अलंकार किसे कहते हैं | अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित क्या है | उसके भेद प्रकार alankar kya hota hai hindi mein
alankar kya hota hai hindi mein अलंकार किसे कहते हैं | अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित क्या है | उसके भेद प्रकार |
अलंकार की परिभाषा : जो अलंकृत करे, अर्थात् शोभा में वृद्धि करे उसे ‘अलंकार‘ कहते हैं। जैसे सुन्दर स्त्री की शोभा आभूषणों से बढ़ जाती है, वैसे ही कविता की शोभा अलंकारों से बढ़ती है। अलंकार शोभा को बढ़ा सकते हैं, शोभा उत्पन्न नहीं कर सकते, उसी तरह जैसे-आभूषण सुन्दर स्त्री की शोभा बढ़ा सकते हैं, पर कुरूप स्त्री को सुन्दर नहीं बना सकते। अलंकार प्रमुखतः दो प्रकार के होते हैं-शब्दालंकार, अर्थालंकार । अलंकार काव्य के आभूषण होने से काव्य की सजावट तो बढ़ा सकते हैं पर उन्हें काव्य का आन्तरिक तत्व नहीं माना जा सकता है।
दण्डी, रुद्रट, भामह, जयदेव आदि संस्कृत के अलंकारवादी आचार्य हैं, जबकि हिन्दी में आचार्य केशवदास को अलंकारवादी आचार्य कहा जाता है। अलंकारवादी आचार्य अलंकार को काव्य का प्राण तत्व मानते हैं पर अब ऐसा नहीं माना जाता है। कविता का मूल तत्व (प्राण तत्व) तो रस ही है।
1. शब्दालंकार
जहाँ शब्द विशेष के ऊपर अलंकार की निर्भरता हो, शब्दालंकार कहते हैं। शब्दालंकार में शब्द विशेष के प्रयोग के कारण ही कोई चमत्कार उत्पन्न होता है, इन शब्दों के स्थान पर समानार्थी दूसरे शब्दों को रख देने पर उसका सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
2. अर्थालंकार
कविता में जब भाषा का प्रयोग इस प्रकार किया जाता है कि अर्थ में समृद्धि और चमत्कार उत्पन्न हो तो उसे अर्थालंकार कहते हैं।
प्रमुख शब्दालंकार
प्रमुख शब्दालंकार हैं-अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, पुनरुक्ति, वीप्सा।
(1) अनुप्रास-जहाँ एक वर्ण की कई बार आवृत्ति हो यथा-
भूरि भूरि भेद भाव भूमि से भगा दिया
(2) यमक-एक शब्द अनेक बार अलग-अलग अर्थों में प्रयुक्त हो, यथा-
जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।
तारे = उद्धार करना, तारे = नक्षत्र
(3) श्लेष-एक शब्द एक बार अनेक अर्थों में प्रसंग भेद से प्रयुक्त हो, यथा-
पानी गये न ऊबरे मोती मानस चून।
पानी = आभा, इज्जत, जल
(4) वक्रोक्ति-उक्ति में वक्रता का समावेश हो, यथा-
मैं सुकुमारि नाथ वन जोगू।तुमहिं उचित तप मो कहँ भोगू।।
यह वाक्य वक्रोक्ति है। इसका दूसरा भेद श्लिष्ट वक्रोक्ति है। यथा-
को तुम हौं घनस्याम प्रिये तो बरसौ उत जाय ।
घनस्याम = कृष्ण, काले बादल
(5) पुनरुक्ति-एक ही शब्द एक ही अर्थ में दो बार प्रयुक्त हो । यथा-
ठौर-ठौर विहार करती सुन्दरी सुकुमारियाँ
(6) वीप्सा-शब्द की पुनरुक्ति भाव संवर्धन के लिए होने पर ‘वीप्सा अलंकार‘ होता है। यथा-
हा-हा इन्हें रोकन को टोक न लगावौ तुम
‘हा-हा‘ में वीप्सा है, क्योंकि यह दुःख भाव की वृद्धि कर रहा है।
प्रमुख अर्थालंकार
प्रमुख अर्थालंकार हैं-उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, संदेह, भ्रांतिमान, अनन्वय, प्रतीप, दृष्टान्त, अतिशयोक्ति ।
(1) उपमा-जहाँ रूप, रंग, गुण, धर्म के कारण एक वस्तु (उपमेय) की तुलना दूसरी वस्तु (उपमान) से की जाती है, वहाँ ‘उपमा अलंकार‘ होता है।
उदाहरण-हरिपद कोमल कमल से।
स्पष्टीकरण- यहाँ हरिपद की तुलना कमल से की गई है। दोनों में कोमलता का गुण समान रूप से विद्यमान है, अतः उपमा अलंकार है। उपमा के चार अंग होते हैं-उपमेय, उपमान, वाचक, साधारण धर्म । हरि पद कोमल कमल से।
हरिपद – उपमेय है, कमल – उपमान
कोमल – साधारण धर्म तथा से – वाचक शब्द है।
(2) रूपक-जहाँ उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप स्थापित कर दिया जाये, वहाँ ‘रूपक अलंकार‘ होता है।
अभेद आरोप का अर्थ है-भेद रहित आरोप अर्थात् उपमेय-उपमान में कोई भेद नहीं रहता। उपमेय पर उपमान इस तरह छा जाता है कि अब दर्शक, पाठक या श्रोता को केवल उपमान ही दिखाई पड़ता है। स्पष्ट है कि अब क्रिया उपमान की होगी।
अरुण गोविल यदि राम का रूप धारण करता है तो अभेद आरोप है क्योंकि वह अरुण गोविल की क्रियाएँ न करके राम की क्रियाएँ (लीलाएँ) ही करता है।
उदाहरण-अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी।।
स्पष्टीकरण-आकाश रूपी पनघट में उषा रूपी स्त्री तारे रूपी घड़े को डुबो रही है। आकाश पर पनघट का, उषा पर स्त्री का और तारों पर घड़े का अभेद आरोप होने से यहाँ रूपक अलंकार है। रूपक अलंकार के तीन उपभेद हैं-सांगरूपक, परम्परित रूपक, निरंग रूपक।
(3) उत्प्रेक्षा-उत्प्रेक्षा का अर्थ है कल्पना, जहाँ उपमेय में उपमान की कल्पना या सम्भावना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। मनु, मनो, जनु, जानो शब्द आने पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार‘ को पहचाना जा सकता है।
उदाहरण-सोहत ओढ़े पीत पटु स्याम सलोने गात ।
मनौ नीलमनि सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।।
स्पष्टीकरण-यहाँ श्रीकृष्ण का श्यामल शरीर और पीताम्बर उपमेय है। जिन पर क्रमशः नीलमणि पर्वत एवं प्रभातकालीन धूप की सम्भावना व्यक्त की गई है, अतः उत्प्रेक्षा अलंकार है। उत्प्रेक्षा के चार उपभेद माने गये हैं-(1) वस्तूत्प्रेक्षा, (2) हेतूत्प्रेक्षा, (3) फलोत्प्रेक्षा, (4) गम्योत्प्रेक्षा ।
(4) सन्देह-रूप-रंग आदि के सादृश्य से जहाँ उपमेय में उपमान का संशय बना रहे या उपमेय के लिए दिये गये उपमानों में संशय रहे, वहाँ ‘सन्देह अलंकार‘ होता है।
उदाहरण-सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।।
स्पष्टीकरण- साड़ी के बीच नारी है या नारी के बीच साड़ी-इसका निश्चय नहीं हो पाने के कारण सन्देह अलंकार है।
(5) भ्रान्तिमान-उपमेय में उपमान का भ्रम होने पर यदि तद्नुरूप क्रिया हो तो ‘भ्रान्तिमान अलंकार‘ होता है। भ्रान्तिमान में उपमान (भ्रांति) निश्चय हो जाता है इसलिए उपमेय की क्रिया उस भ्रांति के अनुसार ही होती है।
उदाहरण-बिल विचार कर नाग शुण्ड में घुसने लगा विषैला साँप।
काली ईख समझ विषधर को उठा लिया तब गज ने आप।।
स्पष्टीकरण- हाथी की सैंड को काले सर्प ने बिल समझा और वह घुसने लगा तथा हाथी ने काले सर्प को काला गन्ना समझकर सूंड़ से उठा लिया, अतः यहाँ भ्रान्ति होने के कारण भ्रान्तिमान अलंकार है।
(6) अनन्वय-जहाँ उपमेय की तुलना उपमेय से की जाये वहाँ ‘अनन्वय अलंकार‘ होता है। अनन्वय में उपमेय को ही उपमान बना दिया जाता है।
उदाहरण-भारत के सम भारत है।
स्पष्टीकरण-यहाँ भारत की तुलना भारत से ही करके अनन्वय अलंकार का विधान किया गया है।
(7) प्रतीप-प्रतीप का अर्थ है, उल्टा या विपरीत द्य यह अलंकार उपमा का उल्टा है, क्योंकि उपमा अलंकार में उपमान श्रेष्ठ होता है, जबकि ‘प्रतीप अलंकार‘ में उपमेय को श्रेष्ठ दिखाया जाता है या फिर उपमान को हीन या लज्जित दिखाकर उपमेय की श्रेष्ठता प्रतिपादित की जाती है।
उदाहरण-सिय सुख समता किमि करै चन्द बापुरो रंक ।
स्पष्टीकरण-बेचारा गरीब चन्द्रमा (उपमान) सीता जी के सुन्दर मुख (उपमेय) की तुलना कैसे कर सकता है? उपमेय की श्रेष्ठता प्रतिपादित होने से यहाँ प्रतीप अलंकार है।
(8) विशेषोक्ति-प्रतीप अलंकार में केवल उपमेय को श्रेष्ठ या उपमान को निकृष्ट बताया जाता है, जबकि विशेषोक्ति में यह भी बताया जाता है कि उपमेय उपमान से क्यों श्रेष्ठ है या उपमान उपमेय से क्यों हीन (निकृष्ट) है, जैसे-
जनम सिंधु पुनि बंधु विष दिन मलीन सकलंक।
सिय मुख समता किमि करै चन्द बापुरो रंक ।।
स्पष्टीकरण- बेचारा गरीब चंद्रमा सीता जी के मुख की तुलना कैसे कर सकता है क्योंकि चंद्रमा तो समुद्र से उत्पन्न होने से विष का भाई है, वह सीता जी के मुख की तुलना नहीं कर सकता अर्थात् सीता का मुख चंद्रमा से श्रेष्ठ है। यहाँ कारण सहित श्रेष्ठता का उल्लेख है, अतः विशेषोक्ति अलंकार है।
(9) दृष्टान्त-जहाँ उपमेय और उपमान के साधारण धर्म में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दिखाया जाये, वहाँ ‘दृष्टान्त अलंकार‘ होता है। उदाहरण-
पापी मनुज भी आज मुख से राम-नाम निकालते।
देखो भयंकर भेड़िये भी आज आँसू ढालते ।।
स्पष्टीकरण- यहाँ पापी मनुष्य का प्रतिबिम्ब भेड़िये में तथा राम-नाम का प्रतिबिम्ब आँसू से पड़ रहा है, अतः दृष्टान्त अलंकार है।
(10) अतिशयोक्ति-जहाँ किसी वस्तु का इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाये कि सामान्य लोक सीमा का उल्लंघन हो जाये वहाँ ‘अतिशयोक्ति अलंकार‘ होता है।
उदाहरण-लहरें व्योम चूमती उठतीं
स्पष्टीकरण- यहाँ समुद्र की लहरों को आकाश चूमते हुए कहकर उनकी अतिशय ऊँचाई का उल्लेख अतिशयोक्ति के माध्यम से किया गया है। अतिशयोक्ति अलंकार के कई उपभेद हैं, यथा-
(प) रूपकातिशयोक्ति, (पप) सम्बन्धातिशयोक्ति, (पपप) भेदकातिशयोक्ति,
(पअ)चपलातिशयोक्ति,(अ)अतिक्रमातिशयोक्ति,(अप) असम्बन्धातिशयोक्ति।
विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गये प्रश्न
6. भरत के अनुसार रसों की संख्या है-
(अ) 9 (ब) 8
(स) 10 (द) 11
उत्तर-(ब) 8
ज्ञान-भरत के अनुसार नाटक में रसों की संख्या केवल आठ मानी गयी है वे निर्वेद (स्थायी भाव) का अभिनय असंभव मानते हैं अतः शान्त रस को नाटक में स्थान नहीं देते।
7. ‘ध्वनि‘ सम्प्रदाय के प्रवर्तक हैं-
(अ) भरत मुनि (ब) मम्मट
(स) आनन्द वर्धन (द) अभिनवगुप्त
उत्तर-(स) आनन्द वर्धन
ज्ञान-ध्वनि सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य है आनन्द वर्धन, भरतमुनि रस समप्रदाय के प्रवर्तक है, मम्मट ने किसी नए सम्प्रदाय का प्रवर्तन नहीं किया जबकि अभिनवगुप्त ने अभिनव भारती में ध्वन्यालोक की टीका प्रस्तुत की है।
8. ‘वीभत्स रस‘ का स्थायी भाव है- उ.प्र.टी.ई.टी.
(अ) घृणा (ब) जुगुप्सा
(स) क्रोध (द) भय
उत्तर-(ब) जुगुप्सा
9. ‘काव्य प्रकाश‘ के रचयिता हैं- उ.प्र.टी.ई.टी.
(अ) विश्वनाथ (ब) महिमभट्ट
(स) मम्मट (द) कुन्तक
उत्तर-(स) मम्मट
ज्ञान-काव्य प्रकाश के रचयिता हैं मम्मट, विश्वनाथ ने साहित्य दर्पण, महिमभट्ट ने व्यक्ति विवेक और कुन्तक ने वक्रोक्ति जीवित नामक ग्रंथ लिखे।
10. ‘बिनु पग चलै सुनै बिनु काना‘ में कौन-सा अलंकार है ?
उ.प्र.टी.ई.टी.
(अ) विभावना (ब) विशेषोक्ति
(स) उत्प्रेक्षा (द) रूपक
उत्तर-(अ) विभावना
ज्ञान-बिनु पग चलै सुने बिनु काना में कारण (पैर का) के अभाव में कार्य (चलना, सुनना) सम्पन्न हो रहे हैं अतः विभावना अलंकार है।
11. ‘करुण रस‘ का स्थायीभाव है- उ.प्र.टी.ई.टी.
(अ) शोक (ब) ह्रास (स) भय (द) रति
उत्तर-(अ) शोक
ज्ञान-करुण रस का स्थायी भाव शोक है। किसी की मृत्यु हो जाने पर करुण रस होता हैय यथा-
शोक विकल सब रोवहि रानी।
रूप तेज गुण सील बखानी।।
राजा दशरथ की मृत्यु पर सभी रानियां उनके रूप, तेज, गुण, शील का बखान करते हुए रो रही थीं।
12. इनमें से कौन-सा छन्द वर्णिक है? उ.प्र.टी.ई.टी.
(अ) दोहा (ब) चैपाई (स) वंशस्थ (द) रोला
उत्तर-(स) वंशस्थ
ज्ञान-दोहा, चैपाई, रोला, मात्रिक छंद हैं क्योंकि इनमें मात्राएं गिनी जाती हैं जबकि वंशस्थ वर्णिक छंद है क्योंकि इसमें वर्गों की गिनती होती है।
13. ‘काली घटा का घमण्ड घटा‘ में कौन-सा अलंकार है?
उ.प्र.टी.ई.टी.
(अ) श्लेष (ब) यमक
(स) अनुप्रास (द) उपमा
उत्तर-(ब) यमक।
ज्ञान-घटा शब्द का प्रयोग दो बार अलग-अलग अर्थों में हुआ है, यथा घटा = काली बदली द्य घटा = कम हो गया। अतः रूपक अलंकार है।
14. ‘भारत के सम भारत है‘ में कौन-सा अलंकार है?
(अ) उपमा (ब) प्रतीप
(स) अनन्वय (द) उत्प्रेक्षा
उत्तर-(स) अनन्वय
ज्ञान-भारत के सम भारत है में अनन्वय अलंकार है क्योंकि भारत (उपमेय) की तुलना भारत (उपमान) से ही की गयी है।
15. ‘पीपर पात सरिस मन डोला‘ में अलंकार है- उ.प्र. टी.ई.टी.
(अ) उपमा (ब) रूपक
(स) उत्प्रेक्षा (द) प्रतीप
उत्तर-(अ) उपमा
ज्ञान-पीपर पात सरिस मन डोला में उपमा (पूर्णोपमा) अलंकार है। यहाँ उपमान के चारों अंग- उपमेय- मन, उपमान- पीपर पात, वाचक- सरिस, धर्म – डोला (चंचल) उपस्थित हैं।
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