(renewable and nonrenewable resources in hindi) नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधन में अंतर क्या है ? : विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है जो निम्नलिखित है –
1. नवीकरणीय अथवा पुनर्विकास संसाधन (renewable resources)
2. अनवीकरणीय अथवा अपुनर्विकासी संसाधन (non renewable resources)
नवीकरणीय संसाधन वे होते है जिनमे पुनःस्थापना की एक सहज क्षमता होती है तथा यदि उन्हें विवेकपूर्ण ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो वे अपने आप यथावत बनाये रखते है। पौधे तथा जन्तु चाहे वे जंगली अवस्था के हो या पालतू – इसके उदाहरण है। इन सब में मनुष्य द्वारा क्षति प्राप्त होने के बावजूद पीढ़ी दर पीढ़ी कायम बने रहने की क्षमता होती है तथा उसमे वे अपनी प्रजनन क्षमताओं का अधिक उपयोग करते है।
जल को भी जब सामान्य जल चक्र से प्राप्त किया जाता है तो वह एक नवीनकरणीय साधन है।
लेकिन कुछ स्थानों में हाल में “फ़ॉसिल जल” अर्थात पेट्रोलियम को भी निकालना शुरू कर दिया है , उस जल को जो प्राचीन भू-वैज्ञानिक युगों में धरातल के नीचे भंडार किया जाता रहा है तथा जब एक बार समाप्त हो जाता है तो दोबारा नहीं बन सकता है। अनवीकरणीय साधन वे होते है जिनकी व्यावहारिक अर्थो में पुनःस्थापना नहीं हो सकती एवं न ऐसा होने की कोई आशा ही दिखाई पड़ती है। क्योंकि इसमें स्वयं अपना अस्तित्व बनाये रखने की कोई सहज शक्ति नहीं होती। वास्तव में हमारी पृथ्वी पर से किसी भी पदार्थ का लोप नहीं होता , लेकिन मनुष्य अनेक चीजो को उस स्वरूप से , जिसका वह प्रयोग कर सकता है , उस स्वरूप में बदलता रहता है जिसका वह प्रयोग नहीं कर सकता है।
वे पदार्थ जिनके चक्र इतने लम्बे होते है कि उन पर मानव का कोई नियंत्रण नहीं हो सकता , अनवीकरणीय होते है। मनुष्य हर वर्ष पेट्रोलियम तथा कोयले का प्रयोग करता है। ये दोनों ही चीजो लाखों करोडो वर्षों की अवधि में संचित हुई है तथा जब उन्हें जलाया जाता है तो वे ऐसी नष्ट हो जाती है कि दुबारा प्राप्त नहीं हो सकती।
मृदा एक ऐसा संसाधन है जिसे उचित प्रबंध करने का कायम बनाये रखा जा सकता है। लेकिन गलत तरीके से प्रयोग करने पर कुछ ही वर्षो में उसकी उर्वरता को ऐसा नष्ट किया जा सकता है कि उसे फिर से ठीक होने में हजार वर्ष लग जायेंगे। अर्थात जिस दृष्टिकोण से हम इन चीजों को ले रहे है उसके अनुसार मिट्टी भी अनवीकरणीय बन जाती है।
आदिम मानव (प्रिमिटिव मानव) जिन साधनों पर निर्भर रहता था वे अधिकांशत: नवीकरणीय थे। हम यह तर्क प्रस्तुत कर सकते है कि जिस समय मानव ने पत्थरों को काट काट कर औजार बनाने शुरू किये तभी से उसने प्रकृति से संसाधनों का अपहरण शुरू कर दिया था लेकिन उसने अनवीकरणीय साधनों का तब तक किसी महत्वपूर्ण मात्रा में अपहरण नहीं किया था जब तक उसने धातुओं का प्रयोग करना न सीख लिया। सोना चाँदी , तांबा , लोहा आदि ये सारी चीजे ऐसी है जो एक बार खानों से बाहर निकालकर दुबारा स्थापित नही की जा सकती। पृथ्वी की सतह पर आसपास इन धातुओं के जितने जमाव थे वे शीघ्र समाप्त हो गए तथा फिर मनुष्य को अधिक दूर दूर के एवं गहरे गहरे क्षेत्रो में खानों की खोज करके चीजे प्राप्त करने के अधिक जटिल तरीके अपनाने पड़े।
नवीन दृष्टिकोण : अभी तक मानव सब कुछ ठीक ही करता आ रहा है। उसने धातुओं तथा इंधनों के नए नए भण्डारो की खोज की है और इनकी इतनी अधिक तेजी से खोज की है जितनी तेजी से वह उनका प्रयोग नहीं कर सकता है। लेकिन जैसा कि निराशावादी लोग कहते है , यह चीज हमेशा नहीं चलती रह सकती। मानव अनवीकरणीय साधनों का बड़ी मात्रा में केवल पिछले कुछ सौ वर्षो से ही प्रयोग करता चला आ रहा है , तथा सम्पूर्ण मानव इतिहास में यह बहुत ही थोडा समय है और भू वैज्ञानिक काल की दृष्टि से तो यह एक क्षण के ही समान है। कोई भी व्यक्ति इस बात का दावा नहीं कर सकता है कि मिट्टी का तेल अथवा कोयला या सरलता से खोदकर निकाला जाने वाला लोहा भी सदा चलते रहेंगे। इसके विपरीत आशावादी लोग इस बात को महत्व नहीं देते है कि सुरक्षित साधन समाप्त होते जा रहे है , उन्हें मनुष्य की कार्यकुशलता में पूर्ण विश्वास है। उनका अनुमान है कि जैसे जैसे किसी एक पदार्थ की उपलब्धि समाप्त होती जाती है वैसे वैसे या तो हम नए साधनों को ढूंढ निकालेंगे अथवा उनका नए सिरे से आविष्कार कर लेंगे। लोहे की जगह एल्कोहल का प्रयोग होगा जिसे कुछ फसलो में से आसुत किया जा सकता है। यदि मनुष्य सीधे सूरज की ऊर्जा को प्रयोग में लाना सीख जाए तो उसे ऊर्जा की उपलब्धि की चिंता सदा के लिए समाप्त हो जाएँगी। आशावादी तथा निराशावादियों दोनों ही की बातो में कुछ सत्य है। मनुष्य ने अपनी कार्य निपुणता को प्रमाणित कर दिया है , लेकिन साथ ही उसने यह भी सिद्ध कर दिया है कि वह वस्तुओं का अपव्यय और उनका विनाश भी करता रहा है। मानव के लिए इंधन के सबसे पुराना साधन लकड़ी और कोयला थे। इन दोनों चीजो के स्रोत सैद्धांतिक दृष्टि से नवीकरणीय है लेकिन अक्सर मानव ने जंगलो को इतनी अधिकता से काट काटकर साफ़ किया कि वे वास्तव में अनवीकरणीय ही बन गए। इस चीज का प्रमाण भूमध्यसागर के आसपास के क्षेत्र में परिलक्षित हो जाता है। औधोगिक क्रांति के दौरान मानव ने कई ऐसे फांसिल इंधनों को भारी मात्रा में जलाना शुरू कर दिया जिनका प्रतिस्थापन नहीं हो सकता है , इनमे पहले कोयला लिया , फिर मिट्टी का तेल और अब प्राकृतिक गैस।