WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

फ्रैंडलिय अधिशोषण समतापी सम्बन्ध एवं वक्र , विलयन अवस्था में अधिशोषण , अधिशोषण के अनुप्रयोग 

फ्रैंडलिय अधिशोषण समतापी सम्बन्ध एवं वक्र : फ्रैंडलीय नामक वैज्ञानिक ने स्थिर ताप पर अधिशोषण की मात्रा (x/m) व दाब (P) के मध्य सम्बन्ध को गणितीय रूप में समझाया।

इस सम्बंध को फ्रैंडलिय अधिशोषण समतापी सम्बन्ध कहते है तथा वक्र को फ्रेण्डलिय अधिशोषण समतापी वक्र कहते है।  इसके लिए फ्रेण्डलिय ने सामान्य अधिशोषण समतापी वक्र का अध्ययन किया।

इसके तीन प्रेक्षण दिए –

1.निम्न दाब पर : निम्न दाब पर अधिशोषण की मात्रा (x/m) , दाब (P) की प्रथम घात के समानुपाती होती है अर्थात दाब बढाने पर अधिशोषण बढ़ता है।

x/m ∝ P1

2. उच्च दाब पर : उच्च दाब पर अधिशोषण की मात्रा (x/m) , दाब (P) के शून्य घात के समानुपाती होती है अर्थात दाब बढाने से अधिशोषण स्थिर रहता है।

x/m ∝ P0

इस/इन प्रेक्षणों से फ्रेण्डलिय ने तीसरा महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाला।

3. मध्यम दाब पर : मध्यम दाब पर अधिशोषण की मात्रा (x/m) दाब के प्रथम व शून्य घात के मध्य किसी संख्या के समानुपाती होती है।

x/m ∝ P1/n

1/n = 1 से 0 के मध्य

समानुपाती का चिन्ह हटाने पर

x/m =K P1/n

इस समीकरण को फ्रेण्डलिय अधिशोषण समतापी सम्बन्ध कहलाता है।

यहाँ n और k स्थिरांक है जिनका मान अधिशोषक व अधिशोष्य की प्रकृति पर निर्भर करता है।

विलयन अवस्था में अधिशोषण (absorption in solution phase) : यदि अधिशोष्य पदार्थ विलयन में उपस्थित हो तो इस विलयन में ठोस अधिशोषक पदार्थ डालने से अधिशोष्य के कण अधिशोषक की सतह पर अधिशोषित हो जाते है , यह घटना विलयन अवस्था में अधिशोषण कहलाती है।

x/m =K C1/n

C = सांद्रता

विलयन अवस्था में अधिशोषक के उदाहरण : 1. यदि शर्करा विलयन में रंगीन अशुद्धियां उपस्थित हो तो इस विलयन में जांतव चारकोल डालने से रंगीन अशुद्धियो जान्तव चारकोल की सतह पर अधिशोषित हो जाती है तथा विलयन शुद्ध हो जाता है।

2. असिटिक अम्ल के अधिक सान्द्र विलयन में चारकोल डालने से उस विलयन की सांद्रता कम हो जाती है क्योंकि चारकोल विलयन में से एसिटिक अम्ल के कुछ अंश का अधिशोषण कर लेता है।

विलयन अवस्था में अधिशोषण की फ्रेण्डलिय समीकरण : फ्रेण्डलिय समीकरण विलयन अवस्था में अधिशोषण का काफी हद तक सत्यापन करती है लेकिन इसमें दाब (P) के स्थान पर सांद्रता पद (C) का प्रयोग करते है।

विलयन अवस्था में अधिशोषण की फ्रेण्डलिय समीकरण निम्न प्रकार है –

x/m =K C1/n

C = सांद्रता

Log x/m व log C के मध्य वक्र खीचने पर वक्र सरल रेखा के रूप में प्राप्त होता है।

विलयन की सान्द्रता बढाने पर अधिशोषण की मात्रा बढती है।

अधिशोषण के अनुप्रयोग

1. गैस मास्क में : गैस मास्क में सक्रीय चारकोल उपस्थित होता है , यह सक्रीय चारकोल जहरीली गैसों जैसे CO , CH4 को अधिशोषित कर लेता है अत: गैस मास्क के उपयोग से खानो में काम करने वाले मजदूरो को श्वास लेने में परेशानी नहीं होती।

2. नमी पर नियंत्रण : सिलिका जेल का उपयोग करके नमी को नियंत्रित किया जा सकता है अत: महंगे उपकरण जिन पर नमी का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है उनको सिलिका जैल के उपयोग से सुरक्षित रखा जा सकता है।

3. कपड़ो की रंगाई : कपड़ो की रंगाई में फिटकरी का उपयोग होता है , यह फिटकरी रंजक के कणों को अधिशोषित कर लेती है।

4. रंगीन अशुद्धियो के पृथक्करण में : यदि शर्करा विलयन में रंगीन अशुद्धियाँ उपस्थित हो तो उन रंगीन अशुद्धियों को जान्तव चारकोल पर अधिशोषित करके पृथक कर सकते है।

5. उच्च निर्वात उत्पन्न करने में : किसी बंद निर्वातक पात्र में बची हुई लेश मात्रा की वायु को चारकोल पर अधिशोषित करके उच्च निर्वात उत्पन्न किया जा सकता है।

6. विषमांगी उत्प्रेरण में : कुछ औद्योगिक प्रक्रम विषमांगी उत्प्रेरण पर आधारित होते है , और विषमांगी उत्प्रेरण में अधिशोषण क्रिया होती है जैसे अमोनिया बनाने की हाबर विधि।

N2 + 3H2 = 2NH3

Fe उत्प्रेरक पर N2 व H2 का अधिशोषण होता है।

7. आयन विनिमय रेजिन/जल के विलवनीकरण में : कुछ कार्बनिक पदार्थो में (बहुलको में SO3H , COOH आदि) समूह उपस्थित होते है , यह बहुलक जल में से विशिष्ट आयनों का अधिशोषण कर लेता है अत: इस क्रिया द्वारा कठोर जल मृदु जल में बदल जाता है।

8.  गुणात्मक विश्लेषण में : Al3+ आयन का लेक परिक्षण अधिशोषण पर आधारित है , इस परिक्षण में AlO3 (एल्युमिनियम हाइड्रोक्साइड) विलयन में से नीले रंग का अधिशोषण कर लेता है।

9. क्रोमेटोग्राफी / वर्णलेखिकी में : इस विधि का उपयोग द्रव मिश्रण या गैसीय मिश्रण में उपस्थित अवयवो के पृथक्करण में किया जाता है , इसे विधि में मिश्रण में उपस्थित अवयवों के अधिशोषण क्षमता अलग अलग होने के कारण , यह अवयव अधिशोषक पदार्थ पर अलग अलग जगह अधिशोषित हो जाते है।

इस प्रकार मिश्रण के अवयवो का पृथककरण होता है , इस विधि में दो प्रवास्थाएं होती है –

1. स्थिर प्रावस्था – अधिशोषक

2. गतिमान प्रावस्था – अधिशोष्य