विश्नोई सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे ? bishnoi community established in hindi founder name
bishnoi community founder name विश्नोई सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे ? bishnoi community established in hindi founder name ?
प्रश्न: विश्नोई सम्प्रदाय
उत्तर: संत जाम्भोजी [Shree Guru Jambeshwar (1451-1536)] द्वारा 15वीं सदी में निर्गुण भक्ति सम्प्रदाय की 29 (20़9) नियमों पर आधारित एक शाखा मुकाम तालवा (बीकानेर) में स्थापित की। इसके अनुयायी विश्नोई कहलाये जो अधिकांश जाट रहे हैं।
प्रश्न: गौड़ीय सम्प्रदाय
उत्तर: गौरांग महाप्रभु द्वारा स्थापित एवं गौड़ीय स्वामी द्वारा प्रचारित वैष्णव धर्म में कृष्ण भक्ति की एक शाखा जिसमें भक्ति घ नृत्य कीर्तन विशेष है राजस्थान में जयपुर एवं करौली इसके प्रमुख केन्द्र है।
प्रश्न: रामावत सम्प्रदाय
उत्तर: रामानुज के शिष्य रामानन्द द्वारा प्रचारित वैष्णव धर्म में रामभक्ति की शाखा की स्थापना में कृष्णदास पयहारी स्वामी ने गलता में की जिसमें युगल सरकार (सीता-राम) की श्रृंगारिक जोडी की पूजा की जाती है।
प्रश्न: रामस्नेही सम्प्रदाय
उत्तर: रामानन्द शिष्य परम्परा द्वारा प्रवर्तित रामावत सम्प्रदाय की एक निर्गण भक्ति शाखा रामस्नेही सम्प्रदाय कहलायी। रामदास जी सिंहथल खेडापा में, दरियावजी ने रैण में एवं रामचरणजी ने शाहपुरा में इसकी मुख्य पीठ स्थापित की।
प्रश्न: जसनाथी सम्प्रदाय
उत्तर: संत जसनाथ जी द्वारा 15वीं सदी में सिद्ध सम्प्रदाय की 36 नियमों पर आधारित ज्ञानमार्गी शाखा जसनाथी सम्प्रदाय की स्थापना कतरियासर (बीकानेर) में की। जसनाथी सम्प्रदाय के अधिकांश अनुयायी जाट हैं।
प्रश्न: दादू पंथ
उत्तर: संत दादू द्वारा 16वीं सदी में निर्गुण निराकार भक्ति सम्प्रदाय की स्थापना नरायना (जयपुर) में की। इसके अनुयायी दादू पंथी कहलाये जो गुरुकृपा द्वारा मोक्ष प्राप्ति, निर्गुण ब्रह्म की उपासना एवं ज्ञानमार्ग का अनुसरण करते हैं।
प्रश्न: लालदासी सम्प्रदाय
उत्तर: अलवर के संत लालदास जी द्वारा निर्गुण भक्ति की एक शाखा लालदासी सम्प्रदाय की स्थापना धोली दूव (अलवर) में की जिसमें नैतिकता एवं चरित्र बल, साम्प्रदायिक – सौहार्द्ध एवं समानता पर जोर दिया गया है।
प्रश्न: चरणदासी सम्प्रदाय
उत्तर: अलवर के संत चरणदासजी द्वारा राजस्थान में निर्गुण-सगुण भक्ति परम्परा की शाखा दिल्ली में स्थापित की जिसमें निर्गुण निराकार ब्रह्म की सखी भाव से सगुण भक्ति की जाती है।
प्रश्न: परनामी सम्प्रदाय
उत्तर: जामनगर के संत प्राणनाथ द्वारा प्रचारित निर्गुण भक्ति परम्परा की एक शाखा जिसमें विभिन्न सम्प्रदायों के उत्कृष्ट मूल्यों का समन्वय कर, प्रचारित सम्प्रदाय को परनामी सम्प्रदाय नाम दिया गया।
प्रश्न: अलखिया सम्प्रदाय
उत्तर: चुरू के स्वामी लालगिरि द्वारा 10वीं सदी में प्रचारित निर्गुण भक्ति सम्प्रदाय की एक शाखा जिसकी प्रमुख पीठ बीकानेर में स्थापित की। वे अलख निरंजन का उद्घोष करते हैं।
प्रश्न: संत पीपाजी
उत्तर: गागरोन के खींची राजपूत एवं रामानन्द के शिष्य संत पीपा ने निर्गुण भक्ति, गुरुकृपा से मोक्ष का प्रचार एवं भेदभाव का विरोध कर राजस्थान में भक्ति परम्परा का शुभारम्भ किया।
प्रश्न: संत धन्नाजी
उत्तर: राजस्थान के प्रमुख संत रामानन्द के शिष्य टोंक के धन्नाजी जाट ने धर्मोपदेश एवं भागवत भक्ति, संतों की सेवा, ईश्वर में आस्था का प्रचार कर भक्ति आंदोलन को आगे बढ़ाया।
प्रश्न: संत सुन्दरदास जी
उत्तर: दादजी के शिष्य संत सुन्दरदास ने प्रेम व नैतिकता, जात-पात की निस्सारता व सत्य संयमित जीवन पर जोर देकर निर्गण निरंकार रूप में उपासना कर सगुण व निर्गुण परम्परा का समन्वय किया तथा बेणेश्वर धाम की स्थापना की।
प्रश्न: दयाबाई
उत्तर: श्री केशव की पुत्री दयाबाई ने संत चरणदास से दीक्षा ली थी। दयाबाई की साधना सहजाबाई के साथ हुई थी। इन्होंने दयाबोध ग्रन्थ की रचना की थी। राधाकृष्ण भक्ति की उपासिका दयाबाई का समाधि स्थल बिठूर में बना हुआ है।
प्रश्न: सहजोबाई
उत्तर: सहजोबाई राधाकृष्ण भक्ति की संत नारी थी। इन्होंने सोलह तिथि, सहज प्रकाश इत्यादि ग्रन्थ की रचना की थी। ये भक्ति चरणदासी मत की प्रमुख संत नारी है।
प्रश्न: भोली गूजरी
उत्तर: चमत्कारिक सिद्धियाँ प्राप्त भोलीगूजरी कृष्ण के मदनमोहन स्वरूप् की भक्ता संत नारी थी। ये मूलतः करौली के बुगडार गाँव की थी।
प्रश्न: ज्ञानमति बाई
उत्तर: सात चरणदास की परम्परा के आत्माराम आश्रा की संत नारी ज्ञानमतिबाई का मुख्य कर्मक्षेत्र जयपुर के गज गौरक्षेत्र में रहा है। इनकी 50 वाणियाँ प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न: रानी रत्नावती
उत्तर: भावगढ़ के महाराजा माधोसिंह की महारानी रत्नावती कष्ण प्रेमापासिका थी। रानी रलावती के प्रभाव से ही महाराजा माधो सिंह व उनका पुत्र छत्र सिंह (प्रेम सिंह) भी वैष्णव हो गये थे।
प्रश्न: करमा बाई
उत्तर: वर्तमान अलवर जिले की गढी मामोड की करमाबाई विधवा जीवन में कृष्णोपासिका बन गई एवं सिद्धावस्था को प्राप्त किया था।
प्रश्न: गंगा बाई
उत्तर: कृष्ण भक्ति की पुष्टिमार्गी गंगाबाई गोस्वामी विठलनाथ की शिष्या थी। जतीपुरा से श्रीनाथ की मूर्ति नाथद्वारा (सिंहाड) लायी गई थी तथा गंगाबाई राजस्थान आयी थी। ये भक्त कवयित्री थी।
प्रश्न: संत करमेती बाई
उत्तर: खण्डेला के श्री परशुराम कांथड़िया की पुत्री करमेती बाई कृष्णभक्ति की संत नारी थी। करमेती बाई ने वृन्दावन के ब्रह्मकुण्ड में साधना की थी। करमेती बाई की स्मृति में ठाकुर बिहारी का मन्दिर खण्डेला ठाकुर साहब ने बनवाया था।
प्रश्न: संत गवरी बाई
उत्तर: ‘बागड़ की मीरा‘ के नाम से प्रसिद्ध संत गवरी बाई ने भी कृष्ण को पति रूप में स्वीकार कर कृष्ण भक्ति की थी। डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने गवरी बाई के प्रति श्रद्धास्वरूप बालमुकुन्द मन्दिर का निर्माण करवाया था। गवरी बाई ने अपनी भक्ति में हृदय की शुद्धता पर बल दिया था।
प्रश्न: संत भूरीबाई अलख
उत्तर: ये मेवाड़ की महान् संत महिलाओं में गिनी जाती हैं। वर्तमान उदयपुर जिले के सादरगढ़ में जन्मी भूरीबाई नाराबाई के प्रभाव से वैराग्यमयी हो गई थी। भूरीबाई ने निर्गुण-सगुण भक्ति के दोनों रूपों को स्वीकारा था। भूरीबाई उदयपुर की अलारखं बाई तथा उस्ताद हैदराबादी के भजनों से प्रभावित थी। भूरीबाई मायाभील द्वारा बनाई कुटी जो खेत में बनी हुई थी, में साधना करती थी।
प्रश्न: संत समान बाई
उत्तर: भक्त रामनाथ कविराय की बेटी समान बाई कृष्ण उपासिका थी। इन्होंने आँखों पर पट्टी बाँध कर कृष्ण साधना की थी। ये अलवर के माहुँद गाँव की थी।
प्रश्न: संत कर्मठी बाई
उत्तर: बागड़ के काथेरिया पुरुषोत्तम की पुत्री कर्मठी बाई ने गोस्वामी हित हरिवंश से दीक्षा ली थी। इन्होंने वृन्दावन में भक्ति साधना की थी। इनका उल्लेख रसिक अनन्य माल, परचावली तथा भक्त गाथा इत्यादि ग्रन्थों में मिलता है।
प्रश्न: संत जनखुसाली बाई
उत्तर: हल्दिया अखेराम की शिष्या जनखुसाली बाई ने अटल बिहारी मन्दिर में साधना की थी। इन्होंने ‘सन्तवाणी‘ ‘गुरुदौनाव‘ तथा ‘अखैराम‘ संग्रह की प्रतिलिपियों की रचना की थी। जनखुसाली बाई ने लीलागान तथा हिण्डोरलीला की मल्हार राग में छन्द रचना की थी। साधु महिमा तथा बन्धु विलास में इनके यशोगान हुए थे।
प्रश्न: संत करमाबाई
उत्तर: ये नागौर जिले की रहने वाली थी और जाट जाति में जन्मी थी। करमा भगवान जगन्नाथ की भक्त कवयित्री थी। मान्यता है कि भगवान ने उनके हाथ से खीचड़ा खाया था। उस घटना की स्मृति में आज भी जगन्नाथ पुरी में भगवान को खीचड़ा परोसा जाता है।
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