साइटोक्रोम (cytochrome in hindi) , साइटोक्रोम का कार्य क्या है ? हेमेरिथ्रीन (hemerythrin)
(cytochrome in hindi) साइटोक्रोम का कार्य क्या है ? हेमेरिथ्रीन (hemerythrin) किसे कहते है ?
साइटोक्रोम (cytochrome) :
साइटोक्रोम भी एक प्रकार से हीम प्रोटीन ही होते है जो इलेक्ट्रॉन वाहक का कार्य करते है। जो भी जीवन ऑक्सीजन से सम्बद्ध है उन सबमें साइटोक्रोम पाए जाते है। ये कई प्रकार के होते है जिनका वर्गीकरण a , b , c आदि में किया जाता है। इनमे से साइटोक्रोम C की संरचना को निम्न प्रकार चित्र में दर्शाया गया है –
इनका आयरन परमाणु Fe(II) और Fe(III) के मध्य परिवर्तित होता रहता है तथा इसी प्रक्रम में इलेक्ट्रॉनों का स्थानान्तरण होता रहता है तथा इस प्रकार ये इलेक्ट्रॉन वाहक का कार्य करते है।
हेमरिथ्रिन या हेमेरिथ्रीन (hemerythrin)
निम्न श्रेणी के कुछ जलीय जीवों में ऑक्सीजन परिवहन के लिए हीमोग्लोबिन नहीं पाया जाता तथा कोई नियमित श्वसन तंत्र भी नहीं होता। इनके शरीर की पूर्ण त्वचा ही श्वसन के कार्य को संपन्न करती है जिनमे हेमरिथ्रिन पाए जाते है। इन जीवों में हीमोग्लोबिन का कार्य हेमरिथ्रिन ही करते है। ये आयरन के ही प्रोटीन होते है परन्तु इनमे पोरफाइंरिन की संरचना नहीं होती।
इसके एक अणु में दो आयरन परमाणु होते है जिनमे से एक आयरन परमाणु की एक उपसहसंयोजकता रिक्त रहती है। इसी के साथ ऑक्सीजन अणु जुड़कर ऑक्सीजन परिवहन का कार्य संपन्न करता है। इसे निम्न चित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है –
क्षार और क्षारीय मृदा धातु आयनों की जैविक भूमिका
क्षार धातु Na+ व K+ आयन एवं क्षारीय मृदा धातु Mg2+ व Ca2+ आयनों का जीवन में अत्यधिक महत्व है। रासायनिक दृष्टि से Na+ व K+ परस्पर समान है तथा Mg2+ व Ca2+ आयन भी परस्पर रसायन होते है परन्तु जैविक दृष्टि से इनकी भूमिका एक दुसरे से बिल्कुल अलग है। Na+ व Ca2+ आयन कोशिकाओं के बाहर के जीवद्रव्य में सांद्रित होते है जबकि K+ व Mg2+ आयन कोशिकाओ के अन्दर के जीवद्रव्य में सांद्रित होते है।
कोशिकाएं लगभग 70 A (7000 pm) मोती कोशिकाभित्ति द्वारा ढकी रहती है। कोशिकाभित्ति प्रोटीन की बनी दोहरी परत होती है जो लिपिडों सामान्यतया फोस्फोलिपिडो द्वारा पृथक रहती है। इन लिपिड़ो में से आयन गुजर नहीं सकते जब तक कि उनका संपुटन न हो , इस प्रकार से कोशिका को घेरे हुए आयन कोशिकाभित्ति की एक कार्बनिक लिपिड विलयशील सतह बनाते है।
अधिकांश जन्तु कोशिकाओं के भीतर K+ आयनों की सांद्रता लगभग 0.15M होती है। जबकि कोशिकाओं के बाहर इनकी सांद्रता 0.004 M होती है। इसी प्रकार Na+ आयनों की सान्द्रता कोशिकाओ के भीतर लगभग 0.01 M होती है। जबकि कोशिकाओं के बाहर इनकी सांद्रता 0.15 M होती है। सांद्रता के इतने अधिक अंतर को कायम रखने के लिए कोशिकाओं में ” सोडियम पम्प ” (Na+/K+ पम्प) कार्य करता है। इन आयनों के परिवहन के लिए आवश्यक ऊर्जा को ATP के जल अपघटन द्वारा प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार के परिवहन के लिए मस्तिष्क और गुर्दे लगभग 70 प्रतिशत ऊर्जा ATP से प्राप्त करते है। कुछ कोशिकाओं में प्रत्येक जल अपघटित ATP अणु तीन Na+ आयनों को कोशिका से बाहर निकाल देता है जबकि K+ और एक H+ को कोशिका के भीतर धकेल देता है। कोशिकाओं के भीतर ग्लूकोस उपापचय , प्रोटीन संश्लेषण और कुछ एंजाइमों की सक्रियता के लिए K+ आयनों की आवश्यकता पड़ती है। ग्लूकोस और एमिनों अम्लों का कोशिकाओ के परिवहन Na+ आयनों के साथ युग्मन होता है तथा सांद्रता के अधिक अंतर से यह समर्थित होता है।
इस प्रकार कोशिकाओं के भीतर गए Na+ आयन पम्प द्वारा बाहर निकलते रहते है। कोशिका भित्ति की त्वचा के एंजाइम Na/K – एटीपेस Na+/K+ पम्प के रूप में कार्य करते है। यहाँ माना जाता है कि कोशिकाभित्ति में बड़े बड़े प्रोटीन अणु फैले रहते है जिन पर Na+ और K+ दोनों के लिए स्थान रहते है। जब इसकी बाहरी दिवार K+ से और भीतर की दिवार Na+ आयनों से पूर्ण हो जाती है तो उसमें संरुपीय परिवहन होता है जिसमे बाहर के स्थान भीतर तथा भीतर के स्थान की ओर हो जाते है। इससे सारे K+ आयन अन्दर की तरफ मुक्त हो जाते है तथा Na+ आयन बाहर की ओर मुक्त हो जाते है। इस प्रकार Na+ और K+ के परिवहन के लिए यह एक घुमने वाले दरवाजे की भांति व्यवहार करता है। जब Na+/K+ की सांद्रता का पर्याप्त अंतर होता है तो यह पम्प उत्क्रमणीय ढंग से कार्य करता है।
कैल्शियम आयनों (Ca2+) की भूमिका
कैल्सियम (Ca2+) आयनों का जीवन में अत्यधिक महत्व है। सीप , घोंघा आदि कई जलचरों की संरचना को आधार प्रदान करने वाला पूरा ढांचा ही कैल्शियम कार्बोनेट का होता है। कैल्सियम का मुख्य कार्य तो शरीर की संरचना को आधार प्रदान करना है।
कैल्शियम आयन सामान्यतया उत्तकों में कणिकाओं के रूप में जमा होते है एवं आवश्यकता पड़ने पर इनका विभिन्न कार्यों में उपयोग कर लिया जाता है। कोशिका भित्ति में कुछ प्रोटीन ऐसी होती है जो Ca2+ आयनों को आकर्षित कर बांधकर रखती है तथा आवश्यकता पड़ने पर इन्हें मुक्त कर देती है। ऐसी ही कुछ प्रोटीन्स निम्नलिखित है –
(i) ट्रोपोनिन : उच्च प्राणियों की मांसपेशियों के संकुचन की नियंत्रक प्रोटीन।
(ii) पार्वल ब्यूमिन : मछली और उभयचर जंतुओं की मांसपेशियों की नियंत्रक प्रोटीन।
(iii) क्लमोड्यूलिन : यूकेरियोट्स में Ca2+ आयन के कार्य में मध्यस्थता करने वाला प्रोटीन है जिसमे 148 एमिनो अम्ल होते है।
(iv) थर्मोलाइसिन : ऊष्मा के प्रति स्थायी Ca2+ और Zn2+ दोनों आयनों को बाँधने वाला तथा एंजाइम की चतुष्की संरचना बनाये रखने के लिए आवश्यक।
(v) कानकेवलिन A : द्विलक के रूप में तथा Ca2+ और Mn2+ दोनों आयनों को बाँधने वाला , शर्करा बंधन के लिए महत्वपूर्ण।
(vi) स्टैफिलोकॉसिल न्युक्लिएज : 149 एमिनों अम्ल इकाइयों युक्त प्रोटीन Ca2+ आयनों की उपस्थिति में डीएनए और RNA के जल अपघटन में प्रयुक्त।
कैल्शियम के कुछ मुख्य कार्य निम्नलिखित है –
1. जिस प्रकार शरीर की कोशिकाओं के भीतर के जीवद्रव्य में K+ के साथ Mg2+ आयन विद्यमान रहते है उसी प्रकार कोशिकाओं के बाहर के जीवद्रव्य में आयनिक संतुलन बनाने के लिए Na+ आयनों के साथ Ca2+ आयन विद्यमान रहते है।
सोडियम पम्प की ही तरह कैल्शियम पम्प (Ca2+/Mg2+ पम्प) कार्य करता है। तंतुओं में सिरे पर स्थित मोटर पर तंत्रिका अथवा नसों के आवेग से पेशियों में संकुचन होता है। पेशियों के संकुचन के परिणामस्वरूप उनके सैक्रोप्लाज्मिक रेटिकुलम अथवा SR से Ca2+ आयन मुक्त हो जाते है। SR के मोचन से अत्यंत सूक्ष्म समय में Ca2+ आयनों की सान्द्रता 100 गुना तक बढ़ जाती है। संकुचन के बाद जब पेशियाँ ढीली पड़ती है तो SR द्वारा Ca2+ आयन पुनः अवशोषित कर लिए जाते है। इस प्रकार Ca2+ आयनों की सांद्रता संतुलन से तंत्रिका तंत्र और दिल की धड़कन सही बनी रहती है। कोशिकाओं के ऊर्जा घर ATP में भी Ca2+ आयन होते है। इसके अतिरिक्त ATP से ADP परिवर्तन में ऊर्जा मुक्त होती है जो शरीर के विभिन्न जैविक कार्यो में प्रयुक्त होती है। इस प्रक्रम में काम आने वाले उत्प्रेरक फास्फोहाइड्रोलेसस और फास्फोट्रांसफरेसिस में Mg2+ आयन होते है जिससे Mg2+/Ca2+ पम्प सुचारू रूप से कार्य करता रहता है। इस प्रकार प्रोटीनों के संरूपण और संरचना को स्थायीकृत करने का कार्य भी कैल्शियम ही करता है।
2. इसके अतिरिक्त विभिन्न ग्रंथियों की पेशियों को दबाकर संकुचित करने तथा उनमें से विभिन्न हार्मोन्स को स्त्रावित करने का कार्य भी शरीर में कैल्शियम ही करता है।
3. खून का थक्का बनने में : हमारी रुधिर वाहिकाओं और उत्तकों से कटने फटने पर रुधिर बहने लगता है। यदि रुधिर में थक्का बनने की शक्ति नहीं हो तो रुधिर बहता ही जायेगा। रक्त अथवा रुधिर में विद्यमान लाल रक्त कणिकाएं Ca2+ आयनों की उपस्थिति में कटे हुए भाग पर एक झिल्ली का निर्माण कर लेती है , जिसे हम रक्त का थक्का बनना कहते है। ऐसा होने से खून का बहना रुक जाता है।
4. हमारा शरीर ठोस हड्डियों के ढांचे से बना हुआ है। हमारे शरीर की ये ठोस हड्डियाँ कैल्शियम फास्फेट Ca3(PO4)2 से बनी हुई होती है जिससे कैल्सियम Ca2+ आयनों के रूप में विद्यमान रहता है। इस कारण कैल्शियम की कमी से हड्डियाँ कमजोर हो जाती है तथा मनुष्य हड्डियों के रोग का शिकार हो जाता है।
5. पौधों की कोशिकाभित्ति का मुख्य अवयव कैल्शियम पिक्टेट होता है जो कैल्शियम के पिक्टेट के साथ संयोग करने से बनता है।
6. दांतों के ऐपेटाइट का भी महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते है। इसके अतिरिक्त दांतों की ऊपरी परत एनामल में भी फ्लुओरोऐपेटाइट [3(Ca3(PO4)2CaF2)] के रूप में Ca2+ आयन जैविक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है।
इस प्रकार हम देखते है कि शरीर की विभिन्न जैविक क्रियाओं में कैल्सियम की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
उपर्युक्त के अतिरिक्त जो तत्व मानव शरीर में पाए जाते है उनके कार्यो का विवरण निम्नानुसार है –
1. क्लोरिन की भूमिका : क्लोराइड आयनों (Cl–) के रूप में क्लोरिन मानव शरीर में पर्याप्त मात्रा में होता है तथा कई महत्वपूर्ण कार्य संपन्न करता है। उदाहरणार्थ , आमाशय में पाचन के लिए आवश्यक अम्ल (HCl) का निर्माण , क्षार और क्षारीय मृदा धातु क्लोराइडो के रूप में कोशिका द्रव्य और जीवद्रव्य में रहकर कोशिकाओं के परासरण दाब का नियंत्रण , एंजाइम एमाइलेज के सक्रियकरण आदि कार्य क्लोराइड आयनों द्वारा ही सम्पादित होते है।
2. सल्फर की भूमिका : सल्फर कई जैव अणुओं का संघटक तत्व है। उदाहरणार्थ – सिस्टीन , थायमीन , बायोटिन , इन्सुलिन आदि। इसके अतिरिक्त जैव संश्लेषण में उपयोगी सल्फर कोएंजाइम A और लिपोइक अम्ल में सल्फर विद्यमान होता है।
3. फास्फोरस की भूमिका : फास्फोरस हमारे शरीर की हड्डियों और दांतों के विकास में फास्फेट के रूप में अत्यंत उपयोगी है। फास्फेट बफर के रूप में यह कोशिकाओं के pH को नियंत्रित करता है। ऊर्जा स्रोत के रूप में ADP , ATP आदि में भी फास्फेट होती है , सहएंजाइम NADP में भी फास्फेस है। न्यूक्लिक अम्लों और फास्फो प्रोटीनों के मुख्य अवयव फास्फोलिपिड में भी फास्फोरस विद्यमान है। इनके अतिरिक्त फास्फोरिलिकरण में भी ग्लूकोज के अवशोषण में फास्फोरस की उपस्थिति आवश्यक है।
4. आयरन की भूमिका : आयरन तो शरीर के लिए बहुत ही अधिक आवश्यक तत्व है। यह हमारे शरीर के हीमोग्लोबिन , माइकोग्लोबिन , सायटोक्रोम आदि का आवश्यक अंग है। इसकी कमी से मनुष्य में एनीमिया नामक रोग हो जाता है , जिसमे रक्त की कमी हो जाती है तथा मनुष्य कमजोर होकर मृत्यु के मुंह तक जा सकता है। हीमोग्लोबिन मुख्य रूप से शरीर में रक्त परिवहन द्वारा ऑक्सीजन को कोशिकाओं तक पहुँचाने का कार्य करता है तथा कोशिकाओं से कार्बन डाइ ऑक्साइड को फेफड़ों तक पहुँचाने का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त कोशिकीय श्वसन में भी आइरन सल्फर प्रोटीन के रूप में हीम रहित आयरन का उपयोग होता है।
5. कॉपर की भूमिका : सूक्ष्म मात्रा में शरीर में कॉपर भी आवश्यक होता है। इसकी उपस्थिति में ही हीमोग्लोबिन का सामान्य संश्लेषण होता है। इसके अतिरिक्त सायटोक्रोम , ट्रायोसीनेज एस्कोर्बिक अम्ल ऑक्सीजन आदि की क्रियाशीलता में भी कॉपर की उपस्थिति अनिवार्य है। कुछ जीवों के ऑक्सीजन परिवहन में प्रयुक्त हीमोसायनिन में भी कॉपर के दो परमाणु विद्यमान होते है।
6. मैंगनीज की भूमिका : मैंगनीज की अल्प मात्रा शरीर के विभिन्न कार्यो में उपयोगी होती है। सामान्य अस्थि संरचना में मैंगनीज की आवश्यकता है तथा उपास्थि के म्युक्रोपोलीसैकेराइड के संश्लेषण में उपयोगी एंजाइम ग्लूकोसिल ट्रान्सफरेज के सक्रियण के लिए भी मैंगनीज आवश्यक है। इसके अतिरिक्त आर्जिनेज , फास्फोट्रान्सफरेज , आइसोसाइट्रेट डिहाइड्रोजिनेज को भी मैंगनीज आयन सक्रीय करते है। इनके अतिरिक्त पाइरूवेट कार्बोक्सीलेज और सुपर ऑक्साइड डिसम्युटेज की संरचना में मैंगनीज उपस्थिति रहता है , जबकि लाइपिड परोक्सीकरण अभिक्रियाओं को रोकने में भी यह सहायक है।
7. आयोडीन की भूमिका : मानव शरीर के लिए आयोडीन भी एक अत्यंत आवश्यक तत्व है। इसकी कमी से गलगंड नाम की बीमारी हो जाती है। साथ ही थायराइड ग्रंथि के एंजाइम / हार्मोन थायरोक्सिन के निर्माण में भी आयोडीन एक आवश्यक तत्व है।
8. फ्लुओरीन की भूमिका : मानव शरीर में सूक्ष्म मात्रा में फ्लुओरीन भी एक आवश्यक तत्व है। यह हड्डियों और दांतों के विकास के लिए जरुरी है। हड्डियो के रोग अस्थि सुषिरता से यह बचाव करता है तथा दाँतों के अस्थि क्षय से भी यह सुरक्षित रखता है।
9. लिथियम की भूमिका : यह शरीर में बहुत कम मात्रा में आवश्यक है , यह तंत्रिका तंत्र को मजबूत करता है तथा इसकी कमी से व्यक्ति के मस्तिष्क में खतरनाक विचार आते है। यह भ्रूण के विकास में भी सहायक होता है।
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