(apiaceae umbelliferae family in hindi) Umbellifers (सेलेरी) ऐपियेसी अथवा अम्बेलीफेरी – कुल क्या है ? पादप नामक बताइए , विशेषता लक्षण किसे कहते है परिभाषा ?
ऐपियेसी अथवा अम्बेलीफेरी – कुल (apiaceae umbelliferae family) :
(पारसले कुल : केरट (गाजर) कुल : लेटिन – umbella = umbrella या छतरी , छत्रक अथवा अम्बेल पुष्पक्रम के लिए , apium = parsely)
वर्गीकृत स्थिति : बेन्थम और हुकर के अनुसार –
प्रभाग – एन्जियोस्पर्मी
उपप्रभाग – डाइकोटीलिडनी
वर्ग – पोलीपेटेली
श्रृंखला – केलिसीफ्लोरी
गण – अम्बेलेल्स
कुल – एपिएसी , अम्बेलीफेरी।
अम्बेलीफेरी कुल के प्रमुख लक्षण (characteristic features of umbelliferae family)
- अधिकतर सदस्य एकवर्षी , द्विवर्षी अथवा बहुवर्षी शाकीय , तने के पर्व खोखले।
- पर्ण और अन्य भागों में वाष्पशील तेल ग्रन्थियाँ उपस्थित।
- पर्ण सरल अथवा संयुक्त और पुनर्विभाजित अननुपर्णी , पर्णाधार आच्छादी और पर्णवृंत प्राय: फुला हुआ।
- पुष्पक्रम सरल अथवा संयुक्त पुष्प छत्रक।
- पुष्प पंचतयी और उपरिजायांगी।
- अंडाशय अधोवर्ती , द्विकोष्ठीय , बीजांडविन्यास स्तम्भीय।
- फल वेश्मस्फोटी , क्रीमोकार्प।
प्राप्तिस्थान और वितरण (occurrence and distribution of umbelliferae family)
द्विबीजपत्री पौधों के इस महत्वपूर्ण कुल में लगभग 350 वंश और 3050 प्रजातियाँ सम्मिलित है। (रेनाल्ड गुड 1961 के अनुसार) जो प्राय: विश्व के सभी भागों में पायी जाती है। लेकिन इस कुल के अधिकांश सदस्य उत्तरी शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते है। भारत में इस कुल के 53 वंश और लगभग 210 प्रजातियाँ मुख्यतः हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं में पायी जाती है , तथापि कुछ सदस्य मैदानी भागों में भी मिलते है।
कायिक लक्षणों का विस्तार (range of vegetative characters)
प्रकृति और आवास : इस कुल के पादप प्राय: एकवर्षी , द्विवर्षी अथवा बहुवर्षी शाक होते है , यद्यपि बुप्लेरम और ट्रेकीमीन की अनेक प्रजातियाँ झाड़ियों के समान होती है लेकिन इस कुल में क्षुप और वृक्ष स्वभाव के पादप नहीं पाए जाते है। स्यूडोकेरम एक आरोही पौधा है। एन्जेलिका की कुछ प्रजातियों की ऊँचाई कभी कभी 4 मीटर तक होती है।
मूल : प्राय: शाखित और मूसला जड़ें पायी जाती है। गाजर की जड़ें खाद्य पदार्थ संचय के कारण रूपांतरित होकर शंक्वाकार हो जाती है।
स्तम्भ : प्राय: उधर्व , मजबूत और खोखले पर्व युक्त , कोणीय , शाखित और शाकीय , सैन्टेला का तना शयान और कोमल होता है और इसके तने की पर्वसंधियों से जड़ें निकलती है।
अम्बेलीफेरी कुल के सदस्यों के पादप शरीर में वाष्पशील तेल ग्रन्थियों की उपस्थिति इसका प्रमुख पहचान का लक्षण है।
पर्ण : सरल , एकांतर अथवा पिच्छाकार संयुक्त या पुनर्विभाजित , सेन्टेला एशियाटिका में पत्तियाँ सरल होती है। सेनीकुला में हस्ताकार संयुक्त और एनीथम में त्रिपर्णीय संयुक्त होती है। अननुपर्णी लेकिन सेन्टेला में पत्ती के आधार पर झिल्ली]नुमा अनुपर्ण और वृक्काकार पर्णफलक सहित लम्बे पर्णवृंत उपस्थित होते है। पर्णवृंत प्राय: फूला हुआ और आधार पर स्तम्भ को घेरे रहता है। शिराविन्यास जालिकावत लेकिन एरिन्जियम में पत्तियाँ एकबीजपत्री पर्ण के समान होती है और उनमें समानांतर शिराविन्यास पाया जाता है।
पुष्पीय लक्षणों का विस्तार (range of floral characters)
पुष्पक्रम : छत्रक पुष्पक्रम की उपस्थिति इस कुल का प्रमुख लक्षण है। कभी कभी छत्रक अपहासित होकर एकल पुष्प (जैसे – हाइड्रोकोटाइल में) अथवा एक संयुक्त मुण्डक (जैसे – एरिन्जियम में) बनाता है।
छत्रक सरल अथवा संयुक्त हो सकता है। अधिकांश सदस्यों में संयुक्त पुष्प छत्रक पाया जाता है जिसकी एक प्राथमिकता इकाई को छत्रिका कहते है। संयुक्त छत्रक वाली प्रजातियों में प्राथमिक छत्रको के आधार पर सहपत्रों का एक चक्र अथवा निचक्र पाया जाता है और प्रत्येक पुष्पवृन्त के चारों तरफ सहपत्रों का चक्र इन्वोल्यूसल पाया जाता है। एनिथम में इन्वोलयूकर और इन्वोल्यूसल दोनों ही अनुपस्थित होते है।
एस्ट्रेन्शिया मेजर में छत्रक और सेन्टेला एशियाटिका में पुष्पक्रम तीन पुष्पों का सरल ससीमाक्ष होता है।
इस कुल के अधिकांश सदस्यों के पादप शरीर में पृथकजन्य नलिकाएँ पायी जाती है। इनमें ईथर युक्त तेल और ओलियोरेजिन भरा होता है।
पुष्प : पंचतयी सहपत्री (जैसे कोरिएन्ड्रम) अथवा असहपत्री (जैसे एनीथम) प्राय: उभयलिंगी लेकिन कभी कभी एकलिंगी जैसे एसीफिला और एजोरैला में , चक्रिक प्राय: त्रिज्यासममित लेकिन कभी कभी और व्यास सममित जैसे कोरिएन्ड्रम में छत्रक के परिधीय पुष्प।
बाह्यदल पुंज : बाह्यदल-पत्र 5 , स्वतंत्र , विन्यास प्राय: कोरस्पर्शी लेकिन कभी कभी कोरछादी जैसे सेनीक्यूला में , कुछ सदस्यों , जैसे एनिथम में बाह्यदल अपहासित होकर अंडाशय के ऊपरी सिरे पर छोटे दाँतो के समान दिखाई देते है।
दलपुंज : दलपुंज-5 , पृथकदलीय , दलपत्र प्राय: कोरखाँची अथवा द्विपालित , कलिका अवस्था में अंतर्नत होते है। विन्यास कोरस्पर्शी अथवा कोरछादी। कोरिएंड्रम के परिधीय पुष्पों के अग्र और पाशर्व दलों की पालियाँ बड़ी और पश्च पालियाँ छोटी हो जाती है। इसमें परिधीय पुष्प एकव्यास सममित हो जाते है।
पुमंग : पुंकेसर पाँच और स्वतंत्र और उपरिजायांगी बिम्ब से निकलते है , परागकोष द्विकोष्ठी अंतर्मुखी , आधारलग्न अथवा पृष्ठलग्न होते है , प्रस्फुटन लम्बवत होता है।
जायांग : द्विअंडपी और युक्तांडपी , अंडाशय अधोवर्ती , द्विकोष्ठीय , बीजांडन्यास स्तम्भीय। अंडाशय के ऊपरी सिरे पर एक जायांगोपरिक बिम्ब , फूली हुई और लगभग द्विपालियुक्त ग्रंथिल और मकरंद युक्त होती है। इसे वर्तिकापाद कहते है। स्टाइलोपोडियम की प्रत्येक पालि से स्टाइलोडियम (दो वर्तिकाएँ) उत्पन्न होता है जो समुंड वर्तिकाग्र में समाप्त हो जाता है।
फल और बीज : भिदुर अथवा वेश्मस्फेटी फल इस कुल का लाक्षणिक गुण है जो क्रीमोकार्प कहलाता है। परिपक्व होने पर दो फलांशकों में टूट जाता है। बीच में तेलयुक्त भ्रूणपोष पाया जाता है।
परागण और प्रकीर्णन : प्राय: कीट परागण होता है और बीजों का प्रकीर्णन पक्षियों अथवा अन्य जन्तुओं द्वारा होता है।
पुष्प सूत्र :
केन्द्रीय पुष्प –
परिधीय पुष्प –
बन्धुता और जातिवृतीय सम्बन्ध (affinities and phylogenetic relationships)
कुल एपियेसी अन्य द्विबीज पत्री कुलों में कार्नेसी और ऐरेलियेसी से समानता प्रदर्शित करता है , लेकिन अपने विभिन्न विशिष्ट फल क्रीमोकार्प के कारण दोनों कुलों से पृथक किया जा सकता है। एक्नेसी कुल भी यह अनेक लक्षणों में समानता परिलक्षित करता है।
एपियेसी के प्रगत लक्षण (advanced characters of apiaceae family)
द्विबीजपत्री पौधों के वर्ग पोलीपेटेली में एपियेसी को अत्यन्त प्रगत अथवा विकसित माना जाता है क्योंकि –
1. इस कुल के अधिकांश सदस्य शाकीय है।
2. इस कुल में सरल अथवा संयुक्त छत्रक पुष्पक्रम पाया जाता है जो एक उन्नत प्रकार का पुष्पक्रम है। यहाँ अनेक छोटे छोटे पुष्प मिलकर एक सघन पुष्पक्रम बनाते है जो कि दूर से ही कीट को आकर्षित कर लेता है तथा एक ही कीट के द्वारा असंख्य पुष्पों में परागण सम्पन्न हो जाता है।
3. अधिकांश सदस्यों में अम्बेल की परिधि पर या तो नर पुष्प अथवा बन्ध्य पुष्प होते है , इस प्रकार यह पुष्पक्रम एस्टेरेसी या कम्पोजिटी कुल के पुष्पक्रम मुंडक से मिलता जुलता है। अक्सर परिधि पर स्थित पुष्पों के बाहरी दल बड़े होते है जबकि केंद्र में स्थित पुष्पों के सभी दल छोटे छोटे होते है।
4. बाह्यदल , दल , पुंकेसर और अंडपों की संख्या सिमित होती है।
5. जायांग द्विअंडपी और अंडाशय अधोवर्ती होता है।
आर्थिक महत्व (economic importance)
इस कुल के विभिन्न सदस्यों से मसाले , सब्जियाँ और वाष्पशील तेल प्राप्त होते है।
I. सब्जियाँ :
1. एपियम ग्रेवियोलेन्स अजमोद – पत्तियों की सब्जी।
2. पास्टेनिका सेटाइवा – सब्जी और सलाद।
3. डाकस केरोटा – गाजर।
II. मसाले :
1. कोरीएन्ड्रम सेटाइवम – धनिया।
2. फोनीकुलम वल्गेयर – सौंफ।
3. ट्रेकीस्पर्मम एमाई – अजवायन।
4. केरम कारवी – स्याह जीरा।
5. क्यूमिनम साइमिनम – जीरा।
6. एनिथम ग्रेवियोलेन्स – सोवा।
7. फेरुला एसाफोटिडा , फेरुला फोटिडा , फेरुला रूबीकालिस और फेरुला एलियोसिया आदि पौधों के भूमिगत भागों से एक विशेष प्रकार का ओलियोरेजिन निकलता है। इसे डेविल्स डंग कहा जाता है। इसे लेटेक्स के रूप में निकालकर सुखा लेते है और इसका हींग के रूप में प्रयोग किया जाता है।
III. औषधियां :
1. सेन्टेला एशियाटिका – बाह्य बूटी का प्रयोग स्मरण शक्ति बढाने , शीतलता प्राप्त करने और मूत्रल और शक्तिवर्धक के रूप में किया जाता है।
2. फेरुला सम्बुल – इससे प्राप्त संबुल नामक औषधि का उपयोग हिस्टीरिया के उपचार में किया जाता है।
3. फेरुला एसाफोटिडा (हींग) – इसका उपयोग दमा , खाँसी और पेट दर्द के उपचार में करते है।
IV. सजावटी पौधे :
1. पिम्पीनेला डायोका – ladie’s lace
2. हेराक्लियम – angle’s face
3. एन्जेलिका – heaven’s flower
4. एरिन्जियम प्लेनम – sea holly
अम्बेलीफेरी कुल के महत्वपूर्ण पादप का वानस्पतिक वर्णन (botanical description of important plant of umbelliferae)
कोरिएन्ड्रम सेटाइवम लिन. (coriandrum sativum linn in hindi) :
स्थानीय नाम : धनिया , हरा धनिया।
प्रकृति और आवास : उगाया जाने वाला एकवर्षीय शाक।
मूल : शाखित मूसला जड़।
स्तम्भ : उधर्व , शाकीय , हरा वायवीय , दुर्बल खोखला अथवा ठोस सुगन्धित , बेलनाकार , शाखित , धारीदार , अरोमिल , पर्व सन्धियाँ कुछ फूली हुई।
पर्ण : संयुक्त और पुनर्विभाजित , स्तम्भीय और शाखीय , अननुपर्णी , एकान्तरित , सवृंत , शिराविन्यास जालिकावत , पर्णक पतले अच्छिन्न कोर , सुगन्धित।
पुष्पक्रम : संयुक्त छत्रक , निचक्र और इन्वोल्यूसल युक्त।
पुष्प : सवृन्त , सहपत्री , उभयलिंगी , पूर्ण , उपरिजायांगी , छत्रक के परिधीय पुष्प एकव्याससममित , केन्द्रीय पुष्प त्रिज्या सममित , पंचतयी और चक्रिक।
बाह्यदल : बाह्यदल 5 , स्वतंत्र , कोरस्पर्शी।
दलपुंज : दल 5 , स्वतंत्र , परिधीय पुष्पों में दो पश्च दल , सबसे छोटी और द्विपालित , एक अग्र दल बड़ा और द्विपालित , दो पाशर्व दल मध्यम आकार के होते है। इसी वजह से परिधीय पुष्प एकव्याससममित हो जाते है।
पुमंग : पुंकेसर 5 , पृथक पुंकेसरी पुंतन्तु लम्बे परागकोष द्विकोष्ठी , पृष्ठलग्न और अंतर्मुखी।
जायांग : द्विअंडपी , युक्तांडपी , अंडाशय अधोवर्ती , द्विकोष्ठी , बीजांडन्यास स्तम्भीय , वर्तिकाएँ 2 , वर्तिकाग्र समुंड , अंडाशय के ऊपरी सिरे पर स्टाइलोपोडियम उपस्थित।
फल : क्रीमोकार्प।
पुष्प सूत्र :
परिधीय पुष्प –
केन्द्रीय पुष्प –
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1. वाष्पशील तेल ग्रंथियाँ पायी जाती है –
(अ) एपियेसी में
(ब) मालवेसी में
(स) एस्टेरेसी
(द) सोलेनेसी में
उत्तर : (अ) एपियेसी में
प्रश्न 2 : गाजर का वानस्पतिक नाम है –
(अ) फोनिक्यूलम
(ब) डाकस
(स) कोरियेन्ड्रम
(द) इरिन्जियम
उत्तर : (ब) डाकस
प्रश्न 3 : छत्रक पुष्पक्रम पाया जाता है –
(अ) पोऐसी
(ब) मालवेसी
(स) एपियेसी
(द) लिलीयेसी में
उत्तर : (स) एपियेसी
प्रश्न 4 : हींग का वानस्पतिक नाम है –
(अ) कोरियेन्ड्रम
(ब) इरीन्जियम
(स) एपियम
(द) फेरुला
उत्तर : (द) फेरुला
प्रश्न 5 : ऐपियेसी का औषधिक पादप है –
(अ) सेन्टैला
(ब) एपियम
(स) डाकस
(द) फोनीक्यूलम
उत्तर : (अ) सेन्टैला