उभयचर वर्ग या एम्फिबिया class amphibia in hindi उभयचर की परिभाषा , लक्षण , वर्गीकरण , उपवर्ग
(class amphibia in hindi) उभयचर वर्ग या एम्फिबिया किसे कहते है ? उभयचर की परिभाषा , लक्षण , वर्गीकरण , उपवर्ग उदाहरण क्या है ?
वर्ग उभयचर अथवा एम्फिबिया (class amphibia)
प्राणियों के जातिवृत्तीय इतिहास की सबसे बड़ी घटना जलीय से स्थलीय जीवन पद्धति की ओर संक्रमण था तथा उभयचर इस परिवर्तन की चेष्टा करने वाले प्रथम जन्तु थे।
लेकिन वे पूर्णतया स्थल अनुकूलित नहीं है तथा जलीय और स्थलीय पर्यावरण के मध्य मंडराते रहते है। वर्ग का नाम भी इस दुहरे जीवन का द्योतक है। (एम्फी = दुहरा या द्विक)
संरचना की दृष्टि से उभयचर एक ओर मछलियों और दूसरी ओर सरीसृपों के मध्य में है।
सामान्य लक्षण (general characters)
- जलीय अथवा अर्द्धजलीय (स्वच्छ जलीय) , वायु तथा जल श्वसनीय , माँसाहारी , असमतापी अथवा शीत रुधिर , अंडप्रजक , चतुष्पादी कशेरुकी।
- सिर स्पष्ट , धड़ लम्बा और ग्रीवा तथा दुम वर्तमान या अनुपस्थित।
- पाद प्राय: 2 जोड़े (चतुष्पाद) , कुछ पाद रहित। पादांगुलियाँ 4-5 (पंचान्गुली) या कम। युग्मित पंख अनुपस्थित। मध्यवर्ती पंख यदि वर्तमान तो बिना पंख अरों के।
- त्वचा कोमल , नम तथा ग्रंथिल। वर्णक कोशिकाएँ (वर्णकीलवक , chromatophores) उपस्थित।
- बाह्यकंकाल अनुपस्थित। अंगुलियाँ नख रहित। कुछ उभयचरों में प्रच्छादित चर्मीय शल्क।
- अंत: कंकाल अधिकतर अस्थिल। नोटोकॉर्ड स्थायी नहीं होता। करोटि दो अनुकपाल अस्थिकंदों युक्त।
- मुख बड़ा। ऊपरी अथवा दोनों जबड़े छोटे समदंती दाँतों से युक्त। जिव्हा सामान्यतया बहि:सारी होती है। आहारनाल अवस्कर में समाप्त होती है।
- श्वसन फेफड़ों , त्वचा तथा मुख अस्तर से। डिम्भक बाह्य क्लोम युक्त जो कुछ जलीय वयस्कों में स्थायी हो सकते है।
- ह्रदय त्रिकक्षीय (2 आलिन्द + 1 निलय) , शिरा कोटर उपस्थित होते है। धमनीकांड पूर्ण विकसित। महाधमनी चापों के 1-3 जोड़े। वृक्क तथा यकृत निवाहिका तंत्र भलीभांति विकसित। लाल रूधिर कणिकाएँ बड़ी , अंडाकार तथा केन्द्रकयुक्त। शरीर का तापक्रम परिवर्तनशील होता है।
- वृक्क मध्यवृक्कीय। मूत्राशय बड़ा पाया जाता है। मूत्रवाहिनियाँ अवस्कर में खुलती है। उत्सर्जन यूरिया उत्सर्गी।
- मस्तिष्क अल्प विकसित होता है। कपाल तंत्रिकाएं 10 जोड़ी पायी जाती है।
- नासिकारंध्र मुखगुहा से सम्बन्धित होता है। मध्य कर्ण में स्तम्भिका नामक अकेली छड समान अस्थिका। डिम्भकीय रूप तथा कुछ जलीय वयस्कों में पाशर्व रेखा तंत्र होता है।
- लिंग पृथक। नर मैथुनांग रहित। जनद वाहिनियाँ अवस्कर में खुलती है। निषेचन अधिकतर बाह्य पाया जाता है। मादाएँ अधिकतर अंडप्रजक।
- परिवर्धन अप्रत्यक्ष पाया जाता है। विदलन समकोरकी लेकिन असमान। भ्रूण बाह्य कलाएं नहीं होती है। डिम्भक अथवा बैंगची एक टेडपोल जो वयस्क में कायांतरित हो जाता है।
एम्फिबिया का वर्गीकरण
जीवित एम्फिबिया की केवल 2500 जातियाँ है जो वर्टिब्रेटा के अन्य प्रमुख वर्गों से अत्यंत कम संख्या है तो भी ये मध्य पैलियोजोइक (डिवोनी कल्प) से आरम्भिक मेसोजोइक (ट्राइएसिक कल्प) तक के महान उभयचरी प्रसारणों अथवा विकिरणों की मात्र छाया को निरुपित करते है। कार्बोनिफेरस कल्प में संसार में उनका प्रभुत्व था लेकिन बहुत समय पूर्व उनमें से अधिकतर लुप्त हो गए। लुप्त उभयचरों के लगभग 10 गण केवल जीवाश्म अवशेषों से पहचाने जाते है।
आजकल का सामान्यतया सर्वाधिक मान्य वर्गीकरण जी. किंग्सले नोबल ने प्रदान किया था। उसने विलुप्त तथा जीवित उभयचरों के 3-3 गणों को माना। गत समय में उभयचरों के सब विलुप्त समूहों को एक अकेले उपवर्ग स्टेगोसेफैलिया में रखा जाता था। (एडम सैजविक) और सब जीवित समूहों को एक दूसरे उपवर्ग लिसएम्फिबिया में। इस आर्टिकल में युवा पाठकों की सुविधा के लिए इसी व्यवस्था का अनुसरण किया गया है।
उपवर्ग I : स्टेगोसिफैलिया : विलुप्त
पाद पंचान्गुली। त्वचा शल्कों तथा अस्थिल पट्टिकाओं से युक्त। करोटि नेत्रों तथा नासिकारंध्रो के छिद्रों को छोड़कर ठोस अस्थिल छत सहित। पर्मियन से ट्राइएसिक।
गण 1. लैबिरिन्थोडोन्शिया :
]स्तम्भ एम्फिबिया कहलाने वाले प्राचीनतम ज्ञात चतुष्पद। स्वच्छजलीय अथवा स्थलीय प्राणी। सैलामैन्डर अथवा मगर सदृश। अपने क्रोसोप्टेरी पूर्वजों के समान अभिलाक्षणिक अथवा विशेषतासूचक अत्यंत वलित डेंटाइन सहित बड़े दांत। कार्बनिफेरस से ट्राइएसिक तक।
उदाहरण : ऐरीओप्स
गण 2. फिल्लोस्पोंडाइली :छोटे सैलामैन्डर समान। सिर बड़े , चपटे पाए जाते है। कशेरुकायें नलिकाकार। नोटोकॉर्ड तथा रीढ़रज्जु एक सह गुहा में बंद। इनके आधुनिक सैलिएन्शिया तथा यूरोडेला के पूर्वज होने का विश्वास किया जाता था। कार्बोनिफेरस से पर्मियन तक।
उदाहरण : बैक्रिओसोर्स अथवा इक्थिओस्टेगा।
गण 3. लेपोस्पोन्डाइली :
छोटे सैलामैन्डर अथवा इल सदृश। कशेरुकाएं बेलनाकार , प्रत्येक एक खंड से बनी। तंत्रिका चाप तथा सेंट्रम अविछिन्न। पसलियाँ अन्तराकशेरुकीय संधित। आधुनिक सेसीलियंस (जिम्नोफीओना) के पूर्वज माने जाते है। कार्बोनिफेरस से पर्मियन तक।
उदाहरण : डिप्लोकॉलस , लाइसोरोफस।
उपवर्ग II. लिसएम्फिबिया : जीवित :
चर्मीय अथवा डर्मल अस्थिल कंकाल रहित आधुनिक उभयचर। दांत छोटे , साधारण।
गण 1. जिम्नोफिओना अथवा एपोडा :
(gymnos = naked , नंगा + ophioneous = serpent like , सर्प सदृश अथवा a = without बिना + podos = foot पाद)
1. पादहीन , दृष्टिहीन , दिर्घित कृमि सदृश , बिलकारी उष्णकटिबंधीय रूप जिन्हें सेसीलियंस कहते है।
2. दुम छोटी अथवा अनुपस्थित। अवस्कर अन्तस्थ।
3. कुछ रूपों में चर्मीय शल्क त्वचा में अंत:स्थापित। त्वचा अनुप्रस्थ रूप से झुर्रीदार।
4. करोटि सघन , अस्थि की छतयुक्त।
5. पाद तथा मेखलाएँ अनुपस्थित होती है।
6. नरों में बहि:सारी मैथुन अंग होते है।
उदाहरण : लगभग 55 जातियां। इक्थियोफिस , युरिओटिफलस , सैसीलिया।
गण 2. यूरोडेला अथवा कार्डेटा :
(ura = tail , दुम + delos = visible , दृश्य ; अथवा cauda = tail , दुम)
1. एक स्पष्ट दुम सहित छिपकली सदृश उभयचर।
2. पाद 2 जोड़े , सामान्यतया दुर्बल , लगभग बराबर।
3. त्वचा पर शल्कों और कर्णपटह का अभाव पाया जाता है।
4. क्लोम स्थायी अथवा वयस्क में नष्ट हो जाते है।
5. नर मैथुनांगो से हीन।
6. डिम्भक जलीय , वयस्क समान और दन्त युक्त।
7. 5 उपगणों में लगभग 300 जातियां।
उपगण 1. क्रिप्टोब्रैंकॉयडिया :
1. अत्यंत आद्य। स्थायी रूप से जलीय।
2. वयस्क बिना पलकों तथा क्लोमो के।
3. एन्ग्युकर तथा प्रीआर्टिक्युलर पृथक।
4. प्रीमैक्सिलरी कंटक छोटा पाया जाता है।
5. निषेचन बाह्य होता है।
उदाहरण : क्रिप्टोब्रैंकस , मेगालोबैट्रेकस।
उपगण 2. एम्बिस्टोमैटॉयडिआ :
1. पलकों से युक्त स्थलीय वयस्क।
2. एंग्युलर प्रीआर्टिक्युलर से संयुक्त होती है।
3. प्रीमैक्सिलरी कंटक बड़ा।
4. कशेरुकी उभयगर्ती।
5. निषेचन आंतरिक।
उदाहरण : एम्बिस्टोमा।
उपगण 3. सैलामैंड्रायडिआ :
1. कशेरुकायें पश्चगर्ती।
2. पैलेट तथा प्रीवोमर्स का दांत उपस्थित।
3. अवस्कर ग्रंथियां के तीन समुच्चय पाए जाते है।
4. निषेचन आंतरिक।
उदाहरण : न्युट्स जैसे ट्राइटन तथा ट्राईट्युरस , सैलामैन्डर्स जैसे सैलामेंड्रा तथा डेस्मोग्नेथस , कांगो इल अथवा एम्फियुमा , प्लीथोडॉन।
उपगण 4. प्रोटीडा :
1. जलीय तली निवासी , पलकहीन स्थायी डिम्भक रूपों का प्रतिनिधित्व करने वाले।
2. वयस्कों में 3 जोड़े क्लोम तथा 2 जोड़े क्लोम छिद्र।
3. करोटि उपास्थिल , बिना मैक्सिली के।
4. दांतदार जबड़े पाए जाते है।
उदाहरण : प्रोटिअस अथवा ओल्म , नैकट्यूरस अथवा पंक सरट।
उपगण 5. मीएंटिस :
1. जलीय और स्थायी डिम्भकों का प्रतिनिधित्व करने वाले।
2. अग्रपाद छोटे , पश्चपाद अनुपस्थित।
3. बाह्य क्लोमो के 3 जोड़े।
4. पलकें तथा अवसकर ग्रंथियां नहीं होती।
5. श्रृंगी आवरणयुक्त जबड़े।
उदाहरण : साइरेन अथवा पंक ईल , स्यूडोब्रैंक्स।
गण 3. सैलीएन्शिया अथवा एन्युरा :
(saliens = leaping कूदना अथवा an = without बिना + aura = tail दुम)
1. दुमरहित वयस्कों वाले विशिष्ट उभयचर।
2. पश्चपाद प्राय: कूदने तथा तैरने के लिए अनुकूलित।
3. वयस्क बिना क्लोमो अथवा क्लोम द्वारों के पाया जाता है।
4. पलकें पूर्ण निर्मित। कर्णपटह वर्तमान।
5. त्वचा ढीली , शल्क रहित। मैंडीबल्स दंतहीन।
6. अंस मेखला अस्थिल। पसलियाँ अनुपस्थित अथवा हासित। 5-9 पूर्वसेक्रल कशेरुकाओं तथा एक कृश यूरोस्टाइल सहित बहुत छोटा कशेरुकदंड।
7. निषेचन सदैव बाह्य होता है।
8. बिना चिरभ्रूणीय रूपों के पूर्णतया कायांतरित।
9. 5 उपगणों में मेंढकों और भेकों की लगभग 2200 जातियां पायी जाती है।
उपगण 1. एम्फिसिला :
1. कशेरुकाएँ उभयगर्ती , 9 पूर्वसेक्रल।
2. स्वतंत्र पसलियाँ तथा 2 अवशिष्ट दुम पेशियाँ।
3. आंतरिक निषेचन पाया जाता है।
उदाहरण : लीओपेल्मा , एस्केफस।
उपगण 2. ऑपिस्थोसीला :
1. पश्चगर्ती कशेरुकायें। छोटी स्कैपुला।
2. वयस्क अथवा डिम्भक में पसलियाँ स्वतंत्र पाए जाते है।
उदाहरण : ऐलाइटिस अथवा धातृ भेक , बोम्बिनेटर , डिस्कोग्लोसस , पाइप् , जेनोपस।
उपगण 3. ऐनोमोसीला :
1. अग्रगर्ती अथवा उभयगर्ती कशेरुकायें।
2. स्वतंत्र अस्थिभवित पसलियाँ अनुपस्थित।
3. ऊपरी जबड़ा दंतयुक्त पाया जाता है।
उदाहरण : पेलोबेटीज , स्कैफीओपस।
उपगण 4. प्रोसीला :
1. अग्रगर्ती कशेरुकाएं , 5 से 8 पूर्वसेक्रल।
2. दो अस्थिकन्दो से युक्त यूरोस्टाइल। स्वतंत्र पसलियाँ नहीं।
उदाहरण : सामान्य भेक अथवा ब्यूफो , राइनोडर्मा , डेन्ड्रोबेटीज , हाईला अथवा वृक्ष भेक , गैस्ट्रोथीका अथवा शिशुधानी मेंढक।
उपगण 5. डिप्लासीओसीला :
1. प्रथम 7 कशेरुकाएं अग्रगर्ती। 8 वाँ कशेरुक उभयगर्ती पाए जाते है। सेक्रल अथवा 9 वाँ कशेरुक अग्रतल पर उत्तल तथा पश्चतल पर 2 अस्थिकन्दो सहित।
2. अंस मेखला सामान्यतया उरोस्थि से समेकित अथवा संयुक्त। पसलियाँ अनुपस्थित।
उदाहरण : सामान्य मेंढक फिलोबैट्रेकस , वृक्ष मंडूक पोलीपीडेट्स अथवा रैकोफोरस।
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