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basal medium for plant tissue culture in hindi , आधारिक माध्यम किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है

पढ़ें basal medium for plant tissue culture in hindi , आधारिक माध्यम किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है ?

आधारिक माध्यम (Basal Medium)

आधारिक माध्यम तैयार करने के लिए स्टॉक विलयन से उचित मात्रा लेकर उसमें अन्य पोषक तत्व मिलाये जाते हैं। पोष पदार्थ (nutrient medium) का विकास 1930-50 के मध्य हुआ था। पोषपदार्थ में मूलभूत रूप से वह सभी पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं जो पादप वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं।

वृद्धि नियामक, विटामिन तथा सूक्ष्म तत्वों की जानकारी के कारण ऊतक संवर्धन हेतु उचित पोष पदार्थ बनाने में वैज्ञानिकों को सफलता प्राप्त हुई। आरम्भ में नॉप (Knop) के विलयन पर आधारित पोष पदार्थों का उपयोग किया जाता था। इसके पश्चात् व्हाइट (1943), हैलेर (1953) तथा मुराशिगे व स्कूग (1962) के पोष पदार्थ उपयोग में लाये जाने लगे। वर्तमान में उपर्युक्त पोष पदार्थों की रचना के आधार पर अलग अलग प्रजाति के ऊतक संवर्धन हेतु कई प्रकार के पोष पदार्थ विकसित किये जा चुके हैं। आज पादप ऊतक संवर्धन की विधियाँ इतनी अधिक विकसित हो चुकी हैं कि पादप का कोई भी भाग आसानी से संवर्धित किया जा सकता है। अधिकतर पादपों के कर्त्तेतकों (explant) को पूर्णरूप से संश्लिष्ट पोष पदार्थ पर संवर्धित किया जा सकता है। सभी पोष पदार्थों में निम्न का समावेश पाया जाता है-

(i) अकार्बनिक पोषक तत्व ( Inorganic nutrients )

(ii) कार्बन स्रोत सामान्यतः शर्करा (Carbon source-Generally sugar)

(iii) विटामिन्स (Vitamins)

(iv) वृद्धि नियामक (Growth regulators)

(v) कार्बनिक पूरक व अमीनो अम्ल (Carbon supplements and amino acids)

(i) अकार्बनिक पोषक तत्व : पादपों की सामान्य वृद्धि हेतु C, H, व O के अलावा निम्न स्थूल व पोषक तत्व आवश्यक होते हैं।

सभी पोष पदार्थों में इनकी मात्रा अलग-अलग होती है। आवश्यकता पड़ने पर आयोडीन व कोबाल्ट की भी सूक्ष्म मात्रा मिलाई जाती है। स्थूल पोषक तत्व 0.5 mmoll से अधिक होती हे व सूक्ष्म पोषक में इनकी मात्रा स्थूल पोषक तत्व से कम होती है।

व्हाइट के पोष पदार्थों के इनकी मात्रा कम है जबकि मुराशिगे व स्कूग (Mg) तथा B; में इनकी (विशेषतौर पर K व Na) मात्रा अधिक है। सामान्यतः Fe को EDTA (Ethylene Diamine Tetra Acetic acid) के रूप में मिलाने पर 5-8 से अधिक pH पर भी Fe उपलब्ध रहता है।

कार्बन स्रोत (Carbon Source)

कार्बन स्रोत के रूप में ग्लूकोज, फ्रक्टोज, माल्टोज अथवा सुक्रोज (2-4%) का उपयोग पोष पदार्थ में किया जाता है। ज्यादातर कर्तोतक सुक्रोज पर सुगमता से वृद्धि करते हैं। पोष पदार्थ में प्रयुक्त सुक्रोज पादप कोशिकाओं द्वारा शीघ्रता से ग्लूकोज व फ्रक्टोज में बदल दिया जाता है। इसमें ग्लूकोज का अवशोषण पहले हो जाता है एवं फ्रक्टोज का इसके बाद होता है। कार्बन स्रोत के रूप में गैलेक्टोज, लैक्टोज, मैनोज, स्टार्च, यीस्ट, नारियल पानी, माल्ट इत्यादि भी प्रयोग किये जाते हैं।

विटामिन्स (Vitamins)

उचित कैलस वृद्धि प्राप्त करने के लिए थायमीन अति आवश्यक होता है। वर्धक के रूप में इनासिटॉल, निकोटिनिक अम्ल व पायरीडॉक्सिन का इस्तेमाल होता है। इनमें से थायमीन आवश्यक होता है जबकि शेष वृद्धि दर बढ़ाने का कार्य करते हैं।

वृद्धि नियामक (Growth Regulators)

पादप उतक संवर्धन को लम्बे समय तक रखने हेतु उचित मात्रा में वृद्धि नियामकों की आवश्यकता होती है। ऑक्सिन की अधिक व साइटोकाइनिन की कम मात्रा का उपयोग करने पर कोशिकाओं की वृद्धि सफलतापूर्वक होती है। अगर पोष पदार्थ को पुर्नजनन हेतु उपयोग में लिया जा रहा है तब ऑक्सिन की कम व साइटोकाइनिन की अधिक मात्रा प्रयोग में ली जाती है। कुछ महत्वपूर्ण वृद्धि नियामक निम्न हैं-

(i) ऑक्सिन : IAA, IBA, NAA, 2,4-D, 2,4-5, T-; 3-mg/l1 से कोशिका विभाजन एवं कैलस वृद्धि होती है। इस सान्द्रता का उपयोग कायिक भ्रूण बनने तथा मूल निर्माण के हेतु भी किया जाता है।

(ii) साइटोकाइनिन- काइनेटिन, जियेटिन Z-iP, BAP, TDZ ; 0.1 से 3 mg/l के उपयोग से कोशिका विभाजन, कक्षस्थ कलिकाओं से प्ररोह बनाना, तथा प्ररोह (shoot) पुनर्जनन किया जाता है।

(ii) विशेष प्रकार के संवर्धनों में कायिक भ्रूणों (somatic) के पुनर्जनन (regeneration) के लिए ऐब्सिसिक अम्ल व प्ररोह दीर्घीकरण (shoot elongation) के लिए तथा कायिक भ्रूणों के अंकुरण हेतु जिबरेलिक अम्ल का प्रयोग किया जाता है।

कार्बनिक पूरक व अमीनो अम्ल (Carbon Supplement and Amino Acid)

साधारणतया ग्लायसीन अमीनो अम्ल पोष पदार्थ में उपयोग किया जाता है। कुछ कर्तोतकों की वृद्धि हेतु L-आर्जीनीन, L-एस्पार्टिक अम्ल व L- ग्लूटेमिक अम्ल भी उपयोग किये जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर जटिल कार्बनिक नाइट्रोजन पूरक जैसे कैसीन हाइड्रोलाइसेट का भी इस्तेमाल कर लिया जाता है। पोष पदार्थ में अमीनो अम्ल अपचयित नाइट्रोजन का उत्तम स्रोत होते हैं ।

अन्य रसायन (Other Chemicals)

जैलीय पदार्थ (Gelling material)

संवर्धन माध्यम को ठोस अथवा अर्ध ठोस (semi-solid) बनाने हेतु लाल शैवाल से प्राप्त अगार—अगार अथवा एल्जीनेट मिलाये जाते हैं ।

चारकोल (Charcoal)

कुछ पादपों के संवर्धन माध्यम में चारकोल मिलाने पर वह उनमें उपस्थित विषैले (toxic) पदार्थों का अवशोषण कर लेता है। उदाहरणस्वरूप आर्किड, गाजर, टमाटर इत्यादि को संवर्धित करते समय इनके संवर्धन माध्यम में चारकोल मिलाया जाता है।

प्रतिजैविक (Antibiotic)

कुछ संवर्धन माध्यमों में प्रतिजैविक (स्ट्रेप्टोमाइसिन व कैनामाइसिन) मिलाने पर वह सूक्ष्मजीवों के संक्रमण को नष्ट कर देता है व संवर्धित कोशिकायें बेहतर वृद्धि प्रदर्शित करती है।

पोष पदार्थ बनाने की विधि (Preparation of Nutrient Medium)

पोष पदार्थ निम्न तरीके से बनाया जाता है ।

(i) आसुत जल में अतिशुद्ध रसायन (chemicals) 10x या 50x सान्द्रता के तैयार करके रेफ्रीजरेटर में रख देते हैं।

(ii) आवश्यकता पड़ने पर विलयनों को तनु (dilute ) करके पोष पदार्थ बनाया जाता है।

(ii) विलयन में प्रयोग के आवश्यकतानुसार एगार, कार्बन स्रोत सुक्रोज तथा वृद्धि नियामक मिलाये जाते हैं तथा इसका pH 5.8 पर स्थिर कर लिया जाता है।

(iv) तैयार पोष पदार्थ की उपयुक्त मात्रा कांच के पात्र में भर कर नॉन-एबसोरबेन्ट रूई से प्लग करके व एल्यूमिनियम फॉइल से ढक कर 15 मिनट के लिए 121°C पर ऑटोक्लेव में रखा जाता है।

(v) ऑटोक्लेव से निकाल कर ठण्डा करने के उपरान्त भण्डारित कर लिया जाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उपयोग किया जाता है।

संग्रह विलयन बनाना (Preparation of Stock Solution)

संवर्धन माध्यम को उसी समय तैयार करना जब उसकी आवश्यकता हो यह संभव नहीं होता है क्योंकि माध्यम बनाना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें काफी समय लगता है जैसे सभी रसायनों (chemicals) को इलेक्ट्रोनिक तुला पर सही तोलना फिर उन्हें आसुत जल में घोलना इसमें काफी समय लग जाता है अतः रसायनों को आसुत जल में घोल कर उनके सान्द्र ( concentrated) विलयन बनाकर रख लिये जाते हैं जो संग्रह विलयन कहलाते हैं।

  1. स्थूल लवणों का संग्रह विलयन

इन लवणों को 10x अथवा 20x सान्द्रता में विलयन बनाये जाते हैं। एक लीटर विलयन तैयार करने के लिए तालिका की मात्रानुसार लवणों को द्विआसुत जल में घोला जाता है। संग्रह (stock) विलयन को दस से सोलह डिग्री सेन्टीग्रेड पर लम्बे समय तक भण्डारित करके रखा जा सकता है। मुराशिगे व स्कूग के संग्रह विलयन को निम्न प्रकार से बनाते हैं:

  1. सूक्ष्म लवणों का संग्रह विलयन

इन लवणों का संग्रह विलयन मूल मात्रा से 1000x में बनाया जाता है।

  1. विटामिन का संग्रह विलयन

विटामिन को तालिका में दी गयी मात्रानुसार द्विआसुत जल में घोलकर 15 दिन तक 0°C पर भण्डारित किया जा सकता है।

  1. ग्लाइसीन का संग्रह विलयन

20 ml द्विआसुत जल में 40 gm ग्लायसीन को घोलें ( 100 x) | यह विलयन 15 दिन तक 0°C पर भंडारित करके रखा जा सकता है।

  1. पोटैशियम आयोडाइड का संग्रह विलयन

पोटेशियम आयोडाइड (KI) की 83 mg मात्रा M 100 ml द्विआसुत जल में घोले । मूल माध्यम में 0.83 mg प्रति लीटर मात्रा होती है। यह 10-16°C पर रेफ्रीजरेटर में भण्डारित किया जाता है। 6. मीसो-इनोसीटॉल संग्रह विलयन

मीसो इनोसिटॉल की 1 gm मात्रा को 20 ml द्विआसुत जल में घोलें (50x) । मूल माध्यम में 10mg प्रति लीटर मात्रा होती है। यह 15 दिन तक 0°C पर भण्डारित करके रखा जा सकता है।

  1. आयरन संग्रह विलयन

इसे निम्न चरणों में बनाया जाता है-

(a) 745 mg Na2 EDTA (मूल माध्यम में 3725mgk) को खौलते हुए 75 द्विआसुत जल में घोले । (b) इसमें 557 mg FeSO4 . 7H2O मिलाये (मूल माध्यम में 28.75 ml/L)

(c) उपरोक्त विलयन को चुम्बकीय स्टरर से एक घंटे तक हिलायें जिससे यह सुनहरा पीला हो जाये।

(d) द्विआसुत जल मिलाकर इसका माप 100 ml कर लें। ठण्डा होने के उपरान्त 5°C पर रेफ्रीजरेटर में भण्डारित करके रख लें।

  1. हार्मोन का संग्रह विलयन

(a) 10 ) gm IAA को I ml परिशुद्ध एल्कोहॉल में घोल कर 9 ml द्विआसुत जल मिलाये ।

(b) 10g काइनेटिन को 1 ml NHCI में घोलकर 9 ml द्विआसुत जल मिलाये ।

यह दोनों विलयन 7 दिन तक 0°C पर रेफ्रीजरेटर में भण्डारित किये जा सकते हैं। संग्रह विलयन बनाने के उपरान्त संवर्धन माध्यम निम्न तरीके से बनाया जाता है।

(i) 200 ml द्विआसुत जल में 30g सुक्रोज घोलकर उसमें 1-2g सक्रियत (activated) चारकोल मिलाने के पश्चात् विलयन को बुकनर कीप में वॉटमेन फिल्टर पेपर लगा कर छान लें।

(i) दूसरे फ्लास्क में तालिका के अनुरूप संग्रह विलयन (stock solution) मिला लें।

(iii) संग्रह विलयन तथा छने हुए सुक्रोज को मिलाने के पश्चात् इतना द्विआसुत जल डालें कि इसका आयतन एक लीटर हो जाये।

(iv) IN HCI अथवा | N NaOH को इस्तेमाल करके इस विलयन का pH 5.8 पर स्थिर कर लें। (v) तरल माध्यम को अगर ठोस बनाना हो तब इसमें 5-8% तक एगर एगर मिलाते हैं। समिश्र अच्छी तरह बन जाये अतः इसे 60°C पर गर्म कर लेते हैं। ठण्डा होने पर ठोस संवर्धन माध्यम तैयार हो जाता है।

(vi) परखनलिका (20 ml) या कोनिकल फ्लास्क (20-40ml) लेकर उसमें उचित मात्रा में संवर्धन माध्यम डालकर उन्हें एब्जोरबेन्ट कॉटन प्लग बन्द करने के पश्चात् एल्यूमिनियम फॉइल से ढक दिया जाता है। ऑटोक्लेव में इन्हें निर्जर्मीकृत करके ट्रे में ठण्डा करने के बाद रेफ्रीजरेटर में भण्डारित करके रख दिया जाता है।