संगुणन किसे कहते हैं , Association in hindi | विलेय के संगुणन का अंश (DEGREE OF ASSOCIATION OF SOLUTE in hindi)
रसायन विज्ञान में संगुणन किसे कहते हैं , Association in hindi | विलेय के संगुणन का अंश (DEGREE OF ASSOCIATION OF SOLUTE in hindi) ?
असामान्य आण्विक द्रव्यमान (ABNORMAL MOLAR MASSES)
चूंकि अणुसंख्य गुण पदार्थ के कणों की संख्या पर निर्भर करते हैं अतः यदि विलेय पदार्थ विलयन में । संगुणित (associate) अथवा वियोजित (dissociate) होता हो, तो उसके अणसंख्य गुणों के मान असामान्य प्राप्त होंगे और जब हम इन गुणों के आधार पर यौगिकों के आण्विक द्रव्यमानों का परिकलन करेंगे तो हमें । इनके मान भी असामान्य ही प्राप्त होंगे। विलयनों में पदार्थों की निम्न दो प्रकार की असामान्य आण्विक स्थिति । हो सकती है
- संगुणन (Association) : कई कार्बनिक विलेय ऐसे होते हैं जो निर्जलीय (nonaqueous) विलायकों में संगुणित हो जाते हैं, अर्थात् उसके दो अथवा अधिक अणु संगुणित होकर बड़े अणु बना लेते हैं। इस प्रकार विलयन में प्रभावी अणुओं की संख्या कम हो जाती है जिससे उनके परासरण दाब, वाष्प दाब अवनमन, हिमांक अवनमन व क्वथनांक उन्नयन के मान कम हो जाते हैं। उदाहरणार्थ, बेन्जीन में ऐसीटिक अम्ल द्विगुणित अवस्था में होता है अतः उपर्युक्त में से किसी भी विधि द्वारा यदि ऐसीटिक अम्ल के अणु भार को ज्ञात किया जाय तो वह परिकलित मान 60 के स्थान पर 118 आता है।
- वियोजन (Dissociation) : अकार्बनिक अम्ल, क्षार अथवा लवणों को जब जल में घोला जाता है। तो वे वियोजित हो जाते हैं, अर्थात् एक अणु वियोजित होकर दो अथवा अधिक आवेशित कणों में परिवर्तित हो जाते है। उदाहरणार्थ, सोडियम क्लोराइड अपने जलीय विलयन में लगभग सम्पूर्ण रूप से Na’ व CIआयनों के रूप में होता है। अतः ऐसी स्थिति में विलयन में विद्यमान पदार्थ के कणों की प्रभावी संख्या बढ़ जाती है जिसके परिणामस्वरूप इन विलयनों के परासरण दाब, वाष्प दाब अवनमन, हिमांक अवनमन व क्वथनांक उन्नयन के मान, अपेक्षित मानों से कहीं ज्यादा आते हैं। वाण्ट हॉफ गुणांक (Van’t Hoff’s Factor)
इन असामान्य स्थितियों को समझाने के लिए वाण्ट हॉफ ने एक गुणांक, प्रस्तावित किया, जिसे वाण्ट हॉफ गुणांक (van’t Hoff’s factor) कहते हैं और निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं । I = प्रक्षित परासरण प्रभाव /अपेक्षित परासरण प्रभाव ……………..(51)
यहां परासरण प्रभाव से तात्पर्य किसी भी अणुसंख्य अणु (Colligative property) से है, अर्थात् परासरण दाब अथवा वाष्प दाब अवनमन अथवा क्वथनांक उन्नयन अथवा हिमांक अवनमन इनमें से किसी भी गण के प्रेक्षित एवं अपेक्षित मानों के अनुपात को वाण्ट हॉफ गुणांक । कहते हैं। ।
चूंकि ये सारे गुण विलेय की आण्विक संहति के व्युत्क्रमानुपाती होते हैं, अतः
I = अपेक्षित आण्विक संहति/ प्रेक्षित आण्विक संहति ।………… ….(52)
वाण्ट हॉफ गणांक की उपयोगिता यह है कि इसकी सहायता से किसी विलायक में किसी विलेय की आण्विक अवस्था का ज्ञान होता है। के मान से विलेय के सामान्य, संगुणित अथवा वियोजित होने का ज्ञान होता है और इससे विलेय पदार्थ के संगणन अथवा वियोजन की मात्रा को ज्ञात किया जा सकता है।।
- i = 1 (विलेय अणु सामान्य अवस्था में)
- i<1 (विलेय अणु संगुणित अवस्था में)
- i> 1 (विलेय अणु वियोजित अवस्था में)
विलेय के संगुणन का अंश (DEGREE OF ASSOCIATION OF SOLUTE)
संगुणन या संयोजन की मात्रा से तात्पर्य है कुल अणुओं की वह भिन्न (fraction) जो कि परस्पर संगुणित होकर बड़े अणु बनाती है। माना कि विलायक के किसी आयतन में विलेय का एक मोल घुला हुआ है। माना कि n सरल अणु मिलकर एक बड़ा अणु बनाते हैं, अर्थात्
Na = (A)n
माना कि संगुणन की मात्रा x है। अतः
- असंगुणित मोलों की संख्या = 1 -x
- संगुणित मोलों की संख्या = x/n
- प्रभावी मोलों की कुल संख्या = 1 – x + (x/n)
वाण्ट हॉफ गुणांक, i = प्रेक्षित अणुसंख्य गुण / परिकलित अणुसंख्य गुण…………(53) उपर्युक्त समीकरण (53) की सहायता से वाण्ट हॉफ गुणांक, i का परिकलन किया जा सकता है और फिर निम्न समीकरण की सहायता से यदि n ज्ञात हो तो x का मान परिकलित किया जा सकता है
I = कणों की प्रभावी संख्या/ कणों की अपेक्षित संख्या……… …(54)
I =1 x + (x/n)/1 अथवा I = n – nx + x/ n
अथवा nx – x = n – ni अथवा x (n-1) = n (1- I )
X = n (1-1)/ (n-1) ………………(55)
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण बिन्दु
(1) विलयन—दो या अधिक अवयवों का एक समांगी मिश्रण।
(2) विलायक विलयन का प्रमुख अवयव, विलेय विलयन का शेष अवयव ।
(3) रॉउल्ट का नियम विलयन का वाष्प दाव « विलायक की मोल भिन्न
Ps = xo
(4) आदर्श विलयन—जो रॉउल्ट नियम का पालन करें। इनके Hmix व Vmix का मान शून्य होता है। (5) अनादर्श विलयन—जो रॉउल्ट नियम का पालन नहीं करें, प्रकार दो (i) धनात्मक विचलन दर्शाने वाले इनका वाष्प दाब आदर्श विलयन से उच्च होता है और Hmix व Vmix धनात्मक होता है। (ii) ऋणात्मक विचलन दर्शाने वाले—इनका वाष्प दाब आदर्श विलयन से कम होता है और Hmix व Vmix ऋणात्मक होता है।
(6) सान्द्रता— विलयन के निश्चित भार या आयतन में विद्यमान विलेय की मात्रा, मोललता-मोल/1000 g, भार प्रतिशत—g/100 g, मोल भिन्न–मोल/कुल मोल, मोलरता-मोल/L, नॉर्मलता-g Eq/L, फॉर्मलता—सूत्रभार/L
(7) सक्रियता—किसी विलयन में विद्यमान आयनों का वह अंश जो स्वतन्त्र विचरण कर सकता हो और विद्युत् धारा ले जाने में समर्थ हो, a=f.c, जहां f = सक्रियता गुणांक व c = मोलर सान्द्रता, a = Y.m, जहां Y= मोलल सक्रियता गुणांक व m = मोलल सान्द्रता।
(8) औसत आयनिक सक्रियता धनायनों व ऋणायनों की सक्रियता (a+ व al) के गुणनफल का वर्गमूल at = V(a)(a), जहां (a+)(a) = a विद्युत्-अपघट्य की सक्रियता।
(9) ओसत मोलल आयनिक सक्रियता गुणांक एक सामान्य विद्युत्-अपघट्य AxBx के लिए a = xxyy (m y)x+y तथा (Y)x+y =( Y)x (y)y
(10) आयनिक सामर्थ किसी विलयन में उपस्थित आयनों के कारण उत्पन्न वैधुत सामर्थ्य u = ½ (m1z12 + m2z22 + ……….+ mnzn2)
(11) अणुसंख्य गुण—गुण जो पदार्थ के कणों (अणु, परमाणु या आयन) की संख्या पर निर्भर करते हों, उनकी प्रकृति पर नहीं।
(12) परासरण एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा शुद्ध विलायक या तनु विलयन से विलायक अणुओं का सान्द्र विलयन की ओर गमन करना।
(13) अर्द्धपारगम्य झिल्ली ऐसी झिल्ली जो विलायक अणुओं को गुजरने दे लेकिन विलेय को नहीं।। (14) परासरण दाब विलयन पर लगाया जाने वाला वह दाब जो विलायक अणुओं को अर्द्धपारगम्य झिल्ली से विलयन में न आने दे।
(15) वाण्ट हॉफ समीकरण V = nRT
(16) समपरासारी बिलयन–ऐसे विलयन जिनका परासरण दाब समान हो।
(17) रॉउल्ट का नियम लवण की उपस्थिति से विलयन का वाष्प दाब शुद्ध विलायक से कम होता है। आपेक्षिक दाब अवनमन = p0 – Ps/p0 = x1 n/n + N
अत्यन्त तनु विलयन के लिए P0 – Ps/p0 = n/N = W1/M1/W0/M0
(18) परासरण दाब व वाष्प दाब अवनमन में सम्बन्ध P0 – Ps /P0 RT/M0
(19) क्वथनांक में उन्नयन लवणों की उपस्थिति से विलायक के क्वथनांक में वृद्धि होती है।
क्वथनांक उन्नयन TB,= KB x W1 x 1000 /M1 Xw0
तथा kb = RT02/hv x 1000
(20) हिमांक में अवनमन लवणों की उपस्थिति से विलायकों के हिमांक कम हो जाते हैं।।
हिमांक अवनमन Tf = Kf x W1 x 1000 /M1 x W0
तथा kf = RT02/ 1000 hF
(21) वाण्ट हॉफ गुणांक विलयन में विलेय की सामान्य, संगुणित अथवा वियोजित अवस्था दर्शाने वाली। संख्या, इसका मान 1 हो तो अणु सामान्य, 1 से कम हो तो अणु संगुणित अवस्था में होंगे और ।। का मान 1 से अधिक होने पर अणु वियोजित अवस्था में होंगे।
I = प्रेक्षित अणुसंख्य गुण/ अपेक्षित अणुसंख्य गुण = अपेक्षित आण्विक द्रव्यमान/ प्रेक्षित आण्विक द्रव्यमान
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