कारपोरेट क्षेत्र के लाभ क्या है | कॉरपोरेट क्षेत्र के फायदे नुकसान हानियाँ सीमाएँ कमियाँ benefits of corporate sector in hindi
benefits of corporate sector in hindi merits and demerits कारपोरेट क्षेत्र के लाभ क्या है | कॉरपोरेट क्षेत्र के फायदे नुकसान हानियाँ सीमाएँ कमियाँ ?
कारपोरेट क्षेत्र के लाभ
इस तथ्य कि आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के विकास में कारपोरेट क्षेत्र ने महत्त्वपूर्ण योगदान किया है का खंडन नहीं किया जा सकता है। उनकी संरचनात्मक ढाँचे के अन्तर्निहित गुणों के कारण कारपोरेट कंपनियों के अन्य की तुलना में अनेक लाभ हैं। यही कारण है कि रुग्ण गैर-कारपोरेट कंपनियों के लिए जहाँ बहुधा पेशेवर प्रबन्धन की कमी को खराब कार्य निष्पादन के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है वहीं बहुधा निगमीकरण को रामबाण के रूप में देखा जाता है। भारत में, हाल में, हम विशेष रूप से आधारभूत संरचना क्षेत्र में अभी तक के विभागीय कार्यकलाप को निगमीकरण की दिशा में धीमी किंतु निरंतर बढ़ते हुए देखते हैं। निजी कारपोरेट कंपनियों की कुछ विशिष्ट विशेषताओं और उनके लाभों के संबंध में नीचे चर्चा की गई है।
जैसा कि इस इकाई के, ऊपर भाग 15.1 में उल्लेख किया गया है, निजी कारपोरेट क्षेत्र की कंपनियों को परिभाषा के अनुसार ‘‘संयुक्त स्टॉक कंपनी‘‘ कहा जाता है। संयुक्त स्टॉक कंपनियाँ जैसे ‘‘निगम‘‘ और ‘‘पंजीकृत कंपनियाँ‘‘ वैध अस्तित्व हैं, जिनकी स्थापना कानून के द्वारा हुई है तथा जिसका अपना अस्तित्व स्वामी सदस्यों के अस्तित्व से अलग और स्वतंत्र है। कानून के उपबंध इन संगठनों को इसके सदस्यों (निवेशकों) से दूसरों को (अन्य निवेशक) शेयरों के अंतरण की अनुमति प्रदान करते हैं। दूसरे शब्दों में, कानून शेयरधारकों के जीवन और कार्यकाल से स्वतंत्र कंपनी का अस्तित्व सुनिश्चित करता है। इस प्रकार, एक तरह से, कारपोरेट अस्तित्वों (निगमों और कंपनियों) की निरन्तर उत्तरजीविता है, जो दीर्घकाल तक व्यवसाय और मूल्य संवर्धन कार्यकलापों के जारी रहने की गारंटी करता है। इसलिए, दूसरे प्रकार के फर्मों से भिन्न, अपने शेयरधारकों के जीवनकाल से परे होकर निजी कारपोरेट कंपनियाँ अपने वाणिज्यिक और औद्योगिक कार्यकलापों को अत्यावश्यक स्थायित्व प्रदान करती है।
एक निजी कारपोरेट कंपनी सहभागी निवेशकों को स्वामित्व अधिकार के रूप में शेयर जारी करके उनसे पूँजी एकत्र करती है। चूंकि संभावित निवेशक, जो स्वामित्व अधिकारों के लिए शेयर खरीदता है, के मिलने की अधिक संभावना होती है, संयुक्त स्टॉक कंपनियों अथवा कारपोरेट कंपनियों की वित्तीय स्थिति दूसरे प्रकार के संगठनों की अपेक्षा अधिक सुदृढ़ होती है। अधिकांश निजी कारपोरेट कंपनियाँ ‘‘सीमित‘‘ दायित्व वाली होती हैं। कंपनियों में दायित्वों को या तो शेयर अथवा गारंटी के माध्यम से ‘‘सीमित‘‘ किया जा सकता है। जब कंपनियों का दायित्व सीमित होता है तब एक निवेशक अथवा शेयरधारक का जोखिम निवेशक द्वारा धारित शेयरों के अंकित मूल्य की सीमा अथवा निवेशक द्वारा दिए गए गारंटी की प्रतिबद्धता की सीमा तक घट जाता है। इसके अलावा, संयुक्त स्टॉक कंपनियाँ अपने निगमन/सृजन की विधि के कारण से शेयरों के स्वामित्व के अंतरण की अनुमति प्रदान करती हैं। एकल शेयरों के अंतरण का तंत्र निवेशकों को न सिर्फ सम्पत्ति में मूल्य वृद्धि, जब भी शेयर के मूल्यों में वृद्धि होती है, का लाभ उठाने की स्वतंत्रता प्रदान करती है अपितु, किसी भी संगठन से पृथक् होने की आजादी भी प्रदान करती है। इसलिए, कारपोरेट क्षेत्र की यह सारभूत विशेषता किसी भी दूसरे प्रकार के संगठनों की तुलना में अधिक सहभागिता को आकर्षित करती है। बड़ी संख्या में शेयरधारकों की सहभागिता से वित्तीय आधार व्यापक बनता है जो मूल्य सवंर्द्धित कार्यकलापों के विस्तार और विविधिकरण के लिए कंपनी को अधिक क्षेत्र और अवसर प्रदान करता है। बड़ी संख्या में शेयर धारकों की सहभागिता की संभाव्यता से व्यावसायिक स्वामित्व का प्रजातंत्रीकरण भी होता है और इससे कुछ हाथों में संपत्ति के केन्द्रीकरण की संभावना कम होती है।
कारपोरेट कंपनियों में सदैव ही बड़ी संख्या में शेयर धारकों की सहभागिता होती है। प्रबन्धन अथवा निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी शेयर धारकों को सहभागी बनाना न तो व्यवहार्य है और न ही विवेकपूर्ण। इस प्रकार निर्णय लेने और नियंत्रण का कार्य निर्वाचित प्रतिनिधियों के छोटे से निकाय जिसे ‘‘निदेशक‘‘ कहा जाता है को सौंप दिया जाता है। तथापि, वास्तविक व्यवसाय पेशेवर प्रबन्धकों द्वारा चलाया जाता है जिनका कंपनी में हिस्सा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। प्रत्यायोजन और पेशेवर प्रबन्धकों की नियुक्ति का यह तंत्र बेहतर निर्णय लिया जाना और संसाधनों का कुशल प्रबन्धन सुनिश्चित करता है। इसके अलावा, अपने नितान्त आकार के कारण, कारपोरेट कंपनियाँ बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू कर सकती हैं जो बड़े पैमाने की मितव्ययिता की लाभ की गुंजाइश उत्पन्न करता है। बड़े पैमाने पर उत्पादन से होने वाली बड़ी पैमाने की मितव्ययिता से सस्ते मूल्य पर वस्तुओं और सेवाओं की उपलब्धता बढ़ती है। हालाँकि कि बड़े पैमाने पर उत्पादन से निजी कारपोरेट कंपनियाँ बाजार के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाती हैं तथा इससे इनका बाजार में प्रभुत्व भी बढ़ता है।
कमियाँ और सीमाएँ
यद्यपि कि निजी कारपोरेट क्षेत्र का अस्तित्व भारत में लम्बे समय से रहा है, इसे संस्थागत सीमाओं के अंदर कार्य संचालन और विकास करना पड़ा था। अन्य विकसित देशों से भिन्न, जहाँ विनियामक तंत्र अत्यधिक कठोर नहीं हैं, भारत में निजी कारपोरेट क्षेत्र को एकाधिकार और अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम (एम आर टी पी ए), औद्योगिक विकास और विनियमन अधिनियम, पूँजी निर्गम अधिनियम इत्यादि द्वारा लगाए गए विभिन्न निबंधनों के अन्दर अपने अस्तित्व की रक्षा करना और उसे बनाए रखना था। इन संस्थागत तंत्रों ने न सिर्फ उनके प्रचालन के क्षेत्रों को परिभाषित ही किया अपितु उनके विस्तार और स्वाभाविक विकास को भी मर्यादित किया। इन विनियामक ढाँचों के कारण निजी कारपोरेट क्षेत्र का हाल तक अत्यन्त ही सीमित विकास हुआ था जो कठोर विनियमों के नहीं रहने पर शायद और अधिक फलते-फूलते।
दूसरा, कारपोरेट क्षेत्र व्यापार में मुख्यतः लाभ कमाने के लिए हैं। इसके निवेश संबंधी निर्णय लाभ से प्रेरित होते हैं और इस प्रकार यह अपने संसाधनों को भावी लाभ की प्रत्याशा के अनुरूप ही उपयोग करता है। परिणामस्वरूप कारपोरेट सेक्टर का सामाजिक विकास की प्रक्रिया की ओर न्यूनतम रुझान होता है। यद्यपि, अब निजी कारपोरेट क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक विकास की ओर अपनी भूमिका तथा प्रतिबद्धता के प्रति जागरूक हो रहा है, फिर भी यह उतना उल्लेखनीय नहीं है। इस प्रकार, यदि निजी कारपोरेट क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में अधिक भूमिका दी जाए तो अर्थव्यवस्था में एकतरफा विकास की संभावना है। निजी कारपोरेट क्षेत्र प्रत्यक्ष उत्पादन कार्यकलापों (डी पी ए) जैसे उपभोक्ता वस्तु उद्योगों में शामिल हो सकता है, जिसमें तुरन्त और अधिक लाभ की आशा होती है।
स्वामित्व और प्रबन्धन नियंत्रण के बीच अलगाव बहुधा परस्पर हितों में टकराव को जन्म देता है। यद्यपि कि प्रत्येक शेयरधारक कंपनी का वास्तविक स्वामि होता है, सिर्फ पेशेवर प्रबन्धक जिनकी स्वामित्व के रूप में कंपनी में कोई हिस्सेदारी नहीं भी हो सकती है, ही संसाधनों का प्रबन्धन देखते हैं और दिन-प्रतिदिन के निर्णय लेते हैं। कंपनी और प्रबन्धकों के हितों में अंतर विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। इसके साथ ही, स्वामित्व और नियंत्रण के अलगाव की विशिष्ट विशेषता बहुधा लिखित होती है क्योंकि पेशेवर प्रबन्धकों में निदेशकों जिन्हें शेयरधारकों का संरक्षक समझा जाता है की सहायता और प्रेरणा से, अधिकार छीनने की प्रवृत्ति होती है। इस प्रकार, जब संसाधनों के बेहतर प्रबन्धन के लिए भूमिकाओं का विभाजन वांछनीय हो जाता है तब यह संभावित खतरा भी बन सकता है।
बोध प्रश्न 3
1) निजी कारपोरेट क्षेत्र के कम से कम तीन लाभ बताएँ ?
2) निजी कारपोरेट क्षेत्र की कम से कम दो हानियाँ बताएँ ?
सारांश
यह आमतौर पर सर्वत्र स्वीकार किया जा रहा है कि आने वाले भविष्य में निजी क्षेत्र ही विकास की अगुवाई करेगा। इस प्रकार उदारीकृत युग में निजी कारपोरेट क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है तथा सार्वजनिक क्षेत्र की हस्ती घट कर नहीं के बराबर रह गई है। यह अब और अधिक स्पष्ट होता जा रहा है कि एक सच्चे सम्प्रभु राष्ट्र के रूप में हमारी सतत् समृद्धि और स्थायित्व लाभप्रद, सक्षम और धारणीय निजी कारपोरेट क्षेत्र जो सीमा रहित भूमंडलीय बाजार में प्रतिस्पर्धा में टिक सके, के सृजन तथा उसे बनाए रखने की हमारी राष्ट्रीय योग्यता से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। इसके साथ-साथ यह आशा की गई है कि अब उन्हें अर्थव्यवस्था के विकास प्रक्रिया में अधिक योगदान करना चाहिए। इसे सिर्फ अर्थव्यवस्था में शुद्ध योजित मूल्य के रूप में ही नहीं अपितु अनुसन्धान और विकास में निवेश के रूप में भी होना चाहिए जिससे कि प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले तुलनात्मक लाभ की स्थिति पैदा हो। यह जानकार हर्ष होगा कि निजी कारपोरेट क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पुनःसंरचना और सुदृढ़ीकरण जिनका उद्देश्य लागत प्रतिस्पर्धात्मकता और वित्तीय लाभप्रदता है, दृष्टिगोचर हो रहा है।
तथापि, कारपोरेट क्षेत्र को आज न सिर्फ राष्ट्रीय अपितु अन्तरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के सामने अपने अस्तित्व को बनाए रखने की अभूतपूर्व चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है। विगत कुछ वर्षों में कारपोरेट कार्य निष्पादन के विश्लेषण से पता चलता है कि न सिर्फ विकसित देशों में अपितु विकासशील देशों में भी कारपोरेट क्षेत्र में भारी समायोजन और पुनराभिविन्यास का काम चल रहा है। भारतीय निजी कारपोरेट क्षेत्र जब तक सतत् रूप से कारपोरेट शासन की धारणीय विधि का प्रतिपादन नहीं कर लेती है, (इस विषय पर इसी खंड की इकाई 18 में चर्चा की जाएगी।) देश ने उनसे जो अपेक्षाएँ रखी हैं उनको मूर्त रूप प्रदान करना काफी कठिन होगा।
शब्दावली
कारपोरेट क्षेत्र ः इस क्षेत्र में उपक्रम, जैसे निगम और संयुक्त स्टॉक कंपनियाँ जो सरकार के विधायन, प्रशासनिक विनियमों अथवा पंजीकरणों के कारण अपने खामियों से स्वतंत्र हैं, सम्मिलित है।
बड़े पैमाने की मितव्ययिता ः जब फर्म बड़े पैमाने पर उत्पादन करती हैं तब उत्पादन का औसत लागत कम हो जाता है, इसे लाभ माना जाता है और आमतौर पर बड़े पैमाने की मितव्ययिता के रूप में जाना जाता है।
सकल घरेलू उत्पाद ः एक देश के घरेलू क्षेत्र के अंदर उत्पादित सकल निर्गत के मूल्य में से एक निश्चित समयावधि में (सामान्यतया एक वर्ष) वस्तुओं और सेवाओं के लिए मध्यवर्ती खपत का मूल्य घटा देने से प्राप्त होता है।
संयुक्त स्टॉक कंपनियाँ ः एक वैध अस्तित्व जिसमें निवेशक अपने संसाधन (स्टॉक) संचित करते हैं और जिनके शेयर अथवा स्टॉकों की खरीद-बिक्री की जा सकती है अथवा उनका अंतरण किया जा सकता है।
बाजार पूँजीकरण ः एक निश्चित तिथि को कंपनी के बकाया शेयरों की संख्या को उस दिन शेयरों के मूल्य से गुणा करने पर बाजार पूँजीकरण निकलता है।
निजी कारपोरेट क्षेत्र ः कारपोरेट उपक्रम जिसमें निजी कंपनियों (सत्ता) का सभी अथवा अधिकांश शेयरों पर स्वामित्व होता है और उसका संगठन पर नियंत्रण होता है।
योजित मूल्य ः मध्यवर्ती खपत के मूल्य के ऊपर उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान उत्पादन के कारकों (भूमि, श्रम, पूँजी और संगठन) द्वारा योजित मूल्य।
कुछ उपयोगी पुस्तकें एवं संदर्भ
अधिकारी, एम. (2000). बिजनेस इकनॉमिक्स, एक्सेल बुक्स, नई दिल्ली।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (2001). ‘‘कारपोरेट सेक्टर,‘‘ मई, 2001, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी, मुम्बई
शांता, एन. (1991). ट्रेन्डस् इन प्राइवेट कारपोरेट सेविंग्स, सेंटर फोर डेवलपमेंट स्टडीज, ओकेजनल पेपर सीरीज।
– (1994). ‘‘एस्टीमेट्स फोर प्राइवेट कारपोरेट सेक्टर- ए नोट,‘‘ इकनॉमिक्स एण्ड पॉलिटिकल वीकली, 16 जुलाई
– (1999). ‘‘ग्रोथ एण्ड सिग्निफिकेन्स ऑफ दि प्राइवेट कारपोरेट सेक्टर: इमर्जिंग ट्रेन्डस,‘‘ इकनॉमिक एण्ड पॉलिटिकल वीकली, 31 जुलाई-6 अगस्त।
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