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कुकुमेरिया का तंत्रिका तंत्र क्या है , होलोथुरिया का प्रजनन तन्त्र cucumaria nervous system in hindi Holothuria

पढेंगे कुकुमेरिया का तंत्रिका तंत्र क्या है , होलोथुरिया का प्रजनन तन्त्र cucumaria nervous system in hindi Holothuria ?

तंत्रिका तन्त्र (Nervous system) :

तंत्रिका तन्त्र, परिमुखीय झिल्ली (peristomial membrane) के ठीक नीचे स्थित परिमुखीय तंत्रिका वलय (circumoral nerve ring) का बना होता है। इस तंत्रिका वलय से पांच अरीय तंत्रिकाएँ निकल कर अपनी-अपनी तरफ से वीथि क्षेत्र में देहभित्ति की डर्मिस में धंस कर उपस्थित जल संवहनी अरीय वाहिकाओं के बाहरी ओर जाती है। तंत्रिका वलय से ही स्पर्शक तंत्रिकाएँ निकलकर स्पर्शकों को जाती है। शीर्षस्थ व अपमुखी तंत्रिका तन्त्र पूर्णतया अनुपस्थित होता है केवल स्पर्शक ही संवेदागों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

विशिष्टता एवं विशिष्ठ संरचनाएँ (Speciality and Special structures),

स्वागोंच्छेदन (Autotomy) : कुकुमेरिया की सभी नहीं परन्तु कई जातियों में स्वागोंच्छेदन का विशिष्ठ गुण पाया जाता है। जब कुकुमेरिया को पीड़ा पहुँचायी जाती है या अप्रिय परिस्थितियाँ होती है जैसे पानी गन्दा या गर्म हो तो यह अपने अधिकांश आन्तरांगों को गुदा या मुख द्वारा या देहभित्ति के टूटने से बाहर निकाल देता है। ये बाहर निकाले गये अंग एक चिपचिपे पिण्ड का निर्माण कर लेते हैं जो सम्भवतः शिकारी के लिए अरूचिकर होता है। सम्पूर्ण आहारनाल तथा श्वसन वक्ष इस क्रिया में नष्ट हो जाते हैं। परन्तु कुछ सप्ताह के अन्दर ही इनका पुनरूद्भवन हो जाता है।

श्वसन वृक्ष (Respiratory tree) : श्वसन वृक्ष की उपस्थिति कुकुमेरिया की विशेषता होती है। इस प्रकार का विशिष्ठ अंग केवल गण होलोथुरॉइडिया के जन्तुओं में ही पाया जाता है। यह श्वसन वृक्ष अवस्कर (cloaca) के अग्र सिरे से एक प्रवर्ध (diverticulum) या खोखले तने (hollow stem) के रूप में निकलता है। शीघ्र ही यह दाहिनी व बांयी शाखा में बट जाता है ये दोनों शाखाएँ फिर घने रूप से शाखित होकर दो श्वसन वृक्षों का निर्माण करते हैं। श्वसन वृक्ष में इतनी अधिक शाखाएँ उत्पन्न हो जाती है कि ये ग्रसिका तक पहुँच जाती है। श्वसन वृक्ष की शाखाओं के अन्तिम सिरे, छोटे गोल पतली भित्ति वाले आशयों या तुम्बिकाओं (vesicles or ampullae) में समाप्त होती है। यह श्वसन वृक्ष कई अनियमित रस्सीनुमा धागों से देहभित्ति व आन्तरांगों से मजबूती से जमे रहते हैं।

ये श्वसन वृक्ष द्रवस्थैतिक, श्वसन तथा उत्सर्जन का कार्य करते हैं। अवस्कर की पेशियों के लयबद्ध संकुचन के कारण समुद्री जल निरन्तर श्वसन वृक्ष में भीतर व बाहर प्रवाहित होता रहता है। श्वसन वृक्षों में जल गुदा द्वार द्वारा ही प्रवेश करता है व इसी रास्ते से बाहर भी निकलता है। जल के भीतर आने से जल में धुली ऑक्सीजन देहगुहीय द्रव में विसरित हो जाती है। कुछ पानी तुम्बिकाओं में भर जाता है जो देहगुहा को फूली हुई रखती है ताकि जब शरीर के अग्र भाग को अचानक भीतर खींचा जाये तो श्वसन वृक्ष की तुम्बिकाओं से पानी बाहर निकल कर भीतर खींचे जाने वाले अंगों के लिए जगह बनाता है। जल के भीतर आने व बाहर निकलने से श्वसन व उत्सर्जन दोनों क्रियाएँ सम्पन्न होती है।

क्यूवेरियन नलिकाएँ (Cuvarian tubules) : कुकुमेरिया या होलोथुरिया की कुछ जातियों में श्वसन वृक्ष के आधार पर, विशेष रूप से बांये श्वसन वृक्ष के, कई सफेद, गुलाबी या लाल रंग की लचीली नलिकाएँ (elastic tubules) पायी जाती है। इन्हें खोजकर्ता के नाम पर क्यूवियर की नलिकाएँ (tubules of cuvier) कहते हैं। होलोथुरिया में ये नलिकाएँ सामान्य अशाखित तथा श्वसन वृक्ष से पृथक से निकलती है। एक्टिनोपाइगो (Actinopyga) में ये नलिकाएँ शाखित होती है तथा ये श्वसन वृक्ष के एक या अधिक, सामान्य तने से निकलती है। ये नलिकाएँ संख्या में कम या अधि क हो सकती है इन नलिकाओं की गुहा अत्यन्त संकरी होती है तथा उपकला द्वारा आस्तरित रहती है जो एक स्तर में विन्यासित ग्रन्थिल कोशिकाओं को घेरे रहती है। इनके बाहर की ओर संयोजी ऊत्तक का स्तर तथा इनके बाहर पेशीय तन्तु पाये जाते हैं। सबसे बाहरी स्तर जो चिपचिपे पदार्थ का स्रावण करता है इस स्तर की संरचना के बारे में वैज्ञानिक एक मत नहीं है।

क्यूवेरियन नलिकाएँ सुरक्षा सम्बन्धी कार्य करती हैं। जब जन्तु तंग किया जाता है या किसी शत्रु द्वारा आक्रमण किया जाता है तो होलोथुरिया अपने शरीर को सिकोड़कर गुदा द्वार से इन क्यूवेरियन नलिकाओं की तेजी से बाहर निकालता है। ये नलिकाएँ पानी सोख कर तेजी से अत्यधिक चिपचिपे लम्बे धागों की तरह शत्रु के चारों तरफ लिपट जाते हैं व उसे गतिविहीन कर देते हैं। फिर ये धागे आसानी तोड़कर होलोथुरिया रेंग कर शत्रु से दूर चला जाता है। शरीर में जब नलिकाओं की संख्या अत्यधिक होती है तो एक बार में कुछ ही नलिकाएँ बाहर निकाली जाती है ताकि ऐसी क्रिया कई बार दोहराई जा सके।

प्रजनन तन्त्र (Reproductive system) : कुकुमेरिया की अधिकांश जातियों में नर व मादा पृथक-पृथक होते हैं। परन्तु कुकुमेरिया लीविगेटा (Cucumaria laevigata) जाति के जन्तु उभय लिंगी (hermophrodite) होते हैं। कुकुमेरिया के जननांग अरीय सममिति प्रदर्शित नहीं करते हैं। इनमें केवल एक जननांग पाया जाता है जो पृष्ठ आन्त्र योजनी से लटका रहता है। बाहर से देखने पर वृषण व अण्डाशय एक जैसे दिखाई पड़ते हैं। जननांग कई महीन संकरी नलिकाओं का बना हुआ ब्रश के समान दिखाई देता है जो शरीर की देहगुहा के अधिकांश पश्च भाग में फैला रहता है। ये नलिकाएँ परस्पर मिलकर जनन वाहिका का निर्माण करती है। जनन वाहिकाएँ जैसे अण्डवाहिनी या शुक्रवाहिका साधारण नलिकाएँ होती है जो आन्त्र योजनी के भीतर ही मुखीय दिशा में आगे बढ़ती है। ये जनन वाहिकाएँ आगे चल कर द्विभुजीय (bivilum) अन्तर वीथि क्षेत्र के दो स्पर्शकों के मध्य, मध्यपृष्ठ की तरफ, मुखीय सिरे के ठीक पीछे, बाहर खुलती है। कुकुमेरिया के जननांग अन्य इकाइनोडर्म जन्तुओं के अक्षीय अंग के समजात (homologous) होते हैं।

परिवर्धन (Development) :

कुकुमेरिया की अधिकांश जातियों में अण्डे बहुपीतकी होते हैं, जिनमें पीतक की मात्रा अत्यधिक होती है तथा परिवर्धन प्रत्यक्ष होता है।

कुकुमेरिया क्रोसीया (Cucumaria crocea) जाति में विकसित हो रहे अण्डे तथा शिशु मादा की पीठ पर चिपके रहते हैं। जबकि कुकुमेरिया कुराटा (Cucumaria curata) में ये मादा की अधर सतह पर चिपके रहते हैं। कुकुमेरिया प्लेन्की (Cucumaria planci) में विकसित हो रहे अण्डों व शिशुओं को स्पर्शकों के ताज (crown) में रखा जाता है जबकि कुकुमेरिया लीबिगेटा (Cucumaria aevigata) में इन्हें शरीर की अधर सतह पर उपस्थित अण्ड कोष (brood ponch) में रखा जाता है।

विदलन प्रारूपी रूप से समान पूर्णभंजी तथा अरीय होती है। प्रारम्भिक परिवर्धन तारामीन की तरह ही होता है। कुकुमेरिया के अलावा होलाथुरोइडिया वर्ग के अन्य जन्तुओं में एक मुक्तजीवी द्विपाशवी, पारदर्शी व समुद्रीप्लवक लारवा पाया जाता है जिसे आरिकुलेरिया (auricularia) लारवा कहते हैं। परिवर्धन के दौरान इस लावा में कई छोटे-छोटे प्रवर्ध विकसित हो जाते हैं। इनके अलावा दो काशभिक लूप पाये जाते हैं। एक पूर्वमुखीय लूप (preoral loop) होता है, जो मख के ऊपर होकर तथा दूसरा गुदीय लूप (anal loop) कहलाता है, जो गुदा द्वार को घेरे रहता है। आरिकुलेरिया लारवा शीघ्र ही डोलियोलेरिया लारवा (daliolaria larva) जो वर्ग क्रिनोइंडिया के जन्तुओं में पाये जाने वाले लारवा के समान होता है। लारवा में पाये जाने वाले मुख व ग्रसिका वयस्क जन्तु तक जारी रहते हैं जबकि तारा मछली में ये विलुप्त हो जाते हैं व वयस्क में नवीन अंगों का निर्माण होता है।

आर्थिक महत्त्व (Economic importance) :

दुनिया के कई देशों में इसे भोजन के रूप में खाया जाता है। यह चीनी लोगों का पसन्दीदा भोजन होता है।

प्रश्न (Questions)

लघुउत्तरात्मक प्रश्न

  1. कुकुमेरिया का वर्गीकरण लिखिये ।
  2. कुकुमेरिया के आवास के बारे में बताइये ।
  3. कुकुमेरिया का भोजन क्या होता है व कैसे गमन करता है ।
  4. श्वसन वृक्ष के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये ।
  5. कुकुमेरिया के जल संवहनी तन्त्र का वर्णन कीजिये ।
  6. कुकुमेरिया में स्वांगोंच्छेदन को समझइये ।
  7. क्यूबेरियन नलिकाएँ क्या होती है व क्या कार्य करती है।
  8. वर्ग होलोथुरोइडिया के जन्तुओं में कौनसा लारवा पाया जाता है ? इसकी संरचना बताइये ।

दीर्घउत्तरात्मक प्रश्न

  1. कुकुमेरिया का वर्गीकरण बताते हुए इसके आवास व स्वभाव का वर्णन कीजिये ?
  2. कुकुमेरिया की संरचना का वर्णन कीजिये ?
  3. कुकुमेरिया में पायी जाने वाली विशिष्ठ संरचनाओं का वर्णन कीजिये।
  4. कुकुमेरिया में प्रजनन तन्त्र का वर्णन करते हुए परिवर्धन पर टिप्पणी लिखिये।
  5. निम्न पर टिप्पणियाँ लिखिये ।

(i) श्वसन वृक्ष (ii) क्यूबेरियन नलिकाएँ, ऑरिकुलेरिया लारवा ।