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callus culture definition in hindi , कैलस संवर्धन किसे कहते हैं , प्रकार , कैलस की विशेषतायें क्या है

पढ़िए callus culture definition in hindi , कैलस संवर्धन किसे कहते हैं , प्रकार , कैलस की विशेषतायें क्या है ?

निर्जर्मित संवर्धन तकनीक (Aseptic Culture Technique)

पादप ऊतक का पात्रे संवर्धन करने हेतु उसके छोटे खण्डों का उपयोग किया जाता है। जमीन में पादप के उगने पर विभिन्न कारक उसकी वृद्धि को किस प्रकार प्रभावित कर रहे हैं ज्ञात करना संभव नहीं होता है’ किन्तु पादप अंगों का पात्रे संवर्धन करने पर नियंत्रित निजर्मित अवस्थाओं में विभिन्न कारकों का पादप कर्तोतकों की वृद्धि तथा इसके विभेदन पर अध्ययन किया जा सकता है।

  1. कर्तोतकों के प्रकार

पादप खण्ड जिसका उपयोग संवर्धन हेतु किया जाता है वह कर्तोतक (explant) कहलाता है। निम्न पादप खण्ड कर्तोतक के रूप में कार्य करते हैं ।

  1. स्तंभ पर्व
  2. स्तंभ पर्व संधि
  3. स्तंभ शीर्ष
  4. कक्षस्थ कलिका
  5. पर्ण
  6. पर्ण का कोई भाग
  7. पर्ण वृन्त
  8. परागकोष
  9. कन्द
  10. परागकण
  11. अण्डाशय
  12. त्वचारोम
  13. बीज
  14. बीजाण्ड
  15. पुष्पकली
  16. मूल

(a) कर्तोतक बनाना

ऊतक संवर्धन हेतु पादप भागों को शुष्क बर्फ अथवा बर्फ में रखकर प्रयोगशाला में लाया जाता है। यहाँ उसे नल के पानी से व साबुन से धोकर निर्जर्मित किया जाता है। जो भी पादप भाग काम में लिया जाता है उसे निर्जर्मीकरण, संरोपण तथा संवर्धन के लिए उपयुक्त रहे इस आधार पर एक निश्चित में काट लिया जाता है। प्ररोह में एक या दो पर्वयुक्त भाग कर्तातक के रूप में उपयुक्त रहते

(a) कठोर बीजों का संवर्धन करना हो तो उन्हें 50% सल्फ्यूरिक एसिड से उपचारित करके उनकी प्रसुप्तावस्था भंग की जाती है। इसके बाद इन्हें लगभग दो घंटे तक पानी से धोने के बाद ही संवर्धन के लिए उपयोग में लिया जाता है।

(b) कक्षस्थ कलिका का उपयोग करने पर उसके पास से अनावश्यक पर्ण हटा दिये जाते हैं व कलिका को 70% इथेनॉल अथवा तरल डिटर्जेन्ट से धोया जाता है ।

(c) परागकण तथा सूक्ष्म बीजों को फिल्टर पेपर के छोटे बैग या अवशोषी रूई की पतली गर्त में बन्द करके निर्जमित किया जाता है 1

(d) पर्ण, गाजर, चकुन्दर कन्द के कर्तोतक तैयार करने हेतु इन्हें लैमीनर वायु प्रवाह बैंच पर निर्जमित करके इनके छोटे डिस्क समान भाग कार्क बेधक की सहायता से कर लिये जाते हैं ताकि जितने भी कर्तोतक हों उनका आकार समान रहे।

(e) प्ररोह कर्तोतक का उपयोग करने पर इसके कटे हुए दोनों शीर्ष भागों को पिघले हुए मोम से बंद कर देते हैं उसके पश्चात् इसे रोगाणुनाशी से निर्जमित किया जाता है। उसके बाद आसुत जल से अच्छी तरह धोकर इन्हें पेट्रीप्लेट या फिल्टर पेपर पर रख दिया जाता है। सूखने पर इसके दोनों सिरों पर लगे मोम वाले हिस्सों को चाकू से काट कर अलग कर देते हैं तथा आवश्यकता अनुरूप समान आकार के कर्तोतक कर लेते हैं ।

कर्तोतक निर्जमीकरण की प्रक्रिया

पादप भाग से आवश्यकता अनुरूप कर्तोतक (explant) प्राप्त करने के पश्चात् उसका निर्जर्मीकरण परम आवश्यक होता है-

  1. लैमीनर फ्लो कैबीनेट जहाँ कर्तोतक का निर्जर्मीकरण करेंगे सर्वप्रथम उसे 70% इथेनॉल से निर्जमित करते हैं तथा जो भी उपकरण उपयोग में लाये जायेंगे यथा पेट्रीप्लेट, स्केल्पल, फिल्टर पेपर आदि को भी निर्जमित किया जाता है।
  2. स्प्रिंट लैंप या गैस बर्नर को लैमीनर फ्लो की बैंच पर उपरोक्त समान के साथ रखने के बाद U.V. प्रकाश की ट्यूबलाइट जला दी जाती है जिसे आधे घंटे बाद बन्द कर दिया जाता है
  3. हाथों को इथेनॉल (70%) से धोकर सुखा लें। मास्क व कैप लगा कर बर्नर जलायें ।
  4. तीन पेट्रीप्लेट लेकर एक में 70% इथेनॉल व दो में आसुत जल डालें।
  5. पहली पेट्रीप्लेट में पादप भाग को 15-30 सैंकड तक 70% इथेनॉल में रखकर निर्जमित कर लें ।
  6. इथेनॉल से पादप भाग को चिमटी की सहायता से निकाल कर दूसरी पेट्री प्लेट में रख लेते हैं व आसुत जल में धो लेने के पश्चात् तीसरी पेट्रीप्लेट में रखे आसुत जल से भी धो लेते हैं।
  7. पादप भाग को जो निर्जमित हो चुका है या तो सूखी पेट्री प्लेट में या फिल्टर पेपर पर रखकर उसके उचित आकार के भाग ( कर्तोतक) कर लेते हैं व उन्हें पोष पदार्थ युक्त फ्लास्क में स्थानान्तरित कर देते हैं।

कैलस संवर्धन (Callus Culture)

पादप के लगभग सभी भागों को निर्जमित करके पोष पदार्थ पर संवर्धित किया जा सकता है। अगर पोष पदार्थ ठोस होता है तब कर्तोतक संवर्धन माध्यम की सतह पर वृद्धि करता है व अगर माध्यम तरल हो तो वह पोष पदार्थ के भीतर वृद्धि करता है।

कर्तोतक का संवर्धन अगार युक्त पोष पदार्थ पर करने से 2-4 सप्ताह (पादप जाति पर निर्भर) में ही असंगठित कोशिकाओं का समूह दिखाई देने लगता है। पादप वृद्धि नियामकों के प्रभाव से कोशिकायें निरंतर विभाजित होने की क्षमता रखती हैं तथा कोशिकाओं का यह समूह कैलस कहलाता है। यह विभेदित होकर मृदूतक, स्थूलकोण ऊतक व फ्लोएम आदि बना लेते हैं जो विभेदन कहलाता है।

इस कैलस को निर्जमित वातावरण में कर्तोंतक से पृथक करके नये पोष पदार्थ पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है। यह उपकल्चर (sub culture) कहलाता है व इस प्रकार कैलस को असीमित काल तक संवर्धित किया जा सकता है। कैलस संवर्धन का 4 से 6 सप्ताह बाद उपकल्चर करते हैं जबकि निलम्बन संवर्गों को 3-7 दिन बाद उपकल्चर करते हैं । पादप भाग के किसी भी जीवित भाग का कर्तोतक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कैलस निर्माण व इसके उपसंवर्धन से कोशिकाओं की पोषक आवश्यकताों के बारे में पता चलता है ।

कैलस की विशेषतायें

(i) सभी कैलस लगभग समान दिखाई देते हैं किन्तु उन्हें उसकी हार्मोन आवश्यकताओं, रंग तथा गठन (texture) के आधार पर अलग किया जा सकता है।

(ii) कुछ कैलस कोमल, भुरभुरे तथा विषम कोशिकीय होते हैं जबकि अन्य कठोर संगठित कोशिकाओं से निर्मित होते हैं ।

(iii) कैलस के ऊतक का रंग एन्थोसाइनिन की उपस्थिति में रंजकी (pigmented) होता है फिनॉलिक पदार्थों का स्त्रवण हो तो वह भूरे रंग के हो जाते हैं। सामान्यतः कैलस ऊतक हल्का पीला या सफेद रंग का होता है। कभी-कभी हरे रंग का होता है अगर उसमें क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है।

(iv) कैलस के वातन का ध्यान उसकी समुचित वृद्धि के लिए आवश्यक होता है अतः कैलस को स्वचालित रोलर से हिलाना जरूरी होता है ।

कैलस कल्चर के उपयोग

कैलस कल्चर द्वारा निम्नलिखित का अध्ययन करने में सहायता मिलती है-

(i) पादपों के पोषण का प्रकार

(ii) कोशिका, अंग विभेदन व इनका उपयोग

(ii) कायिक क्लोनों की विविधता व इनका उपयोग

(iv) कोशिका निलम्बन संवर्धन हेतु

(v) प्रोटोप्लास्ट संवर्धन हेतु

(vi) द्वितीय उपापचयों (secondary metabolities) का उत्पादन व उनका नियंत्रण

पात्रे तकनीक का वर्गीकरण

एफ. स्कूग ने 1941 में सर्वप्रथम रिपोर्ट किया कि कैलस में पात्रे अंगजनन कुछ रासायनिक पदार्थों की निशचित मात्रा के कारण होता है जैसे ऑक्सिन अधिक होने पर जड़े विकसित होग व तने का विकास कम होगा।

(i) एकल कोशिका संवर्धन : एकल कोशिका से पूर्ण पादपक तैयार होता है।

(ii) परागकोष संवर्धन: परागकण या परागकोष का पात्रे संवर्धन द्वारा अगुणित पादपक उत्पन्न करना ।

(iii) भ्रूण संवर्धन : बीजों से भ्रूण निकाल कर उन्हें पात्रे संवर्धन द्वारा तैयार करना ।

(iv) विभज्योतक संवर्धन : प्ररोह शीर्ष कक्षस्थ कलिका का पात्रे संवर्धन द्वारा पूर्ण पादपक प्राप्त करना ।

(v) कायिक भ्रूण संवर्धन : पादप की किसी भी द्विगुणित कोशिका (मूल, बीजाण्डकाय, पर्ण) आदि सेद्विगुणित भ्रूण निर्माण

(vi) अण्डाशय/बीजाण्ड संवर्धन : इसमें अण्डाशय या बीजाण्ड का पात्रे संवर्धन करके अगुणित पादप प्राप्त किये जाते हैं।

(vii) जीवद्रव्यक संवर्धन : पादप कोशिका को सैल्यूलोज एन्जाइम की सहायता से उपचारित करके भित्ति रहित करके जीवद्रव्यक प्राप्त करके इसका उपयुक्त माध्यम पर संवर्धन जीवद्रव्यक संवर्धन कहलाता है।

(viii) कोशिका निलम्बन संवर्धन : कैलस को हलित्र द्वारा हिलाये जाने पर जब इसकी कोशिकायें टूट कर कोशिका समूह या एकल कोशिकायें बना लेती हैं व इनका तरल माध्यम पर संवर्धन कोशिका निलम्बन संवर्धन कहलाता है।