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धरमत का युद्ध कब हुआ था | धरमत का युद्ध किसके बीच हुआ था battle of dharmat in hindi

battle of dharmat in hindi was fought between whom ? धरमत का युद्ध कब हुआ था | धरमत का युद्ध किसके बीच हुआ था जीता कौन था और हार किसकी हुई ?

प्रश्न : धरमत का युद्ध ?

उत्तर : मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के बीमार होने पर उसके चारों शहजादों जैसे दाराशिकोह , शाहशुजा , औरंगजेब और मुराद में उत्तराधिकार संघर्ष के क्रम में धरमत (मध्यप्रदेश) नामक स्थान पर 1657 ईस्वी में औरंगजेब और मुराद और शाही खेमें के मध्य संघर्ष हुआ। शाही खेमें की अध्यक्षता जोधपुर महाराजा जसवंत सिंह राठौड़ कर रहे थे। इसमें औरंगजेब के पक्ष को विजय मिली। जब पराजित महाराजा जोधपुर पहुँचा तो उदयपुरी रानी ने किले के द्वार नहीं खोले। महाराजा को बाहर यह कहलवा भेजा कि राजपूत युद्ध से या तो विजयी लौटते है अथवा वहाँ मर मिटते है। रानी यह कहकर सती होने लगी लेकिन उसकी माँ के समझाने पर मामला शांत हुआ। यह बात महाराजा को जीवन भर कचोटती रही।
प्रश्न  : भूतपूर्व टोंक राज्य की स्थापना कैसे हुई ?
उत्तर : होल्कर के मुख्य सेनानायक अमीर खां पिण्डारी ने राजपूत राज्यों में भयंकर लूटपाट की तथा शासकों से अधिकाधिक धन वसूला। 17 नवम्बर 1817 ईस्वी को अमीर खां ने अंग्रेजों से संधि कर ली , जिसके अन्तर्गत उसे टोंक रामपुरा का स्वतंत्र शासक स्वीकार कर उसे नवाब की उपाधि दी गयी। बदले में अमीर खां ने आंतरिक व्यवस्था के लिए आवश्यक सेनाओं को छोड़ अपनी समस्त सेना अंग्रेजों को सौंप दी और लूटपाट और धनवसूली बंद कर दी। राजपूत शासकों ने भी उसे मान्यता दे दी। इस प्रकार भूतपूर्व टोंक राज्य का निर्माण हुआ।
प्रश्न : झालावाड़ राज्य की स्थापना कैसे हुई ?
उत्तर : 1817 ईस्वी में कोटा के शासक राव उम्मेद सिंह के समय राजराणा जालिमसिंह झाला कोटा राज्य का प्रशासक था। उसी ने सर्वप्रथम अंग्रेजों से 1817 ईस्वी में सहायक संधि की जिसकी पूरक धारा के अनुसार महाराव उम्मेद सिंह के ज्येष्ठपुत्र और उसके वंशज कोटा के शासक होंगे और जालिमसिंह झाला और उसके वंशज कोटा राज्य के प्रशासक होंगे। इनके दोनों पौत्रों महाराव रामसिंह और झाला मदनसिंह के सम्बन्ध बिगड़ गए। झाला के वंशजों को निरंतर अंग्रेजों का समर्थन मिला , अत: 1837 ईस्वी में कोटा का अंग भंग हुआ मदनसिंह झाला और उसके उत्तराधिकारियों के लिए अंग्रेजों ने 1838 ईस्वी में एक स्वतंत्र राज्य झालावाड की स्थापना की।
प्रश्न : भीनमाल का एतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व निर्धारित कीजिये।
उत्तर : मारवाड़ क्षेत्र के भीनमाल में चावड़ा वंश का राज्य था। तत्पश्चात गुर्जर प्रतिहारों ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। युवान च्वंग (हेनसांग) ने भीनमाल की यात्रा की थी। यहाँ संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान माघ ने अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ “शिशुपाल वध” ब्रह्मगुप्त ने “ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त” तथा उद्योतन सूरी ने प्राकृत में कुवलयमाला की रचना की। भीनमाल समृद्ध संस्कृति का केंद्र था। इसी युग में चित्रकला का विकास राजस्थान में हुआ जिसे अपभ्रंश शैली कहते है। इसी शैली के उदाहरणों में निशीथ चूर्णी और श्रावक प्रतिक्रमण चूर्णी है जो अपनी उत्तमता और अलंकारिता के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रश्न : आहड सभ्यता (उदयपुर) / आघाटपुट / ताम्रवती नगर /धूलकोट की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये। 
उत्तर : सरस्वती दृषद्वती नदी सभ्यता से निकलकर इस प्रदेश के मानव ने आहड , गंभीरी , लूनी , बेडच और कांटली आदि नदियों के किनारे अपनी बस्तियाँ बसाई और सभ्यता का विकास किया। आहड टीले का उत्खनन डॉ. एच.डी. सांकलिया के नेतृत्व में हुआ था। प्राचीन शिलालेखों में आहड का पुराना नाम “ताम्रवली” अंकित है। दसवीं और ग्याहरवीं शताब्दी में इसे आघाटपुर या आघाट दुर्ग के नाम से जाना जाता था। इसे धूलकोट भी कहा जाता है। उदयपुर से तीन किलोमीटर दूर धूलकोट के नीचे आहड का पुराना कस्बा दबा हुआ है जहाँ से ताम्र युगीन सभ्यता प्राप्त हुई है। ये लोग लाल , भूरे और काले मिट्टी के बर्तन काम में लेते थे। पशुपालन इनकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था। यहाँ तांबे की छ: मुद्राएँ और तीन मोहरें मिली है। एक मुद्रा पर एक तरफ त्रिशूल और दूसरी तरफ अपोलो देवता अंकित है जो तीर और तरकश से युक्त है।
इस पर यूनानी भाषा में लेख अंकित है। यह मुद्रा दूसरी शताब्दी ईस्वी की है। यहाँ के लोग मृतकों को कपड़ों और आभूषणों के साथ गढ़ते थे। यहाँ का प्रमुख उद्योग ताम्बा गलाना और उसके उपकरण बनाया था। यहाँ से टेराकोटा वृषभ आकृतियां मिली है , जिन्हें “बनासियन बुल” कहा गया है।
आहड नामक प्राचीन स्थल से ऐसी सभ्यता के अवशेष मिले है जो आज से लगभग 4000 वर्ष प्राचीन है। उस समय वहां बड़े तथा चौकोर मकान पत्थरों की नींव डालकर बनाये जाते थे , जबकि उनकी दीवारें मिट्टी की ईंटों की होती थी। आहड संस्कृति के अनेक केंद्र बेडच , बनास नदियों की उपत्यका में खोज निकाले गए है। इनमें महत्वपूर्ण उदयपुर जिले में अवस्थित “गिलुण्ड” से आहड की समान धर्मा संस्कृति मिली है। आहड में पक्की ईंटों का उपयोग नहीं हुआ है , जबकि गिलुण्ड में इनका प्रचुर उपयोग होता था।