परागकोष संवर्धन क्या है ? Anther Culture in hindi meaning परागकोष संस्कृति की खोज किसने की
Anther Culture in hindi meaning परागकोष संवर्धन क्या है ? परागकोष संस्कृति की खोज किसने की ?
परागकोष, बीजाण्ड व भ्रूण संवर्धन
(Anther, Ovule and Embryo Culture)
परिचय (Introduction)
परागकोषों को उपयुक्त पोषक पदार्थों पर संवर्धित करके अगुणित पादपों की प्राप्ति को परागकोष संवर्धन कहते हैं। भारत में सर्वप्रथम 1964 में गुहा एवं महेश्वरी ने धतूरा के परागकोषों का संवर्धन किया व इसके द्वारा भ्रूण समान संरचनायें (embryoids) प्राप्त किये जो बाद में लघुनवोद्भिदों (plantlets) में परिवर्धित हुये । परागकण व परागकोषों के संवर्धन का उपयोग पादप प्रजनन में महत्वूपर्ण है। वर्तमान में इस तकनीक द्वारा लगभग 250 से अधिक आर्थिक रूप से उपयोगी पादप जातियों की कोशिका वंशावली (cell lines) व अगुणित (haploid) पादप प्राप्त किये जा चुके हैं। सोलेनेसी कुल में चूँकि आर्थिक महत्व के कई उपयोगी पादप प्राप्त होते हैं (सब्जी, फल तम्बाकू, औषधि) अतः इस कुल के पादपों पर सर्वाधिक कार्य हुआ है।
जिन परागकोषों को संवर्धन के लिए उपयोग में लाना होता है उन परागकोषों को या तो खेतों में उगाये अथवा ग्रीन हाउस में उगाये पादपों से प्राप्त किया जा सकता है। उपयुक्त अवस्था के परागकण युक्त पुष्प कलिका का सतह निर्जमीकरण करने के पश्चात् ही परागकणों या परागकोषों को निकाल कर संवर्धन माध्यम अर्थात् पोष पदार्थ में कुछ डूबा हुआ अथवा लम्बवत् अवस्था में रखते हैं।
कुछ पादप जातियाँ जैसे निकोटियाना, हॉर्डियम, ट्रिटिकम में परागकण अपेक्षाकृत बड़े व मंड युक्त होते हैं द्य कुछ पादपों के परागकण छोटे होते हैं व उनमें मंड कम मात्रा में उपस्थित होता है यह 5-कण कहलाते हैं। यह माना जाता है कि संवर्धन में इन्हीं कणों से परागभ्रूण प्राप्त होते हैं। परागकोष में बड़े व छोटे दो प्रकार के परागकणों की उपस्थिति को परागद्विरूपिता (pollen-dimorphism) कहते हैं।
संवर्धन के प्रथम लगभग 6-12 दिनों में परागकणों में उपस्थित कोशिकाद्रव्य व राइबोसम अपहासित (degenerate) होने लगते हैं तथा नये कोशिकाद्रव्य व राइबोसोम का संश्लेषण होता है। यह 6-17 दिनों की अवधि प्रेरणकाल (induction period) कहलाती है। कुछ परागकोष संवर्धन करने पर सीधे भ्रूण निर्मित कर लेते हैं जबकि कछ परागकोष पहले कैलस बनाते हैं और फिर उनसे लघु पादपक परिवर्धित होते है। परागकोष द्वारा परिवर्धित भ्रूणों का निर्माण निम्न कारकों (factors) पर निर्भर करता है।
(प) संवर्धन माध्यम (Culture medium)
(पप) संवर्धन के समय परागकण की परिपक्वता (Maturity ofpollen grain at the time of culture)
(पपप) दाता पादप की कार्यिकी (Physiology of donar plant)
(पअ) जीनी संरचना का प्रभाव (eff~ect of genotype)
(अ) तापक्रम (Temperature)
(प) संवर्धन माध्यम (Culture medium)
काइनटिन, साइटोकाइनिन या जिऐटिन, शर्करा 6-12% सान्द्रता व Fe संवर्धन माध्यम में होने परागकोष परिवर्धन अच्छे नतीजे देता है।
(पप) संवर्धन के समय परागकण की परिपक्वता (Maturity of pollen grain at the time of culture)
परागकणों से अगणित भ्रूण का परिवर्धन पुंजनन (androgenesis) कहलाता है। इसके लिए परागकोष किस परिवर्धन अवस्था में है यह एक क्रांतिक कारक (critical factor) है। सभी पादपों के लिए यह कारक अलग अलग होते हैं जैसे-
(ं) सामान्यतः परागकण में प्रथम समसूत्री विभाजन के पश्चात् ।
(इ) लाइकोपरसिकॉन में परागमातृ कोशिका (pollen grain mother cell) की अर्धसूत्रण उपयुक्त प्रावस्था वह मानी जाती
है।
(ब) बेसिका केम्पेस्ट्रिस में परागकण की त्रिकोशिय अवस्था में प्राप्त परागकोष संवर्धन माध्यम पर बेहतर परिवर्धन प्रदर्शित करते
हैं।
(पपप) दाता पादप की कार्यिकी (Physiology of donar plant)
संवर्धन हेतु जिस पादप से परागकोष प्राप्त करते हैं वह दाता पादप कहलाता है। दाता पादप की आयु व जिस परिस्थिति में उग रहा है वह परागकोष के संवर्धन माध्यम में विकसित होने पर प्रभाव डालता है।
(पअ) जीनी संरचना का प्रभाव (effect of Genotype)
पादप जाति कि किस्म (variety) का प्रभाव परागकोष परिवर्धन द्वारा भ्रूण निर्माण पर बहुत अधिक रिपोर्ट किया गया है। इसका एक कारण जिस पर सभी वैज्ञानिक सहमत हैं वह है इनकी वंशावलियों (genetic lines) की विविधता जो इन्हें एक ही संवर्धन माध्यम पर अलग-अलग प्रकार का व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।
(अ) तापक्रम (Temperature)
निकोटिआना पुष्प कलिका में उपस्थित परागकोष को संवर्धन माध्यम पर रखने से पूर्व यह देखा गया है कि अगर इन्हें कम तापक्रम पर एक निश्चित समय (5°C पर 72 घंटे) तक रखा गया तब इनसे भ्रूणाभ निर्मित करने वाले परागकणों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। धूतरा के परागकोषी को 25°C तापक्रम पर रखने पर अधिक भ्रूणाभ विकसित होते हैं।
परागभ्रूण का परिवर्धन पथ (Pathway development of pollen embryos)
अगुणित एककेन्द्रकी परागकण निर्मित होने के साथ ही इसमें समसूत्री विभाजन होते हैं। यह कोशिका विभाजन कई प्रकार के हो सकते हैं व इन्हीं के आधार पर परागभ्रूणों के परिवर्धन पथ को विभक्त किया गया है।
परागभ्रूण का परिवर्धन पथ
(परागकण में विभाजन)
प्रथम पथ द्वितीय पथ तृतीय पथ चतुर्थ पथ
1. इसमें सममित 1. इसमें असममित 1. इसमें असममित 1. इसमें असममित
विभाजन विभाजन विभाजन विभाजन
होते हैं। होते हैं। होते हैं। होते हैं।
2. दो समान 2. दो असमान 2. दो असमान 2. दो असमान
कोशिकायें कोशिकायें कोशिकायें कोशिकायें
निर्मित होती हैं। निर्मित होती हैं। निर्मित होती हैं। निर्मित होती हैं।
3. दोनों आगे 3. बड़ी कायिक 3. छोटी जनन 3. दोनों कोशिकायें
परिवर्धन कोशिका आगे कोशिका आगे आगे परिवर्धन
में भाग लेती हैं। परिवर्धन में परिवर्धन में भाग में भाग लेती हैं।
उदाहरण: धतूरा भाग लेती हैं। लेती हैं। बड़ी उदाहरण: धतूरा
इनोक्सिया उदाहरण: कायिक कोशिका
निकोटिआना टबेकम नष्ट हो जाती है
उदाहरण: हायोसाइमस
नाइगर
भ्रूणाभ परिवर्धन (Embryoid development)
कोशिका विभाजन उपरान्त परागकण बहुकोशिकीय हो जाते हैं तथा बाह्यचोल के फटने से यह संहति बाहर आ जाती है। यह संहति भू्रण या कैलस निर्मित करने में सक्षम होती है। भ्रूण का समुचित परिवर्धन केवल उसी दिशा में होता है जब इनका मूलांकुर (radicle) वाला भाग परागकोष भित्ति से सटा होता है तथा बाह्यचोल इस प्रकार टूटता है कि भ्रूण का प्रांकुर (plumule) हिस्सा मुक्त होता है। यह अवस्था ध्रुवण (polarity) स्थापित करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस द्विध्रुवीय (bipolar) भ्रूण में विद्युतीय (electrical) ध्रवण स्थापित हो जाता है जिससे प्रांकुर सिरे से K़ आयन प्रवेश करते हैं व मूलाकुंर सिरे से भ़् आयन बाहर निकलते हैं। धु्रवण का निर्माण भू्रणजनन प्रक्रिया के लिए एक आवश्यक चरण होता है। संवर्धन पर बने भू्रण मिश्रित बहुगुणिता प्रदर्शित करते हैं जो कायिक कोशिकाओं में होने वाले बहुसूत्रण के कारण होती है।
पराग संवर्धन (Pollen culture)
परागकोष में परागकण आनुवंशिकी रूप से विषमांगी होते हैं अतः परागकोष का संवर्धन करने पर उपलब्ध पादप भी विषमांगी (heterogenous) होते हैं। जो परागकोष. कैलस निर्मित करके भू्रण बनाते है उनमें कैलस भी एक प्रकार का विचित्रोतकी (chimera) ऊतक होता है। उपरोक्त स्थिति से निबटने के लिए वियुक्त परागकण संवर्धन अधिक उपयुक्त माना जाता है।
शार्प व उनके सह अनुसंधानकर्ताओं (Sharp et al., 1972) ने लाइकोपर्सिकॉन के एकल अर्थात वियुक्त परागकणों द्वारा अगणित ऊतक के विशुद्ध क्लोन प्राप्त किये। अन्य कुछ उदाहरण जिनसे विश अगुणित प्राप्त किये गये वह हैं-निकोटिआना ग्लूटिनोसा, पिटूनिया हाइब्रिडा आदि।
परागकोष से परागकणों की वियुक्ति निम्न प्रक्रिया द्वारा की जा सकती है-
अपकेन्द्रित प्रक्रिया (Centrifuge process)
लगभग 50 परागकोषों को 20mm पोषक पदार्थ पर रखते हैं। परागको को एक काच की छड दबाते हैं व प्राप्त निलम्बन को 25-100 11um आमाप वाले छिद्रित नायलॉन की जाली से छान लेते हैं। जो घोल तैयार होता है उसे 500-800 rpm पर 5 मिनट तक अपकेन्द्रित (centrifuge) करते हैं जिससे परागकण वियुक्त हो जाते हैं। वियक्त परागकणों को संवर्धन माध्यम पर रख कर परिवर्धित कर लेते है।
.प्लवन संवर्धन (Float culture)
इस प्रक्रिया में पेट्रीप्लेट में पोषक पदार्थ लेते हैं तथा इसकी उथली (shallow) सतह पर परागकोष रखते हैं जिससे परागकोष इसकी सतह पर प्लवित होते रहते हैं। एक दो दिन पश्चात् जब परागकोष फटते हैं तब इनके परागकण निकल कर पोषक पदार्थ पर नीचे की ओर गमन कर जाते हैं तथा तली पर बैठ जाते हैं। परागकोषों से कई दिनों तक परागकण मुक्त होते रहते हैं अतः जब इनका क्रमबद्ध (serial) उपसंवर्धन (sub culture) किया जाता है तब परागकण अलग-अलग परिवर्धन की अवस्थाओं में मिल जाते हैं।
वर्तमान में विशिष्ट समृद्ध, संरलिष्ट पोषक पदार्थ उपलब्ध हैं जिन पर परागकणों का संवर्धन (culture) सीधे ही किया जा सकता है। अगुणित कोशिकाओं का द्विगुणीकरण (Diplodçation of haploid cells)
अगुणित परागकणों से जो ऊतक प्राप्त होते हैं वह परिवर्धित होकर लघुनवोद्भिद बनाते हैं। इन अगुणित पादपों के बीजाण्डमातृ कोशिकाओं में जब अर्धसूत्री विभाजन होते हैं तब उनमें अनेक प्रकार की विसंगतियां पायी जाती हैं तथा वह सक्षम युग्मक (gamete) नहीं बना पाते हैं। समयुग्मजी जननक्षम (fertile) द्विगुणित अवस्था को प्राप्त करके सामान्य द्विगुणित पादप बनाने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि कोशिकाओं में उपस्थित गुणसूत्रों के अगुणित समुच्चय (haploid set) को द्विगुणित किया जाये। इस क्रिया में कॉल्चीसीन नामक रसायन काम में लिया जाता है जो विभाजन के दौरान r’ संचालन – को नियंत्रित करके द्विगुणित अवस्था उत्पन्न करता है। वर्तमान में परागकण से उत्पन्न अगुणित कैलस की कोशिकाओं के अन्तःसूत्री विभाजन (endomitosis) द्वारा द्विगुणीकरण किया जाता है। इस कैलस की द्विगुणित कोशिकाओं का पोषक पदार्थ (nutrient medium) पर संवर्धन करके जननक्षम द्विगुणित पादप आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं।
अगुणित पादपों की उपयोगिता (Importance of haploid plants)
1. अगुणित पादपों द्वारा प्रेरित उत्परिवर्तन का पता आसानी से लगाया जा सकता है। वांछित (desired) उत्परिवर्तन का चयन
करने के पश्चात् कैलस का द्विगुणीकरण करके जननक्षम सामान्य द्विगुणित पादप प्राप्त किये जा सकते हैं।
2. प्रकृति में अगुणित पादपों का मिलना दुलर्भ है जबकि परागकोष या परागकण संवर्धन द्वारा मनचाही मात्रा में अगुणित पादप
किये जा सकते हैं।
3. पादप प्रजनन के प्रयोगों के दौरान संकर ओज (hybrid vigour) हेतु समयुग्मजी शुद्ध जनको को कम अवधि में प्राप्त किया जा सकता है।
4. आवृतबीजी पादपों का जीवन चक्र लम्बा व जटिल होता है। परागकोष ध्परागकणों से उत्पन्न अगुणित पादपकों की संरचना सरल व अगुणित ऊतकों का स्रोत होते हैं जिन्हें संवर्धन माध्यम में दीर्घ काल तक रखा जा सकता है।
5. संवर्धन पर रखे अगुणित कैलस द्वारा उत्परिवर्तन व जैव रसायन (mutation and biochemistry) के प्रयोग करने में सुविधा होती है।
6. पादप प्रजनन वैज्ञानिकों द्वारा संवर्धन पर वृद्धि कर रहे कैलस का उपयोग अनेक उत्तम गुणवत्ता वाली फसलों की किस्में प्राप्त करने में किया जाता है।
7. परागकोष से परिवर्धित परागकण विषमांगी होते हैं अतः इनकी आनुवंशिकी एक दूसरे से अलग प्रकार की हो जाती है जिसका उपयोग पादप प्रजनन वैज्ञानिकों द्वारा उत्तम गुणवत्ता के पादप प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
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