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औरंगाबाद की स्थापना किसने और कब की थी , औरंगाबाद का पुराना नाम क्या है , aurangabad was founded by in hindi

aurangabad was founded by in hindi औरंगाबाद की स्थापना किसने और कब की थी , औरंगाबाद का पुराना नाम क्या है ?
औरंगाबाद (19.88° उत्तर, 75.32° पूर्व)
औरंगाबाद की स्थापना 1610 ई. में मुतर्जा निजामशाह द्वितीय के प्रधानमंत्री मलिक अम्बर ने खिर्की नामक गांव के स्थान पर की थी तथा यह दक्कन के निजामशाही वंश की राजधानी था। मुगलों द्वारा इस वंश की पराजय के उपरांत यह मुगलों के साम्राज्य का 15वां सूबा बना। बाद में 1653 में, जब औरंगजेब दक्कन का राज्यपाल बना तो उसने इस नगर को अपनी राजधानी बनाया तथा इसका नामकरण औरंगाबाद कर दिया।
इस नगर के मध्य भाग में स्थित सशक्त चारदीवारी का निर्माण औरंगजेब द्वारा मराठों के आक्रमण से बचने के लिए 1686 में कराया गया था। इस नगर में प्रवेश के चार मुख्य द्वार थे-दिल्ली दरवाजा, जालना दरवाजा, पैठन दरवाजा तथा मक्का दरवाजा। नगर की सुरक्षा हेतु नौ अन्य छोटे सुरक्षात्मक द्वारों का निर्माण भी कराया गया था।
औरंगजेब का विशाल साम्राज्य जो समस्त भारतीय उप-महाद्वीप में फैला था, उसकी मृत्यु के साथ ही विखंडित होने लगा तथा कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गया। इसके पश्चात औरंगाबाद, हैदराबाद राज्य का एक खूबसूरत शहर बना रहा तथा 1948 में देशी राज्यों के विलीनीकरण के समय इसे भी हैदराबाद राज्य के साथ ही भारत में सम्मिलित कर लिया गया।
वर्तमान समय में औरंगाबाद, महाराष्ट्र प्रांत का एक प्रमुख शहर है। यह लघु एवं बड़े उद्योगों का एक प्रमुख केंद्र है। यह रेशम के परिधानों एवं हस्तनिर्मित चांदी की जड़ाई एवं दस्तकारी के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। कला एवं संस्कृति के प्रेमियों तथा शोधकर्ताओं के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं अजंता एवं एलोरा के प्रसिद्ध स्थान पाए जाते हैं। यहां प्रस्तर का एक गुहा मंदिर, एवं बौद्ध मठ भी है। इस बौद्ध मठ का समय 4-8 ईस्वी सदी माना जाता है। पुण्य स्थल जहां उपदेश देते बुद्ध संगीतज्ञों तथा अप्सराओं से घिरे हुए हैं, एक अन्य गुहा, जहां बुद्ध शिष्यों से घिरे हुए हैं तथा एक और गुफा, जिसमें बुद्ध गणेश से मिल रहे हैं, प्रसिद्ध हैं। यहां बौद्ध मठ आज भी बौद्ध धर्माबलंबियों का एक प्रसिद्ध स्थल है तथा यहां बौद्ध धर्म के अनुयायी एवं भिक्षु बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं।
इनके अतिरिक्त औरंगाबाद में ही प्रसिद्ध ‘बीबी का मकबरा‘ है, जिसे औरंगजेब ने अपनी पत्नी राबिया-उद-दौरानी की याद में 1679 में निर्मित कराया था। यह दक्षिण भारत में मुगल स्थापत्य का सुंदरतम उदाहरण है तथा आगरा के ताजमहल से अत्यधिक समानता रखने के कारण इसे ‘दक्षिण का ताजमहल‘ कहा जाता है। इन सभी के अतिरिक्त यहां कई मस्जिदें भी हैं। यथा-काली मस्जिद (औरंगाबाद की स्थापना के समय निर्मित) 55 गुम्बदों वाली जामा मस्जिद एवं 18वीं सदी की शाहगंज मस्जिद।
यहां की सुंदर स्थापत्य कारीगरी का एक अन्य नमूना ‘पनचक्कीश् है। यह जल के वितरण एवं जलचक्की की एक विलक्षण व्यवस्था है, जिसे 1695 में बनवाया गया था। यह हाइड्रोलिक व्यवस्था का एक श्रेष्ठ उदाहरण है, जिसमें 3 किमी. दूर से स्थित एक झील से पानी खींचा जाता है। फिर उसे अन्यत्र वितरित किया जाता है। इसे औरंगाबाद शहर का वास्तुकार कहे जाने वाले मलिक अंबर की अभियांत्रिकी कला का एक अनुपम उदाहरण माना जाता है। 1624 में इसी पनचक्की के समीप स्थित बाग जिसमें मछलियों के अनेक हौज हैं, में औरंगजेब के आध्यात्मिक गुरु एवं प्रसिद्ध सूफी संत बाबा शाह मुसाफिर को दफनाया गया था।
औरंगाबाद के समीप ही दौलताबाद का प्रसिद्ध किला भी है।

अवन्ति
अवन्ति छठी शताब्दी ईसा पूर्व का एक शक्तिशाली महाजनपद था। इस महाजनपद का प्रमुख क्षेत्र वर्तमान में मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित है तथा यह नर्मदा के तट तक विस्तृत है। इसकी एक प्रसिद्ध नगरी महिष्मती थी, जिसे कभी-कभी इसकी राजधानी के रूप में भी उल्लिखित किया जाता है।
अवंति क्षेत्र में अनेक छोटे तथा बड़े नगर सम्मिलित हैं। पुराणों में इसका आधार यदुवंश में से एक हैहय का माना गया है। छठी शताब्दी ई.पू. महात्मा बुद्ध के समय यहां प्रद्योत का शासन था। हैहय वंश, अवंति के उपजाऊ भूमि में स्थित होने तथा इसके दक्षिण से आने वाले व्यापार पर नियंत्रण होने के कारण केंद्रीकृत राजतंत्र के रूप में विकसित हो सका। अवंति ने मगध के साम्राज्यवाद के विरोध में कड़ा संघर्ष किया परंतु वह सफल न हो सका। संभवतः यह मगध राजवंश के शिशुनाग के समय मगध के भीषण आक्रमण में हार गया हो।
बौद्ध परंपरा के अनुसार, अशोक ने अवंति के वायसराय के रूप में सेवा की, जब वह सिर्फ एक राजकुमार थे। क्योंकि मालवा क्षेत्र, जिसमें अवंति स्थित है, राजनैतिक तथा आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण था, प्राचीन समय में यह शकों तथा सातवाहनों के बीच संघर्ष का कारण बना तथा मध्य काल में राष्ट्रकूट तथा प्रतिहारों के मध्य झगड़े का कारण बना। इसी क्षेत्र से पूर्वी तथा पश्चिमी भारत के प्रमुख व्यापारिक मार्ग गुजरते थे। उज्जैन, अवन्ति की राजधानी, ने अब तक इसके ऐतिहासिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व को बनाए रखा।

अवन्तिपुर (33.92° उत्तर, 75.02° पूर्व)
अवन्तिपुर, कश्मीर राज्य की नई राजधानी थी। इसकी स्थापना उत्पल वंश के शासक अवंतिवर्मन ने 9वीं शताब्दी ईस्वी में की थी। वर्तमान समय में यह श्रीनगर से 30 किमी. दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यहां अवंतिवर्मन द्वारा निर्मित एक शिव मंदिर अवंतेश्वर एवं अवंतिस्वामी द्वारा निर्मित एक विष्णु मंदिर के भग्वावशेष ही मध्य काल से अब तक हैं।

अयोध्या (26.80° उत्तर, 82.20° पूर्व)
अयोध्या, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में सरयू नदी के दाहिनी तट पर स्थित है। अयोध्या का अर्थ है जिसे युद्ध से नियंत्रित न किया जा सके। यह नगर भगवान राम की पुण्य-भूमि होने के कारण 6ठी-7वीं शताब्दी ईसा पूर्व से ही इतिहास एवं साहित्य में अत्यंत प्रसिद्ध है।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में अयोध्या (जिसे साकेत के नाम से भी जाना जाता था) कौशल महाजनपद की प्रारंभिक राजधानी थी। पुराणों में इस नगरी का उल्लेख हिन्दुओं की सात पवित्र नगरियों (सप्तपुरी) में से एक के रूप में किया गया है, जबकि वाल्मीकीकृत रामायण में इसका उल्लेख भगवान राम की राजधानी के रूप में प्राप्त होता है। इस प्रकार हिन्दू इसे भगवान राम के जन्मस्थल के रूप में मानते हैं।
जैन एवं बौद्ध साहित्य में भी अयोध्या का उल्लेख प्राप्त होता है। जैन इसे अपने पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ एवं चैथे तीर्थंकर आदिनाथ का जन्म स्थान मानते हैं, तो बौद्ध धर्म के अनुयायी इस बात पर विश्वास करते हैं कि महात्मा बुद्ध ने यहां लंबे समय तक वास किया था। इस प्रकार अयोध्या हिन्दु, बौद्ध एवं जैन तीनों धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में जाना जाता है। पुरातात्विक उत्खनन दर्शाते हैं कि यह स्थल ई.पू. सातवीं शताब्दी के दौरान बसा हुआ था, जैसाकि बेहद उच्च कोटि के एवं विभिन्न रंगों के उत्तरी काले चमकदार मृदभांड संस्कृति (एनबीपीडब्ल्यू) की खोजों और साथ ही साथ नरकुल एवं मिट्टी के घरों तथा लौह एवं तांबे के प्रयोग से स्पष्ट होता है।
हमें चैथी-तीसरी शताब्दी ई.पू. की एक जैन मूर्ति भी मिली है, संभवतः वह भारत की प्राचीनतम जैन मूर्ति हो।
बुद्ध काल में कोसल उत्तरी तथा दक्षिणी दो भागों में विभक्त हो गया। अयोध्या, उत्तरी भाग की तथा श्रावस्ती दक्षिणी भाग की राजधानी बनी। इस समय श्रावस्ती के महत्व में वृद्धि हुई।
अयोध्या से कोसल के शुंग शासक धनदेव का एक लेख मिला है, जिससे ज्ञात होता है कि प्रसिद्ध शुंग शासक पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेघ यज्ञ किए थे।
प्रथम-द्वितीय शताब्दी की कुछ रोमन प्रकार की वस्तुओं की प्राप्ति से इस बात के संकेत मिलते हैं कि अयोध्या के ताम्रलिप्ति जैसे प्रसिद्ध बंदरगाह से व्यापारिक संपर्क भी थे। इस प्रकार यह एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी था।
प्रसिद्ध चीनी यात्रियों फाह्यान एवं ह्वेनसांग ने क्रमशः पांचवीं शताब्दी एवं सातवीं शताब्दी में यहां की यात्रा की थी। फाह्यान इसे सा-चा (साबेत) कहता है, जबकि ह्वेनसांग के अनुसार यहां सौ मठ एवं दस देवमंदिर थे। यद्यपि इनके पुरातात्विक प्रमाण नहीं पाए गए हैं।
अयोध्या ने मुस्लिम शासक जैसे-बाबर का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित किया, जिसने यहां एक मस्जिद का निर्माण कराया। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस से पूरा राष्ट्र हतप्रभ रह गया। इस घटना से हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द को गहरा धक्का लगा तथा भारत की धर्म-निरपेक्ष राज्य की छवि खराब हुई। वर्तमान में यह स्थान अत्यंत संवेदनशील बन गया है। हिन्दू धर्म के अनुयायी यहां राम मंदिर बनाने की मांग कर रहे हैं, जबकि मुस्लिम धर्मावलंबी मस्जिद बनाना चाहते हैं। यह मामला न्यायालय में लंबित है।