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नागरिक अवज्ञा आंदोलन कब हुआ | नागरिक अवज्ञा आंदोलन कितना सफल रहा civil disobedience movement in hindi

civil disobedience movement in hindi नागरिक अवज्ञा आंदोलन कब हुआ | नागरिक अवज्ञा आंदोलन कितना सफल रहा ? चर्चा कीजिये ?

नागरिक अवज्ञा आंदोलन और उसके परिणाम

स्वाधीनता के साथ अपने औपचारिक लक्ष्य के रूप में, 26 जनवरी, 1930 का दिन स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया गया। इस अधिवेशन में कार्यकारी समिति को एक नागरिक अवज्ञा कार्यक्रम शुरू करने के लिए अधिकृत किया गया। गाँधीजी ने अपने कार्यक्रम को विस्तारपूर्वक लिखते हुए, तथा सरकार को आगे आने और उन्हें नमक-कानून तोड़ने से रोकते को चुनौती देते हुए वायसरॉय को एक अन्तिम चेतावनी भेजी। 12 मार्च, 1930 को 78 स्वयंसेवकों के साथ उन्होंने अहमदाबाद से दाण्डी के तट तक 240 कि.मी. लम्बा मार्च शुरू किया, और 6 अप्रैल, 1930 को उन्होंने सांकेतिक रूप से नमक-कानून तोड़ा। पूरा देश नागरिक-अवज्ञा आंदोलन में कूद पड़ा। बंगाल में, नमक-कानून तोड़ने के लिए स्वयंसेवक कोमिला, पूर्व बंगाल में अभय आश्रम से पश्चिम बंगाल में कोन्तई, मिदनापुर तट तक गए। सी. राजगोपालाचारी ने तंजौर तट पर त्रिचिनापल्ली से वेदारण्यम् तक प्रयोग किया, जबकि मालाबार तट पर के. केलप्पन ने नमक बनाया। नागरिक अवज्ञा का एक नया केन्द्र उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रान्त के रूप में उद्गमित हुआ, जहाँ खान अब्दुल गफ्फार खान व उनके अनुयायियों – खुदाइ खिदमतगार दृ ने अहिंसात्मक नागरिक अवज्ञा शुरू की। जब उन पर गोली चलाने का आदेश मिला, गढ़वाली सैनिकों ने आज्ञा मानने से इंकार कर दिया, और फिर उन्हें बंदी बना लिया गया। शराब व विदेशी-वस्त्र दुकानों पर धरना देने, कर चुकाने से इंकार करने व कानूनी पेशा छोड़ देने की घटनाओं ने आंदोलन का संकेत किया। बिहार व बंगाल में कृषकों ने चैकीदारी कर का विरोध किया। उड़ीसा के पुरी जिले में वन-कानूनविरोधी अभियान शुरू हुए। 4 मई, 1930 को गाँधीजी गिरफ्तार कर लिए गए। विरोध में देशभर में हड़तालें व प्रदर्शन हुए। आंदोलन तब वापस लिया गया जब गाँधी-डर्विन समझौते पर हस्ताक्षर हो गए, और गाँधीजी ब्रिटेन में द्वितीय गोल-मेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए राजी हो गए। इस सम्मेलन की उपलब्धि शून्य रही क्योंकि अधिकारियों ने कांग्रेस को भी औरों की तरह ही एक विचार करार दिया और खुले रूप से कांग्रेस के विरुद्ध राजकुमारों, प्रतिक्रियावादियों, दमित वर्ग नेताओं व साम्प्रदायिक नेताओं को प्रोत्साहित किया।

अनेक प्रान्तों में कांग्रेस द्वारा जीते गए 1937 के चुनावों के दौरान, चुनावीय राजनीति में प्रविष्ट . होते, और फिर पदासीन होते एक जन-आंदोलन की दुविधा तीक्ष्ण हो गई। काफी समीक्षा व तर्क-वितर्क के बाद, कांग्रेस ने छह प्रान्तों में मंत्रिमण्डल बनाने का निर्णय लिया, और अपना सामाजिक व आर्थिक कार्यक्रम चालू किया। इससे कुछ हलकों में आशंका पैदा हुई, जैसे कि यूनाइटेड प्रोविन्सिज में भू-स्वामी। मुस्लिम लीग भी मुसलमानों पर उसकी न शंसताओं के लिए मंत्रिमण्डलों पर आक्षेप करने लगी। यद्यपि जो कभी साबित नहीं हुए, ये अधिप्रचारक आरोप कांग्रेस के शासन वाले एक हिन्दू राज के भावी स्वरूप को तैयार करने में प्रयोग किए गए। मद्रास व बम्बई के मंत्रिमण्डल जैसे कुछ कांग्रेसी मंत्रिमण्डलों ने कम्यूनिस्ट व अन्य उग्र-उन्मूलनवादी समूहों को दबाने के लिए काम किया।

 

सायमन आयोग
आंदोलन के इसी मोड़कर, भारत के लिए भावी सुधारों की सिफारिश करने ब्रिटिशों ने सायमन कमीशन भेजा जिसमें एक भारतीय प्रतिनिधि भी था। कांग्रेस ने, अपने 1927 अधिवेशन में, कमीशन का बहिष्कार करने का फैसला किया। यह कमीशन जहाँ भी गया, हड़ताल से उसका स्वागत हुआ। अधिकारियों ने एक आम-सहमति वाला संविधान प्रस्तुत करने के लिए भारतीय नेताओं को चुनौती दी। कांग्रेस ने मोतीलाल नेहरू की देखरेख में एक समिति गठित की जिसने श्नेहरू रिपोर्ट पेश की। जिन्ना ने उन संशोधनों की सिफारिश की, जो रिपोर्ट में सुझाई गई राज्य व्यवस्था के प्रत्येक लक्षण को बदल डालते। सुभाष बोस और नेहरू ने भी देश के लिए सम्पूर्ण स्वाधीनता की सिफारिश न करने के लिए रिपोर्ट पर आक्षेप किया।

बोध प्रश्न 3
नोटः क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अन्त में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।
1) गाँधीजी व अम्बेडकर के बीच भौतिक मतभेद क्या थे?
2) सम्प्रदायवाद के उदय हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण कारण क्या था?
3) नेहरू रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें लिखें।

बोध प्रश्न 3
1) गाँधी के अनुसार व्यवसायिक पदसोपान (वबबनचंजपवदंस ीपमतंतबील) का विनाश वर्ण व्यवस्था की शुद्धता को पुनः प्राप्त करके किया जा सकता था। दूसरी तरफ अम्बेडकर का मानना था कि अस्पर्शता का मुख्य कारण हिंदू वर्ण व्यवस्था है। इसको वर्णव्यवस्था के विनाश द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है।
2) राष्ट्रीय आन्दोलन की सफलता और उसके विजन द्वारा किसानों, मजदूरों एवं जनता को राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लेने की प्रेरणा । इससे घबराकर उच्च वर्ग के लोगों ने साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया।