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अभिजात वर्ग के परिभ्रमण का सिद्धांत । अभिजात वर्ग सिद्धांत और अभिजन परिभ्रमण (circulation of elites) का सिद्धान्त

(circulation of elites in hindi) अभिजात वर्ग के परिभ्रमण का सिद्धांत क्या है ? vilfredo pareto theory of elites in hindi

अभिजात वर्ग सिद्धांत और अभिजन परिभ्रमण (circulation of elites) का सिद्धांत
परेटो का यह दृढ़ विश्वास था कि मानव जाति के लोग शारीरिक दृष्टि के साथ-साथ मानसिक और नैतिक दृष्टि से भी असमान हैं। सभी सामाजिक वर्गों में कुह सामाजिक वगों में कुछ लोग दूसरों की अपेक्षा कहीं अधिक बुद्धिमान और योग्य होते हैं। सामाजिक वर्ग या पूरे समाज में ये लोग ही अभिजन कहलाते हैं। परेटो ने अभिजात वर्ग की परिभाषा देते हुए कहा कि ये ऐसे वर्ग के लोग हैं जिनका अपने कार्य क्षेत्र में सबसे उच्च स्थान होता है (कोजर 1971ः 397)।

उसने शासकीय अभिजनों और गैर शासकीय अभिजनों में भी अंतर किया है। दोनों ही अभिजात संभ्रांत वर्ग हैं लेकिन शासकीय अभिजन वे व्यक्ति हैं जो प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं जबकि शेष अभिजन वर्ग में गैर-शासकीय अभिजन आते हैं। अपनी पुस्तक में परेटो ने अपना ध्यान विशेष रूप से शासक वर्ग के अभिजनों पर केंद्रित किया है।

हालांकि परेटो ने अभिजनों को समाज के सबसे बुद्धिमान और योग्य व्यक्ति कहा है लेकिन बहुत बार परेटो अभिजात वर्ग के ऐसे लोगों में अंतर नहीं कर पाता जिन्हें उनकी प्रतिष्ठा विरासत में या पैसे के कारण अथवा अच्छे संपर्को के कारण प्राप्त हुई है। परंतु परेटो इस तथ्य के बारे में बिल्कुल स्पष्ट है कि जहाँ संभ्रांत वर्ग के लोगों को यह प्रतिष्ठा अपनी उपलब्धियों के कारण प्राप्त नहीं होती बल्कि वह प्रदत्त प्रस्थिति होती है। ऐसी स्थिति समाज के लिए पतनकारी होती है। इसका स्थान प्रथम वर्ग के अवशिष्ट अर्थात् बचे हुए अभिजन ले लेते हैं। ये अभिजन संयोजन की सहजवृत्ति से संबंधित होते हैं। इन नए अभिजनों में जीवन शक्ति और सृजन शक्ति होती हैं जिनका पहले के अभिजनों में अभाव होता है। इसलिए परेटो के अनुसार केवल बुद्धिमत्ता । तथा सक्षमता ही समाज को प्रभावित नहीं करती अपितु प्रथम श्रेणी के अवशिष्ट भी समाज को प्रभावित करते हैं। आदर्श शासक वर्ग के अभिजनों में शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए अवशेष वर्ग के प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अभिजनों का मिश्रण होना चाहिए। द्वितीय श्रेणी के अभिजन समूह स्थायित्व के अवशिष्टों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये दो प्रकार के अवशिष्ट दो भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यक्तियों के समान हैं जिनको ‘‘शेरों‘‘ और ‘‘लोमड़ियों‘‘ के समान कहा जा सकता है। इस तरह से परेटो के अभिजन परिभ्रमण को भी दो प्रकार के मनुष्यों की कोटियों में विभाजित किया जा सकता है अर्थात् शेरों और लोमड़ियों की कोटि। परेटो ने इन अवधारणाओं को मैकियावेली से ले लिया है।

‘‘शेर‘‘ अवशिष्ट की श्रेणी प्प् का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये अनुदार और रूढ़िवादी विचारधारा के होते हैं और सामाजिक जड़ता यानी समाजों में दृढ़ता और स्थायित्व के तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार के मनुष्यों में परिवार, जाति, कबीले, नगर और राष्ट्र आदि के प्रति अत्यधिक वफादारी की भावना होती है। उनके व्यवहार से वर्ग की एकात्मकता, देशभक्ति और धार्मिक उत्साह की अभिव्यक्ति होती है और आवश्यकता पड़ने पर वे कठोर कार्रवाई करने में संकोच नहीं करते।

‘‘लोमड़ी‘‘ में अवशिष्ट वर्ग की श्रेणी प् की विशेषताएँ पाई जाती हैं यानी उनमें संयोजन की सहजवृत्ति होती है। ये लोग पद्धति निर्माण के कार्य में तथा बड़े पैमाने पर वित्तीय जोड़-तोड़ जैसे अनुभवों में पाए जाने वाले विभिन्न तत्वों के सुनियोजन में संलग्न होते हैं। दूसरे शब्दों में ‘‘लोमड़ी‘‘ श्रेणी के लोग समाज में परिवर्तन, परीक्षण और नवीन प्रक्रिया शुरू करने का दायित्व रखते हैं। ये लोग अनुदार, वफादार या स्थिर वृत्ति के नहीं होते।

परेटो की राय में शासकीय अभिजात वर्ग में ‘‘शेर‘‘ और ‘‘लोमड़ी‘‘ वर्ग के लोगों का मिश्रण होना चाहिए ताकि समाज को ये आदर्श शासक वर्ग दे सकें। उसने यहाँ राजनीतिक व्यवस्था का वर्णन किया लेकिन यही बात आर्थिक व्यवस्था पर भी लागू होती है। आदर्श आर्थिक व्यवस्था में दाँव-पेंच करने वालों (लोमड़ी वर्ग) और लगान उपजीवियों (शेर वर्ग) का मिश्रण होना चाहिए। समाज में निणर्यात्मक और जोरदार कार्रवाई करने वालों और कल्पनाशील, नवीन प्रक्रिया शुरू करने वाले और निस्संकोची व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।

परेटो ने अभिजन परिभ्रमण में, शेरों से लोमड़ियों में और लोमड़ियों से शेरों में परिवर्तन द्वारा सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। परिवर्तन का यह सिद्धांत चक्रीय स्वरूप का है। यह मार्क्स के सिद्धांत की तरह रेखीय नहीं है जिसमें साम्यवादी समाज तक पहुँचने के साथ प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। परेटो के मत में सभी समाज एक स्थिति से दूसरी स्थिति तक एक चक्र में गतिशील रहते हैं।

विल्फ्रेडो परेटो के ये कुछ मुख्य विचार हैं जिनको हमने यहाँ प्रस्तुत किया है। आइए, अब हम समकालीन समाजशास्त्र पर इन विचारों के प्रभाव की जाँच करें।

बोध प्रश्न 2
प) विल्फ्रेडो परेटो द्वारा दी गई तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं के बीच अंतर कीजिए।
पप) इस इकाई में अवशिष्टों के कौन-कौन से दो वर्गों का वर्णन किया गया है? व्याख्या कीजिए।
पपप) परेटो द्वारा दिए गए ‘‘शेर‘‘ (lion) और लोमड़ी (fox) शब्दों का अंतर स्पष्ट कीजिए।

बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) परेटो के अनुसार तर्कसंगत क्रियाएं वे हैं जिनमें किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके अनुरूप ही साधन हों। इसमें साधन तर्कसंगत रूप से लक्ष्य से जुड़े होते हैं, जब कि अतर्कसंगत क्रियाएं वे हैं जो तर्कसंगत क्रियाओं की श्रेणी में नहीं आतीं। अतर्कसंगत क्रियाएं समाजशास्त्रीय जाँच की विषयवस्तु हैं।
पप) इस इकाई में अवशिष्टों की दो श्रेणियों का उल्लेख है। ये हैं
प) संयोजन की सहजवृत्ति
पप) समूह स्थायित्व
पपप) ‘‘शेर‘‘ और ‘‘लोमड़ी‘‘ दो प्रकार के व्यक्तियों के सूचक हैं जिसे परेटो ने मैकियाविली से लिया है। ‘‘शेर‘‘ अवशेष के वर्ग प्प् में आते हैं। ये जिम्मेदार, स्थिर, अनुदार और कार्य व्यवहार में सक्षम होते हैं। ‘‘लोमड़ी‘‘ अवशेष के वर्ग प् से संबंधित है क्योंकि ये कल्पनाशील नव परिवर्तनवादी, अनैतिक होते हैं। परेटो के अनुसार किसी भी समाज के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए इन दोनों प्रकार के लोगों का मिश्रण होना चाहिए। उसमें शेर और लोमड़ी दोनों वर्गों के लोग होने चाहिए।