Bt क्या है ? bacillus thuringiensis in hindi meaning definition Bt कपास (Bt Cotton) किसे कहते है
Bt कपास (Bt Cotton) किसे कहते है Bt क्या है ? bacillus thuringiensis in hindi meaning definition ?
आप Bt के विषय में और अधिक जानना चाहेंगे।
Bt क्या है? Bt संक्षिप्त रूप है Bacillus thuringiensis नाम का जो एक जीवाणु (बैक्टीरिया) है। इस जीवाणु को पहली बार इशिवाता (Isiwata) ने 1901 में देखा था और उसने इसका नाम Bacillus sotto रखा था। बाइनर (Berliner, 1909) के पास थुरिंजेन नगरी की एक आटा चक्की से भेजे हुए मेडिटरेनियन आटा मॉथ के कुछ लार्वे पहुंचे। इन लार्यों से उसने स्पोर (बीजाणु) बनता हुआ एक बैक्टीरिया पृथक किया और 1915 में उसको B. जीनतपदहपमदेपे नाम दिया। बाद में इस बैक्टीरियम के बहुत से प्रभेद पृथक किए गए।
B. thuringiensis की कीटनाशकी क्रिया इसमें पाए जाने वाले क्रिस्टल प्रोटीनों की विषालुता के कारण है। क्रिस्टल प्रोटीनों को विभिन्न कीटों पर उनकी चयनात्मक विषालुता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। क्रिस्टल प्रोटीनों को डिप्टेरन तथा लेपिडॉप्टेरन कीटों के प्रति विषालु पाया गया है।
तालिका 15.1 में कुछ पीड़कों के लिए प्रतिरोधी ठज फसलों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं।
तालिका 15.1 रू कुछ पारजीनी (Bt) फसल पौधे जो पीड़कों के लिए प्रतिरोधी हैं रू
फसल बाहरी जीन लक्ष्य कीट पीड़क
कपास B-t Helicoverpa armigera,Trichoplusia, Spodoptera exigua
मक्का B-t Ostrinia nubilalis
आलू B-t Leptinotarsa decemlineata, Phthorimaea operculella सोयाबीन B-t Pseudoplusia includes, Anticarsia gemmatalis
अगले भाग में हम Bt कपास का विवेचन करेंगे, आज यही फसल जहां-तहां जनता में कृषकों, शिक्षाविदों तथा शोधकर्ताओं में सबसे अधिक चर्चित फसल है।
Bt कपास (Bt Cotton) : कुछ तथ्य
Bt कपास क्या है?
यह कपास की कोई अलग किस्म नहीं है वरन् ऐसी कपास है जिसमें एक खास जीन डाला गया है। यह जीन मिट्टी के एक जीवाणु Bacillus thuringiensis से प्राप्त किया गया है, और इसीलिए इस कपास को ठज कपास का नाम दिया गया है। ऐसा जीन किसी भी अन्य फसल में डाला जा सकता है जैसे मक्का, चावल, गेहूँ में और यहां तक कि अन्य किसी भी जीवधारी में डाला जा सकता है। यह काम आनुवंशिक इंजीनियरी की प्रौद्योगिकी द्वारा किया जाता है और उससे जो जीवस्वरूप बनता है उसी को प्रचलित भाषा में GMO नाम से पुकारा जाता है – GMO अर्थात् Genetically modified organisms (आनुवंशिकतः. रूपांतरित जीव), इन्हीं को पारजीनी (transgenics) भी कहते हैं। अत: Bt कपास एक पारजीनी कपास है जिसमें एक ऐसा जीवाणु जीन डाला गया है जिससे एक विशेष प्रकार का प्रोटीन बनता है जिसे क्राई-प्रोटीन (Cry protein) का नाम दिया गया है। जब कोई कीट Bt कपास पर अशन करता है तो क्राई प्रोटीन उसके पेट में पहुंच जाता है और आमाशय के भीतर घुलकर एक विषैला रसायन प्रोटॉक्सिन (protoxin) बनाता है। यह प्रोटॉक्सिन संवेदनशील कीटों के आमाशय में विशिष्ट ग्राहियों के साथ बंधन बना लेता है और उसके कारण कोशिकाओं में सूजन आ जाती है कीट में पक्षाघात हो जाता है एवं उसकी मृत्यु हो जाती है। वास्तव में यह एक खास वर्ग के लेपिडॉप्टेरन कीटों के ही लिए विषैला होता है और उनमें भी कपास के डोंडा कृमियों के लिए ही। अन्य सभी कीट स्पीशीज जिनमें लाभकारी कीट भी हो सकते है, तथा वन्य जीवन, समुद्री जीव आदि पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और ऐसा इसलिए क्योंकि उन सभी के आमाशय में इसकी ग्राही कोशिकाएं मौजूद नहीं होतीं। इस प्रकार ठज कपास में डोंडा कृमियों के लिए एक पादपांतरिक (पद-plant) सुरक्षा प्रणाली पायी जाती है जिसका अन्य किसी भी कीट अथवा अन्य जीव जंतु पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता (चित्र 15.3)। यह एक ऐसी अंतःनिर्मित विधि है जिसके द्वारा पौधा अपने को बाहर से लगाए गए कीटनाशियों की अपेक्षा कहीं ज्यादा बेहतर सुरक्षित कर लेता है। इस बेहतर सुरक्षा के कुछ आधारभूत कारण इस प्रकार हैं रू
ऽ Bt कपास की कीट से सुरक्षा-क्षमता पौधे में सदैव उपलब्ध रहती है ताकि किसी भी समय कीट के आक्रमण को पिछाड़ा जा सके।
ऽ Bt आधारित पौधे के भीतर के टॉक्सिन की हर समय उपलब्धता के विपरीत कीटनाशक रसायनों को वर्षा के दिनों में नहीं लगाया जा सकता और लगा भी दिया जाए तो वे या तो बारिश से बह जाते हैं या तेज हवाओं से उड़ जाते हैं।
ऽ डोंडा कृमि केवल फल-धारक भागों को खाते हैं मगर कीटनाशक छिड़कने हों तो वे बेकार में ही सभी पादप भागों पर आ जमते हैं, श्यह सब बेकार की बरबादी तो है ही, साथ ही उससे पर्यावरण प्रदूषण भी होता है।
ऽ कीटनाशकों की घटिया गुणवत्ता, दोषी छिड़काव उपकरणों एवं छिड़काव विधि के कारण कीटनाशकों का प्रभाव कम होने की भी पूरी संभावना रहती है, और इन सबसे भी ऊपर की बात है प्रकृति का गड़बड़ाना पता नहीं कब कैसा मौसम रहे। इसके विपरीत Bt टॉक्सिन इन सब खामियों से मुक्त है। Bt प्रौद्योगिकी का सबसे अलग लक्षण है जीवाणु और कपास के पौधे दोनों के उपयोगी गुणधर्मों को एक साथ जोड़ देना, इसी कारण इससे पीड़क-कीटों का इतना अच्छा प्रभावकारी नियंत्रण होता है।
Bt कपास के लाभ
Bt कपास एक उपयोगी प्रौद्योगिकी है जिसमें डोंडा-कृमियों के बढ़ते जाते प्रकोप से जूझने के लिए कपास की फसल को शक्तिमान बनाने की क्षमता है। Bt कपास के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं-
ऽ छिड़कावों की संख्या बहुत कम की जा सकती है जिससे लागत कम होने के साथ-साथ रूई तथा बीजों में पीड़कनाशी के कम अवशेष होंगे।
ऽ इससे पर्यावरण प्रदूषण रुकेगा जो अन्यथा कीटनाशकों के हवा में उड़ने से होता है।
ऽ Bt कपास तथा कीटनाशकों के संयोग से कीटनाशकों की प्रभावशीलता बढ़ जाती है जिसके कारण उपज में 10-20 प्रतिशत तक की वृद्धि होती पायी गयी है।
ऽ Bt कपास द्वारा उन उपयोगी कीटों की संख्या में वृद्धि होगी जिनके द्वारा डोडाकृमियों का नियंत्रण हो सकता है।
Bt कपास की सीमाएं
Bt टॉक्सिन केवल डोंडा कृमियों पर ही प्रभावकारी होता है, अन्य कीटों अथवा रोगों पर इसका कोई असर नहीं होता। कपास पर चूसने वाले कीटों जैसे जैसिड तथा श्वेत मक्खी द्वारा भारी आक्रमण हुआ करता है जिनके प्रति Bt कपास प्रभावकारी नहीं होती। अत: केवल इस प्रकार के कीटों से ही बचाने के लिए ठज कपास को पीड़कनाशियों द्वारा ही बचाना होगा।
Bt कपास का एक अन्य इतना ही महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इससे यहां तक कि डोंडाकृमियों के लिए भी, 100 प्रतिशत सुरक्षा प्राप्त नहीं होती।
सर्वप्रथम यह स्पष्ट है कि फल बनते भागों पर अशन के उपरांत कीट तुरंत नहीं मरता और जब तक वह Bt टॉक्सिन द्वारा निष्क्रिय हो तब तक वह अनेक पुष्पकलियों को नष्ट कर चुका होता है।
इसके अलावा पीड़कनाशियों के अत्यधिक उपयोग से कीटों में कुछ कीटनाशकों के लिए प्रतिरोध बन जाना संभव है। ऐसे कीटनाशकों, जिनकी क्रियाविधि Bt टॉक्सिन की तरह होती है, के लिए प्रतिरोधी सभी कीटों में प्रसंकरण-प्रतिरोधों की प्रक्रिया के द्वारा Bt के लिए भी प्रतिरोध आने की आशा की जानी चाहिए। अत: ऐसे मामलों में, इस प्रकार के प्रतिरोधी कीटों के नियंत्रण हेतु Bt कपास को भी Bt जीन की क्रिया के साथ-साथ कुछ कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता होगी। ऐसी स्थिति में कुछ रसायनों का उपयोग करना अवश्यम्भावी होगा।
अतः स्पष्ट है कि Bt कपास के विशिष्ट गुणधर्म मात्र डोंडा कृमियों से बचाव के रूप में ही हैं और उसे किसी नस्ल के अन्य सस्य गुणधर्म के विकल्प के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। ठज को किसी भी नस्ल में जो कहीं पर अन्यथा संतोषजनक उत्पादन दे रही हो, जोड़ा जा सकता है तथा उस किस्म के ठज स्वरूप को भी उचित बुआई, परस्पर दूरी, उर्वरकों आदि की सामान्य आवश्यकताएं होंगी। कोई Bt किस्म जो अन्यथा उपयुक्त नहीं है मगर किसी क्षेत्र में बोने के लिए कही गयी है वह कीटों के कारण असफल नहीं होगी, उसकी असफलता पूर्णतरू सस्य शास्त्रीय आधार पर होगी।
Bt कपास की विश्व में आज की स्थिति
पारजीनी कपास पर संयुक्त राज्य अमेरिका में 1990 के दशक में कार्य किया जाना प्रारम्भ हुआ था, और उसका उद्देश्य था पहले तो शाकानाशी-प्रतिरोधी कपास का विकसित करना परंतु बाद में वह डोंडा-कृमि-प्रतिरोधी कपास के लिए हो गया। एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी मौनसांटो (Monsanto) ने 1996 में प्रथम Bt कपास का व्यापारीकरण किया। उसके बाद इसे मेक्सिको, आस्ट्रेलिया, चीन, आर्जेंटाइना तथा दक्षिण अफ्रीका में अपनाया गया। इस समय संयुक्त राज्य अमेरिका में कपास उगाने के 70 प्रतिशत क्षेत्र में तथा दक्षिण अफ्रीका में 40 प्रतिशत क्षेत्र में Bt कपास का इस्तेमाल किया जा रहा है एवं चीन में भी इसका क्षेत्र बढ़ता जा रहा है। दो वर्ष के क्षेत्र परीक्षण के बाद भारत ने भी मौनसांटो-मैहाइकों (Monsanto-Mhayco) संयुक्त कम्पनी को भारत में Bt कपास के व्यापारीकरण को भंजूरी दे दी है। यद्यपि बाहरी देशों में Bt कपास पारम्परिक किस्मों में उपलब्ध है, मगर भारत में यह अभी तक संकरों (hybrids) के रूप में ही मिलती है। चूंकि कपास में पर्यावरण संवेदनशीलता अधिक मात्रा में पायी जाती है तथा भारत में कपास की खेती वाले क्षेत्रों में अति विभिन्नताशील जलवायु परिस्थितियां होती हैं, इसलिए समूचे देश के भीतर कपास की कोई एक अकेली किस्म सफल नहीं है। पिछले दो वर्षों के परीक्षणों के आधार पर मौनसांटो-मैहाइको ने Bt आधारित दो संकर किस्मों की पहचान की है जिन्हें मध्य एवं दक्षिण भारत के राज्यों में बिक्री हेतु पहुंचाया जाएगा परंतु उत्तरी राज्यों के लिए इनमें से कोई भी उपयुक्त नहीं है। यही कम्पनी शीघ्र ही पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान में Bt आधारित एक उपयुक्त संकर को बाजार में लाने की योजना बना रही है।
IPM में Bt कपास
Bt कपास का सर्वाधिक व्यावहारिक उपयोग IPM के अपनाने में है जिसमें Bt कपास के अंतःपादपी प्रतिरोध द्वारा एक मजबूत नींव प्रदान होगी। इसमें उपयुक्त सस्य उपायों द्वारा बढ़ोतरी लायी जाएगी, जैसे कि समय पर बुआई करना, उर्वरकों का पर्याप्त उपयोग एवं पीड़कनाशियों का आवश्यकता-आधारित उपयोग। ठज कपास से वास्तव में IPM को अपनाने का एक आरम्भ-बिंदु मिलेगा, क्योंकि IPM ही ऐसी एकमात्र विधि है जिसके द्वारा पीड़कनाशियों का केवल आवश्यकतापरक उपयोग होगा एवं कृषि लागत में कमी लायी जा सकती है, और उसी से कपास की खेती सस्ती हो सकेगी एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा बन सकेगी।
इस समय आवश्यकता है कि ठज कपास की खेती का बेहतर नियमन किया जाए जिसके लिए कानूनी हस्तक्षेप एवं नीति परिवर्तन आवश्यक है।
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