bronsted lowry theory in hindi ब्रॉन्स्टेड लोरी सिद्धांत क्या है अम्ल तथा क्षार की अवधारणा लिखिए
जानिये bronsted lowry theory in hindi ब्रॉन्स्टेड लोरी सिद्धांत क्या है अम्ल तथा क्षार की अवधारणा लिखिए ?
ब्रन्सद तथा लौरी सिद्धान्त (Bronsted Lowry theory)
जे. एन. ब्रन्सटेद तथा टी. एम. लोरी ने 1923 में बताया कि किसी अम्ल-क्षारक अभिक्रिया की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति के लिए प्रोटॉन का स्थानान्तरण होता है। इस आधार पर परिभाषा देते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि एक अम्ल वह पदार्थ है जिसमें किसी अन्य पदार्थ. को प्रोटॉन देने की प्रवृत्ति पाई जाती है तथा एक क्षारक वह पदार्थ है जो किसी अन्य पदार्थ से प्रोटॉन ग्रहण कर सके। इस परिभाषा की विशेषता यह है कि इसमें विलायक को महत्व नहीं दिया गया है। इस प्रकार यह सिद्धान्त किसी भी विलायक के लिए या विलायकहीन अभिक्रिया के लिए लागू होता है।
यद्यपि अम्ल-क्षारक की यह परिभाषा आर्रेनियस की परिभाषा से बहुत अधिक भिन्न नहीं है तो भी जल के अतिरिक्त अन्य माध्यमों में होने वाली बहुत सी अभिक्रियाएँ इस परिभाषा के अन्तर्गत आ जाती हैं और इस प्रकार यह परिभाषा अम्ल-क्षारक के पहले से अधिक क्षेत्र में लागू होती हैं क्योंकि क्षारक, आर्रेनियस परिभाषा की भांति हाइड्रॉक्सिल यौगिकों तक ही सीमित नहीं हैं अपितु कोई भी प्रोटॉन ग्रहण करने की क्षमता रखने वाला पदार्थ क्षारक होगा। इस प्रकार, HCl गैस को जल में घोलने पर यह अपना प्रोटॉन जल को दे देता है जिससे इस अभिक्रिया में HCI एक अम्ल तथा जल एक क्षारक है। जल में अमोनिया गैस घोलने पर NH3 जल से एक प्रोटॉन ग्रहण करती है जिससे यहाँ जल एक अम्ल की भांति आचरण करता है:
HCI + H2O → H3O+ + CI (HCI अम्ल तथा H2O क्षारक के रूप में)
NH3 + H2O ====` NH4 + OH (NH3 क्षारक तथा H2O अम्ल के रूप में)
दूसरे शब्दों में, किसी पदार्थ का अम्ल या क्षारक होना अभिक्रिया में उसकी भूमिका पर निर्भर करता है। आर्रेनियस सिद्धान्त के अनुसार किसी पदार्थ को अम्ल या क्षारक की संज्ञा दी जा सकती है तथा इसके लिए अभिक्रिया व माध्यम के विवरण की कोई आवश्यकता नहीं होती। लेकिन ब्रन्सटेद-लोरी सिद्धान्त के अनुसार अभिक्रिया का सम्पूर्ण विवरण देने पर ही क्रियाकारकों का अम्ल या क्षारक के रूप में विभेद किया जा सकता है। एक अन्य उदाहरण में HNO3जलीय माध्यम में एक प्रबल अम्ल है। लेकिन H2SO3 में, जो कि एक प्रबल प्रोटॉन दाता है। यह HNO3 को प्रोटॉन देकर H2 NO3+ बनाता है। प्रोटॉन ग्रहण करने के कारण HNO3 जो कि जलीय माध्यम में एक प्रबल अम्ल है, H2 SO4 माध्यम में एक क्षारक है:
HNO3 + H2O → H3O+ + NO3
अम्ल क्षार
HNO3+ + H2 SO4 H2NO3 + HSO4
अम्ल क्षार
यह आवश्यक नहीं है कि उदासीन अणु ही अम्ल या क्षारक की श्रेणी में आते हैं; बहुत से आन भी अम्ल या क्षारक हो सकते हैं। उदाहरणार्थ, निम्न अभिक्रियाओं में प्रथम क्रियाकारक अम्ल हैं :
HNO3 + H2O → H3O+ + NO3
NH4++ OH- H2O + NH3
H3O+ + CH3COO
HSO4®+H2O CH3COOH + H2O
HSO4 + H2O H3O+ + SO22-
संयुग्मी अम्ल-क्षारक युग्म (Conjugate acid-base pair) :- ब्रन्सटेद – लौरी सिद्धान्त के अनुसार एक अम्ल एक प्रोटॉन दाता पदार्थ है। अतः इसे HA, HB इत्यादि सूत्र से दर्शाया जा सकता है जिसका आयनन निम्न प्रकार होगा :
A-एक प्रोटॉन विहीन पदार्थ है जिसमें प्रोटॉन ग्रहण करके HA अम्ल बनाने की प्रवृत्ति पाई जाएगी। इस प्रकार, A- एक क्षारक है जो HA अम्ल से प्राप्त होता है। A को HA का संयुग्मी क्षारक तथा HA A – को संयुग्मी अम्ल-क्षारक युग्म कहते हैं जिनमें मात्र एक प्रोटॉन का अन्तर पाया जाता है तथा इनके मध्य एक साम्य होता है। लेकिन जब HA अम्ल की किसी क्षारक (B) से अभिक्रिया कराई जाती है तो यह HA से प्रोटॉन ग्रहण कर HB बना देता है जिसमें प्रोटॉन देने की प्रवृत्ति पाई जायेगी, अर्थात् क्षारक B द्वारा HB अम्ल का निर्माण होता है। दूसरे शब्दों में, ये दोनों (B तथा HB ) संयुग्मी क्षारक अम्ल युग्म का निर्माण करते हैं। यहाँ यह बता देना उचित है कि एक अम्ल तथा संयुग्मी अम्ल में तथा क्षारक व संयुग्मी क्षारक में कोई मूलभूत अन्तर नही होता है- एक संयुग्मी अम्ल एक अन्य सामान्य अम्ल है तथा एक संयुग्मी क्षारक्र एक अन्य सामान्य क्षारक है। उपर्युक्त वक्तव्य को निम्न समीकरणों द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है-
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि प्रोटॉन का स्थानान्तरण अभिक्रिया के दोनों ओर लगातार होता रहता है जिससे क्रियाकारक एवं उत्पादों के बीच एक गतिशील (dynamic) साम्य स्थापित हो जाता है।
संयुग्मी अम्ल-क्षार युग्म की संकल्पना को स्पष्ट करने के लिए हम HCI तथा NH3 गैसों के जल मैं घुलने की क्रिया पर एक बार फिर से विचार करते हैं। HCI अपना प्रोटॉन जल को देकर स्वयं C में परिवर्तित हो जाता है। अतः HCI एक अम्ल है जिसका CI संयुग्मी क्षारक है। H3 O अणु HCI से एक प्रोटॉन ग्रहण करके H2 O’ बनाता है। अतः यहाँ H2O एक क्षारक है जिसका संयुग्मी अम्ल HOT है | अभिक्रिया की विपरीत दिशा पर यदि विचार करे तो हम पाते हैं कि H, O आयन अपना प्रोटॉन CI को देकर HO में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार H2 O’ अम्ल तथा H2 O सयुग्मी – क्षारक है। यहाँ C) आयन प्रोटॉन ग्रहण करने के कारण एक क्षारक है जिसका HCI सयुग्मी अम्ल है।
अमोनिया की जल के साथ अभिक्रिया में NH3 प्रोटॉन ग्रहण कर NH4+ आयन बनाता है जो इस कारण से क्षारक NH3 का संयुग्मी अम्ल है। यहाँ H2 O प्रोटॉन दाता होने के कारण एक अम्ल हैं जो संयुग्म क्षारक OH- बनाता है।
उपर्युक्त समीकरणों में ‘अम्ल’ तथा ‘क्षारक’ शब्दों के साथ दोनों ओर अद्योक्षर के रूप में 1 व 2 संख्याएँ लिखी गई हैं। समान संख्या एक संयुग्मी अम्ल-क्षारक युग्म प्रदर्शित करती है। उदाहरण के लिए HCI को अम्ल लिखा गया है। अतः दायीं ओर इसके संयुग्मी क्षारक CI के साथ भी यही संख्या क्षारक, लिखी गई हैं। H2O तथा H3 O+ आयन दूसरे संयुग्मी युग्म का निर्माण करते है अतः इन्हें भी समान संख्या 2 द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
संयुग्मित युग्म के अम्ल व क्षारक की सामर्थ्य एक दूसरे पर निर्भर करती है। सामान्यतः जितना अधिक प्रबल एक अम्ल होगा उतना ही दुर्बल उसका संयुग्मित क्षारक होगा। जितना प्रबल एक क्षारक होगा उतना ही दुर्बल उसका संयुग्मित अम्ल होगा। हम देखते हैं कि समीकरण में दोनों ओर अम्ल तथा क्षारक विद्यमान हैं, अभिक्रिया की उस दिशा में गतिशील होने की अधिक प्रवृत्ति पाई जायेगी जिससे दुर्बल संयुग्मी अम्ल व क्षारक का निर्माण हो। इस कारण से प्रबल अम्ल तथा प्रबल क्षारक के मध्य अभिक्रिया तेजी से होती है क्योंकि इनके संयुग्मी क्षारक तथा अम्ल दुर्बल होते हैं। दूसरी ओर, यदि किसी दुर्बल अम्ल में दुर्बल क्षारक डाला जाये तो उनके मध्य अभिक्रिया बहुत धीमी गति से होगी क्योंकि अभिक्रिया के फलस्वरूप प्रबल प्रकृति के संयुग्मी क्षारक तथा संयुग्मी अम्ल का निर्माण होता है
ब्रन्सटेद-लौरी के उपर्युक्त विवेचन में निम्न बिन्दु विशेष ध्यान देने लायक हैं : (i) एक पदार्थ अम्ल की भांति आचरण तभी कर सकेगा जब कोई दूसरा पदार्थ प्रोटॉन ग्रहण कर सके अर्थात् यदि अम्ल के साथ क्षारक उपस्थित है। उदाहरण के लिए, HCIजल में अम्ल की भांति इसलिए आचरण करता है क्योंकि जल ( एक क्षारक) इससे प्रोटॉन ग्रहण कर सकता है लेकिन इसी HCI को बैन्जीन में विलेय करने पर यह अम्लीय गुण प्रदर्शित नहीं करता है क्योंकि बेंजीन इससे प्रोटॉन ग्रहण नहीं कर सकता है।
(ii) अणु, धनायन तथा ऋणायन अम्ल तथा क्षारक हो सकते हैं। उपर्युक्त उदाहरणों में HCI NH4+, H3O+ तथा HSO4 अम्ल हैं। इसी प्रकार NH3 OH–, CI– CO3 2- क्षारकों के उदाहरण है।
उदाहरणस्वरूप कुछ अम्ल तथा क्षारक एवं उनके संयुग्मी क्षारक व अम्ल सारणी 6.1 में प्रदर्शित किये गये हैं।
प्रोटॉन बन्धाकता (Proton Affinity).
गैसीय अवस्था में किसी क्षारक की क्षारकता का मात्रात्मक पैमाना उसकी प्रोटॉन बन्धुकता से दिया जा सकता है। क्योंकि किसी यौगिक/आयन की क्षारकता उसकी प्रोटॉन ग्रहण करने की क्षमता होती है। ”गैसीय अवस्था में एक मोल क्षारक (B) द्वारा प्रोटॉन ग्रहण करने पर जो ऊर्जा निकलती है वह क्षारक की प्रोटॉन बन्धुकता (PA) कहलाती है।
B (गैस) + H+ (गैस) → BH+ (गैस) + P.A
क्योंकि ऋणायन भी क्षारक हैं, इसकी प्रोटॉन बन्धुकता 1 मोल गैसीय ऋणायन के एक मोल प्रोटॉन के साथ संयुक्त होने पर मुक्त हुई ऊर्जा होगी।
X – (गैस) + H + (गैस) > H+ X – (गैस) + P.A.
H+ X – गैस के निर्माण में होने वाले ऊर्जा में परिवर्तन को निम्न बार्न – हाबर चक्र की सहायता से दिखाया जा सकता है जिसमें H का आयनन विभव I, X की इलेक्ट्रॉन बंधुतकता E, X- की प्रोटॉन बंधुकता PA तथा H व X परमाणु से HX – की निर्माण ऊर्जा D है ।
इस ऊपर दिये गये चक्र की सहायता से ज्ञात किये गये हाइड्राइड, हेलाइड तथा अन्य ऋणायनों की प्रोटॉन बन्धुकताऍ अन्य उदासीन यौगिकों (क्षारकों) की प्रोटॉन बन्धुकता के साथ सारणी 6.2 में दी गयी हैं।
उपरोक्त सारणी को ध्यान से देखने पर हम पाते है कि ऋणायनों की प्रोटॉन बन्धुकता समूह में नीचे जाने पर (आकार बढ़ने पर ) घटती है इस प्रकार समूह Vth, VIth तथा VIIth में ऋणायनों की प्रोटॉन बन्धुकता का क्रम क्रमश: NH2-> PH2-> AsH2; OH-> SH-> HSe- तथा F-> Cl-> Br>I-होता है। स्पष्ट है कि किसी समूह में ऋणायनों का क्षारीय लक्षण आकार बढ़ने पर घटता जाता है। दूसरी ओर इनके संयुग्मी अम्लों का अम्लीय गुण बढ़ता जाता है क्योंकि संयुग्मी अम्ल का अम्लीय लक्षण क्षार के क्षारीय गुण पर निर्भर करता है। क्षार जितना दुर्बल होगा उसका संयुग्मी अम्ल उतना ही प्रबल होगा। इस प्रकार उपर दिये गये ऋणायनों के संयुग्मी अम्लों के अम्लीय लक्षण का क्रम क्रमशः NH3 < H2O < HF; NH3 < PH3 < AsH3; H2O < H2se < HF < HCI < HBr < HI होगा
प्रोटॉन बन्धुकता के आकड़ों का उपयोग गैसीय अवस्था में अभिक्रियाओं की दिशा तथा उनके होने की सम्भावना का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है। इस विषय में दिशा निर्देशक नियम यह है कि अधिक प्रोटॉन बन्धुता मान वाला क्षारक कम प्रोटॉन बन्धुकता वाले क्षारक से आसानी से प्रोटॉन ग्रहण कर लेता है। उदाहरण के लिए गैसीय NH+ आयनों की गैसीय OH- आयनों से क्रिया करने पर H+ आयन अमोनिया (PA, 858k J / mol) को छोड़ कर OH- आयन, जिसकी प्रोटॉन बन्धुकता अधिक है (1635kJ/mol), से जुड़ जाता है तथा H2O बनाता है।
NH4++OH- → NH3 + H2O
1635 858 (PA, kJ / mol)
इसी प्रकार, N2 H+ गैसीय जल से क्रिया करके N2 गैस तथा हाइड्रोनियम आयन बनाता है क्योंकि H2O की प्रोटॉन बन्धुकता (724kJ/mol) N2 की प्रोटॉन बन्धुकता (475kJ/mol) से अधिक होती है। जिसके कारण H2O N2H’ से प्रोटॉन लेकर N2 मुक्त करता है तथा हाइड्रोनियम आयन बनाता है।
उदाहरण 1. निम्न अभिक्रियाओं में से कौन सी अभिक्रिया होगी? नीचे दिये प्रोटॉन बन्धुकता के आकड़ों से ज्ञात कीजिए ।
Which of the following reactions will occur? Explain using the following proton affinity data:
NH3 = 858, PH3 = 800 एवं (CH3 )3 P = 950kJ /mol
NH4++PH3 -→ PH4 +NH3 ……………………….(1)
PH4++NH3 NH4+ + PH3 …………………………(2)
NH4++(CH3)3P → (CH3)3 PH+ + NH3
उपर दी गयी अभिक्रियाओं में अभिक्रिया (i) गैसीय अवस्था में नहीं होगी क्योंकि PH3 की प्रोटॉन बन्धुकता (800) अमोनिया (858) की तुलना में कम है अतः यह NH3 से प्रोटॉन नहीं ले पायेगी। जिसके कारण यह अभिक्रिया नहीं होगी ।
अभिक्रिया (ii) में अमोनिया PH4+ से प्रोटॉन ग्रहण कर NH4 + बना लेगी क्योंकि NH3 की प्रोटॉन बन्धुकता PH3 से अधिक है।
अभिक्रिया (iii) में क्योंकि (CH3)3 P की प्रोटॉन बन्धुकता NH3 से अधिक है अतः यह NH4 ‘आयन से प्रोटॉन ग्रहण कर (CH3)3 PH’ बनायेगी ।
इस प्रकार अभिक्रिया (i) नहीं होगी परन्तु (ii) एवं (iii) अभिक्रियाऐं होंगी ।
उदाहरण 2. समझाइये यदि PA का मान NH3 = 858, PH3 = 800 एवं (CH3 )3 P = 950kJ/ Mol हो तो निम्न अभिक्रियाओं में क्या उत्पाद बनेंगे।
Explain if the PA values are NH3 = 854, PH, = 800 and (CH3 ) 3 P = 950kJ/mol then what will be products of following reactions:-
(i) PH3 + NH4+
(ii) (CH3)3P + NH4+
उत्तर- अभिक्रिया (i) में PH3 की PA का मान NH3 से कम है अतः PH3 गैसीय अवस्था में आयन से प्रोटॉन नही ले सकता अतः अभिक्रिया नहीं होगी ।
अभिक्रिया (ii) में (CH3 ) 3 P की PA का मान NH3 से अधिक होने के कारण यह NH4 + आयन जो कि NH3 तथा H+ के मिलने से बना है, में से NH3 से प्रोटॉन ले कर (CH3)3 PH+ बनायेगा तथा सह उत्पाद के रूप में अमोनिया मुक्त होगी अर्थात-
(CH3)3P + NH4*
→ (CH3)3 PH* + NH3
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