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सर्कस पर निबंध लिखिए , भारतीय सर्कस के प्रकार क्या है नाम किसे कहते हैं circus in hindi essay

circus in hindi essay सर्कस पर निबंध लिखिए , भारतीय सर्कस के प्रकार क्या है नाम किसे कहते हैं ?

भारतीय सर्कस  
भारत में एक शहर से दूसरे शहर जाकर सड़क पर प्रदर्शन करने वाले कलाकारों की सुदीर्घ परंपरा रही है। हालांकि आधुनिक अर्थ में सर्कस काफी नया उद्योग है। अंग्रेजी सर्कस गुरु ‘फिलिप एस्ले‘ के अनुसार, भारत में सर्कस 180 के आसपास अस्तित्व में आया।

ग्रेट इंडियन सर्कस
ग्रेट इंडियन सर्कस, जिसकी स्थापना निपुण घुड़सवार और गायक ‘विष्णुपंत चत्रे‘ ने की थी, भारत का पहला आधी सर्कस था। इसका विकास कुर्दुवदी के राजा के संरक्षण में हुआ। कुर्दुवदी के राजा के अधीन चत्रे अस्तबल गुरु के स में काम करते थे। ग्रेट इंडियन सर्कस के प्रदर्शन का पहला आयोजन 20 मार्च, 1880 को किया गया था। इसके बाद इस सर्कस ने पूरे देश का व्यापक भ्रमण करने के साथ ही सीलोन और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे विदेशी स्थानों का भी भ्रमण किया। उन्होंने प्रत्येक स्थान पर सराहना प्राप्त की। हालांकि, उत्तरी अमेरिका का उनका भ्रमण विफल रहा हई क्योंकि वहां वे अपने प्रतियोगियों के आकार और भव्यता से बराबरी नहीं कर सके।

कीलेरी कुन्हीकनन
भारत वापस आने पर, मालाबार तट पर स्थित तेल्ली चेरी शहर में अपने भ्रमण के दौरान चत्रे की मुलाकात कीलरी कुन्हीकनन से हुई। कीलरी कुन्हीकनन मार्शल आर्ट और जिमनास्टिक शिक्षक के रूप में काम करते थे। चत्रे के आग्रह पर, कीलरी ने उनकी अकादमी में कलाबाजों को प्रशिक्षित करना आरंभ किया। 1901 में, उन्होंने कोलम में पहला सर्कस स्कूल खोला। यह भारत में सर्कस क्रांति का नाभिस्थल बन गया।
1904 में, कुन्हीकनन के एक छात्र, परियली कन्नन ने ग्रैंड मालाबार सर्कस के नाम से अपनी सर्कस कंपनी आरंभ की। व्हाइट वे सर्कस (1922), ग्रेट रामायण सर्कस (1924), ग्रेट लायन सर्कस, ईस्टर्न सर्कस, फेयरी सर्कस आदि जैसी अन्य कंपनियों का प्रवर्तन कुन्हीकनन के छात्रों ने ही किया था। इस प्रकार, केरल को ‘भारतीय सर्कस के पालने‘ के रूप में जाना जाने लगा।
कन्हीकनन की अकादमी से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने वाले कई कलाबाज अस्तित्व में आए। रोपडांसर कन्नन बमबायो ने 1910 में कुन्हीकनन की अकादमी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में वे कई यूरोपीय और अमेरिकी सर्कस कंपनियों के लिए प्रदर्शन करने हेतु चले गए।
1939 में कन्हीकनन की मृत्यु के बाद उनके छात्र एम. के. रमन ने उनकी विरासत जारी रखी। वर्ष 2008 में भारत सरकार ने कीलरी कुन्हीकनन के सम्मान में थालास्सेरी में एक सर्कस अकादमी आरंभ किया। उन्हें ‘भारतीय सकस के पिता‘ की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
भारत की मुख्य सर्कस कंपनियां
भले ही भारतीय सर्कस कंपनियां अमेरिकी और यूरोपीय प्रतियोगियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में विफल रही हो फिर भी, वे 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध तक भारतीयों के मनोरंजन का प्रमुख स्रोत बनी रहीं। कुछ प्रमुख भारतीय नीचे सूचीबद्ध हैं –

थ्री रिंग सर्कस (Three Ring Circus)
के. दामोदरण ने 1930 के दशक में दो ध्रुवीय सर्कस के रूप में अपना नया सर्कस आरंभ किया। इसने पूरे दक्षिण भारत में लोकप्रियता प्राप्त की और आगे चलकर एशिया का पहला और अकेला सिक्स पोल थ्री रिंग सर्कस बना।

ग्रेट रॉयल सर्कस (Great Royal Circus)
यह भारत में सबसे पुरानी सर्कस मंडलियों में से एक है। इसका शुभारंभ 1909 में मधुस्कर सर्कस के रूप में हुआ था और आगे चलकर इसका अधिग्रहण ‘एनआर वालावाल्कर (ॅंसंूंसामत)‘ ने कर लिया और इसका नामकरण ग्रेट रॉयल सर्कस कर दिया गया। इसने अफ्रीका, मध्य-पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया का सफलतापूर्वक भ्रमण किया।

ग्रेट बॉम्बे सर्कस (Great Bombay Circus)
इसका शुभारंभ ‘बाबूराव कदम‘ ने 1920 में किया था। आरंभ में इसे ग्रैंड बॉम्बे सर्कस के रूप में जाना जाता था। 1947 में, कीलरी कुन्हीकनन के भतीजे के.एम. कुन्हीकनन ने अपनी सर्कस कंपनियों का विलय ग्रैंड बंबई सर्कस में कर दिया और इसका नामकरण ग्रेट बंबई सर्कस कर दिया गया। 300 कलाकारों और 60 जानवरों की मंडली के साथ, यह भारत की सबसे बड़ी सर्कस कंपनियों में से एक बन गया।

जेमिनी सर्कस (Gemini Circus)
1951 में, जेमिनी सर्कस बिलिमोरिया के एक छोटे-से गुजराती शहर में अस्तित्व में आया। इसका संचालन एक पूर्व सैनिक एम. वी. शंकरन करते थे। वे एक कुशल हवाबाज और कलाबाज थे और जेमिनी शंकरेट्टन के रूप में लोकप्रिय हुए।
1964 में, जेमिनी सर्कस सोवियत संघ में आयोजित होने वाले इंटरनेशनल सर्कस फेस्टिवल में प्रतिनिधित्व करने वाला पहला भारतीय सर्कस बना गया। मास्को, सोची और याल्टा में इसके प्रदर्शनों का आयोजन किया गया। बाद में जेमिनी सर्कस राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर‘ जैसी कई भारतीय फिल्मों की पृष्ठभूमि बन गया।

जंबो सर्कस (Jumbo Circus)
‘भारत की शान‘ जंबो सर्कस आधुनिक काल का सबसे बड़ा भारतीय सर्कस है। इसका शुभारंभ 1977 में बिहार में हुआ था और आगे चलकर शकरन परिवार ने इसका अधिग्रहण कर लिया। इसमें सामान्यतः रूसी कलाबाज और कलाकार सम्मिलित किए गए।

दाम् धारे सबसे लोकप्रिय सर्वकालिक भारतीय रिंग मास्टरों में से एक थे। इनका जन्म 1902 में पुणे के एक गरीब परिवार में हुआ था। वे स्वामी के रूप में इसाको के रूसी सर्कस में शामिल हुए। 1939 में वह बर्दाम मिल्स सर्कस के साथ फ्रांस चले गए और संयुक्त राज्य अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध रिंगलिंग ब्रदर्स और बार्नम व बेली सर्कस में रहे। उनके शो (प्रदर्शन) को ‘पृथ्वी पर सबसे बड़े प्रदर्शन‘ के रूप में जाना जाता था। बाद में 1943 से 1946 तक उन्होंने अमेरिकी सेना में सेवा दी। उन्हें, ‘चाइल्ड एनिमल मन‘ के रूप में जाना जाने लगा और 1960 में उन्हें अमेरिका की नागरिकता प्रदान की गई। हालाँकि 40 साल तक सर्कस उद्योग में सेवा देने के बाद वे वापस पुणे लौट आए और 1973 में उन्होंने अतिम सांस ली।

सर्कस :  सीमांत उद्योग
90 के दशक के उत्तरार्ध से, कई कारणों से सर्कस उद्योग क्षीण और पतनोन्मुख होने लगा। जहां 1990 में लगभग 300 भारतीय सर्कस थे, वहीं यह संख्या 2014 में घटकर मात्र 30 पर आ गयी। भारत के सर्कस उद्योग के पतन के कुछ कारण इस प्रकार हैं:
ऽ भारतीय सर्कस कंपनियां अपना व्यापार गोपनीय रखने का प्रयास करती हैं। इस बात ने इसे एक वंशान उद्योग बना दिया और कुछ चुनिंदा लोगों की परिधि में ही सीमित कर दिया। यह बात सर्कस व्यापार में अब प्रबंधकों के प्रवेश करने में आड़े आई।
ऽ भारतीय सर्कस कंपनियां मानती हैं कि सर्कस की कलाबाजी के लिए बचपन से ही गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। 2011 में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को काम पर रखने पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध ने सर्कस कंपनियों के इस संसाधन पूल को सीमित कर दिया है।
ऽ भारत सरकार द्वारा 1997 में मनोरंजन के उद्देश्य के लिए वन्य प्रशुओं के उपयोग पर प्रतिबंध लागू करने से, दर्शकों के लिए प्रदर्शन और आकर्षण की विशिष्ट शैली का अस्तित्व समाप्त हो गया।
ऽ भारतीय जनता के बीच सर्कस को सामान्यतः खतरनाक पेशे के रूप में देखा जाता है। अतः, परिवार अपने बच्चों द्वारा इसे व्यवहार्य पेशेवर कैरियर के रूप में चुनना पसंद नहीं करते हैं। पश्चिम के विपरीत, इससे सर्कस कलाकारों की वंशावलियों के विकास में भी बाधा आई।
ऽ विश्वस्तरीय जिमनास्टिक और ई-मनोरंजन के अन्य रूपों तक पहुंच होने से, युवा पीढ़ी ने पारंपरिक भारतीय सर्कस में रुचि खो दी। सर्कस कंपनियां अपनी प्रतिस्पर्धा का सामना करने में भी विफल रही हैं।

संभव उपचार
भारत सरकार द्वारा सर्कस अकादमी खोलना भारतीय सर्कस परंपरा की उत्तरजीविता की दिशा में सही कदम है। कुछ अन्य संभव समाधान हो सकते हैं:
ऽ सुरक्षा नियमों पर अधिक बल देने और इसे कठोरतापूर्वक लागू करने से कैरियर के अवसर के रूप में सर्कस की धारणा में सुधार लाने में सहायता मिलेगी।
ऽ सर्कस का उपयोग आम लोगों के बीच पतनोन्मुख कलाओं को बढावा देने के लिए किया जा सकता है। इससे सर्कसों के आकर्षण में भी वृद्धि होगी।
ऽ सर्कस कलाकारों और कंपनियों को सरकारी संरक्षण से भी इस उद्योग को पुनर्जीवित करने में सहा मिलेगी। अधिकांश कलाकार 40 वर्ष की आयु तक सेवानिवृत्त हो जाते हैं। इसके बाद उन्हें शारीरिक श्रा के रूप में काम करना पड़ता है। उनके लिए सुरक्षा और क्षतिपूर्ति एक अनिवार्य आवश्यकता है।
ऽ वर्तमान समय में सर्कस खेल एवं युवा मामलों के विभाग की परिधि में आता है। सांस्कृतिक मामल मंत्रालय के अधीन इसे लाने से इसके पुनरुद्धार के लिए श्रेष्ठ रणनीति बनाने में सहायता मिलेगी। यह की कला के एक रूप में मान्यता भी होगी।

अभ्यास प्रश्न-प्रारंभिक परीक्षा
1. निम्नलिखित व्यक्तित्वों में से कौन सर्कस से संबंधित है/हैं?
(a) कीलरी कुन्हीकनन (b) विष्णुपंत चत्रे
(c) (a) और (b) दोनों (d) न तो (a) न ही (b)
2. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
(i) सर्कस अकादमी थालास्सेरी, केरल में स्थित है।
(ii) कीलेरी कुन्हीकानन को भारतीय सर्कस के पिता के रूप में जाना जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल (i) (b) केवल (ii)
(c) (i) और (ii) दोनों (d) न तो (i), न ही (ii)

उत्तर
1. (c) 2. (c)

अभ्यास प्रश्न – मुख्य परीक्षा
1. भारत में सर्कस उद्योग एक सीमांत उद्योग बन गया है। इस संबंध में उपाय सुझाएं।
2. भारत में सर्कस उद्योग पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।