अम्ल – क्षार सूचक , ओस्टवाल्ट का सिद्धान्त , क्विनोनॉइड सिद्धांत , अम्ल व क्षार के मध्य अनुमापन
(acid base indicator in hindi) अम्ल – क्षार सूचक : अम्ल-क्षार का अनुमापन करते समय बाहर से डाले जाने वाले वे पदार्थ जो अंतिम बिंदु की सूचना प्रदान करते है , अम्ल-क्षार सूचक कहलाते है।
इन सूचको का रंग H+ की सांद्रता पर निर्भर करता है अत: इन्हें H + या OH– सूचक भी कहते है।
सूचकों के सिद्धान्त : सूचकों की क्रियाविधि को समझाने के दो सिद्धांत दिए गए –
[I] ओस्टवाल्ट का सिद्धान्त (ostwald theory)
[II] क्विनोनॉइड सिद्धांत (quinonoid theory)
[I] ओस्टवाल्ट का सिद्धान्त (ostwald theory)
इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है –
- प्रत्येक सूचक दुर्बल अम्लीय या दुर्बल क्षारीय प्रवृति का होता है।
- सूचकों की आयनित व अन आयनित अवस्थाओं के रंग अलग अलग होते है।
- विलयन का रंग आयनित व अन आयनित अवस्थाओं के अनुपात पर निर्भर करता है।
- अम्लीय सूचक क्षारीय माध्यम में गहरा रंग देते है जबकि क्षारीय सूचक अम्लीय माध्यम में गहरा रंग देते है।
उदाहरण :(i) मैथिल ओरेंज (methyl orange) [MeOH] : यह एक दुर्बल क्षारीय सूचक है व इसे ‘MeOH’ से व्यक्त करते है।
इसकी आयनित व अन आयनित अवस्थाओ के रंग निम्न है –
W.B. MeOH ⇌ Me+ + OH–
Yellow red
क्षारीय माध्यम में methyl ऑरेंज पिला रंग प्रदर्शित करता है क्यूंकि क्षारीय माध्यम में सम आयन प्रभाव के कारण मैथिल ऑरेंज का आयनन कम होता है जिससे विलयन में MeOH की सांद्रता अधिक होती है अत: विलयन का रंग पिला होता है।
W.B. MeOH ⇌ Me+ + OH–
S.B. BOH ⇌ B+ + OH–
अम्लीय माध्यम में MeOH लाल रंग प्रदर्शित करता है क्योंकि अम्ल की उपस्थिति में MeOH का आयनन अधिक होता है इससे विलयन में Me+ की सांद्रता अधिक होने से विलयन का रंग लाल होता है।
W.B. MeOH ⇌ Me+ + OH–
S.A. HA ⇌ A– + H+
उदाहरण :(ii) : फिनॉफ्थेलीन : यह एक दुर्बल अम्लीय सूचक है।
इसे ‘HPh’ से व्यक्त करते है , इसकी आयनित व अन आयनित अवस्थाओ के रंग निम्न है –
W.A. HPh ⇌ H+ + Ph–
रंगहीन पिंक
अम्लीय माध्यम में फिनॉफ्थेलीन कोई रंग प्रदर्शित नहीं करता है क्योंकि अम्ल की उपस्थिति से सम आयन प्रभाव के कारण फिनॉफ्थेलीन का आयनन कम हो जाता है , जिससे विलयन में फिनॉफ्थेलीन की सान्द्रता अधिक होने के कारण विलयन रंगहीन होता है।
W.A. HPh ⇌ H+ + Ph–
S.A. HA ⇌ A– + H+
क्षारीय माध्यम में में फिनॉफ्थेलीन गुलाबी रंग प्रदर्शित करता है क्योंकि क्षारीय माध्यम में फिनॉफ्थेलीन का आयनन अधिक होता है जिससे Ph– की सांद्रता विलयन से अधिक होती है अत: विलयन गुलाबी रंग प्रदर्शित करता है।
W.A. HPh ⇌ H+ + Ph–
रंगहीन पिंक
S.B. BOH ⇌ B+ + OH–
[II] क्विनोनॉइड सिद्धांत (quinonoid theory)
इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है –
- सूचक एरोमेटिक यौगिक होते है।
- इनमें बेंजीन वलय दो रूपों में पायी जाती है।
- बेन्जिनोइड (benzenoid) वलय का रंग हल्का होता है जबकि क्विनोनॉइड (quinonoid) वलय का रंग गहरा होता है।
- अम्लीय से क्षारीय माध्यम या क्षारीय से अम्लीय माध्यम करने पर एक वलय दूसरी वलय में बदल जाती है।
उदाहरण : फिनॉफ्थेलीन।
अम्ल व क्षार के मध्य अनुमापन
[I] प्रबल अम्ल व प्रबल क्षार के मध्य अनुमापन : प्रबल अम्ल में प्रबल क्षार डालने पर पहले pH का मान धीरे धीरे बढ़ता है , लेकिन एक बूंद क्षार की डालने पर pH अचानक 10 हो जाती है अत: pH में तीव्र परिवर्तन 4-10 होता है , अत: वे सूचक जो इस अंतराल में रंग परिवर्तन करते है उन्ही सूचकों को इस अनुमापन में उपयोग किया जाता है।
methyl ऑरेंज (pH परास : 3.1-4.5)
फिनॉफ्थेलीन (pH परास : 8.3-10)
[II] प्रबल क्षार व दुर्बल अम्ल के मध्य अनुमापन : दुर्बल अम्ल में प्रबल क्षार डालने पर pH में परिवर्तन 6.5-10 तक हो जाता है। अत: वे सूचक जो इस अंतराल में अपना रंग परिवर्तित करते है उन्ही सूचकों को उस अनुमापन में प्रयुक्त किया जाता है।
उदाहरण : फिनॉफ्थेलीन।
नोट : methyl ऑरेंज को इस अनुमापन में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अपना रंग उदासीनीकरण बिंदु से पहले ही प्रदर्शित कर देता है।
[III] प्रबल अम्ल व दुर्बल क्षार के मध्य अनुमापन : प्रबल अम्ल में दुर्बल क्षार डालने पर pH में तीव्र परिवर्तन 3-7 तक होता है , अत: वे सूचक जो इस अंतराल में अपना रंग परिवर्तित करते है , उन्ही सूचकों को इस अनुमापन में प्रयुक्त किया जाता है।
उदाहरण : methyl orange
नोट : फिनॉफ्थेलीन को इस अनुमापन में सूचक के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि फिनॉफ्थेलीन अपना रंग उदासीनीकरण बिंदु के बाद प्रदर्शित करता है।
[IV] दुर्बल अम्ल व दुर्बल क्षार के मध्य अनुमापन : दुर्बल अम्ल व दुर्बल क्षार के मध्य अनुमापन में pH ने तीक्ष्ण परिवर्तन नहीं होता है , अत: इस प्रकार के अनुमापन नहीं करने चाहिए।
इस अनुमापन में pH में धीरे धीरे परिवर्तन 6-8 तक होता है अत: वे सूचक जो इस अन्तराल में अपना रंग परिवर्तित नहीं करते उन्ही सूचकों को इस अनुमापन में प्रयुक्त किया जाता है।
उदाहरण : फिनोल रेड (6.8 – 8.4)
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