(function of cortex in roots) (cortex in plants in hindi) वल्कुट क्या है वल्कुट किसे कहते है , परिभाषा , कार्य बताओ |
वल्कुट (cortex) : जड़ों में वल्कुट ऊतक पतली भित्ति वाली सजीव मृदुतक कोशिकाओं के द्वारा निर्मित होता है , जो कि गोलाकार अथवा बहुभुजीय कोशिकाएँ होती है। इनके मध्य अन्तर्कोशिकीय स्थान भी पाए जाते है। जलीय पौधों में अर्थात इनकी जड़ों में वल्कुट कोशिकाएँ विशेष प्रकार का वायुतक बनाती है। जड़ की वल्कुट कोशिकाओं में प्राय: हरितलवक अनुपस्थित होता है।
टीनोस्पोरा की वायवीय जड़ों के वल्कुट में हरितलवक पाया जाता है लेकिन सामान्यतया जड़ों की वल्कुट कोशिकाएं संचयी ऊतक के रूप में कार्य करती है।
जिन शाकीय द्विबीजपत्री पौधों में द्वितीयक वृद्धि नहीं पायी जाती वहां जड़ को दृढ़ता प्रदान करने के लिए यांत्रिक ऊतक भी विकसित हो सकते है। कुछ जड़ों के वल्कुट में दृढोतक , रबड़क्षीर , रेजिन , श्लेष्मा , लिपिड और दृढ़क कोशिकाएँ आदि भी उपस्थित हो सकते है।
वल्कुट के कार्य (function of cortex in roots)
वल्कुट के मुख्य कार्य निम्नलिखित है –
- जड़ की मूल परत से मूलरोम द्वारा अवशोषित खनिज पदार्थो और जल का संवहन ऊतक में स्थानान्तरण वल्कुट कोशिकाओं के द्वारा ही होता है।
- भोज्य पदार्थो के संचय का कार्य वल्कुट के द्वारा संपन्न होता है।
- जलीय पौधों की जड़ों के वल्कुट में वायुत्तक की उपस्थिति के कारण इनको प्लावी अवस्था में रहने में सहायता मिलती है और वायुतक के द्वारा यांत्रिक बल भी प्राप्त होता है।
- कुछ पौधों में जैसे – टीनोस्पोरा की वायवीय जड़ों के वल्कुट में हरित लवक उपस्थित होता है , अत: यह प्रकाश संश्लेषण का कार्य भी करता है।
- द्विबीजपत्री जड़ों में द्वितीयक वृद्धि के समय वल्कुट कोशिकाएँ काग एधा (cork cambium) का निर्माण करती है।
- जिन शाकीय और एकबीजपत्री पौधों में द्वितीयक वृद्धि नहीं होती वहाँ वल्कुट में दृढोतक पाया जाता है जिसके द्वारा जड़ों को यांत्रिक शक्ति प्राप्त होती है।
अन्तश्त्वचा (endodermis in hindi )
यह वल्कुट की सबसे आंतरिक कोशिका पंक्ति होती है। जड़ों में स्पष्टत: अन्तश्त्वचा परत पायी जाती है जो कि वल्कुट और रम्भ के मध्य सीमा निर्धारण का कार्य करती है। इस परत की कोशिकाएँ ढोलकाकार पतली भित्तियुक्त और सजीव होती है लेकिन इन कोशिकाओं की अरीय और अनुप्रस्थ भित्तियों स्थुलित होती है। इन पर सुबेरित का निक्षेपण पाया जाता है। सर्वप्रथम भित्तियों के इस स्थूलन को अन्तश्त्वचा में केस्पेरी (1917) के द्वारा देखा गया था , अत: उनके सम्मान में इन स्थूलन पट्टिकाओं को केस्पेरियन पट्टिकाएं भी कहा जाता है। केस्पेरियन पट्टिकाएँ प्राथमिक भित्ति का ही एक हिस्सा मानी जाती है और सुबेरिन युक्त होती है। अन्तश्त्वचा कोशिकाओं में जीवद्रव्य इनकी भित्ति (केस्पेरियन पट्टिकाओं) के साथ संलग्न रहता है। इस संलग्न जीवद्रव्य का प्रमुख कार्य अन्तश्त्वचा में होकर जाइलम में प्रवेश पाने वाले पदार्थो के नियंत्रण का होता है। जड़ों में द्वितीयक वृद्धि के बाद अंत:त्वचा की कोशिकाएँ नष्ट हो जाती है। द्वितीयक वृद्धि के दौरान वैसे तो प्रारम्भिक अवस्थाओं में अन्तश्त्वचा कोशिकाओं में अपनत विभाजन होते है , जिससे इनकी संख्या बढ़ जाती है लेकिन कुछ समय बाद क्योंकि इससे संतति कोशिकाओं के निर्माण की दर द्वितीयक वृद्धि की दर की तुलना में बहुत कम होती है इसलिए धीरे धीरे यह कोशिकाएँ अर्थात अन्तश्त्वचा कोशिकाएं नष्ट हो जाती है।
अन्तश्त्वचा के कार्य (function of endodermis in roots)
इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित है –
1. अन्तश्त्वचा की कोशिकाएँ प्रमुखत: जल और खनिज पदार्थो के अन्दर और बाहर के आवागमन पर नियंत्रण रखती है। कुछ अन्तश्त्वचा कोशिकाओं पर केस्पेरियन पट्टिकाएँ नहीं पायी जाती और यह पतली भित्ति वाली होती है। इनके द्वारा वल्कुट से भीतर जाइलम की तरफ जल और खनिज पदार्थो का अभिगमन सुचारू रूप से संचालित होता है। अत: इनको मार्ग कोशिकाएँ कहते है।
2. कुछ उदाहरणों में अन्तश्त्वचा कोशिकाओं में मंड कण खाद्य के रूप में संग्रह होते है।
परिरंभ (pericycle in root in hindi)
जड़ों में अन्तश्त्वचा के ठीक नीचे परिरंभ एक अथवा एक से अधिक कोशिका परतों के रूप में पाया जाता है। कुछ एकबीजपत्री कुलों के पौधों में जैसे पामी (उदाहरण – फिनिक्स) और पोएसी में और कुछ द्विबीजपत्री पौधों जैसे बरगद की वायवीय जड़ों में और मोरस और सेलिक्स की सामान्य जड़ों में बहुस्तरीय परिरंभ पाया जाता है। इसी प्रकार अधिकांश अनावृतबीजी पौधों की जड़ों में बहुस्तरीय परिरंभ पाया जाता है। सामान्यतया परिरंभ की कोशिकाएँ मृदुतकीय सजीव और पतली भित्ति वाली होती है और इनका विकास जड़ का निर्माण करने वाली प्राक्भ्रूण की सामान्य कोशिकाओं से होता है। कुछ उदाहरणों में परिरंभ दृढोतकी कोशिकाओं के द्वारा भी निर्मित होता है। एपीएसी अथवा अम्बेलीफेरी कुल के सदस्यों में परिरंभ में वियुक्तीजात स्त्रावी नलिकाएँ पायी जाती है। कुछ जलीय पौधों और सामान्यतया सभी परजीवी पौधों की जड़ों में परिरंभ अनुपस्थित होता है।
परिरंभ के कार्य (function of pericycle in roots)
परिरम्भ के प्रमुख कार्य निम्नलिखित है –
- अनेक पौधों में परिरंभ का प्रमुख कार्य द्वितीयक वृद्धि के समय संवहन केम्बियम के निर्माण करने का होता है।
- परिरंभ का एक तरफ महत्वपूर्ण कार्य विभिन्न पौधों में पाशर्वीय जड़ों की उत्पत्ति का होता है।
- आवश्यकता होने पर परिरंभ की कोशिकाएँ कार्क केम्बियम का विकास भी कर सकती है।
संवहन ऊतक (vascular tissue in hindi)
मूल में संवहन बंडल अरिय प्रकार के पाए जाते है। अर्थात यहाँ जाइलम और फ्लोयम दोनों ऊतकों के समूह एक दुसरे से एकांतर क्रम में पाए जाते है अलग अलग और एक ही त्रिज्या पर स्थित होते है। यही नही जाइलम समूह में प्रोटोजाइलम बाहर की तरफ और मेटाजाइलम भीतर की तरफ अवस्थित होता है। इस स्थिति को बाह्य आदिदारुक अवस्था कहते है।
इसके अतिरिक्त इनमें द्वितीयक वृद्धि भी होती है। परन्तु इनके जाइलम में वाहिकाएँ और फ्लोयम में सहकोशिकाएँ अनुपस्थित होती है। जाइलम और फ्लोयम समूहों की संख्या के आधार पर पौधों में पायी जाने वाली जड़ें निम्नलिखित प्रकार की हो सकती है।
(1) द्विदारूक – जाइलम गुच्छों की संख्या दो , उदाहरण – मूली।
(2) त्रिदारूक – जाइलम गुच्छों की संख्या तीन , उदाहरण – पाइनस।
(3) चतुष्दारुक – जाइलम गुच्छों की संख्या चार , उदाहरण – सूरजमुखी।
(4) बहुदारुक – जाइलम गुच्छे अनेक , उदाहरण – एकबीजपत्री जड़ें
उपर्युक्त उदाहरणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्राय: द्विबीजपत्री पौधों में जड़ें द्विदारुक से लेकर पंचदारुक अथवा षटदारुक हो सकती है। कुछ पौधों जैसे निम्फिया की जड़ों में जाइलम की संरचना विभिन्न प्रकार की अर्थात बाह्य आदिदारुक और अन्त:दारुकी प्रकार की हो सकती है। इस प्रकार की जड़ों को विषमदारूक जड़ें कहते है। कुछ पौधों जैसे आर्किडस और पामी कुल के सदस्यों में जड़ों की आंतरिक संरचना में अनेक संवहन बंडल अलग अलग रूप में स्वयं की अन्तश्त्वचा के द्वारा घिरे हुए होते है। जड़ की इस अवस्था को बहुरम्भीय अवस्था कहते है।
संवहन बंडल के जाइलम में उपस्थित वे कोशिकाएँ जो पहले परिपक्व होती है वह प्राय: संकरी होती है और इनकी भित्तियों पर कुंडलित , वलयाकार , सीढ़ीनुमा अथवा जालिकावत द्वितीयक स्थूलन पाए जाते है और यह कोशिकाएँ परिरंभ के नजदीक होती है। इस प्रकार के जाइलम ऊतक को प्रोटोजाइलम कहते है। लेकिन जाइलम के वे तत्व अथवा कोशिकाएँ जो अन्दर की तरफ अथवा मध्य भाग के समीप अवस्थित होती है। उन जाइलम कोशिकाओं को मेटाजाइलम कहते है। मेटाजाइलम की वाहिकाओं की भित्ति गर्तमय होती है। जाइलम ऊतक में मुख्यतः दो प्रकार की संवहनी कोशिकाएँ होती है अथवा वाहिकीय तत्व पाए जाते है , यह है वाहिनिकाएँ और वाहिकाएँ जबकि फ्लोयम ऊतक में मुख्यतः चालनी नलिकाएँ उपस्थित होती है। इसके अतिरिक्त फ्लोयम मृदुतक भी पाया जाता है।
प्राथमिक संवहन बंडलों में फ्लोयम रेशों का अभाव होता है लेकिन कुछ पौधों , जैसे मालवेसी फेबेसी और एनोनेसी कुल के सदस्यों की जड़ों में फ्लोयम रेशे प्राथमिक फ्लोयम ऊतक में भी उपस्थित होते है। जिम्नोस्पर्म्स के शंकुधारी वृक्षों में जड़ों की आंतरिक संरचना में भी कभी कभी रेजिन नलिकाएँ पायी जाती है।
जड़ों में सामान्यतया मज्जा ऊतक मृदुतकीय होता है लेकिन कभी कभी दृढोतकी मज्जा भी पायी जाती है। इसके अतिरिक्त कुछ सदस्यों में मज्जा के स्थान पर केवल एल खोखली नलिका पायी जाती है। कुछ एकबीजपत्री पौधों जैसे गेहूँ में मज्जा अनुपस्थित होती है। द्विबीजपत्री पौधों की जड़ों में द्वितीयक वृद्धि के बाद मज्जा नष्ट हो जाता है।