कम्प्यूटर आधारित अधिगम (CAI) computer assisted instruction in hindi ई-अधिगम की परिभाषा क्या है |
computer assisted instruction in hindi कम्प्यूटर आधारित अधिगम ई-अधिगम की परिभाषा क्या है किसे कहते हैं ?
कम्प्यूटर आधारित अधिगम (CAI) क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
What is Computer Assisted Instruction (CAI) ? Explain.
उत्तर-मसूरी विश्वविद्यालय के प्रो. मार्लो एडिगर (Marlow Ediger) का मत है कि, कम्प्यूटर आधारित अनुदेशन से शिक्षण-अधिगम परिस्थितियों को बल मिलने के साथ-साथ अभ्यास को भी बल मिलेगा, फलस्वरूप सीखना स्थायी हो सकेगा। कम्प्यूटर के प्रयोग से अध्यापक दूसरे छात्रों के लिये समय निकाल सकेगा जो कम्प्यूटर अनुदेशन के अलावा भी कुछ वांछित मार्गदर्शन चाहते हैं। शिक्षार्थी के पुनः पुनः सीखने के अनुभव देने में कम्प्यूटर मानव की तरह थकान का अनुभव नहीं करेगा, न ही वह नैराश्य का अनुभव करेगा, न क्रुद्ध होगा, साथ ही शिक्षार्थी को सही उत्तर देने पर प्रशंसा व पुरस्कार भी कम्प्यूटर के परदे पर प्रदर्शित होगा जिससे सीखना गतिशील हो सकेगा। … इससे सभी प्रकार के विद्यार्थी अपनी ही गति से सीखने के उच्चतम स्तर प्राप्त कर सकेंगे। ….कम्प्यूटर द्वारा समस्या निराकरण का अनुभव भी दिया जा सकता है।‘‘
संक्षेप में कम्प्यूटर आधारित अनुदेशन (CAI) के शैक्षिक लाभ निम्नांकित हैं-
(प) किसी भी पूर्व अर्जित ज्ञान या कौशल का अभ्यास करने हेतु कम्प्यूटर का प्रयोग अत्यन्त प्रभावी व रोचक होता है।
(पप) सभी शिक्षार्थियों को अपनी-अपनी क्षमता व योग्यतानुसार आगे बढ़ने का अवसर मिलता है।
(पपप) कम्प्यटर शिक्षार्थियों द्वारा पूछे गये प्रश्नों का तुरन्त उत्तर देकर उसकी जिज्ञासा को सन्तुष्ट करता है।
(पअ) कम्प्युटर अनुरूपण (Simulation) और क्रीड़न (Gaming) तकनीक द्वारा शिक्षार्थियों को विभिन्न प्रकार से प्रदर्शित करता है।
(अ) यह शिक्षार्थियों की अधिगम सम्बन्धी उपलब्धि का मूल्यांकन कराने में भी सहायक होता है, एवं
(अप) प्रयोगात्मक अध्ययनों में भी संकलित किये गये आंकड़ों की व्याख्या करने और उचित परिणाम निकालने में भी कम्प्यूटर काफी सहायक होता है।
कम्प्यूटर्स का प्रयोग दिन-प्रतिदिन जीवन के सभी क्षेत्रों में बढ़ता जा रहा है। शिक्षा में भी इसका अनुप्रयोग अपने देश में आरम्भ से हो चुका है । उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर एक विषय के रूप में अनेक विश्वविद्यालयों में स्थान पा चुका है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) ने विद्यालयी शिक्षा में इसके समावेश हेतु 1983-84 में एक योजनादृ“विद्यालयों में कम्प्यूटर साक्षरता व अध्ययन” (Computer Literacy and Studies in Schools-CLASS) आरम्भ की थी जिसके अन्तर्गत कुछ विद्यालयों का चयन कर उनके शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु सन्दर्भ-केन्द्र (Resource Centres) स्थापित हुए। इस योजना से अभी कोई लाभ दृष्टिगत नहीं हो रहा है। इस सम्बन्ध में प्रो. बीना शाह का यह कथन उल्लेखनीय है कि, “अभी भी ध्यान कम्प्यूटर विज्ञान पर केन्द्रित है । कम्प्यूटर को कक्षा-शिक्षण के उपकरण के रूप में अभी अपनाया नहीं जा सका है। जाहिर है कि हम कम्प्यूटर को शैक्षिक माध्यम नहीं बना पाये हैं। यह एक चुनौती है। लाभ तो तभी होगा जब हमारे विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में कम्प्यूटर का प्रवेश एक शैक्षिक उपकरण के रूप में हो। सॉफ्टवेयर की गुणवत्ता और उपलब्धि की समानता अपनी जगह है पर हार्डवेयर का विकास भी तो उतना ही जरूरी है।‘‘
प्रश्न 1. रसायन विज्ञान शिक्षण की झुरिस्टिक विधि का उल्लेख कीजिये और इसके गुण-दोषों का विवेचन कीजिये।
Mention Heuristic method of Chemistry teaching and discuss its merits and demerits.
उत्तर-रसायन विज्ञान-शिक्षण में रिस्टिक विधि (Heuristic Method in Chemistry Teaching)- इस विधि को अनुसंधान विधि या ष्स्वयं ज्ञान विधि” भी कहते है। इस विधि को लन्दन सेन्ट्रल टेक्निकल कॉलेज के प्रोफेसर H.E.K Armstrony ने जन्म दिया था। सर्वप्रथम इसका प्रयोग रसायन विज्ञान-शिक्षण में किया गया परन्तु बाद में उसकी उपयोगिता को देखकर इसका प्रयोग अन्य विषयों में भी सफलतापूर्वक किया जाने लगा। जसा कि इस विधि के नाम से ही स्पष्ट है यहाँ बालक को अन्वेषक की स्थिति में रख दिया जाता है । ‘Heuristic’ शब्द ग्रीक भाषा श्भ्मनतपेबवश् के शब्द से निकला है जिसका अर्थ है, i~ discover’ (मैं मालूम करता हॅू)। इस शब्द के पीछे एक अन्तर्कथा निहित है। ‘‘आकिमिडीज” ने जब अपने विशिष्ट भार के प्रसिद्ध सिद्धान्त को मालूम कर लिया तब वह सड़क पर चिल्लाता भागा था यूरेका-यूरेका अर्थात “मैंने मालूम कर लिया है – मैंने मालम कर लिया है”। इसी कथा के आधार पर “अपने आप सीखने की विधि” को Heuristic विधि की संज्ञा दी गई है।
हर्बट स्पेन्सर के अनुसार, “बालकों को जितना कम से कम संभव हो बताया जाये और उनको जितना अधिक से अधिक संभव हो खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाये।”
वेस्टावे के अनुसार, “वस्तुतः अन्वेषण विधि का प्रयोजन किसी के उचित प्रशिक्षण दिलाने से है।”
प्रोफेसर आर्मस्ट्रांग के अनुसार, “अन्वेषण विधि वह विधि है जिसमें हम छात्र को अन्वेषण की स्थिति में रखते हैं।”
ह्यूरिस्टिक विधि के गुण-
1. यह विधि मनोवैज्ञानिक है क्योंकि इसमें बालक “काम द्वारा सीखता” है और वह स्वयं प्रयोग करके प्रत्यक्ष एवं सत्यमय अनुभव ग्रहण करता है। यह ज्ञान जो उसने खोज द्वारा प्राप्त किया है, उसके मन-मस्तिष्क में स्पष्ट और स्थाई हो जाता है।
2. यह विधि बालकों में वैज्ञानिक लालसा पैदा करती है। वे और अधिक आत्मविश्वासी, चिन्तनशील, स्वावलम्बी और आत्म निर्भर बनते हैं। उनमें प्रयोग करने की जिज्ञासा पैदा होती है और स्वतंत्र रूप से कार्य करना सीखते हैं।
3. इस विधि द्वारा जब बालक कार्य करते हैं तो अध्यापक प्रत्येक विद्यार्थी के सम्पर्क में रहता है। वह अलग-अलग सबके कार्यों को देखता है, उन्हें आवश्यकतानुसार निर्देश देता है, समझाता है, प्रयोग करने के लिए सार्थक बातें बताता है और प्रोत्साहित भी करता है।
4. यह विधि वैज्ञानिक तथा व्यवहारिक है क्योंकि इसमें बालक को क्रियाशील होने का निरन्तर अवसर मिलता है जिससे वह अपने आगामी जीवन की तैयारी भी करता है और उसमें परिश्रम करने की आदतों का भी विकास होता है।
5. इस विधि द्वारा विद्यार्थी अपना सारा कार्य कक्षा में ही पूरा कर लेता है इसलिए अध्यापक को गृहकार्य देने की तथा उसे देखने की कोई चिन्ता नहीं रहती।
6. यह विधि छात्रों में स्वाध्याय पर बल देती है। बालक विभिन्न समस्याओं के निराकरण के लिए पुस्तकालय में भिन्न-भिन्न पुस्तकों को पढ़ता है, उनका मनन करता है
और हल तलाश करने की कोशिश करता है।
7. इस विधि का प्रयोग करने से छात्रों का दृष्टिकोण तार्किक बन जाता है। वे किसी भी विचार या तथ्य को बिना जाँच किये स्वीकार नहीं करते । आपस में बालक वाद-विवाद करते हैं और सही निष्कर्ष निकालने का प्रयास करते हैं।
8. विद्यार्थियों को यह विधि यथातथ्य (Exact) बनाती है और उन्हें सत्य के निकट पहुंचाती है। बालक सच्चा और ईमानदार बनता है और वास्तविक प्रयोगों द्वारा सही निष्कर्ष निकालना सीखता है।
ह्यूरिस्टिक विधि के दोष-
1. यह विधि छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि वे स्वयं तथ्यों की छानबीन करके सही निष्कर्ष नहीं निकाल सकते हैं। बालक का मस्तिष्क अबोध होता है। वह किसी समस्या को सभी दृष्टिकोणों से नहीं परख सकता है।
2. पाठ्यक्रम को समाप्त करने में कठिनाई- इस विधि में सारा ज्ञान छात्रों को खोज करके प्राप्त होता है। इसलिए यह बहुत धीमी गति से आगे बढ़ता है, जिससे निर्धारित यक्रम निर्धारित पाठयक्रम निर्धारित समय में पूरा करना असंभव होता है।
3. समय का अभाव-तथ्यों को खोजने तथा समझने के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता रहती है। परन्तु 35 या 40 मिनट के कालांश के अल्प समय में क्या बालक तथ्यों की खोज कर सकेंगे, यह एक विचार करने की बात है। इसके लिए शास्त्री जी के मतानुसार ‘‘जो तथ्य एवं सिद्धान्त आज हमें अत्यधिक सरल प्रतीत होते हैं, उनकी खोज में मानवता को सैकडों वर्ष लग गये थे। उनकी खोज बालक छोटे-छोटे कालांशों में कर डाले, यह दुराशा मात्र है।”
4. अध्यापक से अधिक आशा करना-यह विधि छात्र के साथ-साथ अध्यापक से भी बहुत अधिक आशा करती है । इसके अनुसार प्रत्येक अध्यापक एक खोजी अर्थात वैज्ञानिक हो तथा वह अनुसंधान करके प्रत्येक छात्र के अनुरूप प्रश्न बना सके, जो कि होना असंभव होता है। इससे अध्यापक पर बहुत अधिक कार्य बढ़ जाता है। इसके अलावा अध्यापक की सामाजिक व आर्थिकहीनता उसे निरुत्साहित और जीवन के प्रति निराशावादी बना देती ही ऐसी परिस्थितियों में उससे अधिक कार्य की आशा नहीं की जा सकती।
5. छात्रों से आवश्यकता से अधिक आशा करना-अल्प आयु के बालकों से यह आशा करना कि स्वयं तथ्यों की छानबीन करके निष्कर्ष निकाले, एक असंभव सी बात है। इस विषय में एक विद्वान का कथन उल्लेखनीय है–‘‘सभी लोगों में अन्वेषक व आविष्कारक बनने की शक्ति भी नहीं होती। यह शक्ति तो केवल कुछ में ही होती है। आविष्कारक का मस्तिष्क परिपक्व रहता है। वह किसी समस्या के सभी पहलुओं पर संतोषजनक रूप में विचार कर सकता है। बालक का मस्तिष्क अबोध रहता है, वह किसी समस्या को सभी दृष्टिकोण से देखने में समर्थ नहीं हो सकता‘‘।
6. खर्चीली विधि-यह विधि बहुत अधिक खर्चीली होती है। कारण कि प्रत्येक छात्र को खोज करने के लिए विभिन्न प्रयोग, परीक्षण, निरीक्षण आदि करना पड़ता है, जिसमें बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है।
7. त्रुटिपूर्ण निर्णय की संभावना-इस विधि से खोज करते समय यह सोचना कि छात्र सदैव ठीक ही खोज करेंगे. बहत बडी भल है। अविकसित मानसिक शक्तियों अपरिपक्व अनुभव व अवलोकन के कारण प्रायः त्रुटिपूर्ण निष्कर्ष निकाल लेते हैं।
8. उन्नति में बाधक-प्रत्येक बात की खोज करके ग्रहण करने में बहुत अधिक समय लगता है। जिससे छात्र उसी बिन्द पर काफी देर उलझा रहता है जो उसकी उन्नति में बाधक सिद्ध होती है।
ह्यूरिस्टिक विधि की सफलता के लिए सुझाव-
1. इस विधि का प्रयोग केवल चुने हए पाठों पर ही करना चाहिए। इसके लिए पाठयक्रम की व्यवस्था अलग से होनी चाहिए।
2. शिक्षक को इस कार्य में विशेष रुचि लेनी चाहिए। उसको अधिक ज्ञानी तथा ष् जमा होना चाहिए ताकि प्रत्येक बालक को बता सके और उत्साहित भी कर सके।
3. यह विधि कमजोर बालकों के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि न तो ऐसे बालक विज्ञान के तथ्यों को समझ पायेंगे और न प्रयोग ठीक प्रकार से कर सकेंगे। इसलिए उनके लिए सरल प्रयोग होने चाहिए और अन्य व्यवस्था होनी चाहिए।
4. इस विधि का रूप अन्वेषण विधि के समान वास्तविकता के आधार पर हो चाहिए। बालक के प्रयोग के समय उसके लिए हर प्रकार की आवश्यक सामग्री उपकरण और सुविधा उपलब्ध हो।
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