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खातोली का युद्ध कब हुआ ? खतौली का युद्ध विकिपीडिया खातोली का युद्ध कब और किसके मध्य हुआ कहाँ है ?

battle of khatoli in hindi ?

प्रश्न : खातोली का युद्ध कब हुआ ? खतौली का युद्ध विकिपीडिया खातोली का युद्ध कब और किसके मध्य हुआ कहाँ है ?

उत्तर : मेवाड़ के महाराणा साँगा और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी की महत्वाकांक्षाओं के फलस्वरूप दोनों के मध्य 1517 ईस्वी में “खातोली” (पीपल्दा तहसील , कोटा) में युद्ध हुआ। महाराणा सांगा ने इम्ब्राहीम लोदी को पराजित किया। अमर काव्य वंशावली के अनुसार इस युद्ध में राणा सांगा ने लोदी के एक शहजादे को बंदी बना लिया था , जिसे कुछ दण्ड देकर छोड़ा गया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप राजपूताना में ही नहीं वरन सम्पूर्ण उत्तरी भारत में राणा सांगा की धाक जम गयी थी। दिल्ली जो भारत के शासन का प्रतीक थी , के सुल्तान को पराजित करने के बाद सांगा दिल्ली पर हिन्दू सत्ता स्थापित करने का स्वप्न देखने लगा।
प्रश्न : राजपूतों की उत्पत्ति विषयक विभिन्न मतों की विवेचना करते हुए अपना मत निश्चित कीजिये ?
उत्तर : भारतीय इतिहास में 7 वीं सदी से 12 वीं सदी तक जिन राजवंशों का शासन रहा , उन्हें सामूहिक रूप से राजपूत कहा गया है। अकस्मात इनका उदय कैसे तथा कहाँ से हुआ , इस पर विद्वानों के मत इस प्रकार है – रीति रिवाज की समानता के आधार पर कर्नल टॉड , स्मिथ इन्हें सीथियन और शक , कुषाण , हूण और गुर्जरों की सन्तान मानते है जो कि इनका विदेशी होना बताते है। डॉ. भण्डारकर गुर्जर और ब्राह्मण और जी.एस. ओझा सूर्य और चन्द्रवंशी मानते है। श्री वैध इन्हें विशुद्ध क्षत्रिय और चंदरबरदाई अन्गिवंशी स्वीकारते है तो डॉ. दशरथ शर्मा इन्हें विशुद्ध भारतीय मानते है। डी.पी. चट्टोपाध्याय इनकी उत्पत्ति के मिश्रित मूल सिद्धान्त में विश्वास रखते है। यही सर्वाधिक मान्य मत है।
प्रश्न : कुंभा की राजनितिक उपलब्धियाँ बताइए ?
उत्तर : राणा कुम्भा (1433-68 ईस्वी) की राजनीतिक उपलब्धियों की जानकारी मुख्यतः कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति से मिलती है। कुम्भा ने राठौड़ रणमल के सहयोग से अपने धुर विरोधी गठबंधन चाचा , मेरा और महपा पंवार का नाश किया। राणा ने गागरोण , मांडलगढ़ , बूंदी , बागड़ , आबू और सिरोही को जीतकर मेवाड़ की शक्ति को बढाया। सारंगपुर विजय , मालवा और गुजरात की संयुक्त सेना को हराकर चंपानेर समझौते को असफल किया। पड़ौसी मुस्लिम राज्यों की शक्ति को सीमित कर अंकुश लगाया और मेवाड़ में शांति व्यवस्था कायम की। इस प्रकार कुम्भा अपने समय का महान विजेता , संगठनकर्ता , व्यवस्थापक और प्रशासक सिद्ध हुआ।
प्रश्न : राणा कुम्भा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ क्या है लिखिए। 
उत्तर : राणा कुम्भा (1433-68 ईस्वी) को राजस्थान स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है। इसने अपने समय में कुम्भलगढ़ , अचलगढ़ जैसे 32 दुर्गों , विजय स्तम्भ , कीर्ति स्तम्भ और अनेक महलों और मंदिरों का निर्माण नागर और शास्त्रीय शैली में करवाया। मंदिरों की विशालता और तक्षण कला आदि उसकी कलाप्रियता की गौरव गाथा है।
वह वेद , स्मृति , उपनिषद , नाट्यशास्त्र , संगीत , राजनीति , तर्क , शिल्पशास्त्र और साहित्य और राजस्थान और मराठी सहित अनेक भाषाओँ का अच्छा ज्ञाता और वक्ता था। संगीत के उत्कृष्ट ग्रंथों – संगीत राज , संगीत मीमांसा , संगीत रत्नाकर आदि का रचयिता था। गीत गोविन्द की टीका तो महाराणा की संस्कृत गद्य पद्य रचना का अदभुत नमूना है। शिल्पशास्त्री मण्डन , साहित्यकार कान्ह व्यास जैसे अनेक विद्वान उसके दरबार की शोभा बढ़ाते थे।
प्रश्न : राणा कुम्भा के मंदिर स्थापत्य की विशेषताएँ बताइए ?
उत्तर : राणा कुम्भा ने राजस्थान में मंदिर स्थापत्य को एक नयी दिशा प्रदान की। कुम्भा कालीन मंदिरों का निर्माण नागर शैली के शिखरों से अलंकृत और ऊँची प्रसाद पीठ पर किया गया है। उनमें गर्भगृह , अर्द्धमण्डप , प्रदक्षीणा पथ और आमलक युक्त शिखर पाए जाते है। मंदिरों की विशालता और तक्षणकला बेजोड़ है। चित्तोडगढ स्थित कुम्भस्वामी मंदिर इनमें सबसे पुराना और मध्यकालीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है जिसमें उपरोक्त सभी विशेषताएँ मौजूद है। कुम्भा के समय उदयपुर का कुंभमण्डप , रणकपुर के मंदिर , कुम्भलगढ़ और अचलगढ़ के कुम्भश्याम मंदिर आदि अनेक मंदिरों का निर्माण हुआ और अनेक पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया गया।
प्रश्न : राणा कुंभा का दुर्ग स्थापत्य में योगदान बताइए ?
उत्तर : कुंभा ने परम्परागत दुर्ग शैली में सामरिक आवश्यकता और सुरक्षा का अंश मिलाकर उसे विशेष रूप से पल्लवित और विकसित किया। कवि राजा श्यामलदास के अनुसार मेवाड़ के 84 दुर्गों में से कुंभा ने 32 दुर्गो का निर्माण करवाया। जिनमें कुम्भलगढ़ , अचलगढ़ , बसन्तीगढ़ , मचानगढ़ आदि बड़े प्रसिद्ध है और चित्तोडगढ जैसे पुराने अनेक दुर्गो का जीर्णोद्वार करवाया। सभी दुर्गो में सादगीपूर्ण शाही आवास , सैन्य आवास , कृषि भूमि , जल व्यवस्था , मंदिर , गोदाम आदि का निर्माण सैनिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया गया। इनमें कुम्भलगढ़ का दुर्ग राणा कुंभा की गौरव गाथा का प्रतिक है।
प्रश्न : राणा कुंभा का संगीत और साहित्य में योगदान लिखिए। 
उत्तर : महाराणा कुम्भा (1433-68 ईस्वी) एक कवि , नाटककार , टीकाकार और महान संगीताचार्य था। वह वेद , स्मृति , उपनिषद , मीमांसा , नाट्यशास्त्र , संगीत , राजनीति , तक्र , शिल्पशास्त्र और साहित्य और अनेक भाषाओँ का वेत्ता था। संगीत के उत्कृष्ट ग्रंथों संगीतराज , संगीत मीमांसा , सूड प्रबंध , संगीत रत्नाकार का रचयिता था। गीत गोविन्द की टीका (रसिक प्रिया) तो महाराणा की संस्कृत गद्य पद्य रचना का अद्भुत नमूना है। दरबारी शिल्पशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान मण्डन उसके पुत्र गोविन्द और भाई नाथा ने अनेक शिल्प शास्त्र के ग्रंथों की रचना की। एकलिंगमहात्म्य के लेखक कान्ह व्यास , कवि अत्रि , महेश जैसे अनेक विद्वानों का वह आश्रयदाता था। वह अपने समय का सर्वश्रेष्ठ संगीतज्ञ था इसलिए अभिनव भारताचार्य नाम से पुकारा गया।