रासायनिक अभिक्रिया टक्कर सिद्धांत या संघट्य सिद्धांत Chemical reactions collision theory
Chemical reactions collision theory (रासायनिक अभिक्रिया टक्कर सिद्धांत) or organizational principles (संघट्य सिद्धांत )
यह सिद्धांत ट्राउटज व क्लार्क द्वारा दिया गया।
इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है।
- संघट्य करने वाले क्रियाकारक के अणुओं को कठोर गोले के रूप में माना जाता है।
- अणुओं में टक्करें होने से अभिक्रिया घटित होती है।
- संघट्य (टक्कर) करने वाले अणुओं की ऊर्जा संक्रियण ऊर्जा से बराबर या उससे अधिक होनी चाहिए।
- टकराते समय अणुओं का उचित अभिविन्यास होना चाहिए।
माना एक अभिक्रिया निम्न है।
A + B = उत्पाद
वेग = ZAB x e-Ea/RT
यहाँ ZAB संघट्य आवृति है अर्थात अभिक्रिया मिश्रण के प्रति इकाई आयतन में प्रति इकाई सेकंड में होने होने वाली टक्कर की संख्या है।
यहाँ e-Ea/RT उन अणुओं के अंश को दर्शाता है। जिनकी ऊर्जा संक्रियण ऊर्जा के बराबर या उससे अधिक होती है।
उपरोक्त वेग समीकरण सरल अभिक्रिया के लिए सही आंकड़े देता है परन्तु जटिल अभिक्रियाओं के लिए ये आंकड़े प्रायोगिक मान से भिन्न आते है।
जटिल अभिक्रियाओं के लिए उपरोक्त वेग समीकरण को संशोधित किया गया।
इसमें एक नया गुणांक समावेश किया जिसे प्रायिकता गुणांक या त्रिविमीय कारक कहते है इसे P से व्यक्त करते है। निष्कर्ष
अतः
वेग = P ZAB x e-Ea/RT
निष्कर्ष :
किसी रासायनिक अभिक्रिया के घटित होने के लिए सक्रिय अणुओं में टक्करे होना ही आवश्यक नहीं है परन्तु टकराते समय उनका अभिविन्यास भी होना चाहिए इसे निम्न उदाहरण द्वारा समझाया गया है।
समीकरण :
CH3-Br + OH– = CH3-OH + Br–
डायग्राम ??
अभिक्रिया वेग व सक्रियण ऊर्जा :
किसी रासायनिक अभिक्रिया के लिए यह आवश्यक है की क्रियाकारक के अणुओं के पास निश्चित न्यूनतम ऊर्जा होनी चाहिए जिससे की वे क्रियाफल में बदल जाए इस ऊर्जा को देहली ऊर्जा कहते है।
जिन अणुओं की ऊर्जा देहली ऊर्जा से कम होती है वे अपनी ऊर्जा को देहली ऊर्जा के बराबर करने के लिए कुछ अतिरिक्त ऊर्जा ग्रहण करते है इस ऊर्जा को सक्रियण ऊर्जा कहते है।
माना एक समीकरण निम्न है।
H2 + I2 = 2HI
डायग्राम ??
सर्वप्रथम क्रियाकारक के सक्रीय अणु परस्पर टकराकर सक्रीय संकुल का निर्माण करते है। सक्रीय संकुल अत्यधिक ढीले बंध वाला अणु है जिसकी ऊर्जा सबसे अधिक होती है , यह अस्थायी होता है तथा क्रियाफलो में विभक्त हो जाता है।
सक्रियण ऊर्जा = देहली ऊर्जा – क्रियाकारक के अणुओं की औसत ऊर्जा
डायग्राम
नोट : सक्रियण ऊर्जा कम होने पर अभिक्रिया वेग अधिक होता है। सक्रियण ऊर्जा अधिक होने पर अभिक्रिया वेग कम होता है।
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