गिरी सुमेल का युद्ध कब हुआ था ? गिरी सुमेल का युद्ध कब लड़ा गया ? battle of giri sumel in hindi
battle of giri sumel in hindi गिरी सुमेल का युद्ध कब हुआ था ? गिरी सुमेल का युद्ध कब लड़ा गया ? कौन जीता किसकी हार – विजय हुई ?
प्रश्न : गिरी सुमेल का युद्ध कब हुआ था ? गिरी सुमेल का युद्ध कब लड़ा गया ?
उत्तर : 1544 ईस्वी में मारवाड़ के मालदेव और दिल्ली सुल्तान शेरशाह के मध्य गिरी सुमेल (जैतारण) युद्ध हुआ। शेरशाह ने कुटिल राजनितिक चाल से मालदेव और उसके सरदारों जैता और कूँपा में अविश्वास पैदा करवाया जिससे मालदेव सेना सहित पीछे हट गया। लांछित सरदारों ने अपनी 12 हजार सेना के साथ सुल्तान से गिरि सुमेल में कड़ा मुकाबला किया। उनके साहस और बहादुरी को देखकर शेरशाह ने कहा “एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैंने हिन्दुस्तान की बादशाहत खो दी होती। ” सुमेल युद्ध के बाद राजपूतों के वैभव तथा स्वतंत्रता का अध्याय समाप्त हो गया।
प्रश्न : राणा प्रताप की राजनीतिक और सांस्कृतिक उपलब्धियां बताइए ?
उत्तर : राणा उदयसिंह के दूसरे पुत्र “कीका” (प्रताप) की माता पाली के अखैराज सोनगरा की पुत्री जैवंता बाई थी। राणा प्रताप का मुख्य मुकाबला मुग़ल सम्राट अकबर से हुआ। राणा प्रताप तथा अकबर के मध्य संघर्ष की शुरुआत जून , 1576 में हल्दीघाटी युद्ध से शुरू हुई जो दिवेर युद्ध 1582 ईस्वी से होती हुई मृत्यु पर्यन्त (1597) तक चला। राणा कठोरतम परिस्थितियों में भी वह अकेला ही जीवन पर्यन्त जूझता रहा लेकिन उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। चावण्ड को दूसरी राजधानी बनाकर उसे अनेक महलों , मंदिरों , तालाब बावडियों से सजाया। वहाँ चित्रकला की चावण्ड शैली विकसित की। विश्ववल्लभ , मूर्तिमाला , राज्यभिषेक आदि ग्रंथों की रचना करवाकर और साहित्यकारों को संरक्षण देकर अपने साहित्य प्रेमी होने का परिचय दिया। 1597 ईस्वी में राणा की मृत्यु होने पर बांडोली में छतरी बनाई गयी। भारतीय जनमानस में राणा प्रताप स्वतंत्रता का पुजारी , बलिदानी , स्वाभिमानी और प्रेरणा के अमर स्रोत के रूप में छाया हुआ है।
प्रश्न : राणा प्रताप का एक योद्धा के रूप में मूल्यांकन कीजिये ?
उत्तर : राजपूताना के इतिहास को इतना उज्जवल और गौरवमय बनाने का श्रेय राणा प्रताप को ही है। आज भी देशी विदेशी नागरिक राजपूताना का एकमात्र वीर प्रताप को ही जानते और मानते है। वह स्वदेशाभिमानी , स्वतंत्रता का पुजारी और कवि था। उसके समय में सम्पूर्ण मेवाड़ पर मुस्लिम आक्रान्ताओं का अधिकार हो गया , उसके सरदार मारे गए , बहुत से राजपूत अकबर के सहायक हो गए परन्तु उसने कभी भी अधीनता स्वीकार न की तथा मुट्ठी भर सैनिकों की सहायता से देश की स्वतंत्रता के लिए कटिबद्ध हो गया। वह एक राष्ट्रीय नायक और भारतीय परम्परा का प्रतीक है। उसका बलिदान , सहिष्णुता तथा सिद्धान्तों के लिए त्याग आज भी अनुकरणीय है।
प्रश्न : मुग़ल मेवाड़ संधि की मुख्य शर्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर : 1615 ईस्वी में राणा अमरसिंह की तरफ से शीराजी और सुन्दरदास ने और जहाँगीर की तरफ से हरिदास झाला और शुभकर्ण ने मुग़ल मेवाड़ संधि की शर्तों पर हस्ताक्षर किये , जो इस प्रकार थी –
- स्वयं राणा खुर्रम मुग़ल के समक्ष आयेगा तथा कुँवर कर्णसिंह को मुग़ल दरबार में भेजेगा।
- राणा को मुग़ल दरबार की सेवा की श्रेणी में प्रवेश करना होगा लेकिन राणा का दरबार में उपस्थित होना आवश्यक नहीं।
- राणा 1000 घुडसवारों सहित मुग़ल सेवा के लिए उद्यत रहेगा।
- चित्तौड़ दुर्ग राणा को लौटा दिया जायेगा परन्तु उसकी मरम्मत नहीं करेगा।
- राणा वैवाहिक सम्बन्धों के लिए बाध्य नहीं होगा।
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