निक्षालन विधि अथवा रासायनिक विधि , निक्षालन की परिभाषा क्या है किसे कहते है (chemical method in hindi)
(chemical method in hindi) निक्षालन विधि अथवा रासायनिक विधि , निक्षालन की परिभाषा क्या है किसे कहते है : सबसे पहले हम बात करते है कि निक्षालन क्या होता है ?
, Fe2O3 आदि , बॉक्साइट अयस्क का सांद्रण करने के लिये निक्षालन विधि को काम मे लिया जाता है।
2. चांदी और सोने के अयस्क का निक्षालन
गलन अथवा द्रवण विधि (liquation method) : यह विधि कम गलनांक वाल अयस्कों के सांद्रण में प्रयुक्त की जाती है। इस विधि में बारीक चूर्ण किये हुए अयस्क को ढलवां पैंदे वाली भट्टी में उसके गलनांक से थोडा उच्च ताप तक गर्म करते है। अयस्क पिघलकर निचे की तरफ बहता जाता है जबकि आद्यात्री की अशुद्धि वही रह जाती है। इस तरह शुद्ध सांद्रित अयस्क एक पात्र में एकत्रित होता जाता है।
रासायनिक विधि (chemical method) : इस विधि में अयस्क को रासायनिक विधि द्वारा किसी पदार्थ के साथ क्रिया करवाकर आद्यात्री से पृथक किया जाता है। सांद्रण की इस विधि को निक्षालन भी कहा जाता है। सांद्रण की इस विधि में अयस्क में आद्यात्री के साथ अशुद्धियो के रूप में विद्यमान अन्य धात्विक यौगिकों का भी पृथक्करण हो जाता है तथा इस प्रकार अयस्क का एक प्रकार से शुद्धिकरण भी हो जाता है। इस विधि का उपयोग प्रमुख रूप से बॉक्साइड अयस्क का सांद्रण करने में किया जाता है। बॉक्साइड एलुमिनियम का एक मुख्य अयस्क है।
सांद्रित अयस्क से धातुओं का निष्कर्षण (extraction of metals from concentrated ores)
उपर्युक्त में से किसी भी भी विधि द्वारा सांद्रित अयस्क से धातुओं का निष्कर्षण करने की प्रक्रिया दो पदों में संपन्न होती है जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार है –
(A) सांद्रित अयस्क से उपयुक्त यौगिक बनाना : किसी भी सान्द्रित अयस्क को उपयुक्त यौगिक में बदलने के लिए मुख्य रूप से दो विधियों का प्रयोग किया जाता है –
(i) निस्तापन (calcination) : इस विधि में सान्द्रित अयस्क को वायु की अनुपस्थिति या नियंत्रित मात्रा में गलनांक से कुछ कम उच्च ताप तक एक बंद भट्टी में गरम किया जाता है। यह विधि जलयोजित ऑक्साइडो और कार्बोनेट अयस्कों के लिए प्रयुक्त की जाती है। निस्तापन की क्रिया से धातु अयस्क धात्विक ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाते है। इसके साथ ही उस अयस्क में विद्यमान जलवाष्प और अन्य वाष्पशील अशुद्धियाँ भी दूर हो जाती है। निस्तापन के कुछ मुख्य उदाहरण निम्नलिखित है –
Al2O32H2O → Al2O3 + 2H2O
ZnCO3 → ZnO + CO2
Fe2O33H2O → Fe2O3 + 3H2O
CaCO3 → CaO + CO2
(ii) भर्जन (Roasting) : भर्जन की क्रिया में सांद्रित अयस्क को वायु की उपस्थिति में उच्च ताप (लेकिन गलनांक से कुछ कम ताप) पर एक खुली परावर्तनी भट्टी में गर्म किया जाता है .इस प्रक्रिया में धातु अयस्क ऑक्साइड में बदल जाता है एवं वाष्पशील अशुद्धियाँ भी वाष्पीकृत होकर निकल जाती है। इस प्रकार अयस्क का शुद्धिकरण भी हो जाता है। गैलेना (PbS) , जिंक ब्लेण्ड (ZnS) , कॉपर पाइराइट (Cu2S) आदि अयस्कों का भर्जन करवाया जाता है।
2PbS + 3O2 → 2PbO + 2SO2
2ZnS + 3O2 → 2ZnO + 2SO2
2Cu2S + 3O2 → 2Cu2O + 2SO2
अशुद्धियाँ –
S + O2 → SO2
4As + 3O2 → 2As2O3
P4 + 5O2 → 2P2O5
(B) धातु यौगिक के अपचयन से धातु का निर्माण करना : सांद्रित धातु अयस्क से उपयुक्त यौगिक बनाने के बाद उसका अपचयन करके मुक्त धातु का निर्माण करते है .उपयुक्त यौगिकों के रूप में सामान्यतया धातुओं के ऑक्साइड ही बनते है जिनसे मुक्त धातु प्राप्त करने के लिए उनका अपचयन करवाया जाता है। धातु अयस्कों के अपचयन के लिए कई विधियाँ ज्ञात है जिनमें से धातु की प्रकृति के हिसाब से उपयुक्त विधि के चुनाव कर लिया जाता है। अपचयन की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित है –
(i) तापीय अपचयन या प्रगलन (thermal reduction or smelting) : अयस्क से धातु प्राप्त करने की ऐसी प्रक्रिया जिसमें गलन होता हो अर्थात धातुएं पिघल जाती हो , प्रगलन कहलाती है। इस प्रक्रम में धातुओं का अपचयन उच्च ताप पर संपन्न होता है , अत: यह तापीय अपचयन की प्रक्रिया है। इसे निम्नलिखित विधियों द्वारा संपन्न कराया जाता है –
(a) कार्बन द्वारा अपचयन : इस विधि में भर्जित अयस्क को कोक (कार्बन का एक शुद्ध और सबसे सस्ता अपररूप) के साथ मिलाकर उपयुक्त भट्टी (वात्या अथवा धमन भट्टी या परावर्तक भट्टी) में गर्म किया जाता है। धातु , वाष्प (जिंक) या पिघली हुई (आयरन) अवस्था में प्राप्त होता है जो बाद में संघनित होकर ठोस धातु रूप में आ जाता है।
Fe2O3 + 3C → 2Fe + 3CO
Fe2O3 + 3CO → 2Fe + 3CO2
प्रगलन के दौरान अयस्क में कुछ ऐसे पदार्थों को मिला दिया जाता है जो अयस्क में विद्यमान अशुद्धियों अथवा आधात्री के साथ संयुक्त होकर गलनीय पदार्थ बना लेते है। इन पदार्थो को गालक कहा जाता है एवं आधात्री और गालक के साथ बने हुए गलनीय पदार्थ को धातुमल कहा जाता है। धातुमल पिघली हुई धातु के साथ मिश्रित नही होता वरन हल्का होने के कारण यह धातु के ऊपर एक अलग परत बना लेता है जिसे आसानी से धातु से पृथक किया जा सकता है। गालक दो प्रकार के होते है –
(अ) अम्लीय गालक : ये अम्लीय ऑक्साइड होते है एवं अयस्क में क्षारीय अशुद्धि को दूर करने के लिए इनका उपयोग होता है। रेत अथवा सिलिका (SiO2) का वृहद उपयोग अम्लीय गालक के रूप में होता है।
MnO + SiO2 → MnSiO3
FeO + SiO2 → FeSiO3
(ब) क्षारीय गालक : जब अयस्क में अम्लीय अशुद्धियाँ विद्यमान हो तो उन्हें दूर करने के लिए क्षारीय गालक का उपयोग होता है। ये क्षारीय धात्विक ऑक्साइड होते है एवं रेत जैसी अम्लीय अशुद्धि के साथ संयुक्त होकर गलनीय सिलिकेट धातुमल बनाते है।
SiO2 + CaO → CaSiO3
(b) प्रबल अपचायक धातुओं द्वारा अपचयन : कम धन विद्युती धातुओं के निष्कर्षण में अपचायक के रूप में अधिक धनविद्युती धातुओं का उपयोग किया जाता है। क्रोमियम , मैंगनीज , कैल्सियम , बेरियम , स्ट्रान्शियम आदि का निष्कर्षण इस विधि द्वारा संपन्न कराया जाता है। अपचायक धातु के रूप में अधिकांशत: सोडियम , मैग्नीशियम और एलुमिनियम जैसी धनविद्युती धातुओं का प्रयोग किया जाता है। यदि अपचायक के रूप में Al चूर्ण का प्रयोग किया जाए तो इस विधि को गोल्डश्मिट एलुमिनोतापी विधि या थर्माइट अथवा तापीय विधि कहा जाता है।
Cr2O3 + 2Al → Al2O3 + 2Cr
2MnO2 + 4Al → 2Al2O3 + 3Mn
अभिक्रियाएँ तीव्र ऊष्माक्षेपी होती है एवं विस्फोट के साथ सम्पन्न होती है।
स्ट्रोंशियम और बेरियम धातुओं को प्राप्त करने के लिए उनके ऑक्साइडो को एलुमिनियम के साथ निर्वात में अपचयित करवाया जाता है।
(c) स्वअपचयन : कुछ अत्यन्त धनविद्युती धातुओं का निष्कर्षण इस विधि द्वारा संपन्न होता है। इन धातु अयस्कों को जब वायु की धारा में गरम किया जाता है तो आंशिक रूप से धातु के कुछ ऐसे यौगिक बनते है जो धातु अयस्क के साथ क्रिया करके धातुओं को मुक्त करते है। उदाहरणर्थ , मर्करी के अयस्क सिनेबार को वायु की धारा में गर्म करने से निम्नलिखित प्रकार की अभिक्रियाएँ संपन्न होती है तथा मर्करी धातु मुक्त होती है –
2HgS + 3O2 → 2HgO + 2SO2
2HgO + HgS → 3Hg + SO2
इस प्रकार की क्रियाएं ताम्बे और लेड अयस्कों के साथ भी संपन्न होती है –
(ii) विद्युत अपघटनी अपचयन (electrolytic reduction) : क्षार धातुएं , क्षारीय मृदा धातुएँ , जिंक और एलुमिनियम का निष्कर्षण इस विधि द्वारा संपन्न कराया जाता है। अत्यन्त क्रियाशील होने के कारण इन धातुओं का निष्कर्षण रासायनिक अपचयन द्वारा संभव नहीं हो पाता। इनके विद्युत अपघटन में जलीय विलयनों का भी उपयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि इनके मानक अपचयन विभव के मान हाइड्रोजन की तुलना में ऋणात्मक होते है , अत: कैथोड पर धातु के स्थान पर हाइड्रोजन मुक्त हो जाती है। इस कारण इन सक्रीय धातुओं के लवणों का पिघली हुई अवस्था में विद्युत अपघटन करवाया जाता है , जब कैथोड पर धातु एवं एनोड पर लवण के ऋण आयन मुक्त होते है। उदाहरण , स्टील के पात्र में ग्रेफाईट एनोड और आयरन कैथोड लगाकर पिघले हुई सोडियम क्लोराइड का विद्युत विश्लेषण करवाने पर निम्नलिखित प्रकार से कैथोड पर सोडियम मुक्त होता है। सोडियम के निर्माण की यह विधि डाउन की विधि कहलाती है।
NaCl ⇌ Na+ + Cl–
Na+ + e– → Na (अपचयन)
Cl– – e– → Cl (ऑक्सीकरण)
2Cl → Cl2
इन लवणों का गलनांक सामान्यतया अत्यंत उच्च होता है अत: इन्हें पिघली हुई अवस्था में रखने के लिए विद्युत विश्लेषण बहुत उच्च ताप पर संपन्न करवाना पड़ता है। इसमें कुछ राहत पाने के लिए धातु लवणों के साथ कुछ ऐसे लवण मिला दिए जाते है जिनसे धातु लवणों के गलनांकों के मान कम हो जाते है एवं विद्युत विश्लेषण को कम ताप पर आसानी से संपन्न किया जा सकता है। उदाहरण , सोडियम क्लोराइड का विद्युत विश्लेषण करते समय इसमें कुछ मात्रा में कैल्सियम क्लोराइड मिला दिया जाता है। इससे सोडियम क्लोराइड कम ताप पर पिघल जाता है एवं कैल्सियम चूँकि विद्युत रासायनिक श्रेणी में सोडियम से ऊपर है , अत: कैथोड पर सोडियम ही मुक्त होता है , कैल्सियम नहीं।
रासायनिक अपचयन : ताप दाब की सामान्य परिस्थितियों में धातु लवणों का रासायनिक विधियों द्वारा भी अपचयन करवाकर धातुओं को निष्कर्षित किया जा सकता है। इसके लिए दो प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जाता है –
(a) धात्विक प्रतिस्थापन : इस विधि का उपयोग कॉपर , कैडमियम आदि के निष्कर्षण में किया जाता है। यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऊपर स्थित धातु तत्व अपने से निचे स्थित धातुओं के आयनों से धातुओं को विस्थापित कर देते है।
इस विधि के उपयोग से कॉपर की कम प्रतिशतता वाले अयस्कों से भी धातु का निष्कर्षण संभव है। उदाहरण , कॉपर का निष्कर्षण करने के लिए सल्फाइड अयस्क के बड़े बड़े ढेर करके वायु द्वारा ऑक्सीकृत होने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार बने हुए कॉपर सल्फेट को जल की अधिक मात्रा से निक्षालित करके CuSO4 का तनु विलयन प्राप्त कर लिया जाता है। इस विलयन में लोहे की छीलन डालने से कॉपर अवक्षेपित हो जाता है –
CuS + 2O2 → CuSO4
CuSO4 + Fe → FeSO4 + Cu
इसी प्रकार कैडमियम आयनों के विलयन में यदि जिंक चूर्ण डाल दिया जाए तो कैडमियम अवक्षेपित हो जाता है –
Cd2+ + Zn → Zn2+ + Cd
(b) संकुल बनाने के बाद धातु द्वारा प्रतिस्थापन : सोने और चाँदी का निष्कर्षण इस विधि द्वारा संपन्न कराया जाता है। सबसे पहले धात्विक अयस्क की क्रिया सोडियम सायनाइड विलयन के साथ करवाई जाती है , इससे सोना और चाँदी संकुल बनाकर विलयन में आ जाते है। अब इस विलयन की क्रिया जिंक जैसे धन विद्युती धातु के साथ करवाते है जिससे सोना चांदी जैसे धातुएं अवक्षेपित हो जाती है।
Ag2S + 4CN– ⇌ 2[Ag(CN)2]– + S2-
अभिक्रिया उत्क्रमणीय है अत: यदि विलयन में सल्फाइड आयनों अर्थात Na2S को हटाने जाए तो साम्य दाई ओर खिसकता जायेगा एवं धातु अयस्क से अधिकाधिक मात्रा में Ag2S विलयन में आता जायेगा।
इस विलयन की जिंक चूर्ण के साथ क्रिया कराने पर सिल्वर अवक्षेपित हो जाता है –
2[Ag(Cn)2]– + Zn → [Zn(CN)4]2- + 2Ag
गोल्ड के निष्कर्षण के लिए अयस्क के महीन चूर्ण को सोडियम सायनाइड विलयन में डालकर दो दिन तक उसमें वायु प्रवाहित करते है जिससे गोल्ड संकुल बनाकर विलयन में आ जाता है एवं फिर इस विलयन में जिंक चूर्ण डालने से गोल्ड अवक्षेपित हो जाता है।
4Au + 8CN– + O2 + 2H2O → 4[Au(CN)2]2- + 4OH–
2[Au(CN)2]– + Zn → [Zn(CN)4]2- + 2Au
इस विधि में धातु के संकुल लवण के जलीय विलयन से धातु का अवक्षेपण करवाया जाता है। अत: इस विधि को जल धातुकर्म भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त चूँकि इस प्रक्रम में सायनाइड संकुल बनते है अत: इसे सायनाइड प्रक्रम भी कहा जाता है।
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