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कार्नो इंजन क्या है , सिद्धांत , कार्यप्रणाली , भाग , चित्र वर्णन (carnot engine in hindi)

(carnot engine in hindi) कार्नो इंजन क्या है , सिद्धांत , कार्यप्रणाली , भाग , चित्र वर्णन : इस प्रकार का इंजन हमारे रेफ्रिजरेटर और a.c में लगा रहता है।
इस इंजन में दो समतापी उत्क्रमणीय प्रक्रम होते है तथा दो ही रुद्धोष्म उत्क्रमणीय प्रक्रम होते है।
कार्नो इंजन एक आदर्श ऊष्मा इंजन ही होता है , यह एक सैद्धांतिक इंजन का रूप है , इस इंजन को बनाने में प्रायोगिक दोषों से मुक्त करके बनाया गया है।

कार्नो इंजन का सिद्धान्त (carnot engine principle)

जैसा की हम जानते है कि अनुत्क्रमणीय इंजन की दक्षता का मान उत्क्रमणीय इंजन की तुलना में बहुत कम होती है , दक्षता बढ़ाने के लिए दहन कक्ष में उत्पन्न होने वाले ताप का मान बढ़ा देना चाहिए , दहन कक्ष में ताप का मान बढ़ने से इंजन की दक्षता बढ़ जाती है।
उत्क्रमणीय इंजन की दक्षता का मान समान ताप पर हमेशा समान रहता है चाहे ताप किसी भी ईंधन से प्राप्त किया जाए , अगर उत्पन्न ताप का मान समान है तो दक्षता का मान भी समान होगा।
वैज्ञानिक लियोनार्ड कार्नाट ने ” एक ऐसे इंजन की कल्पना की जिसमे उत्पन्न पूरी ऊष्मा का इस्तेमाल कार्य के रूप में रूपांतरित करने में किया जाए अर्थात इस इंजन में किसी भी प्रकार की ऊष्मा या उर्जा का कोई नुकसान न हो , इसे कार्नो इंजन कहा गया। “
चूँकि हम जानते है कि किसी भी युक्ति की दक्षता का 100% नहीं होती है , उसमे किसी न किसी प्रकार की ऊर्जा हानि अवश्य होती है इसलिए ही कार्नो इंजन को एक कल्पना और आदर्श ऊष्मा इंजन कहा जाता है।  लेकिन यह इंजन व्यवहार में प्राप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि किसी भी इंजन की दक्षता का मान 100% प्राप्त नहीं किया जा सकता।

कार्नो इंजन के भाग (parts of carnot engine)

कार्नो इंजन को मुख्य रूप से चार भागो में बांटा गया है जैसा चित्र में दर्शाया गया है –
1. इसके पहले भाग में आधार चालक होता है तथा इसकी दीवारें कुचालक पदार्थ की बनी होती है , इसमें कार्यकारी पदार्थ के रूप में आदर्श गैस भरी होती है तथा एक पिस्टन लगा रहता है जिसके घर्षण को शून्य माना जाता है।
2. source (स्त्रोत) : यह उच्च ताप उत्पन्न करने का साधन होता है जहाँ से जरुरत अनुसार कितनी भी ऊष्मा का भंडार उत्पन्न किया जा सकता है।
3. सिंक (sink) : यह उच्च ताप को ग्रहण करने की क्षमता रखता है , इसका ताप निम्न होता है तथा स्त्रोत का ताप उच्च होता है अर्थात स्त्रोत में उत्पन्न ऊष्मा निम्न ताप (सिंक) की तरफ गति करता है और यह उस ताप को ग्रहण कर लेता है।
4. स्त्रोत और सिंक के मध्य में एक कुचालक स्टैंड लगा रहता है जैसा चित्र में दिखाया गया है।