हैं। दूसरी शाखा पाठ्यपुस्तकों की है और नई दिल्ली के रामकृष्णपुरम में स्थित है। यह केंद्र सरकार के कर्मचारियों के स्नातक-स्तर तक के बच्चों की जरूरतों को पूरा करती है। अन्य प्रमुख लाइब्रेरी हैंः राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, रामपुर राजा लाइब्रेरी, खुदाबक्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी।
राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थानः राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान को सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के अंतग्रत 27 जनवरी, 1989 को गठित एवं पंजीकृत किया गया। इसे 28 अप्रैल, 1989 को विश्वविद्यालयवत् का दर्जा प्रदान किया गया। यह संस्थान, अपनी स्थापना से अब तक, कला एवं सांस्कृतिक विरासत के क्षेत्र में प्रशिक्षण और अनुसंधान के लिए देश में एक अग्रणी केन्द्र रहा है। यह संस्थान राष्ट्रीय संग्रहालय परिसर के अन्दर स्थित है। इसका उद्देश्य छात्रों को कला और सांस्कृतिक विरासत की सर्वाेत्कृष्ट कृतियों के साथ सीधे तौर पर रूबरू कराना और समूचे शिक्षण के लिए राष्ट्रीय संग्रहालय की सुविधाओं, जैसे प्रयोगशाला, पुस्तकालय, भंडारण/आरक्षित संग्रहण तथा तकनीकी सहायक खंडों तक आसानी से पहुंचाना है।
इस संस्थान के प्रमुख उद्देश्य निम्नानुसार हैः
ऽ कला, इतिहास, संग्रहालय विज्ञान, संरक्षण आदि की विभिन्न शाखाओं में अध्ययन, प्रशिक्षण और अनुसंधान के विभिन्न पाठ्यक्रम उपलब्ध कराना।
ऽ सांस्कृतिक सम्पदा के विषय से संबंधित कार्य करने वाले अन्य संस्थानों, जैसे राष्ट्रीय संग्रहालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारतीय प्राणिविज्ञान सर्वेक्षण, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, भारत का राष्ट्रीय अभिलेखागार आदि जैसे संस्थानों से सहयोग करना ताकि सामग्री संग्रहालयी/तकनीकी विशेषज्ञता और सुविधाओं में भागीदारी कर सकें और उपर्युक्त क्षेत्रों में शिक्षण के स्तर को उन्नत करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर, लगातार पारस्परिक चर्चाएं की जा सकें।
ऽ शैक्षणिक दिशा-निर्देश और लीडरशिप प्रदान करना।
ऽ संस्थान के ऐसे कार्यों को प्रकाशित कराना, जिन्होंने विशेषज्ञता के क्षेत्रों में भारी योगदान दिया हो।
दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी (दिल्ली सार्वजनिक पुस्तकालय ) : दिल्ली पब्लिक लाइबे्ररी का मुख्य प्रयोजन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन सी टी) दिल्ली के नागरिकों को निःशुल्क पब्लिक लाइब्रेरी तथा सूचना सेवाएं प्रदान करना है। यह लाइब्रेरी भारत में औपचारिक शिक्षा के लिए सामुदायिक केंद्र तथा पब्लिक लाइब्रेरी के विकास के लिए माॅडल के रूप में कार्य करती है। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बिना किसी वग्र, जाति, व्यवसाय के भेदभाव के समाज के सभी वर्गें के लोगों-विशेषतः नवशिक्षित तथा बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करती है।
गांधी स्मृति एवं दर्शन समितिः राजघाट पर गांधी दर्शन और 5 तीस जनवरी माग्र पर स्थित गांधी स्मृति का समायोजन करके सितम्बर, 1984 में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति का गठन एक स्वायत्त निकाय के रूप में किया गया जो भारत सरकार के संस्कृति विभाग, पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय के रचनात्मक परामर्श एवं वित्तीय समर्थन से कार्य कर रही है। भारत के प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं और इसकी गतिविधियों का माग्र निर्देशन करने के लिए वरिष्ठ गांधीवादियों और विभिन्न सरकारी विभागों का एक निकाय है। समिति का मूल उद्देश्य विभिन्न सामाजिक-शैक्षणिक कार्यक्रमों के माध्यम से महात्मा गांधी के जीवन ध्येय एवं विचारों का प्रचार प्रसार करना है।
इस स्मारक में निम्नलिखित पहलू संग्रहित हैंः
(क) महात्मा गांधी की याद और उनके पावन आदर्शों को प्रदर्शित करने वाले दृश्यात्मक पहलू (ख) गांधी को एक महात्मा बनाने वाले जीवन-मूल्यों की ओर गहनता से ध्यानाकर्षण कराने वाले शैक्षणिक पहलू और (ग) कुछ अनुभूत आवश्यकताओं को दिग्दर्शित करने वाली गतिविधियों को प्रस्तुत करने के लिए सेवाकार्य का पहलू।
संग्रहालय में महात्मा गांधी द्वारा यहां बिता, गए वर्षों के संबंध में फोटोग्राफ, मूर्तियां, चित्र, भित्तिचित्र, शिलालेख तथा स्मृतिचिन्ह संग्रहित हैं। गांधीजी की कुछ गिजी वस्तुएं भी यहां सावधानीपूर्वक संरक्षित हैं।
नई सहस्राब्दि की परिरेखाओं को ध्यान में रखते हुए अधुनातन प्रौद्योगिकी के द्वारा महात्मा गांधी के जीवन और संदेश को जीवन्तरूप से प्रस्तुत करने वाली मल्टीमीडिया प्रदर्शनी प्रमुख आकर्षण है।
जिस स्थल पर राष्ट्रपिता को गोलियों का शिकार बनाया गया था वहां एक बलिदान स्तंभ स्थित है जो भारत के लम्बे स्वाधीनता संग्राम के दौरान अनुभूत सभी पीड़ाओं और बलिदानों के प्रतीक के रूप में महात्मा गांधी के आत्म बलिदान की यादगार है।
गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति का मुख्य उद्देश्य विविध प्रकार की सामाजिक-शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के द्वारा महात्मा गांधी के जीवन, ध्येय और विचारों का प्रचार करना है। इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि समाज के विभिन्न वर्गें के बीच उन मूल्यों की प्रतिस्थापना की जाए जो राष्ट्रपिता को प्रिय थीं।
इसके अतिरिक्त समिति अपनी विविध गतिविधियों के माध्यम से समुदाय के लिए रचनात्मक कार्य की ओर लोगों को खास कर युवाओं को आकर्षित करती है। इक्कीसवीं शताब्दी को ध्यान में रखते हुए गांधी स्मृति ने अनेक कार्यक्रम तैयार किए हैं जो बच्चों, युवाओं और महिलाओं सहित समाज के विभिन्न वर्गें के लिए अभिप्रेत हैं। प्रयास यह भी है कि नवीनतम प्रक्रियाओं के माध्यम से महात्मा गांधी द्वारा परिकल्पित समग्र विकास के लक्ष्य के प्रति युवाओं को तैयार किया जाए।
अहिंसा विश्व की अत्यन्त सक्रिय शक्तियों में से एक है। यह सूर्य के समान है जो प्रतिदिन अवैध रूप से उदित होता है। हम यह समझ लें तो यह करोड़ों सूर्यों से भी अधिक विशाल है। यह जीवन और प्रकाश,शांति और प्रसन्नता को विकर्णित करती है।
सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाः सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय शोध प्रयोगशाला दक्षिण-पूर्वी एशिया के दक्षिण में एक अग्रगण्य संस्थान है। भारत सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा 1976 में स्थापित यह संस्थान संरक्षण के तरीकों पर शोध के अलावा अन्य संग्रहालयों, पुरातत्व विभागों और संबंधित संस्थानों को तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण देता है। यह संरक्षकों के लिये विभिन्न प्रशिक्षण पाठ्यक्रम और कार्यशालायें भी आयोजित करता है।
इस प्रयोगशाला का उद्देश्य और लक्ष्य है देश में सांस्कृतिक संपदा का संरक्षण करना। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए यह प्रयोगशाला संग्रहालयों, अभिलेखागारों, पुरातत्व विभागों और इसी प्रकार के अन्य संस्थानों को संरक्षण सेवाएं तथा तकनीकी परामर्श उपलब्ध कराती है; संरक्षण के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण देती है; संरक्षण के तरीकों और सामग्री के बारे में अनुसंधान करती है; संरक्षण संबंधी जागकारी का प्रचार-प्रसार करती है और देश में संरक्षण से जुड़े विषयों पर पुस्तकालय सेवाएं मुहैया कराती है। इस राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला का मुख्यालय लखनऊ में है तथा दक्षिण राज्यों में भी संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से मैसूर में राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला के क्षेत्रीय केंद्र के रूप में क्षेत्रीय संरक्षण प्रयोगशाला कार्य कर रही है।
सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्रः सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र (सीसीआरटी) संस्कृति से शिक्षा को जोड़ने के क्षेत्र में कार्यरत अग्रणी संस्थानों में से है। इस केंद्र की स्थापना मई, 1979 में भारत सरकार द्वारा एक स्वायत्त संस्था के रूप में की गई थी और अब यह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में काम कर रहा है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा उदयपुर, हैदराबाद और गुवाहाटी में इसके तीन क्षेत्रीय केंद्र हैं।
इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में भारत की क्षेत्रीय संस्कृतियों की विविधता के प्रति समझ और जागरूकता पैदा कर शिक्षा प्रणाली को सशक्त बनाना और इस जागकारी का शिक्षा के साथ समन्वय स्थापित करना है। खास जोर शिक्षा और संस्कृति के बीच तालमेल कायम करने और विद्यार्थियों को सभी विकास कार्यक्रमों में संस्कृति के महत्व से अवगत कराने पर है। केंद्र के प्रमुख कार्यों में देश के विभिन्न भागों से चुने गए अध्यापकों के लिए कई प्रकार के इन सर्विस प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना भी है। इस प्रकार दिए जागे वाले प्रशिक्षण का लाभ यह होता है कि पाठ्यक्रम पढ़ाने वालों में भारतीय कला और साहित्य के दर्शन, सौंदर्य तथा बारीकियों की बेहतर समझ विकसित होती है और वे इनकाअधिक सार्थक आकलन कर पाते हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रमों में संस्कृति के पहलू पर ज्यादा जोर दिया जाता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आवास, कृषि, खेल, आदि के क्षेत्रों में संस्कृति की भूमिका पर भी जोर दिया जाता है। प्रशिक्षण एक अहम अंग है जो विद्यार्थियों और शिक्षकों में पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं के समाधान तथा प्राकृतिक और सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण में उन्हें उनकी भूमिका से अवगत कराता है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए केंद्र देशभर में अध्यापकों, शिक्षाविदों, प्रशासकों और विद्यार्थियों के लिए विविध प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करता है। सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र विशेष अनुरोध पर विदेशी शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के लिए भारतीय कला और संस्कृति के बारे में शिक्षण कार्यक्रम भी चलाता है। नाटक, संगीत और अभिव्यक्ति-प्रधान कला विधाओं से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों पर कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं ताकि कलाओं और हस्तकलाओं का व्यावहारिक ज्ञान और प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जा सके। इन कार्यशालाओं में शिक्षकों को ऐसे कार्यक्रम स्वयं विकसित करने की प्रेरणा दी जाती है जिनमें कला की विधाओं का शिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए लाभकारी ढंग से प्रयोग किया जा सके।
सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र अपने विस्तार तथा सामुदायिक फीडबैक कार्यक्रमों के तहत् स्कूली छात्रों, अध्यापकों और सरकारी तथा स्वैच्छिक संगठनों के बच्चों के लिए विभिन्न शैक्षिक गतिविधियां आयोजित करता है जिनमें ऐतिहासिक स्मारकों, संग्रहालयों, कलावीथियों, हस्तकला केंद्रों, चिड़ियाघरों और उद्यानों में शिक्षा टूर; प्राकृतिक और सांस्कृतिक संपदाओं के संरक्षण के बारे में शिविर; कला की विभिन्न विधाओं पर जागे-माने कलाकारों और विशेषज्ञों के भाषण और प्रदर्शन तथा स्कूलों में कलाकारों और हस्तशिल्पियों के प्रदर्शन शामिल हैं। इन शैक्षिक गतिविधियों में विद्यार्थियों के बौद्धिक विकास और उनके सौंदर्य बोध को विकसित करने पर जोर दिया जाता है। इन वर्षों में यह केंद्र आलेख, रंगीन स्लाइड्स, चित्र, आॅडियो और वीडियो रिकार्डिंग और फिल्मों के रूप में संसाधन एकत्र करता रहा है। ग्रामीण भारत की कलाओं और हस्तशिल्पों को पुगर्जीवित करने और उन्हें प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से केंद्र की डाॅक्यूमेंटेशन टीम हर वर्ष देश के विभिन्न भागों में कार्यक्रम आयोजित करती है। यह केंद्र भारतीय कला एवं संस्कृति की समझ विकसित करने के उद्देश्य से प्रकाशन भी उपलब्ध कराता है। सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है।
क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रः स्थानीय संस्कृति के प्रति जागरूकता पैदा कर उसे गहन बनाना, उसे क्षेत्रीय पहचान के रूप में परिवर्तित कर शनैःशनैः समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक विरासत का एक अंग बना देना ही इन केंद्रों का काम है। इसके अलावा वे लुप्त होने वाली कला के स्वरूपों व मौखिक परंपराओं का संरक्षण भी करते हैं। सृजनशील व्यक्तियों व कलाकारों के साथ स्वायत्त प्रशासन व्यवस्था के माध्यम से ही यह ढांचा खड़ा हुआ है। योजना के तहत् स्थापित सात सांस्कृतिक केंद्र हैं (i) उत्तरी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला; (ii) पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, शांतिनिकेतन; (iii) दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, तंजावुर; (iv) पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर; (v) उत्तरी-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, इलाहाबाद; (vi) उत्तर-पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, दीमापुर; (vii) दक्षिण-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर। विभिन्न सांस्कृतिक केंद्रों के गठन की प्रमुख विशेषता राज्यों के सांस्कृतिक सूत्रों के अनुरूप एक से अधिक केंद्र में उनकी भागीदारी है।
संगीत और नृत्य के क्षेत्र में नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ योजना है जिसके अंतग्रत हर क्षेत्र में गुरुओं की पहचान करके शिष्य उनके सुपुर्द कर दिए जाएंगे। इस उद्देश्य के लिए उन्हें छात्रवृत्ति भी दी जाती है। अपने शिल्पग्रामों के माध्यम से ये केंद्र हस्तशिल्पियों को बढ़ावा देकर उन्हें हाट-सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं। क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों ने युवा प्रतिभाओं की पहचान करके इन्हें प्रोत्साहन देने की एक नई योजना भी शुरू की है जिसके तहत् ये केंद्र अपने-अपने क्षेत्र में मंचन/लोक कलाकारों का पता लगाएंगे और हर क्षेत्र में एक या एक से अधिक प्रतिभाशाली कलाकारों का चुनाव करेंगे।
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