Circuit Analysis in hindi network definition questions answer परिपथ विश्लेषण क्या है उदाहरण प्रश्न उत्तर परिभाषा
पढ़िए Circuit Analysis in hindi network definition questions answer परिपथ विश्लेषण क्या है उदाहरण प्रश्न उत्तर परिभाषा ?
परिपथ विश्लेषण (Circuit Analysis)
कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ ( SOME IMPORTANT DEFINITIONS)
(i) जाल (Network) – विद्युत स्रोत (electric source) तथा विभिन्न विद्युत चालक अवयवों (circuit elements) जैसे प्रतिरोध (resistor), प्रेरकत्व ( inductor), संधारित्र (capacitor), डायोड (diode), ट्राजिस्टर (transistor) आदि के संयोजन से बने तथा एक-दूसरे से सम्बद्ध परिपथों के समूह को जाल (network) कहते हैं।
यदि किसी जाल में ऊर्जा स्रोत न हो तो वह जाल निष्क्रिय (passive) जाल कहलाता है। इसके विपरीत
जनित्र अथवा ऊर्जा स्रोतों से युक्त जाल सक्रिय (active) जाल कहलाता है।
यदि किसी जाल में दो सुस्पष्ट ( अलग) टर्मिनलों (terminals) के युग्म हो, अर्थात् दो निवेशी (input) व दो निर्गम (output) टर्मिनल हों तो वह जाल चर्तुटर्मिनल जाल (four terminal network) कहलाता है। [चित्र (1.1.-1a) ], यदि निवेशी व निर्गम टर्मिनलों के युग्मों का एक टर्मिनल उभयनिष्ठ समान (common) हो [ चित्र (1.1)-1b)] तो वह जाल त्रि- टर्मिनल जाल (three terminal network) होता है और यदि जाल में केवल दो सुस्पष्ट टर्मिनल ही हों ( चर्तुटर्मिनल जाल का एक युग्म लघुपथित करने पर) तो वह जाल द्वि- टर्मिनल जाल (two terminal network) बन जाता है।
(ii) स्रोत (Sources) विद्युत परिपथ में दो प्रकार के शक्ति स्रोत प्रयोग में लाये जाते हैं-
(a) वोल्टता स्रोत (Voltage Source)
(b) धारा स्रोत (Current Source)
ये दोनों प्रकार के स्रोत वास्तविक (real) या आदर्श ( ideal) हो सकते हैं।
(a) वोल्टता स्रोत (Voltage Source ) – यदि किसी वोल्टता स्रोत ( जनित्र ) में आन्तरिक लोड ( आन्तरिक प्रतिबाधा, Zin) उपस्थित न हो तथा उसके साथ जुड़े बाह्य लोड ( प्रतिबाधा ) के किसी भी मान के लिये उस पर वोल्टता का मान स्थिर रहे तो उसे आदर्श वोल्टता स्रोत ( ideal voltage source) कहते हैं। लेकिन व्यावहारिक रूप में प्रत्येक स्रोत ( जनित्र ) का आन्तरिक लोड ( आन्तरिक प्रतिबाधा ) होता है जो उसके साथ श्रेणीक्रम में आन्तरिक रूप से जुड़ा हुआ माना जाता है। ऐसे वोल्टता स्रोत के साथ बाह्य लोड (ZL) जोड़ने पर उस पर वोल्टता का मान बाह्य लोड के परिवर्तन से परिवर्तित होता है, अर्थात् वोल्टता स्थिर नहीं रहती है, इस प्रकार के वोल्टता स्रोत को वास्तविक वोल्टता स्रोत (real voltage source) कहते हैं।
(b) धारा स्रोत (Current Source) – वह धारा स्रोत जिसमें अनन्त (infinite ) प्रतिरोध समान्तर क्रम में लगा हुआ माना जाता है उसे आदर्श धारा स्रोत ( ideal current source) कहते हैं इस प्रकार के स्रोत से किसी बाह्य लोड के किसी भी मान के लिये इससे प्रवाहित धारा का मान स्थिर रहता है। लेकिन ऐसा धारा स्रोत जिसके समान्तर क्रम में अनन्त प्रतिरोध जुड़ा न होकर परिमित (finite ) मान का प्रतिरोध लगा हुआ होता है उसे वास्तविक धारा स्रोत (real current source) कहते हैं। इस प्रकार के स्रोत से किसी बाह्य लोड में प्रवाहित धारा
का मान बाह्य लोड के परिवर्तन से परिवर्तित होता है।
किसी भी विद्युत ऊर्जा स्रोत को वोल्टता
स्रोत अथवा धारा स्रोत के रूप में निरूपित
किया जा सकता है। यदि किसी स्रोत की आंतरिक प्रतिबाधा Zs है तथा उसे लोड प्रतिबाधा ZL से जोड़ा जाता है तो उसे एक आदर्श वोल्टता स्रोत तथा श्रेणीक्रम में संयोजित आंतरिक प्रतिबाधा के संयोजन के तुल्य मान सकते हैं जैसा कि चित्र (1.1-2a) में दिखाया गया है। इसी प्रकार इस स्रोत को एक आदर्श धारा स्रोत और उसके समान्तर क्रम में लगे आंतरिक प्रतिरोध के रूप में माना जा सकता है, जैसा कि चित्र (1.1-2b) में प्रदर्शित है।
उपरोक्त निरूपण में वोल्टता Vs व धारा Is में निम्न सम्बन्ध होता है
Vs = IsZs
(iii) (a) रेखीय प्रतिबाधायें ( Linear Impedances)– :
यदि किसी प्रतिबाधा से प्रवाहित धारा तथा उसके सिरों के बीच उत्पन्नं विभवान्तर के बीच खींचा गया वक्र सरल रेखा प्राप्त होती है तो इस प्रकार की प्रतिबाधा को रेखीय प्रतिबाधा कहते हैं। जैसे-प्रतिरोध R, प्रेरकत्व L, संधारित्र C इत्यादि की प्रतिबाधायें, रेखीय प्रतिबाधायें होती हैं। लेकिन डायोड, ट्रायोड, अर्धचालक डायोड इत्यादि की प्रतिबाधायें रेखीय प्रतिबाधायें नहीं होती हैं क्योंकि इनके लिये वोल्टता तथा धारा के बीच का ग्राफ सरल रेखीय न होकर अरैखीय प्राप्त होता है। अन्य रूप में परिपथीय अवयव रेखीय होता है तथा उसमें प्रवाहित धारा व उस पर वोल्टता के मध्य संबंध में अनुपात गुणांक नियत होता है (धारा के मान पर निर्भर नहीं होता)। जैसे
उपरोक्त संबंधों में R, L व C नियत गुणांक हैं। इसके अतिरिक्त रेखीय अवयवों के लिये e व i के संबंध अध्यारोपण के सिद्धान्त ( Superposition Principle) का पालन करते हैं।
(b) द्विपाश्विक प्रतिबाधायें (Bilateral Impedance) – यदि किसी प्रतिबाधा से प्रवाहित धारा की दिशा को उलटने पर प्रतिबाधा का मान अपरिवर्तित रहे तो उसे द्विपाश्विक प्रतिबाधा कहते हैं । जैसे- प्रतिरोध R, प्रेरकत्व L, धारिता C, इत्यादि की प्रतिबाधायें, द्विपाश्विक प्रतिबाधायें होती हैं। लेकिन डायोड, ट्रायोड, डायोड इत्यादि की प्रतिबाधायें, द्विपाश्विक प्रतिबाधायें नहीं होती हैं।
(iv) शाखा (Branch)- किसी जाल (network) में, जाल का वह भाग अथवा धारा का वह पथ जिसमें किसी धारा का मान नियत होता है उसे जाल की शाखा कहते हैं। चित्र (1.1-3) में AB, BC, CD, BE, CE आदि परिपथ की शाखायें हैं।
(v) संधि या नोड (Node) – किसी जाल (network) में जिस बिन्दु पर दो या दो से अधिक शाखायें (branches) मिलती हैं, उसे संधि या नोड कहते हैं। चित्र (1.1- 3) में परिपथ के बिन्दु B, C. E, F आदि नोड या संधि हैं।
(vi) पाश या लूप ( Mesh or Loop) – किसी परिपथ में धारा का वह बन्द पथ ( closed path) जो कुछ शाखाओं के द्वारा बना होता है उसे पाश या लूप कहते हैं। चित्र (1.1–3) में ABFA, BCEFB आदि भिन्न लूप है।
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