पादप कोशिका किसे कहते है | Plant cell in hindi पादप में कोशिका के प्रकार , चित्र , संरचना , डायग्राम
Plant cell in hindi पादप कोशिका किसे कहते है , पादप में कोशिका के प्रकार , चित्र , संरचना , डायग्राम परिभाषा क्या होती है , लक्षण या गुण कैसे होते है ?
पादप में कोशिका के प्रकार
मृदुतक कोशिकाएंः इस ऊतक की कोशिकाएं जीवित, गोलाकार, अंडाकार, बहुभुजी या अनियमित आकार की होती हैं। इस प्रकार की कोशिकाओं के बीच अंतर कोशिकीय स्थान रहता है।
स्थूलकोण कोशिकाएःं इस ऊतक की कोशिकाएं केन्द्रकयुक्त, लम्बी या अण्डाकार या बहुभुजी, जीवित तथा रसधानीयुक्त होती हैं। इनमें हरितलवक होता है एवं भिति में किनारों पर सेलूलोज होने से स्थूलन होता है।
दृढ़ कोशिकाएंः इस ऊतक की कोशिकाएं मृत, लंबी, संकरी तथा दोनों सिरों पर नुकीली होती हैं। इनमें जीवद्रव्य नहीं होता है एवं इनकी भिति लिग्निन के जमाव के कारण मोटी हो जाती है।
जाइलमः यह पौधों के जड़, तना एवं पत्तियों में पाया जाता है। यह चार विभिन्न प्रकार के तत्वों से बना होता है। ये हैंः वाहिनिकाएं, वाहिकाएं, जाइलम तंतु तथा जाइलम मृदुत्तक।
फ्लोएमः जाइलम की भांति फ्लोएम भी पौधे की जड़, तना एवं पत्तियों में पाया जाता है। यह पत्तियों द्वारा तैयार भोज्य पदार्थ को पौधों के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है। फ्लोएम निम्नलिखित चार तत्वों का बना होता है हैरू चालिनी नलिकाएं, सहकोशिकाएं, फ्लोएम तंतु तथा फ्लोएम मृदुत्तक ।
विभाज्योतिकीः यह ऐसी कोशिकाएं है, जिनमें बार-बार सूत्री विभाजन करने की क्षमता होती है।
पेड़-पौधों की विभिन्न क्रियाएं
प्रकाश संश्लेषण
इस प्रक्रिया में पर्णहरित युक्त हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थित में कार्बनिक पदार्थ लेकर ग्लूकोज के रूप में अपना भोजन बनाते हैं और ऑक्सीजन को वायुमंडल में छोड़ते हैं, अर्थात पौधे जल, प्रकाश, क्लोरोफिल और की उपस्थित में कार्बोहाइड्रेट्स बनाते हैं।
क्लोरोफिल
प्रकाश-संश्लेषण की दर लाल प्रकाश में अधिकतम और बैगनी प्रकाश में न्यूनतम होती है।
* क्लोरोफिलः यह पौधे के हरे भाग में मौजूद हरा वर्णक (पिगमेंट) होता है। क्लोरोफिल के केन्द्र में मैग्नीशियम (डह) का एक परमाणु होता है।
श्वसन
* यह ऊर्जा उत्पन्न करने वाली एक प्रक्रिया है, जिसमें भोज्य पदार्थों का रासायनिक विघटन होता है और ऊर्जा एटीपी (।ज्च्) के रूप में प्राप्त होती है।
* कार्बनिक पदार्थ (ग्लूकोज या अन्य) का ऑक्सीकरण कोशिका (माइट्रोकांड्रिया) में ऑक्सीजन की उपस्थित या अनुपस्थित में होता है।
* अवशोषणः भूमिजल एवं कार्बनिक पोषक तत्वों का अवशोषण मूल के रोमों द्वारा होता है जो मूल के ऊतक दारू (Ûलसमउ) में पहुंचता है।
* उत्सर्जनः उपापचयन में बने वर्ण्य पदार्थों के पौधे या शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया उत्सर्जन कहलाती है। किसी पौधे में मुख्य उत्सर्जी पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन एवं जलवाष्प होते हैं।
एटीपी
श्वसन क्रिया में शर्करा तथा वसा का ऑक्सीकरण होता है तथा ऊर्जा मुक्त होती है। इस प्रक्रिया में एटीपी तथा ब्व्2, निकलती है। असल में श्वसन उन सभी प्रक्रियाओं का सम्मिलित रूप है जिनके द्वारा पादपों में ऊर्जा का उत्पादन होता है। श्वसन के समय मुक्त ऊर्जा का कुछ भाग कोशिका के माइटोकॉड्रिया में एटीपी के रूप में सचित हो जाती है। एटीपी के रूप में संचित यह ऊर्जा भविष्य में सजीव जीवधारियों के विभिन्न जैविक क्रियाओं के संचालन में प्रयुक्त होती है।
वाष्पोत्सर्जन
पौधों के वायवीय भागों से जल का वाष्प के रूप में उड़ना वाष्पोत्सर्जन कहलाता है। दूसरे शब्दों में वाष्पोत्सर्जन वह क्रिया है, जिसमें पादप सतह से जल वाष्प के रूप में उड़ता है। जल पौधों में अस्थायी होता है। जल की पर्याप्त मात्रा वाष्प के रूप में पत्ती की निम्न सतह पर उपस्थित रंध्रों के माध्यम से निष्कासित हो जाती है। वाष्पोत्सर्जन की क्रिया जड़ से पत्तियों तक जल के ऊपर की ओर पहुंचने में सहायक है।
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारकः
- प्रकाश की तीव्रताः प्रकाश की तीव्रता बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ती है।
- तापक्रमः तापक्रम के बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ती है।
- आर्द्रताः आर्द्रता के बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर घटती है।
- वायुः वायु की गति तेज होने पर वाष्पोत्सर्जन तीव्र गति से होता है।
खनिज लवण
पौधों की सामान्य वृद्धि के लिए अनेक खनिज तत्व जरूरी होते हैं। किसी भी एक खनिज की कमी या अधिकता होने से पौधे में कई रोग या उनके लक्षण आ जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। पौधों के खनिज लवणों को दो भागों में बाटा जा सकता हैः
1ण् वृहद पोषकः पौधों को इनकी अधिक आवश्यकता होती है। इनमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, गंधक, मैग्नेशियम, कैल्शियम आदि आते हैं।
2ण् सूक्ष्म पोषकः पौधों को कम मात्रा में इनकी जरूरत होती है, जैसे-क्लोरीन, बोरान, कॉपर, आयरन, मैंगनीज, मॉलिब्डेनम, जिंक, मैंगनीज आदि।
खनिज तत्वों के कार्य एवं इनकी कमी से पड़ने वाले प्रभाव
* कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजनः ये पौधों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, हार्मोन व वसा से प्राप्त होते हैं। इनकी कमी होने से पौधों में कार्बनिक पदार्थ नहीं बनते हैं।
* नाइट्रोजनः यह एमिनो अम्ल, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, एल्केलॉइड, साइटोक्रोम्स तथा क्लोरोफिल में होता है। नाइट्रोजन की कमी से पौधे बौने रह जाते हैं। नाइट्रोजन की अधिकता होने पर पौधों में सरलता तथा प्रतिरोधन क्षमता कम हो जाती है।
* पोटैशियमः यह तत्व एंजाइम के सहकार के रूप में होता है, तथा स्टोमेटा (रंध्र) की गति व प्रोटीन संश्लेषण के लिए जरूरी है। इसकी कमी होने पर रोग प्रतिरोधकता कम हो जाती है। अतः गन्ना, आलू, चुकन्दर को पोटैशियम की ज्यादा जरूरत होती है, साथ ही इनकी कमी होने पर पत्तियों पर सफेद व लाल निशान बन जाते हैं।
* फास्फोरसः यह तत्व न्यूक्लिक अम्ल (।ण्ज्ण्च्ण्ए ळण्ज्ण्च्ण् – छण्।ण्क्ण्च्ण्) में होता है जोकि संश्लेषण के लिए आवश्यक है। इसकी कमी से पौधे में शक्ति तथा गुणवत्ता कम हो जाती है, व नई कोशिकाओं की कमी से तने कमजोर हो जाते हैं।
* कैल्शियमः यह तत्व कैल्शियम पेक्टेट के रूप में कोशिका की मध्य पट्टिका बनाता है। इनकी कमी से कोशिका भित्ति की मध्य पटिका नहीं बनती है।
* सल्फरः यह एमिनो अम्ल के एन्जाइम-श्एश् में मिलता है। यह पौधों के डंठल के लिए जरूरी है। प्याज, लहसुन, मूली, चुकन्दर, मूंगफली, चूना में सल्फर काफी मात्रा में होती है।
* मैग्नीशियमः यह पर्णहरित में होता है तथा अनेक एंजाइमों का सहकारक है। इसकी कमी से पत्तियां पीली हो जाती हैं।
* जिंकः ऑक्सीजन बनाने हेतु आवश्यक तथा एंजाइम कार्बोनिक एन-हाइड्रेज व एल्कोहल डी-हाइड्रोजिनेज के लिए आवश्यक है। इनकी कमी होने पर पत्तियां छोटी हो जाती हैं। नींबू में छोटी पीली पत्ती का रोग इसी कारण से होता है।
* मैंगनीजः यह तत्व जल से प्रकाश विघटन तथा पर्णहरित संश्लेषण हेतु आवश्यक है तथा कई एंजाइमों का सक्रिय कारक है। इसकी कमी से क्लोरोफिल कम बनता है।
* कोबाल्टः लेग्यूमिनेसी कुल के पौधों में सहजीवी नाइट्रोजन यौगिकीकरण के लिए आवश्यक है। इसकी कमी से लैग हीमोग्लोबिन नामक गुलाबी पदार्थ के न बनने से नाइट्रेट कम बनेगा।
* मोलिब्डेनमः यह नाइट्रोजन की उपापचयी क्रियाओं के लिए जरूरी है। इसकी कमी होने पर फूलगोभी में चाबुक की तरह की पूंछ बन जाती है और नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु की क्रियाएं धीमी हो जाती हैं।
* तांबाः पर्णहरित के संश्लेषण हेतु आवश्यक एस्कोरबिक अम्ल ऑक्सीडेज में भी पाया जाता है। इसकी कमी होने पर पत्तियों का मुरझाना, कोशिकाओं का नष्ट हो जाना व टमाटरों में कांसे के रंग जैसा रोग हो जाता है।
* लोहाः यह तत्व साइटोक्रोम का अंग है जो कि प्रकाश संश्लेषण तथा श्वसन में इलेक्ट्रॉन स्थनांतरण में कार्य करता है। इसकी कमी से पर्णहरित कम बनता है तथा पत्ती पीली पड़ जाती है।
* बोरोनः यह विभाज्योतक की क्रियाशीलता हेतु आवश्यक है। इसकी कमी होने पर सेब व टमाटरों के फलों में डाइबैक एवं कोरेकिंग हो जाता है । फूलगोभी सफेद न होकर कांसे के रंग जैसी हो जाती है।
* क्लोरीनः यह प्रकाश संश्लेषण में जल प्रकाशीय विघटन के लिए आवश्यक है। इसकी कमी से जल प्रकाशीय विघटन नहीं होता है।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics