पादप भस्म विश्लेषण विधि क्या है , Analysis of plant ash in hindi , जन संवर्धन अथवा हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics)
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खनिज पोषण (Mineral Nutrition )
परिचय (Introduction)
विभिन्न प्रकार के सजीव प्राणियों को जीवन चक्र एवं सुचारू वृद्धि के लिए विभिन्न पदार्थों की आवश्यकता होती है, जिन्हें वे बाहर से ग्रहण करते हैं। इस आपूर्ति को पोषण (nutrition) कहते हैं। पोषण के आधार पर सजीव प्राणी दो मुख्य समूहों में विभेदित किये जाते हैं। विषमपोषी अथवा परपोषी (heterotrophic) एवं स्वपोषी (autotrophic)। विषमपोषी प्राणियों में कार्बनिक एवं अकार्बनिक दोनों पदार्थों की आपूर्ति बाहर से होती है, जबकि स्वपोषी प्राणियों में अकार्बनिक पदार्थों की आपूर्ति बाहर से होती है तथा कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण वे स्वयं करते हैं। सभी जलीय एवं स्थलीय पादप, प्रकाशसंश्लेषी जीवाणु एवं रसायन स्वपोषी जीवाणु इस वर्ग में आते हैं।
पादप अधिकांशतः अकार्बनिक आयन के रूप में खनिज तत्वों को ग्रहण करते हैं। ये खनिज तत्व पादप के के माध्यम से अवशोषित किए जाते हैं तथा इनका स्वांगीकरण होता है। इस प्रकार खनिज तत्व मूल तंत्र के माध्यम से जीवमण्डल में प्रविष्ट होते हैं। एक प्रकार से पादप भूमि की ऊपरी परत (crust) के खनक (miners) माने जा सकते हैं जो भू-पर्पटी (earth crust) में से खनिज तत्वों को निकाल लेते हैं। इस में पादप मूल मंत्र के विस्तृत पृष्ठ क्षेत्रफल (extensive surface area) का महत्वपूर्ण योगदान है। पादपों द्वारा खनिज तत्वों के अवशोषण एवं स्वांगीकरण व उनकी उपयोगिता के बारे में अध्ययन खनिज पोषण कहलाता है।
वुडवार्ड (Woodward. 1899) ने प्रेक्षण किया कि वर्षा जल की अपेक्षा मिट्टी युक्त पानी में पौधों की वृद्धि बेहतर होती है। डी सॉसर (de Saussure, 1804) ने अपनी पुस्तक “रिसचेंज चिमिक्स सर ला वेजिटेशन” (Researches chimiques sur la vegetation) में बताया कि पादप राख में उपलब्ध खनिज तत्व मृदा से आते हैं। लीबिग (Liebig, 1840) ने पादपों में खनिज तत्वों की आवश्यकता के बारे में बताया ।
पादप खनिज पोषण की अध्ययन विधियाँ- (Methods of study of mineral nutrition in plants)
पादपों में खनिज पोषण के अध्ययन के संबंध में वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न विधियों का प्रयोग किया गया। इनमें से कुछ विधियाँ निम्नलिखित हैं-
- पादप भस्म विश्लेषण (Analysis of plant ash) –
सामान्यतः किसी भी पादप में तीन मुख्य घटक होते हैं (4) जल, (b) कार्बनिक पदार्थ एवं (c) अकार्बनिक तत्व । किसी पादप को जड़ सहित लेकर उसे अच्छी तरह धो कर एवं अतिरिक्त पानी को ब्लोटिंग पेपर से सोखने के बाद उसका भार ज्ञात किया जाता है। यह उसका ‘ताजा भार’ (fresh weight) होता है। अब पादप को 100-110°C तापमान पर भली प्रकार सुखा कर उसका शुष्क भार (dry weight) ज्ञात किया जा सकता है। पादप में जल की मात्रा इन दोनों में अन्तर से निकाली जा सकती है जो 40-95% तक होता है। शुष्क पादप को विशिष्ट भट्टी (मफल फर्नेस) में 600°-700° C पर रखा जाता है। यह क्रिया भस्मीकरण (incineration) कहलाती है। इस प्रक्रिया में कार्बनिक पदार्थ विघटित हो कर CO2, SO2, H2O, NH3, CH4 N2 इत्यादि के रूप में निकल जाते हैं। बचे हुए पदार्थ को पादप भस्म (plant ash) कहते हैं एवं इसमें अवाष्पशील खनिज तत्व होते हैं। इस विधि से पादप में उपस्थित खनिज तत्वों की जानकारी मिलती है। पादप भस्म में विभिन्न खनिज तत्वों की मात्रा वातावरण, मृदा, जलवायु, पादप की प्रजाति इत्यादि पर निर्भर करती है। पादप भस्म के विश्लेषण से खनिजों की उपस्थिति का ज्ञान तो होता है परन्तु उस विशिष्ट खनिज की उस पादप के लिए अनिवार्यता अथवा आवश्यकता का ज्ञान नहीं होता। इसके लिए विभिन्न संवर्ध प्रयोग किए जाते हैं।
(2) रेत संवर्धन (Sand culture)
इस विधि में विभिन्न तत्वों की उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए पादपों को रेत (बालू) में उगाया जाता है। शुद्ध रेत / बजरी / सिलिका को विलेय लवणों से रहित करने के लिए पानी से अच्छी तरह धोया जाता है। रेत की क्षारीयता (alkalinity) को समाप्त करने के लिए अम्ल (HCI) द्वारा उपचारित किया जाता है तथा अम्ल को निकालने के लिए बार-बार जल से प्रक्षालित (wash) किया जाता है। कभी-कभी गर्म अम्लोपचार भी किया जाता है। इसके लिए धुली रेत पर HCI एवं ऑक्सेलिक अम्ल की उपस्थिति में 15lb/cm दाब पर दो घंटे तक भाप दी जाती है। फिर रेत को भली प्रकार धोते हैं। इस रेत को बूटामिन से पुते मिट्टी / चीनी मिट्टी के गमले में भर देते हैं। इसमें पादपों को उगाया जाता है। गमले में जल निकासी के लिए बने छिद्रों को ग्लास वूल युक्त वाच ग्लास से बंद किया जाता है। एक पौधे को पहले से प्राप्त जानकारी के आध र पर सभी पोषक तत्व आवश्यकतानुसार पानी में घोलकर रोज थोड़ी-थोडी मात्रा में दिये जाते हैं। यह पादप कन्ट्रोल पादप (control plant) होता है। अन्य प्रायोगिक पादपों को कन्ट्रोल की अपेक्षा एक अथवा अधिक खनिज कम दिये जाते हैं। चूंकि इनमें उस खनिज की कमी होती है, इन पादपों को अपूर्ण पादप कहते हैं। इन पादपों के न्यूनता लक्षण (deficiency symptoms) के आधार पर उस तत्व की उपयोगिता ज्ञात की जाती है।
रेत संवर्धन में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं-
(i) रेत की जल धारण क्षमता (water holding capacity) कम होने के कारण बार-बार सींचना पड़ता है।
(ii) रेत का तापमान शीतंऋतु में बहुत कम एवं ग्रीष्म काल में बहुत अधिक होता है जिसका मूल तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
आजकल रेत के स्थान पर अन्य उदासीन माध्यम जैसे सिलिका (silica), क्वार्टज (quartz), वर्मीकुलाइट (vermiculite) इत्यादि का भी उपयोग किया जाता है। वर्मीकुलाइट की जल अवशोषण क्षमता अधिक होती है तथा यह रेत की अपेक्षा गर्मी में ठंडा व शीत काल में गर्म रहता है।
- विलयन संवर्धन (Culture in solution)
इस तकनीक में पौधों को वांछित तत्वों के विलयन में उगाया जाता है। विलयन को पाइरैक्स ग्लास अथवा कड़े काँच के पात्र में रखा जाता है। पानी में ऑक्सीजन की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है. अतः पोषक घोल में निर्वात नलिका (vaccum tubes) द्वारा धीरे-धीरे वायु प्रवाहित की जाती है। पोषक विलयन में शैवालों की वृद्धि को रोकने के लिए विलयन युक्त पात्र को काले कागज से ढ़क दिया जाता है। इसके अतिरिक्त एक फनल के द्वारा माध्यम कम हो जाने पर विलयन डाला जा सकता है।
सैक्स (Sachs, 1860) एवं नॉप (Knopp, 1865 ) ने जल संवर्धन तकनीक द्वारा अनेक खनिज तत्वों की अनिवार्यता एवं महत्व के बारे में बताया। इस में भी पूर्व अर्जित जानकारी के आधार पर पोषक विलयन में कन्ट्रोल पादप तथा किसी एक अथवा अधिक खनिज तत्व रहित पोषक विलयन में प्रायोगिक पादप को लगाया जाता है तथा न्यूनता लक्षणों के आधार पर उक्त खनिज तत्व की महत्ता ज्ञात की जाती है।
- जन संवर्धन अथवा हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics)
मिट्टी रहित संवर्धन अथवा विलयन संवर्धन द्वारा पादप उगाने की विधि को जल संवर्धन (hydroponics) कहते हैं तथा इसे बड़े पैमाने पर पादप उगाने के लिए भी उपयोग किया जाता है। इसके लिए अनेक वैज्ञानिकों ने अनेक पोषक माध्यम विकसित किये जिनमें से कुछ संवर्धन माध्यमों का संगठन आगे तालिका में दिया गया है। विलयन संवर्धन हेतु कुछ ध्यान रखने योग्य बाते हैं-
- विलयन का pH समान रखना चाहिये ।
- विलयन का वातन भली प्रकार होना चाहिए ।
- सभी विलयनों का परासरण दाब ( osmotic pressure) एक समान होना चाहिए ।
- विलयन में आवश्यक तत्व प्रचुर मात्रा में (ample) होने चाहिए अर्थात् इन की कमी नहीं होनी चाहिये।
- विलयन को समय-समय पर बदलते रहना चाहिये ।
- पादप को सीधा रखने के लिए उचित सहारा होना चाहिये।
- वृद्धि के लिए आवश्यक अन्य कारक यथा तापमान व प्रकाश की मात्रा अनुकूल होनी चाहिये ।
तालिका- 1. विभिन्न जल संवर्धन माध्यमों के विभिन्न घटकों की सान्द्रता
(Concentration of various components in various water culture media) gm//
लवण- (Salts)
|
सैक का
विलयन (sechs solution) |
नॉप का
विलयन (knop’s solution) |
आर्नन एवं
होगलैंड का विलयन (arnon & Hoagland’s solution) |
व्हाहट का
विलयन (white’s solution) |
|
1. | कैल्शियम नाइट्रेट [Ca(NO3)2.4H2O] | 0.8 | 0.492 | 0.20 | |
2. | पोटाशियम नाइट्रेट (KNO3)
|
1.0 | 0.2 | 1.02 | 0.08 |
3. | सोडियम क्लोराइड (NaCl)
|
0.25 | |||
4. | कैल्शियम फास्फेट [Ca3(PO4)2]
|
0.5 | |||
5. | पोटाशियम डाईहाइड्रेजन फास्फेट (KH2 PO4) | 0.2 | |||
6. | आयरन फास्फेट (FePO4)
|
traces | |||
7. | सोडियम हाइड्रोजन फास्फेट [NaH2 PO4. H2O]
|
0.165 | |||
8. | मैग्नीशियम सल्फेट (MgSO4 . 7H2O)
|
0.5 | 0.2 | 0.49 | 0.36 |
9. | सोडियम सल्फेट (Na2SO4) | 0.20 | |||
10. | फैरिक सल्फेट [Fe2 (SO4)3]
|
traces | 0.025 | ||
11. | मैंगनीज सल्फेट (MnSO4)
|
0.045 | |||
12. | कैल्शियम सल्फेट (CaSO4) | 0.5 | |||
13. | जिंक सल्फेट (ZnSO4 . 7H2O)
|
0.015 | |||
14. | अमोनियम हाइहाइड्रोजन फास्फेट (NH4H2PO4)
|
0.23 | |||
15. | बोरिक अम्ल (H3BO3)
|
0.015 | |||
16. | पोटाशियम आयोडाइड (KI)
|
0.075 | |||
17. | पोटाशियम क्लोराइड (KCI)
|
0.2 | 0.065 | ||
18. | सूक्रोस | 2.00 | |||
19. | ग्लाइसिन
|
0.03 | |||
20. | निकोटिनिक अम्ल
|
0.05 | |||
21. | पायरीडॉक्सिन
|
0.01 | |||
22. | थायमीन
|
0.01 | |||
उपरोक्त लवणों के अतिरिक्त निम्न लवण भी शामिल किये जाते हैं-
A & H विलयन – H3BO3 (2.68), MnCl2. 4H2O (1.81), ZnSO4 . 7H2O(0.22), H2 MoO4.H2O (0.09), CuSO4 5H2O (0.08) सभी mg/L तथा FeSO4, 7H2O (5%) + टार्टरिक अम्ल (0.4%)- 6ml/L
व्हाइट माध्यम-सूक्रोस (2.00) ग्लाइसिन (0.03) निकोटिनिक अम्ल (0.05) पायरिडॉक्सिन (0.01) तथा थायमीन (0.01) सभी
दीर्घकाल तक जल संवर्धन हेतु विलयन में वातन की व्यवस्था बहुत आवश्यक है इसके लिये विलयन में तीव्र गति से वायु के बुलबुले प्रविष्ट करवाये जाते हैं।
अनेक परिस्थितियों में जल संवर्धन का व्यावसायिक स्तर पर पादप संवर्धन हेतु भी उपयोग किया जाता है। इस प्रकार की एक विधि पोषक फिल्म (Nutrient film) विधि कहलाती है जिसमें पादप की जड़ें, ट्रुफ की ऊपरी सतह पर होती है तथा पोषक विलयन एक परत के रूप में जड़ों पर लगातार बहता रहता है जिसे पम्प द्वारा पुनः प्रवाहित किया जा सकता है। इसमें विधि में वातन के लिये विशेष प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती।
अनेक वैज्ञानिकों ने पादपों की तीव्र एवं दीर्घकालीन
वृद्धि के लिये पोषक माध्यम विकसित किये हैं। डेनिस हॉगलैण्ड (Dennis Hoagland) द्वारा विकसित माध्यम में कुछ परिवर्तन करके उसी प्रकार का माध्यम बनाया गया है। इस तरह के पोषक माध्यम में लवणों की उच्चतम संभव सांद्रता जो कि पादपों के लिये हानिकारक (Toxic) नही रखी जाती है एवं पादपों को अधिक समय तक इसी विलयन से पोषण प्राप्त हो सके। अनेक वैज्ञानिक सांद्र विलयन की अपेक्षा तनु (Dilute ) विलयन का प्रयोग करते हैं तथा विलयन को बार-बार बदलते रहते हैं इस विधि में लवणों की सांद्रता में अधिक अंतर नहीं आता ।
जल संवर्धन के लाभ (Advantages of hydroponics)
जल संवर्धन मृदा में पादप संवर्धन (geoponics) की अपेक्षा लाभदायक है क्योंकि—
- पोषक विलयन के संघटन को सरलता से नियंत्रित किया जा सकता है।
- संवर्धन विलयन को बार-बार बदला जा सकता है जिससे विषाक्त पदार्थों का जमाव नहीं हो पाता।
- इसमें किसी प्रकार के कोलॉइड नहीं होते जो मृदा में पाए जाते हैं तथा पोषक तत्वों का अधिशोषण कर उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं।
- निराई, गुड़ाई इत्यादि की आवश्यकता नहीं होती। 5. इनमें खरपतवार उगने की संभावना नहीं होती।
- वातन का प्रबंध किया जाता है अतः मूल की वृद्धि भली प्रकार हो सकती है हालांकि जल संवर्धन में वातना प्रबंधन स्वयं ही एक समस्या है।
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