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circulatory system of cockroach in hindi कॉकरोच का परिसंचरण तंत्र समझाइये हृदय रूधिर परिसंचरण

जानिये circulatory system of cockroach in hindi कॉकरोच का परिसंचरण तंत्र समझाइये हृदय रूधिर परिसंचरण ?

परिसंचरण तन्त्र (Circulatory System):

कॉकरोच का परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार का होता है अर्थात इसमें रक्त पात्रों (sinuses) में भरा रहता है जो मिल कर देहगुहा में खुलते हैं। रक्त बन्द वाहिकाओं में नही बहता है कॉकरोच में रक्त, रंगहीन होता है तथा देहगुहा में बहता है अतः इसे हीमोलिम्फ कहते हैं तथा देहगुहा को हीमोसील (haemocoel) कहते हैं। इसके रक्त में हीमोग्लोबिन या किसी अन्य श्वसन वर्णक का अभाव होता है।

कॉकरोच में हीमोसील दो पटों द्वारा तीन कोटरों में बंटी रहती है- (i) पृष्ठ परिहद कोटर (pericardial sinus) (ii) मध्यवर्ती परिआन्तरांग कोटर (perivisceral sinus) (iii) अधर परितंत्रिकीय कोटर (perineural sinus)

इनमें से पृष्ठ परिहद कोटर तथा परिआन्तरंग कोटर के मध्य एक छिद्र युक्त तनुपट (diaphragm) पाया जाता है। परिहद कोटर में हृदय पाया जाता है। परिअन्तरांग कोटर में आहारनाल व अन्य आन्तरांग पाये जाते हैं। परिआन्तरांग कोटर तथा परितंत्रिकीय कोटर के बीच एक अधर छिद्र युक्त तनुपट पाया जाता है। परितंत्रिकीय कोटर में अधर तन्त्रिका रज्जु पायी जाती है।

हृदय (Heart) : कॉकरोच के वक्ष एवं उदर खण्डों की टरगा (terga) के नीचे मध्य पृष्ठ सतह पर एक लम्बी पृष्ठ रूधिर वाहिनी या हृदय पाया जाता है। यह पृष्ठ परिहद कोटर में पाया. जाता है। इसका अग्र सिरा खुला होता है तथा पश्च सिरा बन्द होता है। यह कीप के आकार के 13 प्रकोष्ठों (chambers) का बना होता है। अन्तिम प्रकोष्ठ को छोडकर शेष सभी प्रकोष्ठों के पश्च भाग में एक जोड़ी छिद्र पाये जाते हैं जिन्हें ऑस्टिया (ostia) कहते हैं। ये एक तरफ कपाटों (valve) की तरह कार्य करते हैं। ये रक्त को केवल परिहृद कोटर से हृदय में जाने देते हैं, वापिस पीछे नहीं आने देते हैं। ये प्रकोष्ठ एक-दूसरे से परस्पर इस तरह जुड़े रहते हैं कि इनमें रक्त पीछे से आगे की तरफ ही बह सकता है। हृदय के सबसे अधिक प्रकोष्ठ से एक नलिकाकार अग्र महा धमनी निकल कर सिर में प्रवेश कर शीर्ष कोटर में खुलती है। हृदय का प्रत्येक प्रकोष्ठ एक जोड़ी पंखेनुमा तिकोने आकार की पेशियाँ जुड़ी रहती है जिन्हें एलेरी पेशियाँ कहते हैं। ये पेशियाँ एक तरफ तो हृदय प्रकोष्ठ से जुड़ी रहती हैं तथा दूसरी तरफ प्रत्येक खण्ड के टरगा से तथा पृष्ठ तनुपट से जुड़ी रहती है।

रूधिर परिसंचरण (Blood Circulation) : शरीर में रूधिर या हीमोलिम्फ का परिसंचरण हृदय के स्पन्दन द्वारा होता है। हृदय की भित्ति पेशी युक्त एवं संकुचनशील होती है। पंखे के आकार की युग्मित एलेरी पेशियाँ हृदय के संकुचन व शिथिलन में सहायता करती है। जब ये एलेरी पेशियाँ संकुचित होती हैं तो हृदय के प्रकोष्ठ फैल जाते हैं तथा आस्टिया खुल जाते हैं, इससे परिहृद र में भरा हीमोलिम्फ हृदयी प्रकोष्ठों में भर जाता है। अब हृदय व महाधमनी में पीछे से आगे की तरफ क्रमांकुचन रूप से संकुचन होता है जिससे हृदयी प्रकोष्ठों में भरा हीमोलिम्फ आगे की तरफ धकेल दिया जाता है। इस तरह हीमोलिम्फ शीर्ष कोटर में चला जाता है। सिर में प्रत्येक शृंगिका के आध घर पर एक स्पन्दनशील तुम्बकाएँ पायी जाती है जो निरन्तर रक्त को श्रृंगिका में पम्प करती हैं। सिर में उपस्थित शीर्ष कोटर से हीमोलिम्फ बहकर परितंत्रिकीय कोटर में चला जाता है। वक्ष में अध र तनुपट तीनों जोड़ी टांगों में भी एक विभाजन पट्टी के रूप में फैला रहता है, जिससे प्रत्येक पद का एक ओर का भाग परितंत्रिकीय कोटर से तथा दूसरा भाग परिआन्तरांग कोटर से जुड़ा रहता है। अतः वक्षभाग में परितंत्रिकीय कोटर से हीमोलिम्फ या रक्त बहकर परिआन्तरांग कोटर में आ जाता है। उदर भाग में परितंत्रिकीय कोटर से हीमोलिम्फ छिद्र युक्त अधर तंनुपट में होकर परिआन्तरांग कोटर में चला जाता है तथा वहाँ से छिद्र युक्त पृष्ठ तनुपट में होकर परिहृद कोटर में चला जाता है। इस तरह हीमोलिम्फ या रक्त निरन्तर शरीर में परिसंचरित होता रहता है।

रूधिर (Blood) : कॉकरोच का रक्त रंगहीन होता है जिसे हीमोलिम्फ (haemolymph) कहते हैं। इसमें श्वसन वर्णक का अभाव होता है तथा अनेक श्वेत रक्ताणु पाये जाते हैं। श्वसन वर्णक के अभाव में यह O, तथा CO, का लेन-देन व संवहन नहीं करता है। इसके रंगहीन प्लाज्मा में 70% जल तथा शेष भाग में अमीनो अम्ल, यूरिक अम्ल पाये जाते हैं। कुछ मात्रा में पोटेशियम, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि के लवण, वसाएँ, शर्करा एवं प्रोटीन्स आदि भी पाये जाते हैं। यह शरीर के विभिन्न भागों के बीच इन्हीं पदार्थों का संवहन करता है। रक्त में पायी जाने वाली कणिकाएँ हीमोसाइट (haemocytes) कहलाती हैं। ये प्लाज्मा में स्वतन्त्र रूप से विचरण करती हैं तथा जीवाणुओं आदि का भक्षण कर शरीर को जीवाणुओं से मुक्त रखती है।