विलयन कोलाइड तथा निलंबन में अंतर लिखिए Colloid and suspension solutions in Hindi differences
Colloid and suspension solutions in Hindi differences विलयन कोलाइड तथा निलंबन में अंतर लिखिए ?
टॉमस ग्राहम ने 1861 में द्रव माध्यम में विसरित होने के आधार पर पदार्थों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है जो निम्नलिखित प्रकार है –
(1) क्रिस्टलॉइड (Crystalloids) : वे पदार्थ जो विलयन में शीघ्रता से विसरित (diffuse) हो जाय क्रिस्टलॉइड कहलाते हैं। ये पदार्थ जान्तव (animal) अथवा वनस्पति ( vegetable) झिल्ली में से आसानी से गुजर सकते हैं। उदाहरण : यूरिया, शक्कर, नमक, आदि क्रिस्टलीय पदार्थ इसी श्रेणी में आते है।
(2) कोलॉइड (Colloids) — ये विलयन में बहुत धीरे धीरे विसरित (diffuse) होते हैं और जान्तव एवं वनस्पति झिल्ली में से नहीं गुजर सकते। उदाहरण : स्टार्च, जिलैटिन, सिलिसिक अम्ल, प्रोटीन, आदि इसी वर्ग के सदस्य है।
बाद की खोजों और इन पदार्थों के विस्तृत अध्ययन से ज्ञात हुआ कि वस्तुतः किसी पदार्थ को क्रिस्टलॉइड या कोलॉइड कहना उचित नहीं है। इसका कारण यह है कि , परिस्थितियों को परिवर्तित करके कोलॉइड पदार्थ को क्रिस्टलाइड और क्रिस्टलॉइड पदार्थ को कोलॉइड बनाया जा सकता है। उदाहरणार्थ :
(i) NaCl जल में तो क्रिस्टलॉइड है लेकिन बेन्जीन में एक कोलॉइड की भांति व्यवहार करता है।
(ii) साबुन जल में तो एक कोलॉइड है लेकिन बेन्जीन में यह क्रिस्टलॉइड हो जाता है।
(iii) उचित परिस्थितियां लगाकर Cu, Ag, Au, Pb, आदि धातुओं तक को कोलॉइड बनाया जा सकता है।
अतः वर्तमान में क्रिस्टलॉइड व कोलॉइड पदों का उपयोग पदार्थों के लिए नहीं वरन् उनकी अवस्थाओं के लिए किया जाता है। अतः हम अब कोलॉइडी अवस्था (colloidal state) की बात करते हैं , कोलॉइडों की नहीं।
कोलॉइडी अवस्था को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है –
कोलॉइडी अवस्था की परिभाषा : “यदि कोई पदार्थ किसी अन्य माध्यम में इस प्रकार से वितरित हो कि उनके कणों का आकार (व्यास) लगभग 100 A हो, तो कहा जाएगा कि वह पदार्थ कोलॉइडी अवस्था में है।” अर्थात लगभग 100 angstrom आकार वाले कणों के विलयन को ही कोलॉइडी अवस्था कहते हैं |
पदार्थ के कणीय आकार के अनुसार विलयनों को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है
(i) वास्तविक विलयन (True solution) – इनमें विलेय के कणों का आकार अत्यन्त कम (1 से 5A) तक होता है, ये शीघ्रता से विसरित हो जाते हैं। जल्दी विसरित होने का कारण इनकी छोटा आकार होना है |
(ii) भारी निलम्बन (Coarse suspension) – इनके कणों का आकार बहुत बड़ा (200 A या इससे अधिक) होता है और गुरुत्व बल के कारण विलयन को रखने पर ये कण पेंदे में एकत्रित हो जाते हैं। भारी आकार और गुरुत्वीय बल के कारण इनके निलंबन के कारण ही इन्हें भारी निलम्बन कहते हैं |
(iii) कोलॉइडी अवस्था (Colloidal state) – यह अवस्था उपर्युक्त दोनों चरम स्थितियों की मध्यवर्ती अवस्था है। इसके कणों का आकार उपर्युक्त दोनों के मध्यवर्ती अर्थात् 5-200 A के मध्य का होता है। वास्तविक विलयनों के कणों की तुलना में इनके कणों का आकार बड़ा होने के कारण ये शीघ्रता से विसरित नहीं होते और भारी निलम्बनों की तुलना में इनका आकार छोटा होने के कारण ये गुरुत्व बल से पेदे में भी एकत्रित नहीं होते। अर्थात इस प्रकार के कण न तो जल्दी से विसरित होते है और न ही पैंदे में निलंबित होते है ऐसी अवस्था को ही कोलॉइडी अवस्था कहते हैं |
वास्तविक तथा कोलॉइडी विलयनों में अन्तर (DIFFERENCE BETWEEN TRUE AND COLLOIDAL SOLUTIONS)
अब हम कोलॉइडी अवस्था का विस्तृत अध्ययन करेंगे। कोलॉइडी अवस्था को ऐसा समांग तन्त्र (homogeneous system) माना जा सकता है जिसके निम्न अवयव (components) होते है –
वास्तविक विलयन
1. ये स्वच्छ पारदर्शी और समांगी होते हैं। 2. इनके कण फिल्टर पेपर, वनस्पति तथा जान्तव झिल्ली में से गुजर जाते हैं। 3. इनके कणों को अल्ट्रा सूक्ष्मदर्शी की सहायता से भी नहीं देखा जा सकता है। 4. इनके कण अधिशोषण नहीं या न्यूनतम दर्शाते हैं। 5. ये ब्राउनियन गति, टिण्डल प्रभाव तथा वैद्युतकण संचलन नहीं दर्शाते हैं। |
कोलॉइडी विलयन
1. ये कम पारदर्शी और विषमांगी होते हैं। 2. इनके कण फिल्टर पेपर में से तो गुजर जाते हैं लेकिन वनस्पति तथा जान्तव झिल्ली में से नहीं गजर सकते। 3. इनके कणों को अल्ट्रा सूक्ष्मदर्शी में से देखा जा सकता है। 4. इनके कण उच्च अधिशोषण दर्शाते हैं। 5. ये इन समस्त गुणों को प्रदर्शित करते हैं। |
1. वितरित या परिक्षिप्त प्रावस्था (Dispersed phase) : इसे असतत (discontinuous) या आन्तरिक प्रावस्था (inter phase) भी कहते हैं। इसमें भिन्न-भिन्न स्थूल कण (discrete particles) होते हैं जिन्हें कोलॉइडी कण कहते हैं। ये कण सच्चे या वास्तविक विलयनों के कणों से काफी बड़े होते हैं।
2. वितरण या परिक्षेपण माध्यम (Dispersion medium) : यह बाह्य प्रावस्था की रचना करता है जिसमें वितरित प्रावस्था विद्यमान रहती है। यह वितरित प्रावस्था के लिए एक माध्यम है जिसके अणु सतत रूप से (continuously) एक-दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं।
3. एक स्थायीकारक (A Stabilising agent) : यह एक ऐसा यौगिक होता है जो कोलॉइडी कणों को एक-दूसरे से पृथक् करता है अर्थात् कोलॉइडी अवस्था को बनाए रखता है।
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