(family cruciferae or brassicaceae in hindi) क्रूसीफेरी या ब्रैसीकेसी कुल क्या है , उदाहरण , वानस्पतिक नाम की परिभाषा किसे कहते है ?
कुल – क्रूसीफेरी अथवा ब्रैसीकेसी (cruciferae or brassicaceae) :
वर्गीकृत स्थिति – बैंथम और हुकर पद्धति के अनुसार
प्रभाग – एन्जियोस्पर्मी
उपप्रभाग – डाइकोटीलिडनी
वर्ग – पोलीपेटेली श्रेणी – थेलेमीफ्लोरी
गण – पैराइटेल्स कुल – ब्रेसीकेसी या क्रूसीफेरी
ब्रेसीकेसी कुल के विशिष्ट लक्षण (salient features of brassicaceae or cruciferae)
1. प्राय: एकवर्षीय अथवा द्विवर्षीय शाक , क्षुप। वृक्ष प्राय: अनुपस्थित , पादपों में तीखी गंध वाला जल समान रस पाया जाता है।
2. पर्ण सरल , वीणाकार , एकान्तरित , अननुपर्णी।
3. पुष्पक्रम असीमाक्षी असीमाक्ष अथवा समशिख।
4. पुष्प चतुष्तयी , दलपुंज क्रूसीफॉर्म।
5. पुमंग में पुंकेसर प्राय: चतुदीर्घी अवस्था में।
6. जायांग द्विअंडपी , युक्तांडपी , एककोष्ठीय लेकिन कूटपट अथवा रेप्लम की उपस्थिति के कारण द्विकोष्ठीय भित्तीय बीजाण्डन्यास।
7. फल सिलिकुआ अथवा सिलिक्युला।
प्राप्तिस्थान और वितरण (occurrence and distribution) : कुल ब्रेसीकेसी या क्रूसीफेरी , द्विबीजपत्री पौधों का एक बड़ा और महत्वपूर्ण कुल है , जिसमें 375 वंश और लगभग 3200 जातियों के पादप सम्मिलित है। इस कुल के सदस्य प्राय: विश्व के सभी भागों में पाए जाते है , फिर भी उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्र में ये विशेष रूप से पाए जाते है। भारत में इस कुल का प्रतिनिधित्व 51 वंश और 138 जातियों के द्वारा निरुपित होता है। इस कुल के अधिकांश सदस्य पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते है लेकिन कुछ जातियाँ उत्तरी भारत में मैदानी और शुष्क क्षेत्रों में पायी जाती है। कुछ सदस्य जैसे – नास्टरशियम ओफिसिनेल और सुबुलेरिया एक्वेटिका आदि जलीय पादप है।
कायिक लक्षणों का परास (range of vegetative characters)
प्रकृति और आवास : अधिकांश सदस्य शाकीय लेकिन लेपीडीयम और फारसेटिया की कुछ जातियाँ उपक्षुप होती है।
मूल : इस कुल के सदस्यों में प्राय: मूसला जड़ पायी जाती है। मूली और शलगम जैसे कुछ पादपों में यह मूसला जड़ खाद्य पदार्थो का संचय कर माँसल हो जाती है।
तना : प्राय: शाकीय , बेलनाकार , शाखित और उधर्व लेकिन कोरोनोपस में यह तलसर्पी होता है।
पर्ण : पत्तियाँ सरल , अननुपर्णी , स्तमभिक , मूलज जैसे – रैफेनेस सेटाइवस और बैसिका रापा में पत्तियाँ अल्पविकसित तने से गुच्छे के रूप में निकलती है। पत्तियाँ वीणाकार अथवा पुनर्विभाजित पिच्छाकार रूप में कटी फटी और रोमिल , गंधक यौगिक मायरोसिन की उपस्थिति के कारण पादपों में तीखी गंध आती है।
पुष्पीय लक्षणों का परास (range of floral characters)
पुष्पक्रम : प्राय: असीमाक्षी असीमाक्ष जैसे ब्रैसिका केम्पेस्ट्रिस में अथवा समशिख जैसे आइबेरिस अमारा में होता है लेकिन कोरोनोपस डाइडिमस में पुष्पक्रम पर्ण सम्मुख असीमाक्ष होता है।
पुष्प : सवृन्त , असहपत्री , त्रिज्यासममित लेकिन आइबेरिस अमारा में एकव्यास सममित , द्विलिंगी , चतुष्तयी , जायांगधर लेकिन सुबुलेरिया एक्वेटिका में अल्प परिजायांगी होता है।
बाह्यदलपुंज : बाह्यदल 4 , 2+2 के दो चक्रों में व्यवस्थित म बाह्यचक्र में दो अग्र पश्च और अन्त:चक्र में दो पाशर्व बाह्यदल होते है। कोरछादी विन्यास।
दलपुंज : दल 4 , पृथकदली , क्रॉसरुपी , प्रत्येक दल एक वृन्त अथवा नख और ऊपर चौड़े दलफलक में विभेदित होता है। कोरोनोपस में दलपुंज अनुपस्थित , लेपीडियम में शल्क में समानित हो जाते है। आइबेरिस में दो अग्रदल पश्चदलों की तुलना में बड़े होते है।
पुमंग : पुंकेसर 6 , पृथक पुंकेसरी , चतुदिर्घी अवस्था , दो चक्रों में व्यवस्थित (2+4) , बाहरी दो पुंकेसर छोटे पाशर्व और भीतरी चार बड़े अग्र पश्च स्थित होते है। परागकोष द्विकोष्ठी , आधारलग्न , अंतर्मुखी और लम्बवत स्फुटन वाले होते है। पुंकेसरों के आधार पर चार मकरंद ग्रन्थियाँ पायी जाती है।
कोरोनोपस में 2 (पाशर्वीय) , लेपीडियम और कोर्डेमाइन में 4 (भीतरी) और मेगाकार्पिया में 16 पुंकेसर होते है।
जायांग : द्विअंडपी , युक्तांडपी , प्रारंभ में एककोष्ठीय लेकिन आभासी पटअथवा रेप्लम के निर्माण से यह द्विकोष्ठीय हो जाता है। बीजांडन्यास भित्तीय , अंडाशय उधर्ववर्ती वर्तिका सरल अथवा अनुपस्थित , वर्तिकाग्र द्विपालित अथवा बिम्बाभ होती है।
फल और बीज : अधिकांश सदस्यों में – सिलिकुआ जैसे ब्रेसिका केम्पेस्ट्रिस और कुछ में सिलीक्यूला जैसे – आइबेरिस अमारा में होता है। बीज अभ्रूणपोषी और बीजपत्र वसीय होते है।
पुष्प सूत्र :
ब्रैसिका –
आइबेरिस –
कोरोनोपस –
आर्थिक महत्व (economic importance)
I. शोभाकारी पादप :
- आइबेरिस अमारा केन्डीटफ्ट
- मैथिओला इनकैना स्टॉक्स
- एलिसम सेक्सेटाइल बास्केट ऑफ़ गोल्ड
- काइरेंथस काइराई वाल फ्लावर
- ल्यूनेरिया एन्यूआ
II. सब्जियाँ और भोज्य पदार्थ :
- रेफेनस सेटाइवस मूली , मोगरी।
- ब्रैसिका रापा शलगम।
- ब्रैसिका केम्पेस्ट्रिस वे. सरसों सरसों।
- ब्रैसिका ओलिरेसिया वे. बोट्राइटिस फुलगोभी।
- ब्रैसिका ओलिरेसिया वे. केपिटाटा पत्तागोभी।
- ब्रैसिका ओलिरेसिया वे. गोन्गीलोडिस गांठगोभी।
- ब्रैसिका ओलिरेसिया वे. गेमीफेरा बटन गोभी।
III. तिलहनी पौधे :
- ब्रैसिका केम्पेस्ट्रिस वे. सरसों सरसों।
- ब्रैसिका अल्बा सफ़ेद राई।
- ब्रैसिका नाइग्रा काली राई।
- ब्रैसिका जन्सिया देशी राई।
- ब्रेसिका नेपस रेप सीड अथवा तोरिया।
- एरुका सेटाइवा तारामीरा।
IV. मसाले : ब्रैसिका एल्बा , ब्रैसिका नाइग्रा और ब्रैसिका जन्सिया (राई) के बीज मसालों के रूप में प्रयुक्त होते है।
V. औषधि : सिसम्ब्रियम इरियो (खूब कलां) की पत्तियाँ और तना स्कर्वी नस्टरशियम (तरहा) के बीज अस्थमा और लेपिडियम लीवर रोग में लाभकारी है।
VI. खरपतवार : लेपिडियम , कोरोनोपस केप्सेला और खूबकलां आदि खेतों और बगीचों के खरपतवार है।
ब्रेसीकेसी कुल के महत्वपूर्ण पादपों का वानस्पतिक विवरण (botanical description of important plants of family brassicaceae)
1. ब्रेसिका केम्पेस्ट्रिरा लिन. (brassica campestris linn) :
स्थानीय नाम – सरसों , पीली सरसों।
प्रकृति और आवास – एकवर्षीय कृष्ट शाक।
जड़ – शाखित मूसला जड़।
तना – शाकीय , उधर्व बेलनाकार , हल्का रोमिल , शाखित , हरा।
पर्ण : स्तम्भीय और शाखीय , अननुपर्णी , एकान्तरित , सरल , वृंत बहुत छोटा अथवा अनुपस्थित , नीचे की पत्तियाँ वीणाकार , चिकनी निशिताग्र , एकशिरीय जालिकावत शिराविन्यास।
पुष्पक्रम : असीमाक्षी असीमाक्ष।
पुष्प : सवृंत , असहपत्री , पूर्ण , द्विलिंगी , नियमित , त्रिज्यासममित , जायांगसममित , जायांगधर , चतुष्तयी।
बाह्यदलपुंज : बाह्यदल -4 , पृथकबाह्यदली 2+2 के 2 चक्रों में , आंतरिक चक्र के बाह्य दलपत्र लम्बे , विन्यास कोरछादी।
दलपुंज : दल-4 , पृथकदली , दलपुंज क्रॉसरूपी प्रत्येक दल नख और फलक में विभेदित और समकोण (90 डिग्री) पर मुड़े हुए दलपुंज विन्यास कोरस्पर्शी।
पुमंग : पुंकेसर-6 , पृथक पुंकेसरी चतुदीर्घी , 2 छोटे और 4 बड़े , दो चक्रों में , दो छोटे पुंकेसर बाहरी और 4 बड़े आंतरिक चक्र में। परागकोष द्विकोष्ठी , आधारलग्न , अंतर्मुखी , पुंकेसरों के समीप चार मकरंद ग्रंथियाँ उपस्थित।
जायाँग : द्विअंडपी , युक्तांडपी , प्रारंभ में एककोष्ठीय लेकिन बाद में आभासी पट अथवा रेप्लम निर्माण के कारण द्विकोष्ठीय , बीजांडन्यास भित्तिय , वर्तिकग्र द्विपालिवत , अंडाशय उधर्ववर्ती।
फल : सिलिकुआ।
पुष्पसूत्र :
2. आइबेरिस अमारा लिन. (iberis amara linn.)
स्थानीय नाम : चाँदनी (rocket candytuft)।
स्वभाव और आवास : एकवर्षीय शाक , शोभाकारी कृष्ट पादप।
जड़ : उधर्व , वायवीय , कोणीय और खुरदरा , हरा।
पर्ण : सरल , अननुपर्णी , एकान्तरित , अवृंत , लेंसाकार , निशिताग्र , एकशिरिय जालिकावत शिराविन्यास।
पुष्पक्रम : असीमाक्षी समशिख।
पुष्प : असहपत्री , संवृन्त , पूर्ण , द्विलिंगी , अनियमित , एकव्यास सममित , जायांगधर , चतुष्तयी।
बाह्यदलपुंज : बाह्यदल 4 , 2+2 के दो चक्रों में , पृथक बाह्यदली , विन्यास कोरछादी।
दलपुंज : दल 4 , पृथकदली , क्रॉसवत , दो अग्रदल बड़े , दो पश्च दल छोटे , प्रत्येक दल नख और फलक में विभेदित और समकोण (90 डिग्री) पर मुड़े हुए , विन्यास कोरस्पर्शी।
पुमंग : पुंकेसर-6 , पृथक पुंकेसरी , चतुदीर्घी , बाहरी दो पाशर्व पुंकेसर छोटे और शेष अग्र पश्च , 4 पुंकेसर बड़े , परागकोष द्विकोष्ठी , अंतर्मुखी , पृष्ठलग्न।
जायांग : द्विअंडपी , युक्तांडपी , प्रारंभ में एककोष्ठीय लेकिन बाद में आभासी पट के बन जाने से द्विकोष्ठीय , बीजांडन्यास भित्तिय , वर्तिका छोटी , वर्तिकाग्र समुंड अंडाशय उधर्ववर्ती।
फल : सिलिक्यूला।
पुष्पसूत्र :
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 : रेप्लम किस कुल में पाया जाता है –
(अ) पोएसी
(ब) ब्रेसीकेसी
(स) माल्वेसी
(द) रेननकुलेसी
उत्तर : (ब) ब्रेसीकेसी
प्रश्न 2 : ब्रेसीकेसी कुल में दल का लक्षण है –
(अ) घंटाकार
(ब) दलपुट युक्त
(स) क्रासवत
(द) द्विओष्ठी
उत्तर : (स) क्रासवत
प्रश्न 3 : ब्रेसीकेसी कुल का फल है –
(अ) कैप्सूल
(ब) एकिन
(स) सिलिकुआ
(द) केरियोसिस
उत्तर : (स) सिलिकुआ
प्रश्न 4 : ब्रेसीकेसी कुल के पुंकेसर का लक्षण है –
(अ) चतुर्दिथी
(ब) एक संघी
(स) युक्तकोषी
(द) दललग्न
उत्तर : (अ) चतुर्दिथी
प्रश्न 5 : चतुब्तयी पुष्प किस कुल का लक्षण है –
(अ) रेननकुलेसी
(ब) पोऐसी
(स) एस्ट्रेसी
(द) ब्रेसीकेसी
उत्तर : (द) ब्रेसीकेसी